आपकी राय
राहुल का कद
तीस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित ‘लाल चौक पर तिरंगे से राहुल का कद बढ़ा’ खबर इस विषय पर चर्चा करने वाली थी। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने लाल चौक पर तिरंगा फहराने के बाद अपनी भारत जोड़ो यात्रा संपन्न की। यात्रा ने राहुल गांधी को देश के विभिन्न भागों मे रहने वाले लोगों से संपर्क स्थापित कर उनकी समस्याओं को समझने का मौका दिया। आगामी 2024 के संसदीय चुनाव में कांग्रेसी एकजुट होकर भाजपा से टक्कर ले पाने में स्वयं कितने समर्थ होंगे, समय के गर्भ में है। इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि राहुल गांधी बतौर एक राष्ट्रीय कांग्रेसी नेता के रूप में उभर कर आने में है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
भ्रष्टाचार की हद
मध्य प्रदेश के नागरिक आपूर्ति निगम के अफसरों के मुताबिक प्रदेश के 5 करोड़ से ज्यादा गरीबों को बांटा जाने वाला 25 से 30 करोड़ रुपए का सरकारी राशन हर साल बीच रास्ते में ट्रक से गायब हो जाता है। सवाल यह है कि अब तक इस चोरी को रोकने के प्रयास क्यों नहीं किए गए? इन गरीबों के मुंह तक राशन पहुंचाने वाले जिम्मेदारों अधिकारियों के हलक तक कानून का हाथ अब तक क्यों नहीं गया? भ्रष्टाचार पर सख्त नियंत्रण जरूरी है।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
हमारी जिम्मेदारी
आस्था के केंद्र जोशीमठ में पहाड़ों के धंसने, मकानों में दरारें पैदा होने, जमीन के अंदर से पानी निकलने आदि से पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के मन में डर तथा दहशत पैदा हो गयी। समय-समय पर विभिन्न संगठनों ने चेताया भी था। बावजूद इसके गैर-योजनाबद्ध तरीके से विकासात्मक कार्य, सुरंगें तथा रोपवे बनाने में वृक्षों को काटना, आस्था के केंद्र को पर्यटन स्थल के तौर पर इस्तेमाल करना, आबादी के बढ़ने से ज्यादा मकानों व होटलों का बनना तथा हाईवे का बनना, इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार हैं। जिन कारणों से यह त्रासदी हुई है उन्हें दूर कर पर्वतीय क्षेत्रों की दुर्दशा काे रोका जा सकता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
संरक्षण आवश्यक
अधिक पाने की लालसा सबको होती है लेकिन यदि ऐसे कार्य से किसी की हानि हो तो यह लालसा अभिशाप बन जाती है। आज मानव विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है। पृथ्वी का संतुलन बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बड़े शहरों में गगनचुंबी ऊंची इमारतें और भूमि की अत्यधिक खुदाई के कारण पृथ्वी का संतुलन बिगड़ा है। भूमि को बंजर बनाने में भी मनुष्य पीछे नहीं है। संतुलित विकास और पृथ्वी का संरक्षण अति आवश्यक है अन्यथा प्रकृति मनुष्य के कार्यों से अप्रसन्न होकर न जाने क्या करे।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
प्रकृति से सामंजस्य
जोशीमठ में पर्वतों को काट-काट कर जिस तरह से विकास की परियोजनाएं बनाई जा रही हैं वो जनता के लिए तो हितकारी लग रही हैं लेकिन इस प्रक्रिया से समूचा ढांचा गड़बड़ा गया है। आये दिन मकानों, सड़कों आदि जगह भूधंसाव की खबरें आ रही हैं, जिसने आम आदमी का जीवन दूभर कर दिया है। इन परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से रोकना ज्यादा जरूरी है, जिससे जनता की जानमाल की हानि को रोका जा सके। प्रकृति से सामंजस्य बनाकर ही विकास कार्य सही है।
भगवानदास छारिया, इंदौर
अंधाधुंध दोहन न हो
जोशीमठ के धंसने से वहां के निवासियों की जान-माल दोनों ही खतरे में पड़ गए हैं। वर्ष 1976 में मिश्रा कमेटी ने चेतावनी दी थी कि यहां विकास के नाम पर पहाड़ों की खुदाई नहीं की जानी चाहिए। इन सब की अनदेखी करते हुए बिजली उत्पादन बढ़ाने हेतु टनल और पर्यटन के लिए सड़कों को चौड़ा करने हेतु बलास्टिंग भी जारी रही। परिणामस्वरूप 12 दिनों में जमीन 5.4 सें.मी. धंस गई। पर्यटन के नाम पर अनियोजित होटलों का निर्माण और बाईपास बनाने का काम जारी रहा। प्रकृति चेतावनी दे रही है कि सुधर जाएं। विलासिता और धन कमाने के लालच में प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन न करें।
शेर सिंह, हिसार
नियोजित हो विकास
दशकों पहले जोशीमठ पर्वतीय क्षेत्र में अस्थिर भूसंरचना को देखते हुए नियंत्रित और व्यवस्थित विकास की सलाह दी गयी थी। अफसोस कि तमाम सुझावों और चेतावनियों को दरकिनार कर जोशीमठ को आधुनिक और अनियंत्रित शहर के रूप में विकसित होने दिया गया। धार्मिक जोशीमठ शहर को पर्यटन स्थल का रूप दे दिया गया। जोशीमठ के हश्र को देखकर अन्य सभी पर्वतीय शहरों के विस्तार और अनावश्यक विकास पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। पर्यावरण एवं प्रकृति के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए नियोजित विकास हो।
तुषार मंगला, रादौर, यमुनानगर
प्रकृति से छेड़छाड़
पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने व आकर्षण का केंद्र बनाने के दृष्टिगत वृक्षों का निरंतर कटान, जनसंख्या वृद्धि के कारण मकानों, होटलों, यातायात सड़क सुरक्षा मार्गों को सरल-सुगम बनाने हेतु प्रकृति से निरंतर छेड़छाड़, जोशीमीठ जैसी त्रासदी का परिणाम है। पर्यटन स्थलों को मात्र विलासिता का केंद्र न बनाकर प्रकृति की सुंदर, मनोरम छटा को मानवीय सोच-विचारों की उच्च श्रेणी में रखना होगा। पर्वतीय जल स्रोत संसाधनों, शृंखलाओं में विकासात्मक कार्यों के लिए अवैध, अनावश्यक खनन पर रोक लगानी चाहिए ताकि यहां का प्राकृतिक संतुलन न बिगड़े।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
पर्यावरणीय अनुपालन
जोशीमठ के साथ-साथ उत्तराखंड के उत्तरकाशी और कर्णप्रयाग जैसे कई अन्य शहर भी भू धंसाव की चुनौती से जूझ रहे हैं। अनियोजित विकास चाहे वह विकास के नाम पर हो या पर्यटन के नाम पर हो, इन पहाड़ी इलाकों में भयावह स्थिति पैदा कर रहा है। प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी बुनियादी ढांचे से जुड़ी किसी भी परियोजना, मसलन सड़कों, सुरंगों व बिजली परियोजनाओं को तब तक अनुमति न मिले जब तक परिस्थितियों से जुड़ी चिंताओं का समाधान न हो जाए। पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्प की जरूरत है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
पुरस्कृत पत्र
संतुलित दृष्टिकोण
भारतीय संस्कृति में विकास की अवधारणा प्राकृतिक से जुड़ी रही है। यहां वृक्षों, नदियों और पर्वतों को भी पूजने की परंपरा है। इसके पीछे उद्देश्य ही रहा कि प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से हो। दशकों तक प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों की अनदेखी कर विकास की राह पर बड़े कदम अब विनाश की गाथा लिख रहे हैं। जोशीमठ एक उदाहरण मात्र है। आज आवश्यकता विकास के तौर-तरीके को बदलने की है। विकास और पर्यावरण दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। विकास योजनाएं बनाते समय प्रकृति के साथ साम्य ध्यान में रखना होगा। इसी तरह पर्यटन के नाम पर पहाड़ों पर जुट रही भीड़ पर भी संतुलित दृष्टिकोण से विचार करना होगा।
सदन जी, पटना, बिहार
आजादी के लक्ष्य
छब्बीस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में शंभूनाथ शुक्ल का लेख ‘आर्थिक असमानता तक आजादी अधूरी’ संविधान के लक्ष्यों का मूल्यांकन करने वाला था। देश में राजनेता जनहित में कार्य करने के बदले ऐश्वर्यपूर्ण जीवन बिता रहे हैं। आमजन असमानता, बेकारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, पेयजल, महंगाई, चिकित्सा सुविधाएं, शिक्षा आदि की समस्याओं के कारण जीवनयापन करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। संविधान की मर्यादा, गरिमा, आत्मा तथा भावना की रक्षा करना जरूरी है।
शामलाल कौशल, रोहतक
वीरांगनाओं का देश
बाईस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में अरुण नैथानी का अशोक कौल से ‘एक भूला-बिसरा गौरवशाली ‘स्त्रीदेश’ साक्षात्कार आद्यंत नवीन ऐतिहासिक ज्ञानवर्धक था। भारत में मुगलकालीन आक्रांताओं को मातृशक्ति का मुंहतोड़ जवाब हैरतअंगेज करने वाला रहा। आधुनिक समाज में महिलाओं को मिले संवैधानिक अधिकारों का तुलनात्मक मूल्यांकन करने पर 'स्त्रीदेश' की दिलेरी के समक्ष तुच्छ मालूम हुए। ऐसे में भारत को वीरांगनाओं का देश कहना उचित होगा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
भविष्य के लिए बेहतर
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने नकल करते पाए जाने वाले छात्रों को रासुका के तहत जेल भेजने का फरमान जारी किया है। उत्तर प्रदेश में हाई स्कूल एवं माध्यमिक बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होने पर यह नियम परीक्षा में लागू होगा ताकि छात्र अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुरूप परीक्षा दे नकल का सहारा न ले। योगी सरकार द्वारा इस निर्णय का क्या परिणाम होगा यह तो वक्त ही बताएगा। सरकार का यह कठोर लेकिन अच्छा फैसला है बल्कि उत्तर प्रदेश के युवाओं के भविष्य के लिए भी बेहतर साबित होगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
सरकार सुध ले
मध्य प्रदेश में विधायकों का वेतन चालीस हजार रुपए बढ़ेगा। यह समाचार पढ़कर हैरानी हुई। एक तरफ तो विधायकों के वेतन बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर वर्षों से आंगनबाड़ियों में महिला कर्मी नाममात्र के मानदेय पर काम कर रही हैं। उन्हें यह मानदेय भी समय पर नहीं दिया जाता। उनकी चिंता किसी को भी नहीं है। इसी तरह सरकारी विभागों में संविदा कर्मी, आउटसोर्स व दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी वर्षों से कार्य कर रहे हैं, मगर उनको स्थायी नहीं किया जा रहा है। सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे आंगनबाड़ी महिला कर्मियों, संविदा, दैनिक वेतनभोगियों व आउटसोर्स कर्मियों की भी सुध लेना सरकार की जिम्मेदारी बनती है।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद उज्जैन
सोच बड़ी हो
कांग्रेस पार्टी भारत जोड़ो यात्रा के जरिये अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने में जुटी हुई है। पार्टी के पास एक मजबूत नेता और काम करने योग्य ढांचा नहीं है। वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के कामकाज ने नई समस्याओं को जन्म दिया है जिसने इसके जनाधार के पराभव को और तेज कर दिया है। पार्टी का नेतृत्व कमजोर है क्योंकि उसमें राष्ट्रीय मुद्दों की समझ की कमी है। इसलिए कांग्रेस को भारत के लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने आप को समय के अनुसार अपनी नीतियों को बदलना होगा। स्वस्थ लोकतंत्र में दो बड़े और मजबूत राजनीतिक दलों का होना आवश्यक है।
राघव दुबे, उ.प्र.
राजनीति न हो
पच्चीस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संबंधित प्रकाशित समाचार ‘सशस्त्र बलों को सबूत दिखाने की जरूरत नहीं’ सेना का सम्मान बढ़ाने वाला था। अपनी सेना पर पूरा विश्वास होना चाहिए। भारतीय सेना के तीनों अंगों ने समय-समय पर सीमाओं की रक्षा करके शत्रुओं को सबक सिखाया है। प्राकृतिक आपदा काल में भी प्रशासन की तन-मन से सहायता की है। राजनेताओं को सेना पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
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अप्रिय टकराव
इक्कीस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘अप्रिय टकराव रोकने की हो सार्थक पहल’ राज्यपालों की भूमिका को लेकर विचार प्रकट करने वाला था। राज्यपाल केंद्र और राज्यों के बीच पुल का काम करता है और संविधान का रक्षक माना जाता है। लेकिन जिस तरह कुछ समय पहले तमिलनाडु, पश्चिमी बंगाल, केरल, मेघालय, महाराष्ट्र आदि विपक्षी दलों वाले राज्यों में राज्यपालों ने केंद्र को खुश करने के लिए टकराव का रास्ता अपनाया वह संविधान की मर्यादा के विपरीत है। असल में केंद्र को राज्यों की सलाह के बाद ही राज्यपालों की नियुक्ति करनी चाहिए जो कि संविधान की जानकारी रखने वाला तो हो मगर गैर राजनीतिक व्यक्ति हो। राज्यपाल राज्य सरकार की अपेक्षाओं के अनुसार ही कार्य करें।
शामलाल कौशल, रोहतक
जीवन िनर्माण का स्रोत
रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों को लेकर पिछले कुछ समय से जारी विवाद ने उस समय एक और मोड़ ले लिया, जब समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सरकार से यह मांग कर दी कि इस रचना में से कुछ पंक्तियों को हटा दिया जाए। रामचरितमानस मात्र एक पुस्तक नहीं है, यह जीवन निर्माण का एक बहुत बड़ा स्रोत है। इसका एक-एक शब्द मानव के जीवन का मार्गदर्शन करता है। विडंबना ही है कि देश में हिंदू धार्मिक ग्रंथ और देवी-देवताओं को लेकर कुछ ज्यादा ही टिप्पणियां की जानी लगी हैं।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.
न्याय मिले
कुछ समय पहले हरियाणा की एक महिला कोच ने खेल मंत्री पर आरोप लगाए थे। तब उस कोच की बात को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की गई और उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। वहीं दूसरी ओर कुछ और खिलाड़ियों ने जब कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष पर आरोप लगाए तो घमासान मच गया। बात खेल मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक पहुंचाने की हुई। जांच समिति भी गठित कर दी गयी। न्याय का आश्वासन भी दिया गया है। सवाल उठता है कि ऐसा भेदभाव क्याें।
सुनील सहारण, फतेहाबाद
सुप्रीमेसी की होड़
तेईस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर ‘सुप्रीम चौखट पर सुप्रीमेसी की होड़’ कॉलेजियम प्रणाली के तहत जजों की नियुक्ति तथा इस परंपरा में केंद्र तथा राज्यों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करने के विवाद का विश्लेषण करने वाली थी। संविधान के मुताबिक जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम के तहत ही होती है जबकि सरकार जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हाथ होने की पक्षधर है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इसी आशय को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र भी लिखा है। अगर ऐसा होता है तो सरकार द्वारा स्वतंत्र न्यायपालिका के कार्यक्रम में हस्तक्षेप होगा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
प्रतिभाओं का पलायन
भारतीयों के विदेश जाने का कारण पैसा कमाना हो गया है। निजी नौकरियों के लिए हर वर्ष औसतन डेढ़ लाख से अधिक लोग भारत की नागरिकता छोड़ रहे हैं। लोगों का मानना है कि भारत में उन्हें वो मौके नहीं मिल पाते जो कि बाहर के देशों में आसानी से मिल रहे हैं। लोगों का बाहर जाना सवाल उठाता है। प्रतिभाओं का पलायन देश के लिए खतरे की घंटी है।
सुनाक्षी गुप्ता, जालंधर
अनुभव के नुस्खे
आज के भौतिकतावाद के समय में वस्तुएं तथा सेवाएं मौसम के मुताबिक बाजार में लोगों के लिए बेची जाती हैं। यूं तो ठंड से बचने के लिए रजाई, कंबल, टोपी, शाॅल आदि का इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन सर्दी से बचाव के लिए परंपरागत प्रतिरक्षा खानपान आज भी उपयोगी हैं। सर्दी से बचने के लिए गुड़ की रेवड़ी, गजक, काढ़ा, सौंफ, मुलेठी, अदरक, लहसुन, शहद, तुलसी का पत्ता और धूप में बैठना आदि बहुत उपयोगी थे, हैं और रहेंगे। कुछ लोग च्यवनप्राश भी प्रयोग करते हैं। यह सब परंपरागत तरीके दादी-नानी के नुस्खों में आते हैं। इनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है।
शामलाल कौशल, रोहतक
सेहत का खाना
हम जानते हैं कि बाजारी फास्ट-फूड सेहत को खराब करता है लेकिन फिर भी समझते नहीं। समझने की जरूरत है कि किसी भी मौसम से बचने के लिए हमें बाजारी फास्ट फूड की बजाय घर में बना खाना ही खाना चाहिए। ठंड से बचने के लिए जैसे बाजरा, मक्की, सरसों का साग, तिल, और ड्राइ फ्रूट्स का इस्तेमाल करना चाहिए। गर्मी से बचने के लिए लस्सी, दूध, दही और घर में बने अन्य पेय पदार्थ का इस्तेमाल करना चाहिए। कहने का तात्पर्य है कि हम बाजारी फास्ट फूड को न कहें और घर में बने खाने का ही सेवन करें। घर में बना खाना खाएंगे तो हमारी सेहत भी ठीक रहेगी।
सतपाल, करनाल
परंपरा में जीवन
पहले सर्दियों में हम सरसों का साग, मक्के की रोटी, मोटा अनाज बाजरा, जौ, देसी घी से बने गोंद के लड्डू तथा गर्मियों में छाछ, दही, लस्सी, मट्ठा, नींबू, तरबूज, खरबूजा, खीरा, नारियल पानी, दाल चावल, सब्जी रोटी तथा बारिश के सीजन में फल, सलाद व जूस का इस्तेमाल करते थे। आज हमारी भोजन जीवनशैली में न तो मोटे अनाज ही हैं और न ही जड़ी-बूटियां, मसाले और मेवे। हम डिब्बा बंद प्रवृत्ति में रम-बस चुके हैं। हमें प्रसंस्कृत फूड कल्चर से बाहर निकल कर अपने परंपरागत खानपान की ओर ध्यान देना होगा।
ज्योति कटेवा, पटियाला, पंजाब
प्रकृति में जीयें
मौसम का बदलाव चक्र प्रकृति की देन है। गर्मी के बाद बरसात, फिर शीत ऋतु आती है। नई आबोहवा हमारे जीवन में नव ऊर्जा का संचार करती है तो इसका चरम थोड़ा परेशान भी करता है। हम इससे बचने के लिए बाजार के उत्पादों का सहारा लेते हैं। गर्मी में एसी और सर्दी में हीटर जैसे कृत्रिम साधन अपनाते हैं। लेकिन ठीक इसके विपरीत यदि हम अपने खानपान में मौसमी मोटा अनाज, फल, सब्जियां, मसाले, मेवे आदि का इस्तेमाल करें तो ठंड में हमारी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो सकती है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
ऊर्जा का संचय
कुदरत ने मौसम के अनुकूल हमारी सेहत को पोषण प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित की हुई है। बड़े-बुजुर्गों की सीख एवं घरेलू नुस्खों को अनदेखा करने के कारण हम परंपरागत खाद्य पदार्थों के लाभ से वंचित हो रहे हैं। व्यावसायिकता एवं बाजार की अंधी दौड़ तथा समय की कमी के कारण भी हम अपने आसपास मौजूद फल एवं जड़ी-बूटियों का उपयोग नहीं कर पाते हैं। मौसम के अनुकूल खानपान के पुराने पैटर्न को अपनाकर एवं आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार हम शीत ऋतु में पोषक आहार को अपने खानपान में शामिल करके वर्ष भर के लिए एनर्जी का संचय कर सकते हैं।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
जीवन शक्ति में वृद्धि
वर्तमान समय में लोगों की अस्त-व्यस्त जीवनशैली है। दूषित वातावरण में रहने को विवश हैं, केमिकल मिला हुआ खाना तथा दूषित पानी पीना मजबूरी है जिस कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आई है। जरूरी है कि हम परंपरागत भोजन और जीवनशैली को समझें और उसे अपने जीवन में आत्मसात् करें। हमें भोजन में लस्सी, गुड़, दूध, घी, ऑर्गेनिक खेती से उपजे अन्न, सब्जी को अपने भोजन मे प्राथमिकता देना होगा। मेवा, फल और हरी साग का सेवन करना होगा। गर्म एवं ताजा भोजन खाना होगा। मोटे अनाज को भोजन में प्राथमिकता देनी होगी। तभी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी।
हरि गोविंद प्रसाद, बेगूसराय
पुरस्कृत पत्र
रसोई में ऊर्जा
ठंड से बचने हेतु बाजार एक सीमा तक ही साधन उपलब्ध करा सकता है, स्थाई हल के लिए हमें अपने परंपरागत साधनों की ओर लौटना होगा। हम अपनी रसोई में ही झांक लें, वहां मेथीदाना, अजवाइन, हींग, लौंग, काली मिर्च, लहसुन, अदरक और दालचीनी मौजूद हैं जो उष्णता की तासीर से भरपूर होने के साथ-साथ हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मज़बूती देते हैं। खाद्य पदार्थों में मोटा अनाज, अलसी, मसूर दाल, साबुत मोठ, तिल और गुड़ आदि हैं जो विभिन्न पौष्टिक अवयवों से भरपूर हैं। सूखे मेवों में मूंगफली, खजूर, छुहारा, बादाम और अखरोट इस श्रेणी के सिरमौर कहे जा सकते हैं। हमने इन सहज-सुलभ साधनों से मुंह-मोड़ कर अपना शारीरिक नुकसान ही किया है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
पलायन की चुनौती
अठारह जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में देवेंद्र शर्मा का ‘बढ़ते विदेश पलायन से उपजी आर्थिक चुनौती’ लेख में 2011 के बाद 16 लाख से भी ज्यादा अमीरों का विदेशों में बस जाना हैरतअंगेज है। देश में तीव्र गति से बढ़ रहे आर्थिक विकास के बावजूद विदेशों में भारी संख्या में पलायन कर वहां की नागरिकता प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा हर नागरिक की बनी रहती है। भारत से बहुत सारे विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेशों में जाते हैं। भारत के मुकाबले उच्च वेतन मिलने के कारण वही बस जाते हैं। इसे 'ब्रेन ड्रेन' कह सकते हैं। इन सब का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसे तुरंत रोकने की जरूरत है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जानलेवा पतंग डोर
जहां आजकल लोग पतंगों को उड़ाने का मज़ा ले रहे हैं, वहीं मासूम पक्षी इनकी डोर से मिलने वाली सज़ा को भुगत रहे हैं। यह पतंग की डोर मनुष्य के लिए भी उतनी ही हानिकारक है जितनी कि जानवरों और पक्षियों के लिए है। डोर में उलझ कर वाहन चालकों और वहां से गुजरने वाले लोगों को भी परेशानी होती है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने तो नायलोन और सिंथेटिक डोरियों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। एक जागरूक नागरिक होने के नाते ख्याल रखना होगा कि ऐसी पतंग की डोर को इस्तेमाल में न लायें जो दूसरों के लिए हानिकारक हो।
सुनाक्षी गुप्ता, जालंधर
चुनावों की तैयारी
पूर्वोत्तर राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई। त्रिपुरा के साथ मेघालय और नगालैंड में भी मतदान की तिथियों की घोषणा कर दी गयी। राज्यों के चुनाव राष्ट्रीय राजनीति पर एक सीमा तक ही असर डालते हैं, लेकिन उनका अपना एक अलग महत्व है। यही कारण है कि राजनीतिक दल अपनी तैयारियों में लगे हुए थे और सत्तासीन पार्टी हमेशा की तरह अन्य दलों से आगे नजर आ रही थी। सभी पार्टियां अपनी चुनावी तैयारियों में हर समय तत्पर रहती है और एक राज्य में चुनाव खत्म होते ही दूसरे राज्यों में लग जाती हैं लेकिन सत्ताधारी दल अक्सर आगे रहता है।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
पाक का दोगलापन
उन्नीस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘बात-घात की नीति’ पाकिस्तान के दोगलेपन का पर्दाफाश करने वाला था। एक तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री स्वीकार करते हैं कि पाकिस्तान भारत से युद्ध में नहीं जीत सकता और भुखमरी व दिवालियापन का सामना करते हुए वहां की जनता भारत से सहायता की उम्मीद करती है और दूसरे ही दिन पीएमओ की तरफ से बयान जारी किया जाता है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 बहाल किए बिना भारत के साथ कोई बातचीत नहीं होगी! स्पष्ट है कि यह सब सेना के दबाव में किया जा रहा है। विश्व में पाकिस्तान अकेला पड़ गया है। कोई भी देश पाकिस्तान को न तो सहायता देना चाहता है और न ही यहां निवेश करना चाहता है। पाक कंगाली के बावजूद भारत से सहायता की उम्मीद लगाए बैठा है और साथ में कश्मीर का राग भी अलाप रहा है।
शामलाल कौशल, रोहतक
जीत का संकल्प
भाजपा का दिल्ली में रोड शो एवं जीत का संकल्प साफ संकेत है कि इस वर्ष 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव को पूरी ताकत से लड़ा जाएगा। देश के राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है, यहां पर कांग्रेस की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। कर्नाटक में कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर है। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की खींचतान कांग्रेस को भारी पड़ेगी। मध्यप्रदेश में भी बीजेपी को एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर का सामना करना पड़ सकता है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति मजबूत दिखाई देती है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
गंभीर आरोप
चाहे स्कूल हो या कॉलेज, कोचिंग हो या खेल संस्थान, इनके गुरु या कोच बहुत ही सम्मानजनक पद पर होते हैं। महिला पहलवानों ने अपने कोच पर छेड़छाड़ का गंभीर आरोप लगाया है। यह कोई पहली बार नहीं है, इसके पहले भी ऐसे आरोप लगाए गए हैं। महिलाओं पहलवानों की कोचिंग महिला खिलाड़ियों द्वारा ही दिए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इन महिला खिलाड़ियों के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए दोषियों को सख्त सजा अपेक्षित है।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
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सबक जरूरी
सरकार ने जम्मू संभाग के राजौरी को आतंकवाद से मुक्त क्षेत्र घोषित किया गया था लेकिन गत दिनों आतंकवादियों ने वहां के एक गांव में हिंदू परिवारों को निशाना बनाया। इस आतंकी हमले से सरकार के हिंदुओं की सुरक्षा के दावों की पोल खुलती दिखती है। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद निरंतर जारी है। विडंबना तो यह है कि हमारे पास संयुक्त राष्ट्र के मिशनों के लिए सैनिक हैं लेकिन अपने देश के नागरिकों की आतंकियों से रक्षा करने के लिए नहीं। पाकिस्तान को सबक सिखाये बिना शांति स्थापित नहीं हो सकती।
अक्षित गुप्ता, रादौर
पलायन की चुनौती
अठारह जनवरी के अंक में देविंदर शर्मा का लेख ‘बढ़ते विदेश पलायन से उपजी आर्थिक चुनौती’ देश से न केवल युवा बल्कि अमीर लोगों द्वारा विदेशों में बसने के अवसरों की तलाश का विश्लेषण करने वाला था। निश्चित रूप से युवाओं व अमीर लोगों द्वारा बड़ी संख्या में विदेशों के लिए पलायन करना एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए शिक्षा को रोजगारपरक बनाने की जरूरत है। लेख में उचित कहा गया है कि ‘सबका साथ - सबका विकास’ नारे को फलीभूत किया जाए।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
भूमिका पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाया है। कोर्ट ने मीडिया पर समाज में सांप्रदायिकता फैलाने तथा कुछ एंकरों पर मीडिया ट्रायल का आरोप लगाया है। इससे कुछ लोगों की छवि धूमिल होती है, ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई न करने के लिए पुलिस विभाग पर भी उंगली उठाई है। लोकतंत्र का निष्पक्ष, निडर स्तंभ मीिडया, जन प्रतिनिधि के तौर पर काम न करते हुए सरकार की तरफदारी में बोलता रहता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
बढ़ती जनसंख्या
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि तीन महीने में भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत इस वर्ष अप्रैल में जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ देगा। उच्च जन्म दर और युवाओं की अधिक आबादी की वजह से 1950 के बाद पहली बार भारत की जनसंख्या चीन से अधिक होगी। यह चिंता का विषय है। संभावना जताई जा रही है कि 2050 तक दुनिया में प्रत्येक छह कामकाजी व्यक्तियों में से एक भारतीय होगा। कुछ विज्ञानियों का मानना है कि धरती पर उपलब्ध संसाधन अधिकतम 900 से 1,000 करोड़ लोगों के लिए ही पर्याप्त हो सकते हैं।
सदन, पटना, बिहार
कारागार में उपकार
‘शिक्षा का द्वार बना एक कारागार’ इस काव्यात्मक शीर्षक के तहत छपी खबर पढ़ी। हर्ष का विषय है कि हिसार केंद्रीय कारागार नंबर एक से पिछले पांच सालों में 364 कैदियों ने स्नातक की डिग्री हासिल की और 876 कैदी साक्षर हो गए और यह क्रम आगे भी जारी है। इस पेशकदमी के लिए कैदियों की इच्छाशक्ति और जेल प्रशासन का सहयोग, दोनों ही स्तुत्य हैं। क्या ही अच्छा हो कि शिक्षा के क्षेत्र में अग्रसर या दस्तकारी का हुनर हासिल करने वाले कैदियों के लिए कोई प्रोत्साहन पैकेज का प्रावधान कर दिया जाए जिससे उनका मनोबल ऊंचा उठे और अपराधी प्रवृत्ति से छुटकारा मिलने लगे।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
बेशर्म यात्री
हवाई यात्राओं के दौरान हाल ही में घटित हुई घटनाएं सोचने को मजबूर करती हैं। पहले विमान में यात्री पर पेशाब करने की घटना और उसके बाद यात्रा में शराब पीकर शामिल होने का मामला एयरलाइंस की लापरवाही दर्शाता है। ऐसी घटनाएं इंगित करती हैं कि यात्राओं में किस प्रकार नियमों और जांच प्रक्रियाओं का फौरी तौर पर पालन हो रहा हैै। इसका असर अंतर्राष्ट्रीय छवि पर भी पड़ेगा। इस तरह की घटनाओं की को रोके जाने के पुरजोर प्रयास जरूरी हैं।
अमृतलाल मारू, इंदौर
कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं
चौदह जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘लाइलाज मर्ज’ स्वास्थ्य सेवाओं की कमी की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने वाला था। बेशक ग्रामीण क्षेत्रों में समुदाय स्वास्थ्य केंद्र हैं लेकिन इनमें न केवल स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कमी है बल्कि बहुत सारे पद खाली भी पड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से मरीजों को शहर के सरकारी अस्पतालों में पहले तो दाखिला नहीं मिलता और अगर दाखिला मिल भी जाए तो सुविधाएं नहीं मिलतीं। इसलिए मजबूरी में उन्हें प्राइवेट अस्पतालों से इलाज करवाना पड़ता है जहां आर्थिकी रूप वे काफी कमजोर हो जाते हैं। सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की सुध लेनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
जानलेवा मांझा
पतंगबाजी में चाइनीज मांझा के प्रयोग के कारण कई युवाओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के बावजूद चाइनीज मांझा बाजार में आसानी से उपलब्ध है। ऐसे दुकानदारों पर शिकंजा कसना पड़ेगा जो चाइनीज मांझा की दुकान लगाकर बैठे हैं। विज्ञापन और स्कूलों के माध्यम से जागरूकता अभियान की बेहद आवश्यकता है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
जागरूकता का प्रसार
अब यदि कोरोना बढ़ता है तो प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह स्वयं तो नियमों की पालना करे और साथ ही अन्य लोगों को भी जागरूक करे। विशेष रूप से जागरूकता की आवश्यकता ऐसे क्षेत्रों में है जहां पर लोग भीड़ में अथवा झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। ऐसे लोगों में जागरूकता की बहुत अधिक कमी होने के कारण सबसे आवश्यक है कि उन्हें स्वच्छता एवं उचित दूरी रखने के साथ साथ बार-बार हाथ धोने के लिए जागरूक किया जाए। बहुत अधिक लोग तो भोजन ग्रहण करने से पूर्व भी हाथ नहीं धोते हैं और कई-कई दिनों तक तो स्नान नहीं करते।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
मानकों की अनुपालना
वायरस जनित रोग और वायरस के बारे में सदा के लिए समाप्त होने की अवधारणा बना लेना अज्ञानता की प्रकाष्ठा है। कोरोना वायरस के निरंतर परिवर्तित हो रहे स्वरूप के परिप्रेक्ष्य में सरकार, शासन और समाज को संकल्प करना होगा कि मानवीय व्यवहार से कोरोना संक्रमण की पुनरावृत्ति न हो पाये। अंतरराष्ट्रीय मानकों की अनुपालना मानवीय कर्तव्य भी है। कोरोना की गंभीर वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर कोरोना अनुरूप व्यवहार का अनुसरण समाज, राष्ट्र और विश्व के प्रति जिम्मेदारी का उच्च मापदंड स्थापित करना समय की मांग है।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम
खामियां दूर हों
कोराना से अभी मुक्ति का अहसास हुआ ही था कि चीन, जापान, कोरिया और अमेरिका में कोरोना की नई लहर ने हर भारतीय की चिंता बढ़ा दी है। सरकार के व्यवस्थागत प्रयास इस को रोकने में सक्षम होंगे। निश्चित रूप से हमारे पिछले अनुभव भी काम आएंगे। नागरिकों का जिम्मेदार व्यवहार भी बेहद जरूरी है। कोविड संहिता का सख्ती से पालन करना होगा। केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि बूस्टर डोज का अभियान तीव्रता से चलाएं। हमारे मेडिकल व स्वास्थ्य ढांचे में व्याप्त कमजोरियों और खामियों का ईमानदार आकलन करके उन्हें दूर किया जाए।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
चिंता बढ़ी
कोविड की नयी लहर ने हर भारतीय की चिंता बढ़ा दी है। सरकार ने बाहर से आने वाले सभी लोगों की जांच, सभी पॉजिटिव केसों की पहचान करने और उनकी जीनोम सिक्वेंसिंग करने के निर्देश देकर सही फैसला लिया है। हमें भी मास्क का प्रयोग, सामाजिक दूरी बनाए रखना और समुचित रूप से हाथ धोना चाहिए। ये वही हालिया तरीके हैं जिनको फिर से अपनाना होगा। केंद्रीय और प्रदेश सरकारों को अपना वैक्सीन अभियान फिर से चलाना होगा। घर बैठे उचित मेडिकल परामर्श वाला तरीका अपनाया जाए और इस पर क्रियान्वयन हो ताकि अस्पतालों पर दबाव कम हो। भारतीयों में प्रतिरोधक क्षमता भरोसे की है। इसका लाभ आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए मिलेगा।
शेर सिंह, हिसार
कोरोना प्रोटोकॉल जरूरी
नये साल में पर्वों का जश्न मनायें, लेकिन कोरोना को भूलना नहीं है। पर्यटन स्थलों पर सैलानियों की भारी भीड़ देखी गई है, कई लोग मास्क भी नहीं पहन रहें हैं जबकि कोरोना का खतरा कम नहीं हुआ है। कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है। भीड़ में दूरी बनाये रखना और मास्क पहनना बेहद जरूरी है, सेनिटाइजर का प्रयोग करना होगा। बूस्टर डोज लेने की भी सलाह दी जा रही है। सतर्क रहने में ही भलाई है। लापरवाही भारी पड़ सकती है। यह न हो कि नये साल में कोरोना की चौथी लहर संकट पैदा करे।
गजानन पाण्डेय, काचीगुडा, हैदराबाद
सहयोग की आवश्यकता
कोरोना संकट के बुरे अनुभवों से दुनिया उबरने लगी थी कि खतरे की आहट एक बार फिर से सुनाई देने लगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत अन्य देशों के मुकाबले बेहतर ढंग से निपटने में सफल रहा। अप्रत्याशित परिस्थितियांे ने आज हमें सतर्क और संसाधनों में आत्मनिर्भर बना दिया है। लिहाजा सरकार द्वारा उठाये जा रहे क़दमों को युद्धस्तरीय बनाये रखना जरूरी है। देश की आम जनता को जागरूक करने के साथ ही जांच प्रक्रिया में तेजी लानी होगी ताकि स्वास्थ्य व्यवस्था पर न्यूनतम दबाव पड़े। सरकार और विशेषज्ञों के सुझावों पर अमल करने में देश के लोगों को सहयोग करना होगा।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
बचाव में ही सुरक्षा
कोरोना महामारी की त्रासदी को अभी भूले भी नहीं थे कि कोरोना फिर से अपने पांव जमाने लगा है। राज्य सरकारों को अस्पतालों में ऑक्सीजन, दवाइयां, बेडों की पर्याप्त संख्या तथा स्टाफ की व्यवस्था करनी चाहिए। जन-जन को मास्क लगाकर बाहर निकलना चाहिए। बचाव के लिए वैक्सीन अवश्य लगवाएं। उचित दूरी बनाए रखते हुए साबुन, सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें। विदेशी यात्रियों की जांच अवश्य करने के निर्देश जारी करें। एक-दूसरे से हाथ मिलाने की आदत से परहेज करना होगा। सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
योग व घरेलू उपचार
इस बात में कोई संशय नहीं कि मिश्रित जलवायु के कारण अन्य देशों के मुक़ाबले भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी मजबूत मानी जाती है। लेकिन तेजी से हो रहे वैश्वीकरण और बाजारवाद ने भारतीयों की जीवनशैली को भी काफी प्रभावित किया है। परिणामस्वरूप शारीरिक क्षमताएं घट रही हैं। बहुत से पुराने नुस्खे जिन्हें भुला दिया है, आज भी स्वस्थ जीवन के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। नियमित योग तथा घरेलू उपचार का तरीका अपनाना चाहिए। कोरोना काल में देखा गया कि बहुत-सी मौतें भयवश हुईं। हौसला किसी भी बीमारी में खुद-ब-खुद एक इलाज होता है।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
कोर्ट से राहत
उत्तराखंड के हल्द्वानी की गफूर बस्ती और बनभूलपुरा के हजारों लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। उत्तराखंड हाईकोर्ट के 20 दिसंबर के अतिक्रमण संबंधी निर्णय पर रोक लगाते हुए मानवीय पक्ष को ध्यान में रखकर कहा कि लोगों को रातो-रात उजाड़ा नहीं जा सकता। रेलवे का पक्ष है कि इस जमीन पर लोगों का अवैध कब्जा है। इतना ही नहीं, इस तथाकथित बस्ती में सरकारी व प्राइवेट स्कूल हैं। दावा किया गया है कि लोग 1947 से यहां रह रहे हैं और यह जमीन उनको नीलामी में मिली है। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे और उत्तराखंड सरकार से कहा है कि यह एक मानवीय समस्या है इसलिए इसका व्यावहारिक समाधान निकाला जाना चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
खास पैगाम
आठ जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में नरेंद्र कुमार का ‘खास पैगाम ले चली चली रे पतंग’ लेख पतंग की प्रासंगिक कथा मन को गुदगुदाने वाली रही। पहले खेल प्रतियोगिताओं में क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, बैडमिंटन आदि को प्राथमिकता मिलती थी। वहीं पर पतंगबाजी प्रतियोगिता में युवा प्रतियोगियों का सचित्र वर्णन प्रेरणा उमंग का मुहाना प्रतीत हुआ। इस ऐतिहासिक नवीन पतंगबाजी में शिरकत करने वाले खिलाड़ियों से अपेक्षा है कि वे मेडल विजेताओं की अव्वल पंक्ति में अपना नाम दर्ज करवाएं।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
यात्रा का हासिल
तेरह जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘जवाब मांगते समय के सुलगते सवाल’ राहुल की भारत जोड़ो यात्रा को लेकर कांग्रेस की सुधरती स्थिति तथा भाजपा में खलबली का वर्णन करने वाला था। इस यात्रा का 2024 में संसदीय चुनाव में कांग्रेस को कितना लाभ मिलेगा, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। भाजपा, राहुल गांधी को हल्के में नहीं ले सकती। राहुल गांधी आम जनता के बीच में जाकर उन्हें पेश आने वाली समस्याओं के बारे में बातचीत कर रहे हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
सुरक्षा उपाय
राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऋषभ पंत की कार दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण तत्काल ही राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने संज्ञान लेते हुए गड्ढों को दुरुस्त करवाने का काम शुरू कर दिया। इसी तरह साइरस मिस्त्री की मृत्यु होने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने सख्त आदेश निकालते हुए गाड़ी के सीट बेल्ट को लगाना अनिवार्य कर दिया। इन्हीं सड़क मार्गों पर आम आदमी गड्ढों व अन्य कारणों से न केवल गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं, अपनी जान से भी हाथ धो रहे हैं। मगर विडंबना है कि कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति सुध नहीं लेता है। अगर सड़कों पर हो रही दुर्घटनाओं को रोकने को तत्काल आवश्यक सुरक्षा के उपाय किये जाएं तो लोग सुरक्षित रहेंगे।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद उज्जैन
मानसिक वेदना न हो
हाल ही में राजस्थान के कोटा शहर के तीन छात्रों ने आत्महत्या कर ली। इसका सबसे बड़ा कारण आज के स्पर्धात्मक वातावरण में प्रतिस्पर्धा न कर पाना है। वहीं अभिभावक अपनी इच्छाओं की पूर्ति बच्चों द्वारा करने का प्रयास करते हैं। उनका बच्चों पर दबाव रहता है। बच्चे इसी पसोपेश में मानसिक यंत्रणा झेलते हैं। उनके पास विकल्प नहीं रहता। कई बार यही मानसिक यंत्रणा बच्चों की आत्महत्या का कारण बनती है। जरूरत इस बात की है कि बच्चों को उनकी इच्छानुसार लक्ष्य निर्धारित करने का खुला मौका दिया जाये ताकि वे किसी मानसिक वेदना का शिकार न हों।
चेतना, रेवाड़ी
याद आयेंगे पेले
ब्राजील के महान फुटबाल खिलाड़ी पेले ने अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर दुनिया को अलविदा कह दिया है। पेले कैंसर से पीड़ित थे। वे एकमात्र फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं जिन्होंने तीन बार वर्ल्ड कप जीता। फुटबाल प्रेमियों ने एक बेहतरीन खिलाड़ी को खो दिया है। पेले बेशक दुनिया को अलविदा कह गये लेकिन उन द्वारा रच गये इतिहास को हमेशा याद रखा जायेगा।
अक्षित गुप्ता, रादौर
सर्वमान्य निर्णय हो
संपादकीय ‘जोशीमठ का संकट’ में उल्लेख है कि जोशीमठ में आई त्रासदी मानव निर्मित है, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में बड़ी बसाहट होना या करना स्वयंमेव त्रासदी को निमंत्रण देना है। गौरतलब है कि वर्षों से दरकती दीवारें, भूमि और मकान आदि खतरे की चेतावनी दे रहे थे, किंतु भूमि और मकान मालिकों के पास अन्य विकल्प न होने से वे वहां से हटने को तैयार नहीं हो रहे थे। वस्तुत: इन्हें आशियाना और रोजगार के विकल्प बता कर हटने को राजी किया जाना चाहिए। शासन अभी तक महज नोटिस देकर इतिश्री करता रहा, जबकि स्थिति अब खतरनाक हो चुकी है। जिसे चुनौती मानते हुए निपटना जरूरी है। शासन, प्रशासन और जनता को मिलकर कोई कार्ययोजना बनाकर मूर्तरूप देने हेतु सर्वमान्य निर्णय भी लेना होगा।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
जीवंत तस्वीर
आठ जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में प्रभा पारीक भरूच की ‘उसका नया साल’ कहानी जिंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव का अवलोकन करवाने वाली रही। मातृशक्ति का जीवन घर- गृहस्थी की जिम्मेदारियों के अतिरिक्त कड़वे-मीठे सामाजिक अनुभवों से दो-दो हाथ होने वाला रहा है। नारी अस्मिता को बचाना कठिन दौर में परीक्षा की घड़ी है। कठिनाइयों से विनम्रता का संदेश मानवता को हर नया साल होने का अहसास कराता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
सबक लें
उत्तराखंड के जोशीमठ में जो कुछ आज घटित हो रहा है उसके लिए हम सब जिम्मेवार हैं। जोशीमठ के बाद अब जमीन में हो रही दरारें कर्णप्रयाग तक पहुंच गई हैं। बिना किसी मानदंड के वनों एवं पहाड़ों की अंधाधुंध कटाई का परिणाम आज इन जगहों पर बड़ी आबादी को भुगतना पड़ रहा है। अच्छा होगा कि हम प्रकृति को संरक्षित रखने का कार्य करें। जोशीमठ की घटना एक सीख है जिससे हमें सबक लेना होगा।
हरि गोविंद प्रसाद, बेगूसराय
सबक लीजिये
केंद्र सरकार के जोशीमठ की संभावित तबाही एवं जान माल के भारी खतरे को रोकने के लिए एक्शन में आने से एक बड़ी उम्मीद जगी है। उत्तराखंड सरकार द्वारा खतरनाक मकान, दुकान, होटल आदि को गिराया जा रहा है और पुनर्वास भी किया जा रहा है। प्रश्न है कि आखिर इतनी बड़ी त्रासदी क्यों देखने को मिली है। क्या यह मनुष्य द्वारा पहाड़ों के जबरदस्त दोहन की कहानी है या फिर बेतहाशा कंक्रीटों का शहर बनाने का परिणाम है। केदारनाथ की आपदा और प्रकृति के कहर से सबक लेना होगा। हमें पहाड़ों, नदियों, प्राकृतिक झीलों, जलाशयों, जंगलों एवं सभी प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम दोहन करना चाहिए।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
फिर कोरोना का प्रकोप
दुनिया भर में जहां कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, वहीं एक और वायरस ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। पिछले कई दिनों में, एच3एन2 वायरस के कई मरीज मिले हैं। हालांकि अभी उनकी स्थिति कंट्रोल में है। आमतौर पर ये वायरस ठंड या फ्लू के मौसम में इन्फ्लूएंजा की मौसमी महामारी का बड़ा कारण बनते हैं। संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। गौरतलब है दुनिया में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ रहा है। चीन में रोजाना कई लोगों की इससे जान जा रही है। जरूरत है कि लोग मास्क, सामाजिक दूरी और जरूरी नियमों का पालन करें।
निधि जैन, लोनी, गाजियाबाद
हिंदी से मजबूती
दस जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया गया। हिंदी सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि हमारे देश की राजभाषा और राष्ट्रीय प्रतीक है। हिंंदी को आम भाषा बनाए जाने का किसी को विरोध नहीं करना चाहिए, बल्कि देश के हरेक राज्य और क्षेत्र के सत्ताधारियों और राजनेताओं को अपनेे यहां के लोगों को समझाना चाहिए कि हिंदी देश की अनेकता में एकता की भावना को और मजबूत करती है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
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सोच कर करें फैसला
जैन समाज के व्यापक विरोध को देखते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जैन धर्म के प्रमुख तीर्थ सम्मेद शिखर जी पर लिया गया फैसला वापस ले लिया है। केंद्र सरकार द्वारा फैसला वापस लिए जाने के बाद जैन समुदाय में हर्ष है। सवाल उठता है कि ऐसे आस्था व श्रद्धा के जो भी पवित्र स्थल हैं, उन पर कोई फैसला लेने व क्रियान्वयन के पूर्व संबंधित समाज से क्यों नहीं रायशुमारी की जाती। सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुका है कि कोई भी फैसला लेने से पूर्व आपत्ति-अनापत्ति पर विचार करना चाहिए ताकि विरोध का कारण न बने।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
संवेदनशील पहल हो
हल्द्वानी की रेलवे कॉलोनी में रह रहे हजारों लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार की कोई योजना नहीं है। सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि खाली कराए जाने वाले परिवारों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। माना कि रेलवे की जमीन पर कब्जा है। फिर भी लोगों को तकलीफ का सामना न करना पड़े, उसके लिए सरकार को फूंक-फूंक कर कदम उठाना होगा।
कान्तिलाल मांडोत, सूरत
देशहित सोचे विपक्ष
समय का पहिया चलता रहेगा, लेकिन हमें अपनी गलतियों से सबक लेना है, उसका विश्लेषण करना है। तभी हम नये जज्बे के साथ आगे बढ़कर अपनी उम्मीदों पर खरा उतर पाएंगे। बीते वर्ष देश ने कई चुनौतियों का सामना किया है कभी प्राकृतिक आपदाओं से, कभी महामारी से तो कभी अन्य। साल 2022 मोदी सरकार के लिए कोरोना महामारी से देश के लोगों को बचाने के लिए अग्नि परीक्षा वाला साल रहा। इन चुनौतियों से मुकाबले के लिए सरकार, विपक्ष और आमजन को मिलकर काम करने की जरूरत है। विपक्ष को भी स्वार्थ की राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सोचने की जरूरत है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
संकल्पशक्ति की जरूरत
नये वर्ष का स्वागत ऐसे समय में हो रहा है, जब कोरोना संकट का साया अभी भी हमारे ऊपर फिर से मंडरा रहा है। कोरोना ने देश की समस्या एक बार फिर से बढ़ा दी है, लेकिन हमें न केवल कोरोना संक्रमण का सामना करना है बल्कि देश के भीतर छोटी से लेकर बड़ी समस्याओं का भी डटकर मुकाबला कर पार पाना है। वर्तमान में देश कई चुनौतियाें से लड़ रहा है। ऐसे में प्रत्येक आमजन का दायित्व है कि साझा संकल्पशक्ति का प्रदर्शन कर उसका मुकाबला किया जाये। आपसी मतभेद और मनभेद की खाई को पाट कर एकजुट संकल्प लें राष्ट्र हमारा है, राष्ट्र के लिए किया गया कार्य हमारा अपना कार्य है। यह केवल सरकार का कर्तव्य है, मानकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
मोनिका चावला, चंडीगढ़
सुधार की हो सोच
नये साल की शुरुआत हो चुकी है। नये साल पर हर व्यक्ति को एक संकल्प लेना चाहिए। देश में, समाज में हर समय कोई न कोई समस्या रहती है। कोई अकेला व्यक्ति किसी भी समस्या का पूर्ण रूप से समाधान नहीं कर सकता। साथ जरूरी है, सहयोग जरूरी है। अपने आप में सुधार करें। साथ मिलकर काम करने की विचारधारा को अपनाकर अच्छा विकास किया जा सकता है। अकेले सरकार या प्रशासन भी आम नागरिक के सहयोग के बिना अपनी नीतियों को सही ढंग से क्रियान्वित नहीं कर सकते। हमें चाहिए कि शासन-प्रशासन की नीतियों को सही ढंग से समझें तथा सहयोग करें।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
राष्ट्रहित हो प्राथमिकता
देश पूर्व के अनुभव से सीखकर, विशेषकर कोरोना संकट की दूसरी कोविड लहर के बाद स्वास्थ्य तंत्र पहले से बेहतर तैयार है। आम जन की भी सावधानियां आवश्यक हैं जैसे मास्क का प्रयोग, सामाजिक दूरी का पालन, हाथ धोना, भीड़ से बचना चाहिए। केवल सरकार का कार्य समझकर अपनी जिम्मेदारी से दूर नहीं भागा जा सकता। अामजन को संकल्प लेना होगा कि हम अपनी जिम्मेदारी को समझें। भ्रष्टाचार, स्वार्थ को त्याग कर राष्ट्रहित में सोचे। आपसी सहयोग से ही देश की चुनौतियों का मुकाबला हो सकता है। देश की तरक्की में ही हमारी उन्नति है। देश की सत्ता, विपक्ष और सभी वर्ग के आमजन को अपना स्वार्थ छोड़ राष्ट्रहित में सोचने और नये संकल्प लेने की जरूरत है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
आशावादी रहें
नये वर्ष में हमें आशावादी होकर उम्मीदों पर खरा उतरने के संकल्प लेने होंगे तथा आने वाली चुनौतियों से जूझना होगा। सभी के सुनहरे भविष्य के लिए व्यक्तिगत जीवन के साथ सार्वजनिक जीवन को प्राथमिकता और देश हित के लिए त्याग, समर्पण और दायित्व के प्रति जागरूकता बढ़ा कर आत्मनिर्भर बनना होगा। सरकार पर निर्भरता में कटौती, नशीले पदार्थों से दूरी, योग्यता और क्षमता में वृद्धि, प्रदूषण में कमी, सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने तथा सदैव सहयोगी भाव के साथ सबके लिए मंगलमय वर्ष की कल्पना को मूर्तरूप दे सकते हैं।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
अहसासों के सरोकार
नया साल प्रारंभ हो चुका है। आज जनमानस के जीवन में मोबाइल इस कदर समा गया है कि अब साल बदलने पर कागज के कैलेंडर बदलते कहां हैं? हम लोग नये संकल्प लेते तो हैं लेकिन निभा कहां पाते हैं? इस समय में जब हम सब मोबाइल हो गए हैं। आओ नए साल के अवसर पर स्पर्श करें धीरे से अपने मन को। अपडेट करें अपने बिसर रहे संबंधों को और करें एक हंसती सेल्फी अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर नए साल में। यह शाश्वत सत्य है कि भीड़ का चेहरा नहीं होता पर चेहरे ही लोकतंत्र की शक्तिशाली भीड़ बनते हैं। सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर सेल्फी के चेहरों वाली संयमित एक दिशा में चलने वाली भीड़ बहुत ताकतवर होती है। इस ताकतवर भीड़ को नियंत्रित करना और इसका रचनात्मक हिस्सा बनना आज हम सब की जिम्मेदारी है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
पुरस्कृत पत्र
आपसी सहयोग जरूरी
वर्ष 2022 में जिस तरह सड़क मार्ग, आर्थिक सुधार, हवाई यात्रा, पॉवर एनर्जी, आत्मनिर्भरता के प्रयासों में जो सफलता भारत ने पाई वो वर्ष 2023 के लिए आधार बन गई है। अभी भी रेलवे यात्रा सुधार, प्रदूषण नियंत्रण, स्वच्छता और भ्रष्टाचार उन्मूलन के कार्य होने हैं। नदियों के स्वच्छता अभियान को और गति प्रदान करनी होगी। कोविड की आशंका के बीच वैक्सीनेशन, सेनिटाइजेशन और मास्क का यथोचित प्रयोग अनिवार्य करना होगा। विश्व में भारत को सिरमौर बनाना होगा। जनता और प्रशासन का आपसी सहयोग आने वाली चुनौतियों को स्वीकार कर लेगा।
भगवानदास छारिया, इंदौर
शीघ्र हो सजा
पांच जनवरी के संपादकीय, ‘संवेदनहीनता की हद’ में दैनिक ट्रिब्यून ने साहसिक मत व्यक्त किया है कि इस भयानक कृत्य में पुलिस की लापरवाही अक्षम्य है, शायद पुलिस कानून का भय समाप्त होने से अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं। दोषियों को सजा के सभी संभव कानूनी साधनों के साथ कठोर दंड दिया जाना चाहिए। नि:संदेह दिल्ली पुलिस हमलावरों को जेल की सलाखों के अंदर लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। आशा है कि हमारी न्यायपालिका अंजलि के शोक संतप्त परिवार को यथाशीघ्र न्याय दिलाएगी। वैसे ऐसे घातक अपराधों का निपटारा फास्ट ट्रैक अदालतों के माध्यम से किया जाना चाहिए।
युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद
पुनर्विचार करें
चार जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘लक्षित हिंसा’ जम्मू कश्मीर में स्थिति के नियंत्रण के सरकारी दावों को झूठा साबित करते हुए हिंसा के जारी रहने का पर्दाफाश करने वाला था। यह गंभीर चिंता का विषय है कि ये घटनाएं उस राजौरी क्षेत्र में हुई हैं, जिसमें आतंकवादी घटनाएं कम देखने में आती थीं। इस सबमें सुरक्षा तथा गुप्तचर एजेंसियों की नाकामी का भी पता चलता है। ऐसे में इस बात की क्या गारंटी है कि चुनावों के बाद वहां शांति स्थापित हो जाएगी। सरकार को कश्मीर से संबंधित नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
सुरक्षा हाशिये पर
दिल्ली एक बार फिर बदनाम हुई है। लड़कियों को लेकर जो सुरक्षा के दावे किए जाते थे वे हाशिये पर आ गए हैं। दिल्ली की सड़कों पर आपराधिक सोच वाले लोगों पर अंकुश लगाना मुश्किल होता जा रहा है। नववर्ष पर जहां एक तरफ सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, वे सब धरे के धरे रह गये। एक लड़की के साथ ऐसी घिनौनी हरकतें करने वालों पर अगर कानून सख्ती से पेश आये और सख्त सजा दे तो इसमें कमी आ सकती है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
कार्रवाई पर प्रश्न
देश की राजधानी में स्कूटी सवार एक लड़की को कार से टक्कर मार कर 12 किलोमीटर दिल्ली की सड़कों पर घसीटते हुए कार सवार फरार हो जाते हैं। यह दिल दहलाने वाली घटना दिल्ली पुलिस ही नहीं, दिल्लीवासियों की संवेदनशीलता और पारिवारिक संस्कारों पर भी बड़ा प्रश्न खड़ा करती है। दिल्ली में निर्भया कांड के 10 वर्ष बाद भी बेटियों के साथ दरिंदगी शर्मसार करने वाली घटना है। इस घटनाक्रम की शुरुआत में दिल्ली पुलिस की जांच कमजोर कार्यवाही की रही। दिल्ली पुलिस के गैर-जिम्मेदार रवैये की भी जांच जरूरी है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
जीवन की लय
नववर्ष के दैनिक ट्रिब्यून के लहरें अंक में अरुण नैथानी का 'जीवन में है लय-ताल फिर हरदम नया साल’ लेख बीते साल के खट्टे-मीठे अनुभवों की प्रस्तुति रही। कोरोना महामारी का डर कोरोना के प्रति सतर्क रहने का संकेत कर रहा है। बढ़ती महंगाई, प्रभावित होती स्वास्थ्य सेवाएं, जीवन सुरक्षा, बदलते सामाजिक-नैतिक मूल्यों के प्रति आगाह कराने की आवश्यकता है। डॉ. सोमवीर का 'आहार विहार, व्यवहार बदलाव से नववर्ष शुभ' की शुरुआत ज्ञानवर्धक, प्रेरणा सुझाव राष्ट्र को खुशहाल बनाने हेतु काबिले तारीफ रहे।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
वायु गुणवत्ता
दिल्ली की हवा ‘बहुत खराब’ श्रेणी में है क्योंकि एक्यूआई 343 तक पहुंच गया है जो चिंता की स्थिति है। पिछले कुछ महीनों से वायु की गुणवत्ता खराब चल रही है जो लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रही है। इसके साथ ही क्षेत्र में निर्माण और ध्वस्तीकरण के कार्यों पर लगी रोक हटा दी गई है। लेकिन सड़कों पर धूल उड़ने से रोकने के लिए पानी का छिड़काव जारी रहेगा। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए स्थायी समाधान करने की तत्काल आवश्यकता है। लोग कार पूलिंग शुरू कर सकते हैं, व्यक्तिगत कैब बुक करने के बजाय बसों का उपयोग किया जा सकता है, ऊर्जा रूपांतरण को अपनाना चाहिए।
पारुल गुप्ता, फतेहगढ़ साहिब
केंद्र हस्तक्षेप करे
राजस्थान के सांगानेर में श्री सम्मेद शिखरजी जैन तीर्थ को पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में 9 दिनों से अनशन पर बैठे जैन संत का अंततः निधन हो गया। यह एक दुखद घटना है। वैसे भी जैन धर्मावलंबियों के प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्री सम्मेद शिखरजी की यात्रा के लिए आना और पूरे क्षेत्र का भ्रमण करना वहां के स्थानीय निवासियों व सरकार के लिए आय का एक बड़ा स्रोत है। जैन समाज निरंतर भारी धनराशि खर्च करके इस पुरातन धार्मिक धरोहर को सहेजे हुए है। फिर अचानक राज्य सरकार को जैन धर्मावलंबियों के राष्ट्रव्यापी विरोध के बावजूद इसके मूल स्वरूप से खिलवाड़ करने की क्या जरूरत है।
विभूति बुपक्या, म.प्र.
सुख-शांति हो
इकतीस दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘गंगा- जमुनी संस्कृति की ही बहे बहार’ विभिन्न धर्मों को लेकर चल रहे भेदभाव तथा टकराव को दरकिनार करके सब मतभेद भुलाकर अलग-अलग नामों वाले एक ही ईश्वर को याद करने का संदेश देने वाला था। कुछ शरारती लोग अलग-अलग धर्म को मानने वाले लोगों में भेदभाव, ईर्ष्या तथा वैमनस्य पैदा करने की कोशिश करते हैं। वहीं आज की गंदी राजनीति में धर्म के नाम पर जो वोटों की राजनीति की जाती है उसकी निंदा की जानी चाहिए। सुबह स्कूलों में चाहे किसी भी भाषा में प्रार्थना की जाए इसका मतलब एक ही होता है... सुख और शांति!
शामलाल कौशल, रोहतक
गठबंधन का खेल
भारतीय राजनीति में गठबंधन शब्द मौसम की तरह है। चुनाव और गठबंधन का रिश्ता दो जिस्म एक जान जैसा है। एक-दूसरे के बिना रह नहीं सकते। इसने राजनीति में ऐसे घुसपैठ कर ली है कि इसके बिना अब किसी का गुजारा नहीं। पांच वर्षों तक एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाली पार्टियां चुनाव के वक़्त सारे गिले-शिकवे भुलाकर नये संकल्प लेती हैं। फिर चुनाव के बाद तुरत-फुरत सरकार बनाती है और कुछ समय बाद अपने ही गठबंधन में शामिल अपने ही दलों से टूटकर ये पार्टियां नये गठबंधन बनाने द्रुत गति से निकल पड़ती हैं।
नवनीत कुमार, बिहार
पवित्रता पर आंच
नये साल के पहले दिन जैन समुदाय ने देश के कई जगहों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। जब से झारखंड और केंद्र सरकार ने जैन समाज के तीर्थ स्थल ‘श्री सम्मेद शिखरजी’ को पर्यटन स्थल बनाने का प्रस्ताव रखा है तभी से जैन समाज के लोगों में आक्रोश है। इसके साथ ही गुजरात के भावनगर जिले में पवित्र शत्रुंजय पहाड़ियों को कथित तौर पर अपवित्र करने पर भी गुस्सा है। जैनियों ने उन असामाजिक तत्वों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की है। श्री सम्मेद शिखर आस्था का केंद्र भी है। ऐसे में अगर सरकार इसे पर्यटन स्थल घोषित कर देती है तो लोग यहां मनोरंजन के लिए आएंगे, जहां होटल, रेस्टोरेंट और बार बनाए जाएंगे, जिसमें तामसिक खाद्य पदार्थ बेचे जाएंगे।
निधि जैन, लोनी, गाजियाबाद
बड़ी हो सोच
दैनिक ट्रिब्यून में दिनांक 31 दिसम्बर के अंक में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘गंगा-जमुनी संस्कृति की ही बहे बयार’ पढ़कर ज्ञात हुआ कि धर्म बांटता नहीं, जोड़ता है, सूरज सबको समान उजाला देता है और चन्द्रमा सबको समान चांदनी देता है। प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। सभी पर समान रूप से अपनी छटा बिखेरती है परन्तु कुछ अलग मानसिकता वाले लोग ईश्वर और अल्लाह शब्द को समान रूप से कम बल्कि हिन्दू और मुसलमान समझते हैं।
जय भगवान भारद्वाज, नाहड़
मूर्तरूप दीजिये
‘नया साल मंगलमय हो’ को सार्थक करने के लिए हमें लक्ष्य तय करने होंगे। आचार और व्यवहार में परिवर्तन के प्रण लेने होंगे कि आत्मनिर्भर होकर और लोगों को रोजगार भी देंगे। अपनी आय बढ़ाने के साथ समाज और देश की आय कैसे बढ़े? सरकार पर निर्भरता में कटौती, नशीले पदार्थों से दूरी, योग्यता और क्षमता में वृद्धि, प्रदूषण में कमी, सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने तथा सदैव सहयोगी भाव के साथ सबके लिए मंगलमय वर्ष की कल्पना को मूर्तरूप दे सकते हैं।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
सार्थक मुहिम
दो जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर ‘टूटते परिवारों को जोड़ने का पुनीत कार्य...’ पारिवारिक संबंधों में कड़वाहट-टकराव को दरकिनार कर आपसी संबंधों को सामान्य बनाने को लेकर स्वागतयोग्य लगी। कैथल पुलिस के निर्देश पर बना कम्युनिटी लाइज़ ग्रुप सचमुच लोकहित कार्य कर रहा है। यह संगठन संबंधित पक्ष को बुलाकर उनमें सुलह समझौता करवा कर उन्हेें एकजुट करने का पुण्य कमाता है। इससे जहां लोगों की आपसी मुकदमेबाजी की फिजूलखर्ची बचती है वहां संघर्षरत पक्षों में सामान्य संबंध स्थापित करके उजड़े-बिखरे परिवारों को बसाने तथा संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में कारगर साबित हो रही है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
झांसे में न आएं
संपादकीय ‘चीन ने चौंकाया’ में उल्लेख है कि कोरोना से घबराई चीनी सरकार और जारी जबरदस्त विरोध के मद्देनजर चीन में सरकार ने जारी सभी प्रतिबंध हटा लिए हैं। यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि चीन कोरोना से उबर चुका है, जबकि कोरोना अनियंत्रित है। अच्छा हो कि फिलहाल चीन की यात्राएं स्थगित कर दें या टाल दें, क्योंकि चीन पहले भी इस तरह की हरकतें कर चुका है और फिर से कुचाल से बाज नहीं आ रहा है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
सपनों का बोझ
एकाकीपन, अवसाद और तनाव के साथ-साथ मृगतृष्णा और शीघ्रता से सब कुछ पा लेने की इच्छा ने मनुष्य को भीतर से इतना कमजोर कर दिया है कि कई बार वह जीवन को बोझ मान लेता है। माता-पिता अपनी संतान के माध्यम से अपने अधूरे सपने पूरे करने के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि बच्चे की इच्छा क्या है। बच्चा अपनी असफलता से इतना भयभीत नहीं है जितना कि असफलता के पश्चात के परिणाम से उसका सामना करने से भयभीत है। आज शिक्षा का व्यापारीकरण भी इसका सबसे बड़ा कारण है। माता-पिता को अपने बच्चों को अपने जीवन नौकरी पेशा और व्यापार में निर्णय लेने के लिए स्वच्छंद करना होगा।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
रोकें ये चलन
हताशा से घिरकर छात्रों द्वारा आत्महत्या करना एक बहुत ही संवेदनशील मामला है। हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिनों–दिन बढ़ रही है। आज हर व्यक्ति अपनी अपेक्षाएं बच्चों से पूरी करने के सपने संजोता है। सफलता की अत्यधिक अपेक्षा ही छात्रों को मानसिक दबाव देती है। अपनी मर्जी बच्चों पर थोपना अनुचित है। बच्चे का स्वास्थ्य, रुचियां और संगत जैसे कई बिन्दु उसकी मनोदशा पढ़ने में सहायक होते हैं, जिन्हें अभिभावक प्राय: नजरअंदाज कर देते हैं और धनबल से महंगे कोचिंग केन्द्रों पर धकेल देते हैं। सफलता के झूठे सपने संजोने वाले इस चलन को रोकना होगा।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
शिक्षा का ढांचा बदले
कोटा के कोचिंग केंद्रों में तीन छात्रों की आत्महत्या चिंतनीय विषय है। मध्य वर्गीय परिवारों की पहुंच से बाहर महंगे केंद्रों की भारी फीस विद्यार्थियों के शारीरिक व मानसिक दबाव का मुख्य कारण है। इससे अभिभावकों पर भी दबाव बना रहता है। वहीं बच्चे परीक्षा में आगे न निकल जाने की हीनभावना से ग्रसित मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं। राजस्थान सरकार को कोचिंग सेंटरों की शिक्षा नीति के ढांचे में मूलभूत परिवर्तन करते हुए सरल सस्ती रोजगार सुलभ नीति बनानी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
उम्मीदों का दबाव
देश में छात्रों की आत्महत्या की खबरें विचलित करती हैं। बहुत से अभिभावक अपने अधूरे सपनों को साकार करने के लिए अपने बच्चों पर पढ़ाई का असहनीय बोझ डाल देते हैं फलतः देश के भावी कर्णधार कई मानसिक बीमारियों की गिरफ्त में आ जाते हैं। एकल परिवारों के चलते भी बच्चों को अपना सुख-दुख बांटने के लिए कोई सही व्यक्ति नहीं मिलता। प्रतियोगी परीक्षाओं की कड़ी स्पर्धा और परिजनों की महत्वाकांक्षाओं के दबाव में यह बच्चे टूट जाते हैं। परिजनों को बच्चों को समझाना होगा कि परीक्षा पढ़ाई और जीवन का सिर्फ एक पड़ाव है। अपेक्षा से कम नंबरों से जीवन अंधकारमय नहीं हो जाता।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
चयन की छूट हो
आज बच्चों एवं अभिभावकों में करिअर के प्रति स्पर्धा व महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ गई है कि हर क्षेत्र में विजयश्री प्राप्त करने के लिए धन समेत सभी साधन जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। परिणामस्वरूप बच्चे एक मशीन की तरह ही बनकर रह गए हैं और हर समय मानसिक तनाव में रहते हैं, जिसकी परिणीति ही है आत्महत्या। इस सारे सिस्टम को बदल कर बच्चों को अपनी रुचि अनुसार करिअर चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। सरकारों को जॉब ओरियेंटेड शिक्षा प्रणाली विकसित करनी चाहिए।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
ऑनलाइन हो कोचिंग
दुखद है कि सुनहरे भविष्य का सपना लिये कोटा गए तीन छात्रों के परिवार की महत्वाकांक्षा और कोचिंग संस्थानों द्वारा बनाये गए पढाई के दबाव के कारण डिप्रेशन के शिकार हुए और अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर ली। कोचिंग संस्थानों के लिए ये छात्र केवल मोटी फीस वसूलने के साधन मात्र होते हैं। अभिभावक अपनी महत्वाकांक्षा को पूरी करने हेतु बिना बच्चों की रुचि और क्षमता जाने उन्हें इन कोचिंग संस्थानों के हवाले कर देते हैं। प्रशासन को भी चाहिए कि इन संस्थानों के लिए भी छात्रों की संख्या, फीस की राशि और पढाई के घंटे निर्धारित किये जाएं। आज के डिजिटल युग में बच्चों को कोचिंग संस्थानों में न भेज कर घर पर ही नियमित पढाई के साथ-साथ यदि आवश्यक हो तो ही ऑनलाइन कोचिंग दिलवाएं। अभिभावक अपनी महत्वाकांक्षा को बच्चों पर न थोपें।
शेर सिंह, हिसार
रोजगारपरक हो शिक्षा
कोटा के कोचिंग संस्थानों में तीन छात्रों की आत्महत्याओं का समाचार दुःखदाई है। आज का युवा वर्ग बढ़ती महत्वाकांक्षाओं व पढ़ाई के बोझ को सहन करने में काफी कठिनाई महसूस करता है। वह कभी-कभी अपना मानसिक संतुलन भी खो बैठता है। अतः इस विषय पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। छात्रों की आत्महत्या के सिलसिले को रोकने के लिए छात्र, अध्यापक व छात्रों के माता-पिता सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। इसके अतिरिक्त शिक्षा को दबाव मुक्त व रोजगार प्रदान करने वाली बनाने की जरूरत है।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
पुरस्कृत पत्र
हमारी भी जिम्मेदारी
देश में छात्रों द्वारा आत्महत्या का निरंतर बढ़ता आंकड़ा अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस विकराल समस्या से निपटने के लिए परिवार, समाज और सरकार द्वारा सामूहिक और सार्थक प्रयास समय की मांग है। सर्वप्रथम अभिभावकों को अपनी महत्वाकांक्षाओं को छात्र की रुचि के अनुरूप रखना आवश्यक है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते छात्रों को पढ़ाई के दबाव और तनाव से बचाना हमारी जिम्मेदारी है। केंद्र एवं राज्य सरकारों के स्तर पर विद्यालय एवं कोचिंग संस्थानों पर समग्र व्यक्तित्व विकास, नियमित योग अभ्यास, अवसाद के प्रति संवेदनशीलता और नैदानिक परामर्श का कठोरता से अनुपालन छात्रों के अमूल्य जीवन की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम