
सुभाष रस्तोगी
शिक्षाविद् और समीक्षक डॉ. उषा लाल हरियाणवी संस्कृति और साहित्य के प्रति समर्पित होने के साथ-साथ स्त्री-विमर्श और काव्यशास्त्र की अधिकारी विद्वान के रूप में भी जानी जाती हैं। ‘हिन्दी भाषा : अतीत और वर्तमान’ लेखिका का छठा शोध-समीक्षात्मक ग्रंथ है, जिसमें ग्यारह आलेख संगृहीत हैं जो इस प्रकार हैं- ‘आधुनिक भारतीय आर्यभाषाएं, ‘हिन्दी की बोलियां’, ‘खड़ी बोली : उद्भव और विकास’, ‘मानक हिन्दी’, ‘हिन्दी की शब्द-सम्पदा’, ‘हिन्दी की वाक्य-संरचना’, ‘राष्ट्रभाषा हिन्दी’, ‘राजभाषा हिन्दी’, ‘पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी’, ‘विश्वभाषा हिन्दी’ व ‘तकनीकी कसौटी पर हिन्दी’। ये आलेख लेखिका के प्राध्यापनकाल में और उसके बाद विभिन्न साहित्यिक संगोष्ठियों, सम्मेलनों, अकादमिक मंचों और पत्रिकाओं के लिए लिखे गए और अपने समवेत पाठ में आलेख पाठक को हिन्दी भाषा के उद्भव-काल से लेकर आज तक के सम्पूर्ण इतिहास के रूबरू खड़ा कर देते हैं।
मानव-मन की अनुभूतियों की शाब्दिका अभिव्यक्ति ‘भाषा’ कहलाती है। कबीर, जायसी, केशव आदि कवियों और संस्कृत ग्रंथों के टीकाकारों ने हिन्दी के लिए ‘भाषा’ शब्द का प्रयोग किया है। कबीर ने भाषा को ‘बहता नीर’ कहा है। भाषा के विकास की प्रक्रिया सतत प्रवाहमान रहती है। यही स्थिति हिंदी भाषा के विकास की भी है। हिन्दी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्द बिना किसी परिवर्तन के लिए ही गए, तद्भव, अर्धतद्भव और देशज शब्दों के अतिरिक्त अरबी, फारसी, तुर्की, पश्तो, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, डच, स्पेनी, इटैलियन, पुर्तगाली, जर्मन, जापानी, रूसी, चीनी और अफ्रीकी भाषाओं के शब्द कब हिन्दी शब्द संपदा का हिस्सा बन गए, पता ही नहीं चला। दरअसल, हिन्दी की विरल खासियत है कि यदि न बताया जाए तो इन विदेशी शब्दों को सामान्यतः हिन्दी भाषा के शब्दों के रूप में ही जाना जाता है यथा हिन्दी भाषा में ‘कमीज’, ‘पाजामा’, ‘हलवा’, ‘बुखार’ और ‘आसान’ जैसे शब्द फारसी से आए हैं तो ‘मास्टर’, ‘पिकनिक’, ‘जज’ और ‘गेम’ आदि फ्रांसीसी से, ‘रिक्शा’, ‘जूडो’ आदि जापानी से ।
अपने लगभग 1200 वर्षीय जीवन-काल में हिन्दी भाषा ने कई उतार-चढ़ाव, पड़ाव देखे हैं और कितने अवरोधों को पार करते हुए, भारत, राष्ट्र में ही नहीं विश्व-पटल पर अपना शीर्ष स्थान बनाया। इस दृष्टि से डॉ. उषा लाल की यह सद्य: प्रकाशित कृति ‘हिन्दी भाषा : अतीत और वर्तमान’ हिन्दी भाषा की विकास-गाथा का एक विहंगम परिदृश्य उजागर करती है। कंपनियां अपने विज्ञापनों में रोमन लिपि के सहारे हिन्दी को बाज़ारों में धड़ाधड़ उतार रही हैं। माइक्रोसॉफ्ट के ताजा विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम का हिन्दी इंटरफेस उपलब्ध है। हिन्दी में यूनिकोड फोंट आ जाने से स्थितियां काफी बदल गई हैं और यह एनकोडिंग प्रणाली हिन्दी ही नहीं, बल्कि दुनिया की सभी गैर-अंग्रेजी भाषाओं सहित सभी भारतीय भाषाओं के लिए वरदान सिद्ध हुई। हिन्दी अब विश्व-भाषा के रूप में कदमताल करती हुई इक्कीसवीं सदी में बाज़ार की सभी चुनौतियों का सामना करती हुई एक नया इतिहास लिखने की तैयारी में है।
पुस्तक : हिन्दी भाषा अतीत और वर्तमान लेखिका : डॉ. उषा लाल प्रकाशक : निर्मल पब्लिशिंग हाउस, कुरुक्षेत्र, हरियाणा पृष्ठ : 119 मूल्य : रु. 495.
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