आपकी राय
बुलडोजर न्याय
संपादकीय ‘बुलडोजर उपचार’ में बुलडोजर से ‘बाबा’, ‘मामा’ और ‘जस्टिस’ नाम से विख्यात ही नहीं बल्कि पुकारे जाने का उल्लेख है। बुलडोजर के सहारे विभिन्न सरकारों ने काफी कुछ अपराधों पर नियंत्रण भी किया है और लोकप्रिय भी हुआ है, किंतु कानूनविदों ने इसे संवैधानिक उल्लंघन कहा है। यद्यपि राजनेता अपराधों पर नियंत्रण के लिए बुलडोजर को अच्छा समझते हैं किंतु इसका दुष्प्रभाव यह है कि इसमें कुछ स्थानों पर भेदभाव बरता गया है। बेहतर हो कि अपराधों में कानून का सहारा लिया जाये और अपराधी की संपत्ति को कुर्की के बाद बेचकर हर्जाना वसूला जाये, क्योंकि तोड़फोड़ में दोहरा नुकसान होता है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
सख्त कार्रवाई हो
पीएफआई संगठन कई वर्षों से देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त था। सूत्रों के अनुसार इस संगठन के ठिकानों से मिले आपत्तिजनक सबूतों से पता चलता है कि इस संगठन के लोग देश के युवाओं को अपने संगठन में भर्ती कर देश के विरुद्ध कार्य करने के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे। अच्छा हुआ कि समय रहते एनआईए को इनके नापाक इरादों का पता चल गया। देश विरोधी काम करने वाले पीएफआई ही नहीं, ऐसे हर संगठन पर पाबंदी लगनी चाहिए। ऐसे किसी भी देश विरोधी संगठन पर प्रतिबंध और सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार की ओर से उठाया गया कदम सराहनीय है।
नरेंद्र कुमार शर्मा, जोगिंद्र नगर
प्रेरक प्रस्तुतीकरण
पच्चीस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में राजकिशन नैैन की ‘मतवाली मैना’ कहानी आजादी से पूर्व अंग्रेजों की तानाशाही तथा देश भक्ति की भावना से ओतप्रोत मैना का ओजस्वी प्रेरक प्रस्तुतीकरण था। देश के लिए अंतिम सांस तक मर मिटने वाली झांसी की रानी का स्मरण करवाने में सफल रही। मतवाली मैना द्वारा अंग्रेज सेनापति हे के हर सवाल का मुंह तोड़ जवाब कथानक को अत्यंत प्रभावशाली बना पाया है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
एकता पर सवाल
आज प्रादेशिक स्तर की विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर आगामी चुनाव लड़ना चाहती हैं परंतु प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार अभी तक तय नहीं है। कारण सबका अपना-अपना एजेंडा और महत्वाकांक्षाएं हैं। आज ममता- माया का सपना अलग है तो केसीआर और नीतीश का अपना अलग सपना है इसी तरह अखिलेश और केजरीवाल की अपनी उड़ान है। इसी तरह शरद पवार का अपना अलग महत्व है और वरिष्ठता के आधार पर उनकी भी एक उपयोगिता है। इनमें से कोई भी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को अपने साथ रखने को तैयार नहीं है।
मनमोहन राजावत राज, शाजापुर, म.प्र.
किसान की विवशता
28 सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘आत्मघाती विवशता के लिए जिम्मेदार असंवेदनशीलता’ देश में किसानों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति तथा बढ़ती हुई आत्महत्या की घटनाओं का वर्णन करने वाला था। किसान को लागत के मुकाबले में अपने उत्पादन का लाभप्रद मूल्य नहीं मिलता। सरकार द्वारा किसानों की आमदनी दुगनी करने का आश्वासन एक सपना बनकर रह गया है। किसानों के लंबे आंदोलन के बावजूद एमएसपी कानून उसे नहीं मिला। अन्नदाता इस तरह आत्महत्या करे यह शर्म की बात है।
शामलाल कौशल, रोहतक
कांग्रेस का संकट
राजस्थान कांग्रेस में मचा बवंडर थमने का नाम नहीं ले रहा है। पार्टी के आलाकमान के माथे पर चिंता की साफ लकीरें दिखाई दे रही हैं। मुख्यमंत्री के कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ बढ़ते कदमों से कांग्रेस में बड़ा संकट खड़ा हो गया है। राजस्थान में कांग्रेस के विधायकों द्वारा स्पीकर को इस्तीफा सौंपना एवं विधायकों के द्वारा केंद्रीय पर्यवेक्षकों की बैठक में न पहुंचना कांग्रेस आलाकमान के लिए एक चुनौती है। जयपुर में सचिन पायलट के पोस्टरों से बड़ी लड़ाई के संकेत स्पष्ट दिखाई देते हैं।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
तंत्र की नाकामी
छब्बीस सितंबर का सम्पादकीय ‘अन्याय का त्रास’ उत्तराखंड की बेटी के साथ की गई दरिन्दगी को बयान करने वाला था। इस घटना से पूरी मानवता ही शर्मसार हुई है। इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए जरूरी है कि ऐसे कुकृत्यों में लिप्त सभी व्यक्तियों के विरुद्ध शीघ्र कानूनी कार्रवाई कर उन्हें सख्त सजा दी जाए। यहां प्रश्न तंत्र की नाकामयाबी का भी है। इस बात की भी जांच की जानी चाहिए कि इस प्रकार के जघन्य अपराध होते रहते हैं और पुलिस प्रशासन सोया रह जाता है।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
एकजुटता की कमी
वर्तमान राजनीतिक हालात में देश के लगभग सभी विपक्षी दल भाजपा का विकल्प ढूंढ़ रहे हैं। मगर सब अपनी-अपनी शर्तों पर भाजपा के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना चाहते हैं। अब जहां हर पार्टी का प्रमुख खुद को प्रधानमंत्री का चेहरा समझ रहा है ऐसे में न तो ये एकजुट हो पाएंगे और न ही जनता उनकी एकजुटता को स्वीकार करेगी। बेहतर हो कि देश में दो दलीय शासन प्रणाली लागू की जाए ताकि किसी प्रकार की तोड़फोड़ व सौदेबाजी की गुंजाइश न रहे।
सुभाष बुड़ावनवाला, रतलाम, म.प्र.
पर्यटन का विस्तार
देश में कई क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से बेहतर व उपयुक्त हैं। लेकिन उन क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए परिवहन की सुविधा उचित नहीं है। इसके लिए सरकारों को गंभीरता दिखाते हुए रेल लाइनों का विस्तार करना चाहिये और जिन क्षेत्रों तक रेल लाइनें पहुंचना मुश्किल है वहां सड़क मार्ग दुरुस्त करने चाहिए। हालात ये हैं कि देश के बहुत से पर्यटन क्षेत्रों में अब भी वही रेल लाइनें हैं जिनका अंग्रेज विस्तार करके गए थे।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
शीघ्र न्याय मिले
छब्बीस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘अन्याय का त्रास’ तथाकथित बड़े-बड़े होटलों तथा रिज़ॉर्ट्स में स्पेशल सर्विस की प्रवृत्ति का खुलासा करने वाला था। रिज़ॉर्ट में इस कार्य के लिए सहमति न देने वाली रिसेप्शनिस्ट की राजनीतिक पहुंच वाले युवक ने अपने साथी से मिलकर हत्या कर दी। पीड़ित परिवार को शीघ्र न्याय मिलना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
ममता का रुख
चौबीस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में अशोक उपाध्याय का लेख ‘ममता की बदलती रणनीति के निहितार्थ’ राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव के समय निष्क्रिय रहने से ममता के रुख में बदलाव मोदी को चुनौती देने वाले विपक्ष की एकता पर सवालिया निशान लगाने वाला है। उधर, पश्चिमी बंगाल विधानसभा में 19 सितंबर को केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया गया। इसके बावजूद ममता का यह कहना कि यह मोदी के नाम पर कुछ और लोग करवा रहे हैं। ममता का मोदी को क्लीन चिट देना शायद उनके भतीजे तथा टीएमसी नेताओं को जांच एजेंसियों से बचाने को लेकर भी हो सकता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
सुविधाओं की कमी
पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए 100 से अधिक क्लीनिक स्थापित किए हैं। निस्संदेह पहल अच्छी है। आज भी अिधकतर सरकारी अस्पतालों में प्रयोगशाला संबंधी सुविधाओं की भारी कमी है। अगर सरकार अस्पतालों में बदलाव लाती है तो यह प्रशंसनीय पहल होगी।
पारुल गुप्ता, फतेहगढ़ साहिब
उचित प्रशिक्षण मिले
सुरक्षा गार्ड के जीवन में भी अनेक समस्याएं रहती हैं तथापि वह बहुत ही कम वेतन में अपना कार्य का पालन करता है। कई बार प्रभावशाली व्यक्ति उसका अपमान तक करने से नहीं चूकता। ऐसे में मानवाधिकार के तहत जहां सुरक्षा गार्डों के अधिकार संरक्षित हों, वहीं दूसरी ओर उन्हें उचित प्रशिक्षण के साथ-साथ उचित वेतन भी मिलना चाहिए। उचित प्रशिक्षण और समुचित वेतन उनके व्यक्तित्व में सुदृढ़ता और कर्तव्य पालन में महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। रही बात दुर्व्यवहार की तो इसके लिए भारतीय दंड संहिता में प्रावधान है। दोषी के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
नैतिक मूल्यों की कमी
बहुत ही निंदनीय है कि पैसे और पद के अहंकार में आकर हाई प्रोफाइल सोसायटी में पढ़ी-लिखी महिलाओं ने सुरक्षा गार्ड के साथ बदतमीजी की। जिन लोगों को बचपन में शिक्षा के साथ नैतिकता और इंसानियत का सबक न पढ़ाया गया हो, ऐसे लोग बेशक अमीर हो जाएं, लेकिन वे पढ़-लिखकर सभ्य और समझदार नहीं कहला सकते। लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए वे इन्हीं सुरक्षा गार्डों के कारण घर में पूरा परिवार सुरक्षित रहता है। यह उनकी इंसानियत ही है कि बदले में वे इसका प्रतिरोध नहीं करते। अपनी सहनशीलता का परिचय देते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
पद-प्रतिष्ठा का अहंकार
आये दिन देखने को मिलता है कि लोग सुरक्षाकर्मियों और चौकीदारों से अभद्र व्यवहार करते हैं। इसका कारण समाज और सोसायटी में अपना पद और प्रतिष्ठा बताना है, जिसके कारण वे छोटे-छोटे इन मेहनती कर्मियों पर अपनी ताकत का प्रयोग करते हैं। ये सुरक्षाकर्मी लाचार होकर इनके खिलाफ कुछ बोल भी नहीं पाते क्योंकि उन्हें अपनी आय का साधन खत्म होने का डर बना रहता है। फलत: मजबूरीवश गाली-गलौज, मारपीट होने के बाद भी सब कुछ सहना पड़ता है। इसके साथ ही कई लोग दयालु भी होते हैं जो अपने सुरक्षा गार्डों, चौकीदारों, ड्राइवरों के कार्यों का सम्मान भी करते हैं।
संजय डागा, हातोद, इन्दौर
मानसिक तनाव
हाउसिंग सोसायटीज के सुरक्षा गार्डों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं आम बात हो चुकी है। निश्चित रूप से ऐसी घटनाओं के पीछे की मानसिकता का विश्लेषण होना चाहिए। मगर इन घटनाओं में बढ़ता मानसिक तनाव स्पष्ट दिखाई देता है। आधुनिक बदलती जीवनशैली में घरेलू, कार्यालय, सामाजिक और राजनीतिक वातावरण ने लोगों को गुस्सैल बना दिया है। संयम की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है। नतीजा घरेलू नौकर, सुरक्षा गार्ड और फेरीवाले आसानी से गुस्से का शिकार बन जाते हैं। पीड़ित को न्याय के अलावा बढ़ते मानसिक तनाव को कम करने के उपाय तलाशने होंगे।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
मूल्यों में गिरावट
विभिन्न संस्थानों में सुरक्षा गार्डों के साथ हो रही बदतमीजी की मुख्य वजह हमारे सामाजिक मूल्यों में आ रही गिरावट है। कोई व्यक्ति चाहे उच्च पद पर कार्यरत हो या किसी छोटे पद पर हो, सभी को एक-दूसरे के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। देश का कानून किसी को भी किसी के प्रति अभद्र भाषा के प्रयोग की व मारपीट की अनुमति नहीं देता। अतः जरूरी है कि सभी लोग कानून के दायरे में रहकर काम करें। यदि कोई व्यक्ति कानून को अपने हाथ में लेने का प्रयास करता है तो उसके विरुद्ध अविलंब सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
बीमार मानसिकता
सुरक्षा गार्ड आज के दौर में मल्टी हाउसिंग सोसायटियों, ऑफिसों एवं कल-कारखानों की सुरक्षा के एक अहम हिस्सेदार हैं। उनके साथ असभ्य एवं आक्रामक व्यवहार समाज की हीन मानसिकता को दर्शाता है। वे लोग अल्प वेतन पर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं। महानगरों एवं बड़े शहरों में आवास परिसरों की सुरक्षा में सुरक्षा गार्डों का योगदान कम करके नहीं आंका जा सकता। इनका मनोबल कायम रखने के लिए सामाजिक स्तर पर लोगों का सद्भावना पूर्ण व्यवहार अत्यंत आवश्यक है।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
पुरस्कृत पत्र
असंगठित वर्ग
सुरक्षा गार्डों के साथ आए दिन होने वाली बदतमीजी की एक सबसे बड़ी वजह है कि प्राइवेट सुरक्षा गार्डों का कार्य ऐसी एजेंसियों और व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है जो असंगठित हैं। निजी सुरक्षा एजेंसियों में मजबूरी के चलते सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने वाले, प्रायः तथाकथित सभ्य लोगों की बदतमीजी का शिकार होते रहते हैं। इसमें सबसे बड़ा दोष उन निजी सुरक्षा एजेंसियों का है जो सुरक्षा गार्डों के अधिकारों की सुरक्षा करने में नाकाम रही हैं। इसी का फायदा ऐसी पढ़ी-लिखी महिलाएं उठाती हैं। सुरक्षा एजेंसियां भी कॉन्ट्रैक्ट हाथ से जाने के डर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती हैं।
राजेंद्र कुमार शर्मा, देहरादून, उत्तराखंड
अनैतिक राजनीति
बाईस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का ‘इस अनैतिक राजनीति की माकूल दवा तलाशिये’ लेख विधायकों द्वारा अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने के खेल का पर्दाफाश करने वाला था। इस किस्म की राजनीतिक उठापटक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा गोवा में देखने को मिली है। इन सब बातों से दलबदल विरोधी कानून की धज्जियां उड़ रही हैं। यह राजनीतिक अनैतिकता तथा मतदाताओं के साथ सरासर धोखा है।
शामलाल कौशल, रोहतक
रोगों से मुक्ति की राह
स्वस्थ नागरिक ही विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। आज देश में डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि बीमारियों का मकड़जाल कम नहीं है। देश को स्वस्थ रखने के लिए हमें पहले साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति औसतन लगभग 6500 रुपए बीमारियों पर ही बर्बाद होते हैं। स्वच्छ भारत अभियान जैसे स्वच्छता उपायों से ही देश को बीमारियों से छुटकारा मिल सकेगा।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
भाईचारे की मिसाल
यह खबर स्वागतयोग्य है कि संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने दिल्ली के मदरसे में पहुंचकर छात्रों को इंसानियत, नारी सम्मान व देश प्रेम का पाठ पढ़ाया। आज सौहार्द व भाईचारे में खटास आ गई है। संघ प्रमुख अगर नेक नीति व नीयत से देश में भाईचारा फैलाना चाहते हैं तो उन्हें न केवल हिंदू-मुस्लिम करने वालों को ललकारना होगा बल्कि ऐसे नफरती कृत्य करने वालों का भी विरोध करना होगा।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
हास्य को जिया
जीवन में हास्य का पुट जरूरी है। इसी कमी को दूर करके हास्य के जरिए निराश जीवन में उत्साह का संचार करने वाले कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव ने जिस तरह हास्य को जिया है वह उनकी विलक्षण प्रतिभा का प्रतीक रहा है। जीवन हास्य से भरपूर है बस इसे उसी अंदाज में जीने की जरूरत है- इस बात को महसूस कराने वाले राजू श्रीवास्तव का निधन निश्चित रूप से हास्य जगत की एक अपूरणीय क्षति है।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
दिलों का मिलन
अट्ठारह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में खालिद हुसैन की पंजाबी ‘जुत्ती कसूरी’ नीलम शर्मा ‘अंशु’ द्वारा अनूदित कहानी में भारत-पाक सीमा पर स्नेहिल प्रेम को देखकर आंखें भर आयीं। कथा नायिका नम्रता द्वारा उपहार स्वरूप पहनी जूतियां अपनत्व की बेशकीमती दुआएं दे रही थीं। देशों का बंटवारा तो हुआ मगर दिलों का नहीं। सरहद के उस पार देशों की सांस्कृतिक परंपराओं का बेजोड़ मिलन अद्भुत चित्रण प्रस्तुत कर रहा था।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
कुत्तों के हमले
हाल ही के दिनों में पालतू कुत्तों द्वारा लोगों को काटे जाने के मामले सुर्खियों में हैं। सोसायटी के लिफ्ट के अंदर एक बालक को कुत्ते द्वारा काटे जाने एवं महिला की असंवेदनशीलता ने मन को झकझोर कर रख दिया है। पालतू कुत्तों को पालने वाले को अवश्य ही नियम कायदे व कानून का पालन करना चाहिए। अक्सर देखा गया है गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा भी सोसायटीज़ के अंदर कुत्तों को खाना खिलाया जाता है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
सोच पर सवाल
अक्सर चुनाव के मैदान में, खासतौर पर प्रधान, काउंसलर के पद के लिए तो महिलाओं को उतारा जाता है, लेकिन चुनाव जीतने जाने के बाद महिला नेताओं के पति कर्ता-धर्ता बन जाते हैं। महिला आरक्षण विधेयक का अभी तक पास न होना भी यह इशारा करता है कि राजनीति के कर्ताधर्ता भी महिला सशक्तीकरण को लेकर मंशा साफ नहीं रखते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
सुधार की दरकार
शिक्षा मनुष्य की सर्वोत्तम पूंजी है। यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन आज भी हिंदुस्तान की आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा से वंचित है। प्राथमिक शिक्षा सबको सुलभ हो इसके लिए इस क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता है।
शिवेंद्र यादव, कुशीनगर
ईवी मॉडल सिटी
चंडीगढ़ प्रशासन ने चंडीगढ़ को ईवी मॉडल सिटी बनाने के लिए पंचवर्षीय नीति लागू की। यह नीति ईंधन की खपत, प्रदूषण को कम करने और शहर को अत्यधिक कार्बन से मुक्त बनाने में मदद करेगी। इस नीति में 1.5 लाख से 2 लाख तक की सब्सिडी दी जाएगी और ई-वाहनों के लिए रोड टैक्स में छूट भी दी जाएगी। वहीं वर्ष 2022 में, एक बार ईंधन आधारित दोपहिया वाहनों का 65 प्रतिशत पंजीकृत होने के बाद, कोई और पंजीकरण नहीं होगा। इससे पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों पर बोझ पड़ेगा क्योंकि दोपहिया वाहनों के मालिकों को अपने वाहनों का पंजीकरण कहीं और कराना होगा।
रोहन चंद्र, जीरकपुर
सवालिया निशान
21 सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘दुर्भाग्यपूर्ण घटना’ मोहाली में चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में छात्राओं के वीडियो बनाने वाली साजिश का पर्दाफाश करके शिक्षा संस्थाओं में निजता तथा सुरक्षा पर सवालिया निशान लगाने वाला था। बेशक छात्रा तथा दो सहयोगियों को गिरफ्तार करके मामले की छानबीन के लिए एसआईटी बना दी गई है, लेकिन यह मामला अन्य शिक्षा संस्थाओं में पढ़ने वाली छात्राओं तथा उनके अभिभावकों के लिए चिंता का सबब है। इस प्रकार के मामलों को सख्त कदम उठाकर नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
राजनीतिक प्रपंच
कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। दरअसल, राजनीतिक पार्टियां नाटकबाजी करने में माहिर हैं तो कांग्रेस भी अछूती कहां। गांधी परिवार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का निर्णय लगभग ले चुका है। वहीं विरोधी पक्ष में शशि थरूर को खड़ा करने का नाम लिया जा रहा है। कांग्रेस चाहती भी यही है कि जो भी अध्यक्ष बने बस उनकी हां में हां मिलाने वाला होना चाहिए।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
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बेहतर शिक्षा की दरकार
उ.प्र. में मदरसों के सर्वे का निर्णय लिया गया है। सरकार का यह तर्क कि सर्वे के आधार पर मदरसों के माध्यम से आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी और मदरसों को आधुनिक किया जाएगा, उचित जान पड़ता है। लेकिन मुस्लिम समाज के एक वर्ग में यह विवाद का विषय भी बना हुआ है। वहीं सहारनपुर के देवबंद स्थित इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम ने उ.प्र. शासन के इस निर्णय की तारीफ की है। दारुल उलूम के इस निर्णय ने मुस्लिम समाज की आशंकाओं और अनिश्चितता की स्थिति को लगभग दूर कर एक बड़ा संदेश दिया है। इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को बेहतर तालीम ही नहीं, जन-सुविधाएं भी मिलने की संभावनाएं हैं।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
समृद्ध भारत का निर्माण
उन्नीस सितंबर के ‘समृद्ध भारत के निर्माण को हो समन्वित प्रयास’ लेख विकसित भारत का विश्लेषण करने वाला रहा। प्रधानमंत्री के अनुसार वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना काल में दो वैक्सीनों का आविष्कार करके असंख्य लोगों को मौत के मुंह जाने से बचाया। अंतरिक्ष क्षेत्र में लाजवाब तरक्की, निर्यात में उत्साहवर्धक वृद्धि काबिलेतारीफ है। यद्यपि विश्व मंदी का शिकार है, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। देश में चौथी औद्योगिक क्रांति का सपना उम्मीद दिलाने वाला तो है, लेकिन इसके साथ-साथ सरकार को बेरोजगारी, महंगाई, असमानता दूर कर साइबर सुरक्षा तथा आधारभूत ढांचे को मजबूत करना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
आस्था की अभिव्यक्ति
दैनिक ट्रिब्यून के ‘आस्था’ पृष्ठ पर डॉ. नरेश के लेख पढ़कर मन गद्गद हो गया। इन लेखों में, आस्तिक और नास्तिक दोनोें तरह के लोगों को ईश्वरीय सत्ता के होने और उसे मानने के लिए तैयार करने का बड़ा युक्तिपूर्ण तरीका अपनाया गया है। संप्रेषणीयता के गुण से लबरेज़ इन लेखों के लेखक धन्यवाद के पात्र हैं।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
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कर्तव्य निभाने का वक्त
सत्रह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का ‘भारतीय भाषाओं के प्रति कर्तव्य निभाने का वक्त’ लेख चर्चा करने वाला था। लेखक का कहना है कि अंग्रेजी भाषा गुलाम मानसिकता का द्योतक है। लेखक का सुझाव है कि हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने के बदले में भारतीय भाषा दिवस मनाया जाए। इसके साथ राज्य की भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जाए। हमें भारतीय भाषाओं के विकास की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
सुरक्षा पर सवाल
चौदह सितंबर को लखीमपुर खीरी में दो बहनों की हत्या कर उन्हें पेड़ पर लटका दिया गया। वहीं ऑटोप्सी रिपोर्ट में कहा गया कि लड़कियों के साथ दुराचार हुआ और गला दबाकर हत्या की गई। ऐसे मामले महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े करते हैं। अभी तक बिलकिस बानो का मामला भी लोगों के लिए सदमे जैसा था। इसलिए अपराधियों को जल्द ही सख्त सज़ा मिलनी चाहिए।
किशिक सहरावत, मोहाली
सख्त कार्रवाई
नशे की आदत हो जाए तो वह सिर्फ और सिर्फ मजबूत इच्छा शक्ति से ही खत्म की जा सकती है। भारत में अफगानिस्तान से चोरी-छिपे आने वाले व पंजाब में ड्रोन से गिराए जाने वाले नशीले पदार्थ बड़ी समस्या व चिंता का विषय है। युवाओं में नशीले जहर को उतार कर पाकिस्तान उनको मानसिक, आर्थिक एवं शारीरिक क्षति पहुंचा रहा है जो एक तरह से छद्म युद्ध है, जिससे भारत की पीढ़ी कमजोर हो रही है। इसके लिए सरकार को सख्ती कर इस तरह की अवांछनीय गतिविधियों पर रोक लगानी चाहिए।
भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.
योजनाबद्ध हो तरीका
आमने-सामने के युद्ध में पाकिस्तान को भारत के सामने हर बार मुंह की खानी पड़ी है। इसीलिए येन-केन-प्रकारेण पाक अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। इसी में से एक षड्यंत्र है नशे की भारी-भरकम खेप भेजना। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में तो नशे की खेप आकाश के रास्ते ड्रोन से भी गिराए जाने के मामले सामने आए हैं ताकि हिंदुस्तान के युवाओं को नशे का आदी बनाकर कमजोर किया जा सके। ऐसे अघोषित युद्ध को योजनाबद्ध तरीके से रणनीति बना कर ही रोकना सम्भव है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
विदेशी कल्चर
आज समाज के हर वर्ग का युवा नशे की लत में है। इस मामले में लड़कियां भी पीछे नहीं हैं। यह सब विदेशी कल्चर का दुष्प्रभाव है। युवा पीढ़ी को नशे के जाल में फंसाना एक सोची-समझी दुश्मन की रणनीति है, जिससे हमारी रीढ़ को कमजोर किया जा सके। मादक पदार्थों की आपूर्ति में देश के गद्दार भी मिले हुए हैं जो लालच में बच्चों का स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं। सख्त कानून से भी नशे का कारोबार नहीं रुक रहा है। ऐसे में नशे के दुष्प्रभाव को समझने-समझाने की जरूरत है। जब तक लोग इसके दुष्प्रभाव नहीं समझेंगे इसे रोकना मुश्किल होगा।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
शिक्षा का प्रसार
विदेशों से आई नशे की खेप भारत के युवाओं को नशे के जाल में लपेटती जा रही है। युवाओं की रगों में नशीला जहर घोलने का पाकिस्तान का अघोषित युद्ध चल रहा है। ड्रग्स व शराब माफिया अवैध रूप से नशीले पदार्थों की सप्लाई कर रहे हैं। नशा स्वास्थ्य, परिवार, समाज व राष्ट्र का नाश करता है। नशे पर लगाम लगाने के लिए प्राथमिक स्तर से ही बच्चों को शिक्षित व जागरूक करना होगा। राज्य सरकारें जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को नशे के चंगुल से बचाने का प्रयास कर सकती हैं। ड्रग कारोबार में लिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
सख्त निगरानी जरूरी
नशा किसी भी देश की युवा पीढ़ी काे कमजोर कर देता है। यद्यपि सख्त निगरानी और चौकसी से ही नशे की खेप को पकड़ा और रोका जा सकता है। फिर भी व्यवस्था के अंदर मिलीभगत के चलते ये काम फलते-फूलते रहते हैं। ऐसे में तंत्र के अंदर भी सख्त निगरानी करने की जरूरत है। साथ ही नशे के मामले में किसी प्रकार की नरमी भी इस धंधे को फलने-फूलने का मौका देती है। ड्रग माफिया के तंत्र पर भी लगाम कसने की जरूरत है। संवेदनशील सीमा क्षेत्रों में ड्रोन से निगरानी की सख्त जरूरत है ताकि नशे की खेपों को रोका जा सके। लोगों को जागरूक कर नशे से होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है।
निनाद शर्मा, शिमला
कठोर दंड नीति
पाकिस्तान नशीले पदार्थों की खेप चोरी-छिपे भारत में किसी न किसी तरह भेजता रहता है। सीमा प्रहरी इस धंधे का भंडाफोड़ आए दिन करते रहते हैं। युवा वर्ग इस जाल का शिकार अधिक होता जा रहा है। सरकार को सजग रहते हुए गुप्तचर एजेंसियों को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है। नशे का शिकार हुए युवाओं को नि:शुल्क नशा मुक्ति केंद्र में दाखिल करवाना चाहिए। नशे के शारीरिक और मानसिक कुप्रभावों से अवगत करवाना भी जरूरी है। अधिकारियों की मिलीभगत से गैर-कानूनी धंधा चलाने वाले लोगों के प्रति कठोर दंड नीति अपनानी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
पुरस्कृत पत्र
लोगों में जागरूकता
अफगानिस्तान से पाक होते हुए नशे की खेप को देश और राज्य की सरहदों पर सख्त निगरानी करके ही रोका जा सकता है। सर्वप्रथम तो नशे के कारोबार में लिप्त लोगों को दबोचना होगा तथा लोगों में जागरूकता के माध्यम से नशे की लत को छुड़ाना होगा। कारोबार में लिप्त व्यक्ति की सूचना देने वालों का नाम गोपनीय रहना चाहिए तथा आकर्षक राशि से उन्हें पुरस्कृत भी किया जाये। दोषी के साथ तो देशद्रोही के समान ही व्यवहार किया जाये, क्योंकि ये देश और मानवता के सबसे बड़े दुश्मन हैं। ड्रोन के माध्यम से नशे के कारोबारियों पर निगरानी भी ड्रोन से की जाये।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
यात्रा के निहितार्थ
भारत और बांग्लादेश एशिया महाद्वीप के दो ऐसे राष्ट्र हैं जिनके सम्बन्ध मधुर ही रहे हैं। दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास सीमाई क्षेत्र में कुछ भूखंडों, मानव बस्तियों और तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर पैदा होती रही है। लेकिन अब इन विवादों पर तो विराम लग गया, लेकिन तीस्ता की उलझन अब भी बरकरार है। भारत यात्रा से बांग्लादेश को फायदा हुआ है। वह खाली हाथ नहीं लौटी हैं। शेख हसीना की भारत यात्रा में अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। यदि यह समझौता हो जाता तो बेहतर होता। बांग्लादेश से अच्छे रिश्ते भारत की सामुद्रिक सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
हिंदी की समृद्धि
ग्यारह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में बालेंदु शर्मा दाधीच का ‘हिंदी की तकनीकी समृद्धि का लाभ उठाने का वक्त’ लेख राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में तकनीकी विधियों का सरल, सुगम प्रयोग समृद्ध व उज्ज्वल भविष्य की कामना है। प्रशासनिक व राजकार्यों में हिंदी भाषा के प्रयोग से आम नागरिक के लिए राष्ट्रभाषा प्रेरणा-स्रोत बन जाएगी। राज्य सरकारों को तकनीकी शिक्षण-प्रशिक्षण में हिंदी भाषा को माध्यम बनाया जाना चाहिए। हिंदी को और समृद्ध बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति का योगदान जरूरी है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
मैत्री के आयाम
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के मद्देनजर प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी यात्रा के दौरान भारत से आर्थिक सहायता मांगी है। वहीं भारत सरकार ने भी उदारता से कुछ समझौते किए हैं, किंतु बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव यथावत जारी है। ‘हसीना की यात्रा से मैत्री के नये आयाम’ आलेख ने पार्थसारथी ने सकारात्मक विचारों का उल्लेख किया है, किंतु रोहिंग्या भारत में भी परेशानी का कारण बन सकते हैं। अनावश्यक सहायता करना खतरे से खाली नहीं होगा क्योंकि इनकी वफादारी पर भी संदेह है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
देवनागरी ही विकल्प
चौदह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का ‘बोलने से ज्यादा जरूरी देवनागरी में लिखना’ लेख पढ़कर मालूम हुआ कि दुनिया में बहुत बड़ी तादाद में लोग हिंदी पढ़ सकते हैं परन्तु उनमें करीब आधे लिख नहीं सकते। क्योंकि उन्हें लिपि के रूप में देवनागरी नहीं आती। अधिकतर भारतीय भाषाओं की लिपि में नागरी के ही रूपक है इसलिए हिंदी को पूरे देश में मान्यता मिल जाती। जो नई पीढ़ी देवनागरी को नहीं पढ़ पाती वह समस्या भी हल हो सकती है। वास्तव में हिंदी का जो मूल चरित्र है, उसके शब्द और उसे बोलने की ध्वनि को उसके अनुरूप लिखने की क्षमता सिर्फ देवनागरी के पास है। कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने लिखा है, जिस तरह मैं बोलता हूं, उस तरह तू लिख। इसके लिए सिर्फ देवनागरी ही विकल्प है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
अस्वस्थ बजट
पंद्रह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘अस्वस्थ हेल्थ बजट’ सरकार द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत कम खर्च करने के कारण आम लोगों को होने वाली तकलीफों का ध्यान दिलाने वाला था। कोरोना काल में तो स्वास्थ्य सेवाओं के ऊपर होने वाले खर्चे को आपातकाल मानते हुए केंद्र तथा राज्यों ने खर्च बढ़ा दिया था। सरकार को योजना के अनुसार, कम से कम 3 प्रतिशत खर्च जीडीपी के अनुपात में स्वास्थ्य मद पर करना चाहिए। आम लोगों के लिए निजी अस्पतालों में इलाज करवाना मुश्किल है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्वास्थ्य सेवाओं का हाल वैसे ही ठीक नहीं है।
शामलाल कौशल, रोहतक
भारत का संकल्प
केंद्र सरकार द्वारा राजपथ का नाम कर्तव्य पथ किया जाना जनभावनाओं के अनुरूप एवं प्रशंसनीय कदम है। आजादी के अमृत महोत्सव काल में पराधीनता के प्रतीक चिन्ह को हटाना एक नए भारत का संकल्प है। सभी भारतवासियों को प्रण करना होगा कि हम कर्तव्यनिष्ठा के साथ कर्तव्य पथ पर चलकर भारत को विश्व का सिरमौर बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
सवालों के ढेर
पिछले दिनों नोएडा के ट्विन टाॅवर के ध्वस्तीकरण से उठे गुबार के साथ सवालों के ढेर खड़े हो गए हैं। निःसंदेह, देश की बड़ी आबादी भ्रष्टाचार की मीनार ढहने का जश्न मना रही है, मगर इसे खड़ी करने में अकेली एक कंपनी नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था शामिल है। यह भी कि इस बहुमंजिली इमारत को गिराने पर भी काफी खर्च हुआ। एक इमारत के ध्वस्त होने से भ्रष्ट तंत्र को न तो पूरी सजा मिली है, न ही लाभार्थियों के टूटे सपने की भरपाई हुई। टॉवर तोड़ने की भारी कीमत के अलावा पर्यावरण दूषित करती धूल का जिम्मेदार कौन होगा? भ्रष्टाचार की कोई इमारत खड़ी हो उससे पूर्व भ्रष्ट तंत्र को उखाड़ फेंकना होगा।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
मानसिक स्वास्थ्य
कोरोना काल में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ा है। कोरोना काल के बाद अब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का सर्वेक्षण करने के निर्देश जारी किये हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट में स्कूली छात्रों में तनाव और चिंता के प्रमुख कारकों में परीक्षा, परिणाम और साथियों के दबाव का हवाला दिया गया है। अब हर स्कूल में एक ‘मेंटल हेल्थ एडवाइज़री पैनल’ बनाया जायेगा, जिसमें शिक्षक, अभिभावक, छात्र और पूर्व छात्र होंगे। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का यह निर्णय सराहनीय है लेकिन यह तभी लाभकारी होगा जब शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावक भी अपना पूर्ण योगदान देंगे।
अम्बिका अरोड़ा, चंडीगढ़
बेहतर कदम
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने ट्वीट में कहा है कि कैंसर रोधी दवाओं को आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) 2022 में जोड़ा गया है, जिससे कई एंटीबायोटिक्स और टीके जनता के लिए सस्ते और अधिक किफायती हो जायेंगे। सूची में 34 नयी दवाएं जोड़ी गयी हैं और 26 दवाओं को हटा दिया गया है। नयी दवाओं में चार कैंसर उपचार की भी शामिल हैं। भारत में कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार का यह कदम बेहतर है। उम्मीद है सरकार जल्द ही जरूरतमंद लोगों के लिए इन दवाओं को जमीनी स्तर पर उपलब्ध कराएगी।
रोहन चंद्र, जीरकपुर
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हिंदी का समय
हिंदी दिवस से जुड़े आयोजन भाषा की उपादेयता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं। हिंदी के प्रति राष्ट्र प्रेम जैसा समर्पण भाव प्रदर्शित करना जरूरी है। ऐसे आयोजनों में प्रतिस्पर्धाओं से हम ज्ञानवर्धन कर सकते हैं। हिंदी के प्रति रुझान में उतरोत्तर वृद्धि से सोशल मीडिया में भी हिंदी का वर्चस्व दिख रहा है। भाषाई बाजार में भी हिंदी के प्रभाव में गुणात्मक गतिशीलता दृष्टिगोचर हो रही है।
युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद
अपूरणीय क्षति
बारह सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘क्रांतिकारी शंकराचार्य’ स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की स्वर्गधाम यात्रा का वर्णन करने वाला था। द्वारका, शारदा एवं ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य को 1950 में दंडी स्वामी तथा 1981 मे शंकराचार्य की उपाधि से नवाजा गया था। वे महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन से बहुत प्रभावित थे। वे श्रीराम मंदिर निर्माण में राजनीतिक हस्तक्षेप के हमेशा खिलाफ रहे। उनके निधन से हुई धार्मिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्षति को पूरा नहीं किया जा सकता।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
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युग का अंत
दस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘सरोकारों की महारानी’ इंग्लैंड की सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाली महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन से एक युग के अंत होने का वर्णन करने वाला था। अपने इस लंबे शासनकाल में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने इंग्लैंड की प्रतिष्ठा व वैश्विक साख में कमी नहीं आने दी। कुशाग्रबुद्धि महारानी को कई भाषाओं की जानकारी थी तथा ब्रिटिश संवैधानिक विधान का अनूठा ज्ञान था। उन्होंने कॉमनवेल्थ के जरिए ब्रिटिश प्रतिष्ठा को कायम रखा तो वहीं राजशाही तथा सरकारी तंत्र में संतुलन बनाकर रखा।
शामलाल कौशल, रोहतक
पशुधन की सुरक्षा
आजकल पशुओं को लंपी त्वचा रोग (एलएसडी) प्रभावित कर रहा है। इससे कृषि और डेयरी फार्मिंग क्षेत्र को नुकसान पहुंच रहा है। बेशक यह रोग सीधे तौर पर मनुष्य को प्रभावित नहीं करता है लेकिन इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव को नज़रअंदाज करना मुश्किल है। पंजाब राज्य में टीकाकरण की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है, लेकिन अन्य राज्यों को भी इस बीमारी से कृषि क्षेत्र को होने वाले खतरे से अवगत कराने की आवश्यकता है। इस बीमारी से पशुधन और डेयरी उद्योगों को संरक्षित करने के लिए अधिक जागरूकता की आवश्यकता है।
किशिक सहरावत, मोहाली
दोषारोपण गलत
हाल ही में पाकिस्तान से मैच हारने के बाद भारतीय टीम के गेंदबाज अर्शदीप सिंह के खिलाफ सोशल मीडिया पर जो टिप्पणियां की गईं, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। देश के हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह जीत हासिल करे, लेकिन खेल में हर बार हर खिलाड़ी को सफलता ही मिले, यह भी संभव नहीं। इसलिए एशिया कप में अर्शदीप सिंह को टीम की हार का दोष देना बिल्कुल गलत है। यह विरोध खिलाड़ी का मनोबल भी गिरा सकता है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
सराहनीय कदम
नोएडा में सुपरटेक द्वारा बनाए गए दो टाॅवरों का गिराया जाना सभी भ्रष्टाचारियों के लिए सबक है। कुछ लोगों की दलील थी कि इन बहुमंजिली इमारतों में कोई सरकारी ऑफिस या अस्पताल बनाया जा सकता था। लेकिन जब गैर-कानूनी है तो उसमें अस्पताल या ऑफिस कैसे बनाया जा सकता था। उनमें पहले से ही लगभग सात हजार लोग रह रहे थे। यदि इन इमारतों को विकल्प के रूप में लिया जाता तो शायद भ्रष्टाचारियों की आंखें नहीं खुलतीं। गैर-कानूनी इमारतों का गिरना सराहनीय कदम है, अब इंतजार उस दिन का है जब भ्रष्टाचार के भवन गिरने शुरू होंगे।
सोहन लाल गौड़, कैथल
गिराया जाना उचित
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में ट्विन टॉवर को ध्वस्त करने का आदेश जारी कर ही दिया। सवाल उठता है कि जब इन्हें बनाया जा रहा था तब इन्हें क्यों बनने दिया गया? साफ है अधिकारियों का भ्रष्ट होना तथा राजनेताओं का आशीर्वाद! लोगों का कहना था कि ट्विन टॉवर को ध्वस्त करने के बदले में इनका इस्तेमाल अस्पताल या फिर सैनिकों के आवास के लिए हो सकता था। ऐसा इसलिए नहीं किया गया ताकि भ्रष्ट बिल्डरों को सबक सिखाया जा सके। यदि बिल्डर्स भवन निर्माण के नियमों की अवहेलना करते हैं तो ऐसे में इनका गिराया जाना ही उचित है।
शामलाल कौशल, रोहतक
सबक लेंगे
नियमों का उल्लंघन करके नोएडा में बनाए गए टॉवर पेक्स तथा सेमेन न्यायालय के आदेश पर ध्वस्त कर देने से स्पष्ट संदेश मिलता है कि यदि कोई भी व्यक्ति या संस्थान संबंधित नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे उसका परिणाम भुगतना ही पड़ेगा। कोर्ट का फैसला भ्रष्ट बिल्डरों को कड़ा संदेश देने वाला है। अतः इस फैसले के क्रियान्वयन के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि अब भ्रष्ट व अवैध रूप से काम करने वाले सभी प्रशासनिक अधिकारी व अन्य लोग सबक लेंगेे।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
भूमिका की जांच हो
अवैध निर्माण स्थानीय निकाय के अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से होते हैं। यह बात असंभव प्रतीत होती है कि निर्माण की जानकारी अधिकारियों को न हो। यही बात नोएडा के ट्विन टॉवर के संबंध में भी लागू होती है। सरकार को इस संबंध में ईमानदारी के साथ नीति निर्धारण करना चाहिए। अभी तक जितने भी अवैध निर्माण हुए हैं उन्हें ध्वस्त करने की अपेक्षा उनका उपयोग सार्वजनिक कार्यों के लिए किया जाना चाहिए। अवैध निर्माण की प्रक्रिया को जड़-मूल से समाप्त करने के लिए उसे प्रारंभिक स्थिति में ही रोकने के लिए सख्त प्रयास होना चाहिए।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
न्यायपालिका से आशा
नोएडा स्थित ट्विन टॉवर का ध्वस्त होना भ्रष्टाचार पर एक प्रेरणादायक प्रहार है। टॉवर का गिराया जाना एक सबक हो सकता है परंतु इस इमारत को सरकार के अधीन लेकर सदुपयोग किया जा सकता था। पुलिस-प्रशासन सुधार की बातें अभी केवल मीडिया तक ही सीमित हैं, व्यावहारिक रूप से हर राज्य में व्यवस्था-तंत्र भ्रष्टाचार का पोषक बना हुआ है। फिर भी कुछ ईमान के धनी व्यक्तित्व हैं जो भ्रष्टाचार रूपी राक्षस से लड़ रहे हैं। इस बारे में देश का आमजन न्यायपालिका से अधिक आशाएं रखता है।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
एक मिसाल
अक्सर देखा जाता है कि कोई भी घोटाला चाहे वह कितना ही बड़ा हो ,एक चटपटी खबर बनकर समाप्त हो जाता है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर नोएडा में ट्विन टॉवर को गिराया जाना एक मिसाल है। यह आने वाले दिनों में बिल्डरों को सबक देने का काम करेगा। किसी भी अपराध के लिए जब तक कठोर दंड का प्रावधान नहीं होगा कोई परिणाम हासिल नहीं होगा। बेशक अथाह संपत्ति का मिट्टी में मिल जाना दुखदाई है, मगर भ्रष्ट समाज को सुधारने के लिए ऐसे सख्त कदमों की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार मुक्त समाज की रचना ऐसे नियमों से ही हो पाएगी।
श्रीमती केरा सिंह, नरवाना
सही संदेश
कोर्ट के आदेश पर नोएडा में ट्विन टॉवर जमींदोज होने से एक सही संदेश मिला है। निस्संदेह निरंकुश व भ्रष्ट व्यवहार करने वाले बिल्डरों के लिए यह एक सबक है। अपने सही जांच करने के कर्तव्य की अवहेलना करने वाले अधिकारियों को भी सबक मिलना अभी बाकी है। इन टॉवरों के निर्माण में देश के बेशकीमती संसाधनों का और मानवीय श्रम का अत्यधिक निवेश हुआ है। इनके जमींदोज होते ही उस पर पानी फिर गया। अच्छा होता यदि मानवीय दृष्टि से इन्हें अस्पताल बनाने व छत की आकांक्षा रखने वाले वर्गों को देने के बारे में सहानुभूतिपूर्वक विचार कर लिया गया होता।
शेर सिंह, हिसार
पुरस्कृत पत्र
संबंधित लोगों पर कार्रवाई
नोएडा में ट्विन टॉवरों को ढहाया जाना प्रॉपर्टी मार्केट को पारदर्शी और जिम्मेदारी वाला कारोबार बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक और काबिलेतारीफ कदम है। जो लोग इन ट्विन टॉवर्स में अस्पताल खोलने या इन्हें गरीबों को सौंपने की तरफदारी कर रहे हैं, उन्हें वास्तव में इन टॉवर्स के ध्वस्तीकरण के मूल कारण तक का अहसास नहीं है। अवैध टॉवर्स के ध्वस्तीकरण से निश्चित ही देश में चल रही प्राधिकरणों और बिल्डरों की जुगलबंदी टूट सकेगी, क्योंकि इन टॉवर्स के गिराये जाने से उन्हें कड़ा सबक मिला है। अवैध निर्माण से जुड़े संबंधित सभी लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए ताकि सबक मिल सके।
ज्योति कटेवा, पटियाला, पंजाब
पोषण का महत्व
पंजाब के सामाजिक सुरक्षा, महिला एवं बाल विकास मंत्री ने पोषण माह में महिलाओं की बड़े पैमाने पर भागीदारी का आह्वान किया। यह लोगों को जागरूक करने के लिए सही पहल है। यह भी कि महिलाओं के आहार के रूप में भोजन करना और दैनिक जीवन में पौष्टिक पोषण लेना कितना महत्वपूर्ण है। इस पोषण अभियान का उद्देश्य कुपोषण की समस्या की ओर देश का ध्यान आकर्षित करना और इससे मिशन के रूप में निपटना है। सरकार को लोगों को जागरूक करने के लिए और अधिक पहल करनी चाहिए। इसके साथ ही सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली योजनाओं पर भी प्रकाश डाला जाना चाहिए।
पारुल गुप्ता, फतेहगढ़ साहिब
आंकड़ों की बाजीगरी
सात सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘आंकड़ों के बजाय हकीकत की संवेदनशीलता समझें’ सत्ता पक्ष तथा विपक्ष द्वारा सदन के अंदर तथा सदन के बाहर बेकारी, महंगाई तथा भ्रष्टाचार आदि को लेकर अपने-अपने ढंग से आंकड़ों का दुरुपयोग करके जनता के दुख-तकलीफ का ध्यान न रखने का चित्र उकेरने वाला था। असल में जिस तरह जमीनी सतह पर कमरतोड़ महंगाई, आमदनी में कमी, बेकारी, कुपोषण, गरीबी बढ़ रही है उसकी चिंता किसी को नहीं! सभी सत्ता हासिल करना चाहते हैं। सच्चाई तो यह है कि जो भी आंकड़े गिनाये जा रहे हैं, केवल जनता को भरमाने वाले हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
कांग्रेस की दिशा
बड़ी अजीब स्थिति है कि इधर कांग्रेस को नये अध्यक्ष की तलाश है, उधर कद्दावर नेताओं का पार्टी से किनारा जारी है। कांग्रेस आज जिस मुकाम पर है उसे संभालने के लिए दीर्घ अनुभव और रणनीति की जरूरत है। बार-बार राहुल गांधी पर अध्यक्षता का दबाव बनाकर कांग्रेस के कुछ नेता पार्टी को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं मतलब एकदम साफ है। कांग्रेस में जब तक चाटुकारिता बंद नहीं होगी किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की उम्मीद बेमानी होगी।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
ज्ञान का प्रकाश
पांच सितंबर को दैनिक ट्रिब्यून में शिक्षक दिवस पर प्रकाशित ‘गुरुजी द्वारा गुरबत में ज्ञान का प्रकाश...’ पढ़कर मन प्रसन्न हुआ। गांधी स्कूल आज जिस तरह से गरीब बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवा रहा है, वह सराहनीय है। वहीं गरीब बच्चों को नया आकार देने वाले गुरुजी नरेश कुमार के अथक प्रयासों से यह स्कूल आज अपनी पहचान बनाने में सफल रहा। यह उनके ही प्रयासों का प्रतिसाद है कि गरीब बच्चों को पढ़ाई का महत्व समझ आया और देखते-देखते यह कारवां लगभग 150 बच्चों तक चल निकला।
विकास, छात्र गांधी स्कूल, रोहतक
अर्थव्यवस्था की मजबूती
यूरोप में सुस्ती के बीच घरेलू अर्थव्यवस्था की तेज ग्रोथ से भारत का ब्रिटेन को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाना गर्व की बात है। लेकिन देश के अंदर हो रहे घोटालों व भ्रष्टाचार से यह प्रतीत नहीं होता कि आर्थिक तौर पर अभी भी हम सशक्त हैं। देश में गरीबी के कम होने से ही देश की आर्थिक प्रगति निहित है। आज केवल उच्च वर्ग का सशक्त होना ही अर्थव्यवस्था की मजबूती माना जा रहा है। लेकिन एक बड़ा वर्ग आज भी दो जून की रोटी के लिए जी तोड़ मेहनत में लगा है। क्या सरकार इस वर्ग के लिए भी चिंतित है?
अम्बिका अरोड़ा, चंडीगढ़
चुनावी समर के सवाल
आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव हेतु आम आदमी पार्टी की चुनावी सरगर्मियां भाजपा और कांग्रेस को जोरदार चुनौती पेश कर रही हैं। इस बार आप के चुनावी मैदान में कूदने से त्रिकोणीय चुनावी टक्कर देखने को मिलेगी। इन चुनाव में यह देखना बेहद रोचक रहेगा कि दिल्ली मॉडल और गुजरात मॉडल के मुकाबले में कांग्रेस की रणनीति क्या होगी। आने वाले दिनों में पाला बदल राजनीति भी देखने को मिलेगी। आरोप-प्रत्यारोप का दौर दिल्ली से हटकर गुजरात में देखने को मिलेगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
लिज की चुनौती
सात सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘लिज़ पर भरोसा’ ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस द्वारा ऋषि सुनक को पराजित करके सत्ता संभालने का विश्लेषण करने वाला था। पांचवें दौर तक सुनक लिज से आगे चल रहे थे परंतु अंतिम दौर में अनुदारवादियों द्वारा मूल रूप से अंग्रेज को ही प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया गया। वहीं इस समय लिज के सामने इंग्लैंड के मुद्दे तथा अंतर्राष्ट्रीय समस्याएं मुंह खोले खड़ी हैं। देश को रूस-यूक्रेन विवाद में से निकालकर विकराल होती बेकारी तथा महंगाई की समस्या, करों में छूट तथा देश का विकास करने की समस्या का समाधान ढूंढ़ना होगा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
रेवड़ियों के भरोसे
केजरीवाल ने दिल्ली का चुनाव मुफ्त रेवडि़या बांट कर दो-दो बार जीत लिया। इसी रेवड़ी कल्चर के दम पर उन्होंने पंजाब का चुनाव भी जीता। आजकल उनकी निगाह गुजरात राज्य पर टिकी हुई है। वे गुजरातियों को भी भरमाने में लगे हुए हैं। उन्हीं की देखादेखी राहुल गांधी ने भी गुजरात को जीतने के लिए अपनी पार्टी की ओर से रेवड़ी कल्चर का सहारा ले लिया है। किसानों का तीन लाख तक का कर्जा माफ, आम जनता को 300 यूनिट तक की बिजली मुफ्त प्रदान करेंगे।
मनमोहन राजावतराज, शाजापुर, म.प्र.
पलायन की स्थिति
देश का बेंगलुरू शहर आज भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। बढ़ती आबादी व कंक्रीट के जंगल, जल निकासी के उचित प्रबंधों का न होना और प्रशासन की उदासीनता इनके मुख्य कारण हैं। देश के अन्य महानगरों का भी यही हाल है। बेंगलुरू शहर के पॉश इलाके इलेक्ट्रॉनिक सिटी में जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियां कार्यरत हैं, वहां भी पानी ही पानी है। देश के आईटी हब कहलाने वाले इस शहर में कुव्यवस्था से तंग आकर कहीं ये बड़ी कम्पनियां पलायन न करने लगें।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
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हिंसक व्यवहार
एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वास्तव में सरकार ने महिलाओं की सहायता लाइन, बूथों और अन्य सुविधाओं सहित कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, क्या वे सार्थक हैं? आज भी घरेलू हिंसा, बलात्कार और उत्पीड़न देखने को मिल जाते हैं। हाल ही में एक विधायक का घरेलू हिंसा का वीडियो वायरल हुआ था। पूछे जाने पर कहा गया कि यह उनका निजी मामला है। महिलाओं के प्रति हिंसा या गाली-गलौज से समाज की कड़वी सच्चाई का पता चलता है।
दीक्षा बंसल, बनूड़
दुखद घटना
झारखंड की एक लड़की को एक सिरफिरे द्वारा पेट्रोल डालकर जला कर मार डाला गया। ऐसी वीभत्स घटनाएं समाज को न केवल कलंकित करती हैं अपितु इस बात की चुनौती भी है कि इसे रोकने के लिए सख्त सजा का प्रावधान हो। आखिर दरिंदों को कब तक जेल में रखकर उन्हें मुफ्त की रोटियां खिलाई जाती रहेंगी? झारखंड की पीड़िता के अंतिम बयान के आधार पर हत्यारे को कुछ साल की सजा देकर सुधारने के बजाय जैसे के साथ तैसा वाला न्याय होना चाहिए।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
सड़क हादसे
इन दिनों सड़क हादसों के मामले बढ़ गए हैं। वाहन चलाते समय सीट बेल्ट न पहनना, हेलमेट न पहनना, शराब पीकर गाड़ी चलाना आम बात हो गयी है। आजकल तो ड्राइविंग करते समय सोशल मीडिया का उपयोग करना हादसों का एक और बड़ा कारण है। भारत की सड़कों पर हर साल लगभग 1.5 लाख मौतें होती हैं। इनमें से एक-तिहाई राष्ट्रीय राजमार्गों पर हादसों के कारण होती है। सरकार को जुर्माना लगाने के बजाय जो लोग यातायात नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं उनका एक सप्ताह या महीने के लिए ड्राइविंग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
पारुल गुप्ता, फतेहगढ़ साहिब
चीनी दमन चक्र
तीन सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘बेनकाब चीन’ चीन सरकार द्वारा शिनजियांग की 10 लाख उइगर मुस्लिम आबादी पर दमन चक्र का पर्दाफाश करने वाला था। विडंबना यह है पाकिस्तान, टर्की आदि देश चीन में शिनजियांग में मुस्लिमों के खिलाफ दमन चक्र को जानते हुए भी चुप्पी साधे हुए हैं। चीन हमेशा आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के हर प्रस्ताव का वीटो करता रहा है। अब संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व के अन्य शक्तिशाली देश चीन द्वारा उइगर मुसलमानों के मानव अधिकारों के हनन को लेकर क्या कार्रवाई करेंगे, यह अभी देखना बाकी है।
शामलाल कौशल, रोहतक
भ्रष्टाचार का टॉवर
संपादकीय ‘ध्वस्त भ्रष्टाचार का टॉवर’ में उल्लेख है कि वर्ष 2011 में उपभोक्ताओं ने कोर्ट की शरण लेकर सिद्ध कर दिया कि मामला महत्वपूर्ण था। वस्तुतः सरकार और नेता दोनों की संदेहास्पद भूमिका होने से ही इतनी बड़ी बिल्डिंग बगीचे की जमीन पर बन सकी। इससे सभी बिल्डरों को सबक लेना होगा कि किसी शासकीय या कृषि उपयोगी जमीन पर बिना अनुमति के कोई निर्माण कार्य नहीं करें। इस प्रकरण में जो बिल्डर्स या जो भी लोग दोषी हों उन्हें दंडित करना चाहिए।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
अनियोजित विकास
इस साल देश के कई हिस्सों में मूसलाधार बारिश, बादल फटने, बिजली गिरने और भूस्खलन से तबाही का सिलसिला जारी है। कई इलाकों में नदियां व जलाशय उफान पर हैं। यह सब पर्यावरण असंतुलन का ही दुष्परिणाम है। अनियोजित विकास परियोजनाओं के वजह से नदियों व तालाबों के जलग्रहण क्षेत्रों में इमारतें और सड़कें बना दी गई हैं। वनों की कटाई, नदियों का अवैध खनन भी इसके लिए जिम्मेदार है। विकास योजनाएं इस तरह से बनाई जाएं कि प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम नुकसान हो। जितने पेड़ काटे जाएं उससे दुगने पेड़ लगाकर उनका रखरखाव किया जाए। तभी इन आपदाओं से पार पाया जा सकता है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
प्रबंधन का नजरिया
विकास क्या किया जाये यह तय बरसात के मौसम में ही हो जाना चाहिए क्योंकि मौसमी तेवर बदलते रहते हैं और सारे विकास को तहस-नहस कर सकते हैं। सड़क पुल, बाग-बगीचे, भवन, बांध और अन्य मानव द्वारा विकसित संरचना प्रभावित हो जाती है। फिर पुनर्निर्माण में करोड़ों खर्च करने पड़ते हैं। बदलते मौसमी तेवर को देखते हुए ही विकास किया जाये ताकि जान-माल के नुकसान से बचा जा सके। पृथ्वी पर संसाधन सीमित हैं। उनका सही तरीके से मौसम के अनुसार प्रबंधन किया जाए यही उचित रहेगा।
प्रदीप गौतम सुमन, रीवा, म.प्र.
विकास की अंधी दौड़
बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के मद्देनजर वर्षा का पैटर्न बदल गया है, कम समय में ज्यादा बरसात होने लगी है। बादल फटने की घटनाओं के कारण तबाही होने लगी है, वनों का कटाव बढ़ रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों तथा भवन निर्माण के कारण प्रकृति के संतुलन में परिवर्तन आया है। असमय बरसात, बादल फटने तथा बाढ़ों का आना विश्वव्यापी समस्या बन गई है। वहीं सुनामी के कारण कई देशों का नुकसान हो चुका है। विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करके हम महाविनाश को आमंत्रित कर रहे हैं। सभी देशों को ग्लोबल वार्मिंग के कारणों व समाधान पर काम करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
चीन से प्रेरणा
मौसम परिवर्तन की वजह से उत्पन्न परिस्थितियों से मानव का तालमेल बैठाना तथा बेहतर आपदा प्रबंधन जरूरी है। यह तभी संभव है जब मानसूनी बारिश, जलवायु, मौसम परिवर्तन की स्थितियों को देखते हुए निर्माण करें व विभिन्न मानकों में बदलाव भी करें। इस संबंध में पड़ोसी चीन से प्रेरणा ले सकते हैं जिसने बॉर्डर पर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया। सड़क, रेल और हवाई संपर्क साधनों के साथ-साथ 5जी नेटवर्क स्थापित किये ताकि मौसम परिवर्तन से उपजी विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला बेहतर ढंग से कर सकें। साथ ही उसने निर्माण मानकों में भी बदलाव किया है।
सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब
आधुनिकता का प्रभाव
आधुनिक साधनों एवं कल-कारखानों के निर्माण से वायुमंडल प्रदूषित हुआ एवं नदियों के जल में हानिकारक रसायनों का जहर घुला। सड़कों तथा ऊंची इमारतों के निर्माण से कृषि योग्य भूमि कम हुई तथा पेड़ों की बलि दी गई। सीमेंटेड सड़कों से पानी का जमीन में अवशोषण ही रुक गया। बड़े बांधों के निर्माण से भूगर्भीय हलचलें बढ़ी एवं भूकंप जैसी आपदाओं का विस्तार हुआ। आधुनिक संचार के साधनों द्वारा मनुष्य तरक्की के नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। वहीं दूसरी ओर इलेक्ट्रॉनिक्स एवं ई-कचरे से रेडिएशन फैलने की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
प्रकृति से छेड़छाड़
प्रकृति के अधिक दोहन का नतीजा ही असामयिक वर्षा, बादलों का फटना, पहाड़ों का दरकना, ग्लेशियरों का पिघलना और जल प्लावन है। वैज्ञानिक विधि, पद्धतियों की तर्ज पर आधुनिक निर्माण कला तथा मशीनीकरण कुदरत को ललकारता है तभी मौसमी तेवर बदले। केदारनाथ व सुनामी लहरों की विनाशलीला भुलाए नहीं भूलते। बर्फीले पहाड़ों में विकास के लिए सिलसिलेवार पेड़ों-जंगलों का स्वार्थवश कटान प्रकृति के संतुलन को बिगाड़कर महाविनाश को निमंत्रण देना है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
पुरस्कृत पत्र
वैज्ञानिक आधार हो
21वीं सदी में सबसे बड़ा खतरा ग्लोबल वार्मिंग से है। इसके चलते आने वाले दिनों में सूखा, बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी और मौसम का मिजाज पूरी तरह से बदला हुआ नजर आ सकता है। फिलहाल तबाही वाली बारिश, बादल फटने, बिजली गिरने की घटनाएं इसका साफ संकेत है। धरती की गर्मी को सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा के इस्तेमाल से कम किया जा सकता है। हमें अपने अन्य विकास के मानकों को भी प्रकृति के अनुरूप ढालने की जरूरत आन पड़ी है। हिमालयी क्षेत्रों में निर्माण को भी वैज्ञानिक कसौटी पर परखना होगा।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
चीन के मंसूबे
चीन आज जिस नीति पर चल रहा है उसे उसी शैली में जवाब देकर उसके इरादों को ध्वस्त किया जा सकता है। चीन ने हमेशा सीमावर्ती क्षेत्र में नए गांव बसाए हैं ताकि उसकी घुसपैठ अरुणाचल आदि क्षेत्रों में हो सके। भारत सरकार ने भी उसका करारा जवाब देने के लिए सीमा क्षेत्रों से लगे 500 गांवों को फिर से बसाने का प्लान तैयार किया है। चीन की घुसपैठ को देखते हुए यही सही इलाज है। भारत के इस कदम से दोहरा फायदा होगा। एक तो चीन की हमारे क्षेत्रों पर लगी निगाह हटेगी। दूसरा गांवों के फिर से बसने से सीमा क्षेत्र आबाद हो सकेंगे।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
सुविधाओं का हक
आजादी के 75 साल बाद भी मुफ्त उपहार आज प्रासंगिक बने हुए हैं। लेकिन समाज के विभिन्न वर्गों के लिए मुफ्त उपहारों की प्रासंगिकता अलग-अलग है। शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली को मुफ्त नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये आमजन की बुनियादी सुविधाएं हैं और समाज के आर्थिक विकास पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही इन्हें सुलभ करवाना सरकार की मूलभूत जिम्मेदारी भी है। उद्योगपतियों को सब्सिडी या ऋण बट्टे खाते में डालने जैसे अतिरिक्त लाभों को व्यर्थ का व्यय कहा जा सकता है।
सुहाना, चंडीगढ़
नैतिकता का प्रश्न
युवा पीढ़ी देश का भविष्य कही जाती है और विकास में उसका अहम याेगदान होता है। अगर यही युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आ जाये तो समाज और देश का क्या भविष्य होगा, समझा जा सकता है। दिल्ली का नेतृत्व राजनीति के चलते अपनी सरकार को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगा हुआ है। सरकार का कहना कि शराब की दुकान खोलने का लाइसेंस तभी दिया जाना चाहिए जब ग्राम सभा में मौजूद 90 प्रतिशत महिलाओं की मंजूरी हो। सवाल उठता है कि इस कसौटी पर सरकार कहां तक खरी उतरी है।
विनीत मंडराई, दिल्ली
आत्मघाती मजबूरी
प्रथम सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘खुदकुशी की लाचारी’ सुसाइड के बढ़ते मामलों के कारणों का विश्लेषण करने वाला था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2021 में लगभग एक लाख चौसठ हजार तैंतीस लोगों ने खुदकुशी की। उनमें लगभग एक-चौथाई दिहाड़ीदार मजदूर थे। विडंबना है कि जो मजदूर आर्थिक विकास में अपना योगदान देते हैं, श्रम कानूनों के बावजूद उनको नियमित रोजगार, उचित मजदूरी नहीं मिलती। उनके लिए काम के घंटे निर्धारित नहीं है, कोई छुट्टी नहीं है। वहीं आमदनी कम होने तथा कर्जा न चुका सकने के कारण किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
भ्रष्टाचार की दलदल
भ्रष्टाचार के खिलाफ कई केंद्रीय एजेंसियां अभी सक्रिय हुई हैं और इन्होंने कई बड़े-बड़े नेताओं-राजनेताओं को दबोचा है। विभिन्न सरकारों में बढ़ता भ्रष्टाचार गंभीर समस्या है, मगर उससे भी गंभीर है भ्रष्टाचार के मुद्दे को राजनीति के लिए उठाना। छापेमारी के बाद जांच और सुनवाई वर्षों तक चलती रहती है, इस ढांचे में बदलाव की सख्त ज़रूरत है। भ्रष्टाचार का इलाज राजनीति से ऊपर उठ कर निष्पक्ष तरीके से किया जाना चाहिए।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.
सड़क हादसे
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश में बढ़ते सड़क हादसों में वर्ष 2021 में लगभग डेढ़ लाख से ऊपर लोगों की मौत हुई है। सबसे अधिक तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में यातायात दुर्घटनाओं में क्रमशः 14.2 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत और 9.5 प्रतिशत मौतें हुईं। इन सड़क दुर्घटनाओं में दोपहिया वाहनों में जान गंवाने वाले लोगों का आंकड़ा भी ज्यादा है। सड़क हादसों के कारणों में ओवरलोडिंग और ओवरस्पीड भी हैं। ऐसे हादसों के लिए वे भी जिम्मेदार हैं जो यातायात के नियमों का पालन मात्र चालान कटने के डर से कभी-कभार करते हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
बदहाल पाकिस्तान
पाकिस्तान के आर्थिक हालात दिन-प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं। रही-सही कसर भयंकर बाढ़ ने पूरी कर दी है। लगभग 10 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है। बाढ़ के चलते खाने-पीने के सामान की किल्लत पैदा हो गयी है। भारत के साथ व्यापार बंद है। हालांकि प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की इस बाढ़ विभीषिका पर संवेदना जताई है और मानवीय सहायता का आश्वासन भी दिया है। भारत आर्थिक मदद देने की घोषणा भी कर देता लेकिन यही पाकिस्तान है जिसने अपने यहां आये भूकंप के दौरान मानवीय सहायता लेने से इंकार कर दिया था।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
धूम्रपान के खतरे
धूम्रपान को लेकर बीते सालों में बड़ी जनजागृति आई है। संभावित जानलेवा खतरे को समझकर लोगों ने इसे तिलांजलि भी दी है मगर देखने में आ रहा है कि युवा पीढ़ी इसकी बड़ी गिरफ्त में है। इसमें लड़कियां भी शामिल हैं। पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन का निष्कर्ष है कि धूम्रपान करने वालों के करीब वालों को कैंसर होने का ज्यादा खतरा होता है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो लोग धूम्रपान करते हैं उनकी सेहत कैसी होगी?
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
विपक्ष की भूमिका
31 अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘मजबूत विपक्ष की भूमिका भी समझे कांग्रेस’ के अंतर्गत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव एक महीने के अंदर होने की संभावना है। लोकतंत्र की सफलता के लिए जहां सशक्त सत्तापक्ष का होना जरूरी है वहां सत्तापक्ष की कार्यप्रणाली पर नजर रखने के लिए मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है। कांग्रेस को ‘देश जोड़ो अभियान’ आदि द्वारा लोगों से सीधा संपर्क साधना चाहिए। वहीं अध्यक्ष के मामले को मनोनयन द्वारा नहीं बल्कि चुनाव द्वारा हल करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
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