आत्म-अनुभूति से उपजे देसज छंद : The Dainik Tribune

पुस्तक समीक्षा

आत्म-अनुभूति से उपजे देसज छंद

आत्म-अनुभूति से उपजे देसज छंद

राजकिशन नैन

‘हरियाणा के रंग’ नामक अपने हरियाणवी कुंडलियों के ताजा संग्रह में सत्यवीर नाहड़िया ने हरियाणा प्रदेश के इतिहास और साहित्य के साथ-साथ यहां की संस्कृति, खेती-किसानी, पर्व-त्योहार, लोकजीवन और वास्तु धरोहरों की खूबियों को आत्मपरक अनुभूति से उपजे ठेठ देसज छंदों के जरिये रोचक अंदाज में कलमबद्ध किया है। चर्चित हास्य कवि हलचल हरियाणवी इन कुंडलियों की तारीफ करते कहते हैं-कवि नै कुंडली लिखण मंह जमा चाले पाड़्य राक्खे सैं, कती लठ-से गाड़ दिए। कमाल की कबिताई सै। ‘गिरधर’ बरगी धार सै। कुंडलिया छंद का नया छोटा रूप कुंडलिनी का भाव बखूबी निभाया सै। एक-एक कुंडलिनी इसी घड़ दी जणु कुम्हार माट्टी के बरतन घड़्‌या करै। नये-नये छंदां मंह रची ओड़ इस किताब मंह चार सौ छंद सैं, जिन्हनै बांच कै समूचा हरियाणा समझ‍्या जा सकै सै।’ बात सोलह आने सही है।

हरियाणवी भाषा से जुड़ा छंद देखिये– बोल्ली या हरियाणवी, भोत पुराणी खास/ हिन्दी की बी मात या, न्यूं जमता बिसवास/न्यूं जमता बिसवास, आप कम करकै तोल्ली/ भासा की हकदार, दिखे या धाकड़ बोल्ली। डॉ. अशोक बत्रा इस संग्रह को प्रबन्ध काव्य की बनिस्बत मुक्त संग्रह बताते लिखते हैं- ‘जिस प्रकार जयशंकर प्रसाद का ‘आंसू’ वेदनात्मक भर्ती का मुक्तक संग्रह है, उसी प्रकार यह प्रयास हरियाणवी संस्कृति के विविध रूपों का विशाल मुक्तक संग्रह है।

कृति की एक अन्य खूबी यह है कि इसमें अम्बाला, पानीपत, गुड़‌गांव, रेवाड़ी व रोहतक आदि जगहों के शौर्यपूर्ण कृत्य का वर्णन वीरता व्यंजक है। जैसे ‘हरियाणा मंह खास यो, पाणीपत मैदान/ तीन लड़ाई जित हुई, न्यारी न्यूं सै आन/ तान आल्हा की गाणा/ युद‍्द्धां का मैदान, रह‍्या सै यो हरियाणा।’ फिल्मकार हरविन्द्र मलिक ने इस सृजन को श्रमसाध्य बताते हुए कहा है- ‘एक नई विधा में रचनाकार ने हरियाणा के हर रंग को प्रभावपूर्ण ढंग से दर्शाते हुए यहां की समृद्ध लोक विरासत के संरक्षण की जरूरत बताई है। इन कुंडलियों से गुजरने हुए माटी की सौंधी गंध को साफ महसूस किया जा सकता है।’ माटी के साथ माटी होकर खेत में तपने वाले किसान का चित्रण छंद में देखते ही बनता है-खेती-बाड़ी का दिखे, न्यारा सै इत काम/ माटी मंह माटी हुवै, जमींदार सै नाम, खुभाती रहै अगाड़ी/ छह रुत बारा मास, संभालै खेती-बाड़ी।

कवि ने हरियाण्ावी धरा के कवियों, साहित्यकारों, संतों और सांगियों का स्मरण भी स्तुतिपरक ढंग से किया। बाणभट्ट और सूरदास का जिक्र करते कवि लिखते हैं—हरियाणा मंह रै हुये, कविवर खास तमाम/ बाणभट्ट की या धरा, सूरदास का धाम/ सूरदास का धाम, सीही मंह खास ठिकाणा/ हुये घणे बिदवान, निराला न्यूं हरियाणा। सांगियों की परंपरा में किशनलाल भाट,दीपचन्द, हरदेवा, अलीबख्श और पं. मांगेराम आदि का बखान करते कवि ने गांव बरोणा वासी फौजी मेहरसिंह को ऐसे याद किया -गाम बरोणा मंह हुया, फौजी, कबी महान/ आजादी का लाल था, गीत-रागनी आन/ गीत-रागनी आन, छंद गा सुर मंह पोणा/ नाम मेहरसिंह जाट, धाम सै गाम बरोणा। गंवई चित्रों ने पुस्तक के मुखड़े को खूबसूरत बना दिया है।

पुस्तक : हरियाणा के रंग लेखक : सत्यवीर नाहड़िया प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, मेरठ, उ.प्र. पृष्ठ : 114 मूल्य : रु. 175.

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