सुदर्शन गासो
प्रो. किशोरीलाल व्यास ‘नीलकंठ’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘बंदा-बैरागी’ भारतीय इतिहास के निर्माण पुरुष बंदा सिंह बहादुर के जीवन व जीवन कार्यों पर प्रकाश डालती हुई पुस्तक है। इस पुस्तक में लेखक ने राजौरी (जम्मू) के डोगरा राजपूत लक्ष्मण दास के गुरु गोविन्द सिंह द्वारा दिए गए आशीर्वाद व प्रेरणा से बंदा सिंह बहादुर बनने के सफर व गाथा का उल्लेख किया है।
इस पुस्तक में लेखक ने मध्यकालीन भारतीय समाज की विकट जीवन परिस्थितियों का भी उल्लेख किया है। इन परिस्थितियों में भारतीय लोग मुगलों के हमलों व जुल्मों का सामना कर रहे थे और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की मार को भी झेल रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में गुरु साहिबान ने मानव रक्षा व धर्म रक्षा के लिए ऐतिहासिक युद्ध प्रारंभ किया। दसवें गुरु ने शुरू किए गए युद्ध को संपूर्ण करने व जीतने के लिए बंदा सिंह बहादुर को प्रेरित व निर्देशित किया। इस महान योद्धा ने गुरु जी द्वारा बताए गए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष प्रारम्भ किया और अभूतपूर्व विजय हासिल करते गए। उन्होंने पहली बार जमींदारों और तालुकादारों से जमीन छीनकर जोतने वाले किसानों में बांट दी। इस प्रकार बंदा बहादुर पहले समाजवादी चिंतक बने। बंदा सिंह बहादुर ने अपनी बहादुरी, साहस व शौर्य से ऐसे-ऐसे युद्ध जीते जो पहले किसी ने भी नहीं जीते थे।
लेखक ने पुस्तक को दो भागों में विभाजित किया है। पहले भाग में बंदा बहादुर की जीवनी है और दूसरे भाग में काव्य खंड हैं। दोनों भागों में ही लेखक ने संवेदना व भावना प्रधान भावों को प्रकट किया है। शैली सरल व सुगम भाषा में गुंथी हुई है।
पुस्तक : बंदा-बैरागी लेखक : प्रो. किशोरीलाल व्यास ‘नीलकंठ’ प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 275.