आपकी राय
दहशत के दंश
सताईस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘दहशत के दंश’ हरियाणा में आवारा कुत्तों का आतंक भरे वातावरण की तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित करने वाला था। आम लोग आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज की बीमारी का शिकार हो रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं नदारद हैं जिसके चलते प्राइवेट क्लीनिकों से महंगा इलाज कराना आम आदमी की पहुंच से बाहर है। आवारा कुत्ते साइकिल स्कूटर चालकों के पीछे भाग कर दुर्घटना का कारण बनते हैं। आवारा कुत्तों को पंचायत समितियों-नगरपालिका द्वारा पकड़ कर इन्हें सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
सत्ता का संयम
पच्चीस फरवरी का सम्पादकीय ‘सियासत में हो संयम’ कांग्रेस प्रवक्ता वाली घटना पर जो सटीक चित्रण किया है वह काबिलेतारीफ़ है। नि:संदेह अभिव्यक्ति पर बंदिशें एक अलोकतांत्रिक घटना है। वैसे तो सत्ता एवं विपक्ष दोनों को लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करना चाहिए, परन्तु सत्तापक्ष की विशेष जिम्मेदारी बनती है कि वह संयम बरते तथा उदारता एवं सहिष्णुता का परिचय दे। लोकतंत्र में दमन का कोई स्थान नहीं होता।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
निर्माण में कोताही
गांवों की त्रासदी तुलनात्मक शहरों में अधिक विनाशकारी होती है। प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए परमात्मा ने व्यक्ति को बुद्धि प्रदान की है। अफसोस इस बात का है कि व्यक्ति इस बुद्धि का उपयोग अधिक धनोपार्जन के लिए भ्रष्टाचार को समर्पित कर देता है। सार्वजनिक निर्माणों में कोताही बरती जाती है। प्रयुक्त घटिया निर्माण सामग्री ऐसी विपदाओं में अधिकाधिक जानलेवा साबित होती है। निजी संपत्तियों के निर्माण में पहले की अपेक्षा अधिक जागरूकता दिखाई जा रही है। मकानों के निर्माण में अब लोहे का अधिक उपयोग होने लगा है।
सुरेन्द्र सिंह, ‘बागी’, महम
बिल्डरों पर शिकंजा
तुर्की व सीरिया भूगर्भीय जटिलताओं के चलते सदा भूकंप की जद में रहे हैं लेकिन इस भयावह त्रासदी में जानमाल की क्षति को जरूर कम किया जा सकता था। भवन निर्माण में भूकंप रोधी प्रावधानों की अनदेखी से नुकसान ज्यादा हुआ। भूकंप से तबाही के अन्य कारणों में रिहायशी इमारतों की कमजोर संरचना भी शामिल है। अधिकांश इमारतें भूकंप रोधी नहीं थीं। भारत में भी कई इलाके भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं लेकिन मोटे मुनाफे के चक्कर में बिल्डर गुणवत्ता से समझौता करते हैं। ऐसे बिल्डरों पर भी सरकार को शिकंजा कसना चाहिए। ताकि भविष्य में इस तरह की त्रासदी को रोका जा सके।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
निर्माण की जांच
भारत के कई इलाके विशेषकर उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और हिमालय पर्वतमाला भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। इन क्षेत्रों में आए भूकंपों से भी भारी जान-माल की तबाही हुई है। भूकंपरोधी इमारतें बनाने की तकनीक का काफी विकास हुआ है। ऐसी इमारतों के डिजाइन और उनमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री पर काफी खोज हुई है। लेकिन जागरूकता के अभाव और पैसे बचाने या कमाने के लालच में निजी भवनों और सार्वजनिक निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक को गंभीरता से नहीं लिया जाता। निश्चित रूप से त्रासदियों से सबक लिया जाना चाहिए। भवन, सड़कों और पुलों के निर्माण के लिए कानून बने और इनका दृढ़ता से पालन हो। निर्माण के विभिन्न स्तरों पर विशेषज्ञों द्वारा कड़ी जांच होनी चाहिए।
शेर सिंह, हिसार
लोग जागरूक हों
तुर्की-सीरिया में आए भूकंप की तबाही ने एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान भवन निर्माण में बरती जा रही लापरवाही की तरफ आकर्षित किया है। दरअसल, बड़ी-बड़ी इमारतों के ध्वस्त होने से जान-माल के नुकसान की संभावना कई गुणा बढ़ जाती है। फिर भी निजी भवनों और सार्वजनिक निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक को गंभीरता से नहीं लिया जाता। भारत में भी कुछ इलाके भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। लेकिन फिर भी लोग जागरूक नहीं होते। मुनाफाखोर बिल्डरों पर कानूनी शिकंजा कसना जरूरी है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
गुणवत्ता का निर्माण
तुर्की-सीरिया में आये विनाशकारी भूकंप ने ऊंची इमारतों को मिट्टी में मिला दिया। इस संदर्भ में कई बिल्डरों को गिरफ्तार कर लिया गया है। अपने देश का भी एक बहुत बड़ा भाग भूचाल के दायरे में है। अतः इस प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए हमें भूकंपरोधी तकनीक का प्रयोग करना चाहिए। निजी तथा सार्वजनिक निर्माण में न केवल भूकंपरोधी तकनीक बल्कि इमारतों की गुणवत्ता को भी कुशल इंजीनियरों द्वारा जांच करवानी चाहिए। इमारतों का निर्माण निर्धारित नियमों के अनुसार होना चाहिए। भूकंप आने की स्थिति में बचाव के लिए न केवल तैयारी रखनी चाहिए बल्कि लोगों को अपनी सुरक्षा के उपायों के बारे में भी शिक्षित करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
कानून का पालन हो
तुर्की में आए भूकंप में आठ दिन के भीतर 16 लाख लोगों का बेघर होना, एक लाख ईमारतें ढहना और 45 हजार व्यक्ति की मृत्यु होना कोई साधारण घटना नहीं है। इसके मूल में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में हुए बेतहाशा और स्वेच्छाचारिता के निर्माण तथा प्रकृति के साथ अन्याय शामिल है। बिल्डर्स ने भी गुणवत्ता से समझौता कर मुनाफा मोटा कमाया। नियम-कानून की उपेक्षा का हश्र था कि लाखों लोग भूकंप के शिकार हुए। गौरतलब है कि आधुनिक भूकंपरोधी तकनीक भी नहीं होने से जान-माल की सर्वाधिक हानि सीरिया में हुई। जरूरत है भूकंपरोधी तकनीक अपनायी जाये। नियम-कानून का पालन के साथ प्रकृति की उपेक्षा भी नहीं हो।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
पुरस्कृत पत्र
तकनीक से सहायता
यदि भारत में ज्यादा तीव्रता का भूकंप आता है तो बहुत बड़ी त्रासदी होने की आशंका है क्योंकि यहां कई क्षेत्रों में भवन-निर्माण के दौरान भूकंप-रोधी मानकों की अनदेखी की गई है। जापान की तरह भवन-निर्माण के समय नींव ईंट-पत्थरों से नहीं, प्लास्टिक से भरी जाये। भवन-निर्माण के दौरान स्प्रिंग आधारित प्रणाली का प्रयोग किया जाये। गद्देदार सिलेंडरों को बेस बनाया जाये। प्लास्टिक की नींव भूकंप के दौरान उत्सर्जित ऊर्जा को अवशोषित कर लेती है। इससे नींव के ऊपर बने भवन में कम्पन उत्पन्न नहीं होती। आधुनिक तकनीक़ तथा संचार प्रणाली का अधिकाधिक प्रयोग किया जाये। गलियां चौड़ी बनाई जायें ताकि बचाव तथा राहत-कार्यों के दौरान राहत-कर्मियों और बचाव दल को कोई परेशानी न हो।
तेजेंद्र पाल सिंह, कैथल
युद्ध का असर
रूस और यूक्रेन के बीच एक वर्ष से युद्ध चल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने राजनीतिक दौरे से साफ कर दिया है कि वह इस जंग को खत्म नहीं होने देना चाहते हैं। उन्होंने यूक्रेन को तोपों, गोला-बारूद और अन्य सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की घोषणा की है। इससे पता चलता है कि बाइडेन ने आग में घी डालने का काम किया है, जिसका असर बाकी देशों पर भी पड़ सकता है। अमेरिका को दोनों देशों के बीच युद्ध रोकने के लिए कुछ करना चाहिए। इसके अलावा, अगर अमेरिका को यूक्रेन की मदद करनी थी, तो उसे यूक्रेन की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद करनी चाहिए थी।
कविता रानी, जालंधर
भयावह आतंक
दुखद घटना यह है कि गत दिनों हैदराबाद में गली से गुजर रहे एक चार साल के बच्चे को आवारा कुत्तों ने नोच-नोचकर मार डाला। यह दिल को झकझोरने वाली घटना है। इससे पूर्व भी देश के विभिन्न राज्यों में आवारा कुत्तों द्वारा बच्चों और वृद्धों पर हमले किए जाने के दुखद समाचार आते रहे हैं। घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन राज्य सरकारों का इस देशव्यापी समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं है। गलियों और सड़कों पर भटकने वाले इन कुत्तों पर अवश्य अंकुश लगना चाहिए।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
बढ़ता तापमान
संपादकीय ‘जलवायु जोखिम’ में उल्लेख है कि कृषि योग्य भूमि में भी जलवायु जोखिम पूर्ण होने से उत्पादित फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन में कमी हो रही है। इस तरह बढ़ता तापमान जलस्रोत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। आवश्यकता है जल संरक्षण की, परंपरागत स्रोत को रिचार्ज करने की, ताकि असामान्य बदलाव नियमित और नियंत्रित हो सके। अच्छा हो कि हम इस चुनौती से निपटने के लिए वृक्ष लगाएं, हरित क्रांति लाएं और स्वच्छता को अपनाएं।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
रूस-यूक्रेन युद्ध रोकें
इक्कीस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘युद्ध की फांस’ रूस-यूक्रेन युद्ध का विश्लेषण करने वाला था। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति, जो बाइडेन के यूक्रेन दौरे ने इस युद्ध को और लंबा चलने का संकेत दिया है। इस युद्ध को शुरू करने का रूस का मुख्य उद्देश्य यूक्रेन को नेटो का सदस्य बनने से रोकना तथा रूसी प्रभाव वाले इलाकों को अपने साथ मिलाना था। असल में यह लड़ाई अमेरिका तथा नेटो देश रूस को कमजोर करने के लिए यूक्रेन के कंधों पर बंदूक रखकर लड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र अभी इस युद्ध को रोकने में असफल रहा है। विश्व समुदाय को चाहिए कि रूस-यूक्रेन में मानवीय आधार पर युद्ध को रोककर ज्यादा बर्बादी को रोका जाए।
शामलाल कौशल, रोहतक
महत्वपूर्ण भूमिका
तुर्किये और पड़ोसी सीरिया में भूकंप ने 45000 से अधिक लोगों की जान ले ली है, इसका प्रभाव कई वर्षों तक रहेगा। भूकंप से पीड़ित देश तुर्किये में भारत सरकार ने एनडीआरएफ की 151 कर्मियों की टीम और 3 डॉग स्क्वाड भेज कर मानवीय सहायता का उदहारण दिया है। तुर्किये में भी आपदा बल ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर बचाव कार्य किये हैं, जिसकी प्रशंसा वहां की जनता ने शानदार विदाई रूप में की है। विश्व में जहां कहीं भी प्रकृति आपदा एवं शांति बहाली की बात हो तो भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
सुरक्षित आशियाना
उन्नीस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून लहरें अंक में अरुण नैथानी का ‘तब ही रहेगा जलजले से महफूज अपना घर’ लेख प्राकृतिक आपदाओं से आश्रय की सुरक्षा के सुझाव व आधुनिक भवन निर्माण शैली की भूकंपरोधी नवीन तकनीक का विस्तार सचित्र वर्णन काबिले तारीफ रहा। प्रकृति के प्रकोप का कारण विकास-निर्माण की होड़ में मनुष्य का निजी स्वार्थ है। चोरी-छिपे खनन, वृक्षों का कटान आदि प्रकृति छेड़छाड़ का परिणाम है। महंगी- खर्चीली तकनीक, भवन निर्माण सामग्री आम आदमी की जेब से बाहर है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
युद्ध का खमियाजा
‘युद्ध की फांस’ दैनिक टि्रब्यून का संपादकीय पुतिन की मुसीबत समझी जा सकती है। रूस-यूक्रेन युद्ध अमेरिका द्वारा जिस तरह पर्दे के पीछे से लड़ा जा रहा था, बाइडेन के अचानक यूक्रेन में प्रकट होने से रही-सही शंकाएं भी साफ हो गयी हैं। स्पष्ट हो गया है कि यूक्रेन के कंधे पर अमेरिकी बंदूक रूस को चुनौती दे रही थी। भले ही यह मामला छोटा लगे लेकिन इससे विश्व शांति को बड़ा खतरा बढ़ता जा रहा है। अब रूस अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका पर वार करने की कोशिश में होगा और वह ऐसा कर भी सकता है। दोनों देशों के अहम् का कितना खमियाजा दुनिया को भुगतना पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी।
अमृतलाल मारू, इंदौर
निंदनीय घटना
हरियाणा के भिवानी जिले में दो व्यक्तियों को गाड़ी में जिंदा जला देना अमानवीय घटना है। अपराधियों के बचाव में प्रदर्शन करना एक तरह से देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करना है। कहना गलत न होगा कि आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर एक सुनियोजित तरीके से मतों का ध्रुवीकरण किया जा रहा है। कुछ राजनीतिक लोग ऐसा करके बेशक सत्ता हथियाने में सफल हो जाएं, लेकिन इससे लोगों के दिलों में जो खटास उत्पन्न होगी, वह सदियों तक बरकरार रह सकती है। इस प्रकार के कृत्य की चहुंओर निंदा होनी चाहिए।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
गिरता जलस्तर
गिरते भूमिगत जल स्तर से देश में रेगिस्तानों की संख्या बढ़ने की आशंका है। जिन राज्यों में भूमिगत जल से पीने वाले पानी की सप्लाई होती है, उन राज्यों में गर्मियों में ही नहीं, बल्कि हर मौसम में पीने वाले पानी की किल्लत हो जाएगी। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि पंजाब में भूजल स्तर घट रहा है, इसके लिए पंजाब में चावल की पैदावार कम कर देनी चाहिए। सरकार को भूजल स्तर के घटने के कारणों पर गंभीरता दिखानी चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
सेवा-राहत से साख
देश में जहां भी प्राकृतिक आपदा आती है एनडीआरएफ कर्मी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं। तुर्की में भी एनडीआरएफ ने पूरी मुस्तैदी के साथ स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर बचाव कार्य किए हैं जिसकी प्रशंसा तुर्की की जनता ने शानदार विदाई रूप में की है। एनडीआरएफ और भारतीय सेना की टीमों ने भूकंप प्रभावित देश में चौबीसों घंटे काम किया। वहीं भारत में तुर्की के राजदूत ने भारत के योगदान के लिए शुक्रिया अदा किया है और मदद को सराहनीय बताया है। सभी कर्मियों के भारत वापसी पर देश के प्रधानमंत्री ने मुलाकात कर इनका हौसला बढ़ाया है और सफल ‘ऑपरेशन दोस्त’ पर शुक्रिया अदा किया है। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना के अनुरूप किए गए इन मानवीय कार्यों के लिए जरूर विश्व में भारत की साख बढ़ी है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
प्रेस की आजादी
आयकर विभाग द्वारा बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों पर छापा मारा जा रहा है। यह मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला है। छापे यदि बदले की भावना से मारे जा रहे हैं तो यह चेतावनी है कि या तो सरकार के समर्थक बन जाइए या परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहिए। यह मुद्दा चिंता का विषय है। देश में मीडिया की आजादी बहुत जरूरी है।
महिमा शर्मा, जालंधर
पाक की बदहाली
चीन और पाकिस्तान कभी भी भारत के प्रति अपनी दुर्भावना नहीं त्याग सकते। आज पाकिस्तान के हलक में जान आयी हुई है लेकिन वह एक मुंह से सद्भाव कायम करने की बात करता है तो दूसरे ही पल ‘कश्मीर’ का राग अलापने लगता है। कश्मीर का राग अलापना सत्ता में रहने के लिए वहां की राजनीतिज्ञों के लिए पहली मज़बूरी है। सत्ता में रहना है तो कश्मीर-कश्मीर कहना होगा। पाकिस्तान के हालात दिन-प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। वहीं करेंसी में भारी गिरावट आ गई है। आज वहां खाने-पीने की चीजें इतनी महंगी हो गयी हैं कि लोगों का जीना मुहाल हो गया है।
चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग़, दिल्ली
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
अनदेखी न हो
अठारह फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘अनदेखी न हो विभाजित विपक्ष की’ सदन में राष्ट्रपति के भाषण के बाद विवादित भाषण के कुछ भाग को सदन की कार्रवाई से निकाल देने का प्रसंग बताने वाला था। अगर जनप्रतिनिधि सदन में भी अपने विचारों को प्रकट करके सरकार से कुछ पूछ नहीं सकते तो उसका विकल्प क्या है। जब भाजपा विपक्ष में थी तो वह भी सत्तापक्ष पर उसे सदन में न बोलने का आरोप लगाती थी लेकिन अब वही कुछ कर रही है।
शामलाल कौशल, रोहतक
विसंगतियों का चित्रण
बारह फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में जमील अहमद पाल की सुभाष नीरव द्वारा अनूदित कहानी मध्य वर्गीय पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियों का चित्रण रही। कथा नायक का सुंदरता के प्रति नजरिया नारी सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा रहा था। नीली वेशभूषा में छिपा मुखौटा वहशीपन की मर्यादा लांघने से पहले ही मोबाइल छाया से कहानी का अंत सुखद-मनोभाव अनुकूल रहा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जीवन रेखा बने
देश में राजग सरकार के कार्यकाल में नेशनल-स्टेट हाईवे बनाने में बहुत कुछ काम हुआ है। स्पीड के साथ-साथ अभी बहुत कुछ करना बाकी है, जिसमें आधुनिक तकनीक की गुणवत्ता पर खरा उतरना एक मुख्य कारण है। शहरों के जोड़ने के साथ-साथ आपसी संबंध भी जुड़ने चाहिए, जिस प्रकार से जीटी रोड और दिल्ली-जयपुर हाईवे लोगों की भावनाओं से जुड़े हुए हैं। मनोरंजन पार्क, खाने-पीने के साथ रहने की व्यवस्था, पेट्रोल पंप, हवा भरने का प्रबंध, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम, छायादार वृक्ष, वर्कशॉप, रिकवरी वाहन, पुलिस कंट्रोल रूम, ट्रॉमा सेंटर, बिजली की व्यवस्था, सड़क डिवाइडर पर फूल वाले पौधों की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे नेशनल-स्टेट हाईवे का आदर्श स्वरूप बन सके।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
सुविधाएं मिलें
राष्ट्रीय राजमार्ग की सड़कों का अत्याधुनिक तकनीक द्वारा विकास, आयात-निर्यात व सुविधा का दर्पण है। हाईवे राजमार्गों पर यातायात की गति सीमा का निर्धारण दुर्घटनाओं को रोकने में कारगर होंगे। दुर्घटना होने पर आपातकालीन प्राथमिक विश्राम गृह, चिकित्सा केंद्रों की स्थापना सस्ती फीस पर राज्य सरकारों को पहल करनी चाहिए। राजमार्गों पर टोल प्लाजा की दरों में कमी, चौराहों पर अलर्ट रेड लाइट, संकेत चिन्हों की व्यवस्था करनी चाहिए। वाहनों में आई तकनीकी खराबी को ठीक करने के लिए टेक्नीशियन, पुलिस सुरक्षा सहायता हेतु हेल्पलाइन नंबर सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
जनसुविधाओं की दरकार
किसी भी देश की तरक्की के लिए सड़क, परिवहन और स्वास्थ्य सुविधाएं भी सुरक्षा व्यवस्था के साथ साथ एक मानक होती हैं। फोर और सिक्स लेन के हाईवे बन रहे हैं, भीड़भाड़ को हाईवे से दूर रखने के लिए फ्लाईओवर बनाए जा रहे हैं। नेशनल और स्टेट हाईवे पर जनसुविधाओं की अभी भी दरकार है। साफ-सुथरी सड़कें तो बन गई हैं, उनमें जगह-जगह कट दिए हुए हैं, आवारा पशुओं की रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं है। दुर्घटना होने पर हाईवे पर अस्पताल नहीं हैं। सुरक्षा व्यवस्था अभी भी आधी-अधूरी है।
जगदीश श्योराण, हिसार
रखरखाव भी हो
नि:संदेह राष्ट्रीय राजमार्ग जहां एक ओर देश की प्रगति एवं औद्योगिक विकास में सहयोग करता है, वहीं दूसरी ओर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। साथ ही सड़कों पर बढ़ती दुर्घटनाएं चिंता का विषय हैं। राष्ट्रीय राज मार्गों की 24 घंटे निगरानी आवश्यक है ताकि वाहन चालकों से ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन करवाया जा सके। नियमों को कागजों से निकाल कर, क्रियान्वित किया जाना आवश्यक है। राजमार्गों के निर्माण के साथ-साथ उनका उचित रखरखाव भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
राजेंद्र कुमार शर्मा, देहरादून, उत्तराखंड
पूरा तंत्र बदले
स्टेट की सड़कों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए बनाए गए मार्ग एनएच के नाम से मशहूर हैं। इन पर तेज गति से यातायात होता है। ये स्टेट हाईवे को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। उनका आदर्श स्वरूप तभी है जब उसमें सही तरह से कट दिया हो। सर्विस लाइन हो, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना कम से कम हो। सड़कों की गुणवत्ता हो, सिग्नल सुचारु रूप से चलते हों जहां यातायात पालन करवाया जाता हो। यातायात संकेत लगे हों, टोल नाका हो, जिससे सड़कों की मरम्मत समय-समय पर हो सके, जहां वाहन की गति निर्धारित हो, ओवरटेक नहीं हो।
भगवानदास छारिया, इंदौर
आदर्श स्वरूप पर सवाल
यह एक निर्विवाद सत्य है कि सड़कें देश की तरक्की का रास्ता तय करती हैं। साल दर साल सड़कों के निर्माण में देश आगे बढ़ता जा रहा है। देश को गति देने के उद्देश्य से नेशनल और स्टेट हाइवेज का जाल बिछना सुखद है। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा सड़कों को उच्चस्तरीय स्वरूप देने का प्रयास सराहनीय है। हाइवेज को विश्वस्तरीय स्वरूप देने के बावजूद रोज होती दुर्घटनाएं इनके आदर्श स्वरूप पर सवाल खड़े करती हैं। निश्चित रूप से देश को प्रगति पथ पर ले जाने वाली सड़कों का निर्माण हो। मगर इनके आदर्श स्वरूप को निर्माण कुशलता के साथ बहुमूल्य जिंदगी की सुरक्षा देकर ही पाया जा सकता है।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
पुरस्कृत पत्र
गुणवत्ता हो प्राथमिकता
किसी भी देश के विकास में वहां की सड़कों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। विकास की यह एक महत्वपूर्ण कड़ी है। राज्यों के राजमार्ग हों या नेशनल हाईवे हों, उनकी गुणवत्ता के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए। सड़कों के निर्माण में बेहतर मैटेरियल का उपयोग होने से उनके मेंटेनेंस का खर्चा काफी कम किया जा सकता है। सड़कों के निर्माण में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। सख्त मॉनिटरिंग सिस्टम एवं पारदर्शिता पूर्ण लेखा पद्धति द्वारा सड़कों के निर्माण में भ्रष्टाचार को कम किया जाना चाहिए। सड़कों के आदर्श स्वरूप से देश की उन्नति की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
नकल का मर्ज
संपादकीय ‘नकल पर नकेल’ में उल्लेख है कि नकल व प्रश्नपत्र लीक से पूरे शिक्षा जगत की बदनामी हो रही है। आश्चर्य होता है कि प्रश्न पत्र लीक, नकल कराने, उत्तरपुस्तिका में नंबर बढ़ाने, मार्कशीट तथा प्रमाण पत्र जारी करने वाले माफिया शिक्षा जगत में लगातार पनप रहे हैं। इस कारण विद्यार्थी या उम्मीदवार को भारी आर्थिक और मानसिक हानि झेलनी पड़ रही है जिसकी क्षतिपूर्ति होना बड़ा कठिन है। वस्तुत: मानव जीवन की आधारशिला ही शिक्षा है और यदि इसमें इस तरह के दोष जारी हैं तो इसका इलाज हमें खोजना होगा।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
वक्र दृष्टि
सोलह फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘बीबीसी पर वक्र दृष्टि’ बीबीसी के दिल्ली तथा मुंबई के कार्यालय पर आय कर विभाग द्वारा छापे मारने का वर्णन करने वाला था। माना जाता है कि भाजपा सरकार के दबाव में अधिकांश टीवी चैनल उसके प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहे हैं। इसी तरह जो विपक्षी नेता सरकार के खिलाफ बयानबाजी करता है आयकर विभाग, सीबीआई तथा आईडी उसकी खबर लेते हैं। सरकार द्वारा राष्ट्रीय तथा विदेशी मीडिया पर हमला बोलने की बात को देश-विदेशी मीडिया संगठनों ने आड़े हाथों लिया है।
शामलाल कौशल, रोहतक
यात्रा के निहितार्थ
प्रदेश भाजपा द्वारा शहर, मोहल्ले, और गांवों में विकास यात्रा निकाली जा रही है। ताकि जनता को सरकार द्वारा दिए जाने वाले लाभों, विकास कार्यों व योजनाओं के बारे में बताया जा सके। यह यात्रा बहुत ही सार्थक प्रयास है। विकास यात्रा में भाग लेने वाले मंत्रियों के सामने जनता अपनी पीड़ा को भी खुलकर बता रही है। ऐसा करने से कम से कम विकास यात्रा के जरिए जनता के दुख और दर्द को जानने का अवसर तो मिल रहा है। सरकार को इन समस्याओं को सूचीबद्ध कर सिलसिलेवार दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
आतंक पर नकेल
पंद्रह फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘अपनी सरकार की राह’ के अंतर्गत कश्मीर घाटी में अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां आतंकवाद के सफाये का जिक्र हुआ। कल तक घाटी को दहलाने वाले सैकड़ों आतंकवादी संगठन अब मुट्ठी भर रह गए हैं। युवाओं को पत्थरबाज बनाने वाले वाकये भी अब लगभग नहीं के बराबर सामने आ रहे हैं। अब ऐसा लगने लगा है कि वहां शांति की राह में यही अनुच्छेद रोड़ा बनकर अटका हुआ था। धीरे-धीरे साफ होते माहौल के बीच स्वर्ग की राह लौटते कश्मीर में अगर अपनी सरकार का मार्ग प्रशस्त हुआ है तो यह बड़े सौभाग्य की बात है। संविधान के दायरे और देश हित में सरकार के फैसले को रखकर नेताओं को चुनाव के समय बयानबाजियां बंद करनी होंगी ताकि किसी प्रकार का अलगाववाद फिर से घाटी में न पनपने पाए।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
पाक-साफ नहीं
कांग्रेस अपने सत्ता के दिनों में देशी-विदेशी संस्थाओं के हितों को संरक्षण प्रदान करती थी, जिसमें मीडिया से जुड़े लोग भी थे। उनमें से बीबीसी भी एक रही होगी। उस समय बीबीसी कांग्रेस के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोलती थी। अब वही संरक्षण बीबीसी को मोदी सरकार से नहीं मिला। कांग्रेस और बीबीसी दोनों के हित एक जैसे हैं। दोनों ही मोदी सरकार की कट्टर विरोधी हैं। ब्रिटिश सरकार भी अंदरूनी तौर पर भारत को वैश्विक स्तर बढ़ते हुए देखकर खुश नहीं है। इसलिए ब्रिटिश सरकार और इंडियन कांग्रेस ने मिलकर ही डाक्यूमेंट्री बनवाई ताकि मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके।
चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग़, दिल्ली
खोट से चोट
देश के विकास में पढ़े-लिखे नागरिकों का योगदान सर्वोपरि माना जा सकता है। अफसोस की बात है कि देश में लोग किसी भी उचित-अनुचित तरीके से डिग्री हासिल करना चाहते हैं। नकल करके परीक्षाओं में पास होने वाले विद्यार्थी अगर परीक्षा पास भी कर लेते हैं और किसी क्षेत्र में नौकरी पा भी लेते हैं तो क्या वो अपने कार्य को सही तरह से कर पाएंगे? शायद नहीं। देश में भ्रष्टाचार के लिए शिक्षा प्रणाली में आए दोष भी जिम्मेवार हैं।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
सवालिया निशान
तेरह फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित खबर ‘छह नए गवर्नर और सात इधर से उधर’ अयोध्या के फैसले में शामिल जस्टिस नजीर आंध्र के राज्यपाल, पढ़कर आश्चर्य हुआ। उनका आंध्र प्रदेश का गवर्नर नियुक्त होना उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता पर सवालिया निशान लगाता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस तरुण गोगोई ने भी अयोध्या मामले में फैसला दिया था। इसके बावजूद सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया। जस्टिस नजीर को चाहिए कि इस पेशकश को ठुकरा कर सुप्रीम कोर्ट का जज होना किसी राज्य के गवर्नर बनने के मुकाबले में कहीं बेहतर है। न्यायालयों के जजों, तीनों सेनाओं के प्रमुखों, गुप्तचर एजेंसियों के प्रमुखों आदि की दोबारा कहीं भी नियुक्ति नहीं होनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
सहज न्याय मिले
अदालतों में मुकदमों के लगे अंबार न्याय की आस में बैठे लोगों के लिए चिंता का विषय है। खाली पड़े न्यायाधीशों के पदों से इनके निपटान की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। देशभर में नवाचार का दौर है और इस मामले में नेशनल लोक अदालतों का प्रयोग कारगर सिद्ध हुआ है। ऐसे में प्रकरणों का बोझ कम करने के लिए इस पर फोकस जरूरी है। इससे न सिर्फ अदालतों का बोझ कम होगा अपितु लोगों को सस्ता न्याय सुलभ होगा। देशभर में लगने वाली लोक अदालतों से अब तक लाखों मामले निपट चुके हैं। उनसे न सिर्फ लोगों बल्कि सरकार को भी राहत मिली है।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
लोकतंत्र हेतु घातक
नौ फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘बांटने की सोच छोड़ मानवीय समाज बनाएं’ राजनेताओं द्वारा वोटों की राजनीति को लेकर बांटने की प्रवृत्ति पर व्यथा प्रकट करने वाला था। सरसंघचालक मोहन भागवत ने जाति प्रथा का विरोध किया है। वहीं कुछ शरारती तत्व समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। संविधान समता, न्याय और बंधुत्व पर आधारित है और धर्मनिरपेक्षता की भावना को स्वीकार करता है। देश में इस समय धार्मिक, जातीय तथा क्षेत्रीय आधार पर लोगों को बांटा जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए घातक है।
शामलाल कौशल, रोहतक
आत्मनिर्भरता की ओर
चौदह फरवरी का संपादकीय ‘सफेद सोने की खान’ पढ़ा। कश्मीर के रियासी में लीथियम का बड़ा भंडार मिलने से पूरे देश में हर्ष व्याप्त है। आधुनिक तकनीकों के इस युग में लीथियम को सफेद सोना भी कहा जाता है। टीवी, मोबाइल व सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सामानों के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों में लीथियम बैटरी का ही इस्तेमाल होता है। पहले इसे विदेशों से महंगे दामों पर आयात करके पूर्ति की जाती थी। अब इस बड़े भंडार के चलते भारत न सिर्फ लीथियम के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा बल्कि वह इसे विदेशों में भी निर्यात कर सकेगा। इस बड़ी खोज के लिए देश के भू-वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.
हताश विपक्ष
विपक्ष संसद सत्र के पहले दिन से ही संसद की कार्रवाई चलने नहीं दे रहा है। वह लगातार झूठ का सहारा क्यों ले रहा है और जनता को सच बताने में हिचक क्यों रहा है, यह बात समझ नहीं आ रही है। इसका ताजा उदाहरण है अडानी समूह पर हिंडनबर्ग द्वारा किया गया हमला। अडानी के शेयरों का भाव गिर गया है। इस वजह से एलआईसी और स्टेट बैंक संकट में हैं, ऐसा कहकर विपक्ष एक ग़लत माहौल बनाने की कोशिश में जुटा है। वास्तव में संसद में उठाने के लिये हताश विपक्ष के पास अब कोई मुद्दा नहीं बचा है।
अरविंद दिनकर तापकिरे, मुंबई
खेती के लिए वरदान
फसलों के विकास के लिए नाइट्रोजन अति आवश्यक है,जिसका महत्वपूर्ण स्रोत यूरिया है। लेकिन देश में प्रायः किसानों को इसकी अनुपलब्धता का सामना करना पड़ता है। किसानों को अब इस विकट समस्या का इलाज नैनो लिक्विड यूरिया के रूप में मिल चुका है। यह उत्पाद कृषि के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। सुखद बात ये है कि इसको लांच करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। खास बात यह कि इसके उपयोग से मिट्टी को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं होती है और साधारण यूरिया के मुकाबले शीघ्रता से काम करता है।
शिवेन्द्र यादव, कुशीनगर
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
बजट से उम्मीद
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आम बजट पेश करते हुए कहा कि यह अमृत काल का पहला बजट है। इस बजट पर आम लोगों की निगाहें टिकी हुई थीं। इस बार का बजट तो और भी खास है क्योंकि यह केंद्र सरकार का बजट वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकाल का अंतिम संपूर्ण बजट है। इस बजट में मध्यम वर्ग से लेकर निम्न वर्ग के लोगों की ओर ध्यान देने की कोशिश करते हुए यह प्रभाव डालने का यत्न किया गया है कि बजट हर वर्ग तथा श्रेणी के लोगों के लिए कुछ न कुछ लाभकारी रहे।
महिमा शर्मा, जालंधर
घातक नशा
नशा युवाओं की रगों में इस कदर बस गया है कि अब उन्होंने रिश्तों का भी कत्ल करना शुरू कर दिया है। सरकार और प्रशासन द्वारा नशा बंद करने की कोशिशों के बाद भी पहले की तरह नशा बिक रहा है। ड्रग्स की मांग को पूरा करने के लिए जानलेवा हमलों या आत्महत्याओं की खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं। सरकार को इस गंभीर समस्या पर ध्यान देना चाहिए।
लवनीत वाशिष्ठ, मोरिंडा
उज्ज्वल भविष्य
अंडर-19 टी-20 महिला क्रिकेट विश्वकप का खिताब जीतने पर भारत में महिला क्रिकेट का भविष्य बेहतर नजर आता है। आने वाला कल भारतीय महिला क्रिकेट का होगा, इसमें अतिशयोक्ति नहीं है। दो अवसरों पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम विश्व कप में उप विजेता रही थी। उसका परिणाम सामने है। भविष्य में महिला क्रिकेटरों को पुरुष क्रिकेटरों के बराबर फीस मिलने लग जायेगी। देश में महिला इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत होने वाली है, इससे महिला क्रिकेट खिलाड़ियों की आय बढ़ेगी, साथ ही भारत में महिला क्रिकेट का भविष्य भी उज्ज्वल होगा।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
नया आयाम मिला
भारतीय महिला क्रिकेट टीम अंडर-19 ने पहली बार जिस अंदाज में टी-20 विश्व कप खिताब जीता उसे महिला क्रिकेट के इतिहास में नये युग की शुरुआत कहा जा सकता है। इस विश्व कप में भारतीय खिलाड़ी हर क्षेत्र में उम्दा खेली। आने वाले दिनों में महिला क्रिकेट का भविष्य उज्ज्वल होगा और भारतीय क्रिकेट लैंगिक समानता के युग में पहुंचेगा। महिला क्रिकेटरों को भी अब अपने समकक्ष पुरुषों के बराबर पारिश्रमिक मिलने के आसार हैं। इन बेटियों की कामयाबी भारतीय समाज में बेटियों की स्थिति व हक को नया आयाम देगी।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
असमानता दूर होगी
हमारी बेटियों ने अब अंडर-19 विश्व कप में पहली बार आईसीसी ट्रॉफी जीतकर विश्व में देश का झंडा बुलंद किया है। यह मैच जीतने वाली कुछ बेटियां पारिवारिक कठिनाइयों तथा अभावों की पृष्ठभूमि में खेली हैं। पिछले दिनों महिला प्रीमियर लीग की बोली में भारतीय महिला खिलाड़ियों की पुरुषों की तरह उच्च बोली लगी, जिसको लेकर लैंगिक असमानता दूर होगी। बीसीसीआई ने अनुबंधित महिला खिलाड़ियों को पुरुष क्रिकेटरों के बराबर फीस देने की घोषणा की थी। आशा है कि सरकार महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को अधिक से अधिक सुविधाएं तथा प्रोत्साहन देती रहेगी।
शामलाल कौशल, रोहतक
बने अलग योजना
महिला क्रिकेट खिलाड़ियों ने अंडर-19 विश्वकप में पहली बार आईसीसी ट्रॉफी पर अधिकार किया है। महिला प्रीमियर लीग में खिलाड़ियों के प्रदर्शन को तवज्जो मिलना इस बात का संकेत है कि भारत में अब महिला क्रिकेट का भविष्य उज्ज्वल है। जरूरी है कि पुरुष प्रधान खेलों में जिस तरह लोग दिलचस्पी लेते हैं वैसा ही जनसैलाब महिलाओं के खेलों में भी उमड़ना चाहिए। इससे न सिर्फ महिला खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ेगा बल्कि नारी प्रतिभा को भी आगे आने का मौका मिलेगा। सरकार को इसके लिए महिला खेलों के प्रोत्साहन के लिए अलग से योजना बनानी चाहिए।
अमृतलाल मारू, महालक्ष्मी नगर, इंदौर
सीनियर टीम को प्रोत्साहन
भारतीय महिला क्रिकेटरों की अंडर-19 टी-20 विश्वकप की जीत स्पष्ट तौर पर दर्शाती है कि अब भारत में महिला क्रिकेट का एक स्वर्णिम युग शुरू हो रहा है। इस विश्वकप प्रतियोगिता में खिलाड़ियों ने बल्लेबाजी, गेंदबाजी व क्षेत्ररक्षण में अन्य सभी टीमों से बेहतर प्रदर्शन किया। देश का हर नागरिक इस टीम की खिलाड़ियों पर गर्व महसूस करता है। इन खिलाड़ियों की जीत से देश की सीनियर महिला टीम को भी प्रोत्साहन मिलेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में भारतीय महिला क्रिकेट कामयाबी की नई-नई बुलंदियों को स्पर्श करेगा।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
स्वर्णिम युग की शुरुआत
भारतीय महिला क्रिकेट टीम लगातार अच्छे प्रदर्शन से कीर्तिमान स्थापित कर रही है। अंडर-19 विश्व कप जीत कर उन्होंने साबित कर दिया कि अब क्रिकेट में भी महिलाओं के स्वर्णिम युग की शुरुआत हो गई है। 2017 के आईसीसी विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन व एशिया कप जीत कर महिला क्रिकेट टीम अपना दबदबा बना चुकी है। कॉमनवेल्थ में पहली बार क्रिकेट को शामिल किया गया और इसमें भी भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने शानदार प्रदर्शन कर सिल्वर मैडल प्राप्त किया। पहली बार महिला प्रीमियम लीग की शुरुआत बताती है कि आने वाले समय में महिला क्रिकेट टीम पुरुष क्रिकेट टीम से मुकाबला कर सकती है।
सोहन लाल गौड़, कलायत, कैथल
पुरस्कृत पत्र
कमतर नहीं पुरुषों से
आज भारत में महिलाएं सभी क्षेत्रों में अपना आकाश हासिल कर रही हैं। इस टूर्नामेंट में कोई मैच न हारने वाली इंग्लैंड की टीम को जोश से भरी भारतीय महिला क्रिकेटरों ने महज 17 ओवर में 68 रनों पर समेट दिया और 14 ओवरों में जीत का लक्ष्य हासिल कर लिया। पहली बार शुरू हो रही महिला प्रीमियर लीग में खिलाडि़यों की ऊंची बोली बता रही है कि आने वाला समय महिला क्रिकेट का स्वर्णिम युग कहलाएगा। इसी कड़ी में अब सेना में भी सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसलों के अनुसार महिलाएं कमांडर रैंक के प्रतिष्ठित पदों तक बिना किसी बाधा के नियुक्ति पा सकती हैं। निश्चित रूप से पुरुषों से कमतर पारिश्रमिक की बात इतिहास की बात बन कर रह जाएगी।
शेर सिंह, हिसार
महंगा दूध
संपादकीय ‘महंगे दूध की कसक’ में उल्लेख है कि गत वर्ष में लगातार पांच बार दाम में वृद्धि होने से दूध काफी महंगा हो चुका है। कहा जाता है कि भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है किंतु अब इसकी सत्यता पर संदेह होता है, क्योंकि महंगा और कृत्रिम दूध ही इसे झुठला रहा है। पशुपालन में रुचि कम, दुधारू पशुओं की मृत्यु, महंगे पशु और पशु आहार के साथ कृषि भूमि के वैकल्पिक उपयोग में वृद्धि से घास या पशु आहार की उपज में कमी होने से दूध के उत्पादन में कमी होना स्वाभाविक है। कुपोषण दूर करने का प्रमुख पेय पदार्थ दूध है। दवाई उत्पादन में वृद्धि के बजाय पशुपालन और पशुआहार के प्रति जागरूक होकर दूध उत्पादन बढ़ाएं ताकि ये सस्ता हो, कुपोषण दूर हो और लोग स्वस्थ जीवन जी सकें।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
प्रकृति को समझें
तुर्किये में आए विनाशकारी भूकम्प ने मानव और विज्ञान को अाईना दिखाया और चेताया कि प्रकृति कभी भी रौद्र रूप धारण कर सकती है। आज बड़े-बड़े परमाणु परीक्षण, विस्फोटों आदि ने पृथ्वी को बहुत नुकसान पहुंचाया है जिसके दुष्परिणामों के रूप में हमें अाज भूकम्पों का सामना करना पड़ रहा है। आज संपूर्ण विश्व को जरूरत है कि प्रकृति की पीड़ा को समझे वरना वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर मानवीय सभ्यता को बड़ी चोट देगी क्योंकि प्रकृति जब न्याय करती है तो भेदभाव नहीं करती। प्रकृति का दोहन मत करो। प्रकृति के साथ जीना सीख कर धरती का पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखो।
नितिन रावल, फिरोजाबाद
प्रेरणादायक कहानी
पांच फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून अध्ययन कक्ष अंक में भूपिंदर कौर वालिया की ‘एक दुनिया बने न्यारी’ कहानी प्रेरणादायक, मर्मस्पर्शी रही। वहीं कहानी जिंदगी को सरल तरीके से यापन करने तथा इहलोक के साथ परलोक सुधारने में कारगर साबित होगी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
पारदर्शिता जरूरी
हाल ही में एक नई और डिजिटल योजना के तहत हरियाणा की कुल आबादी 2.80 करोड़ में से 1.22 करोड़ लोगों के पीले और गुलाबी राशन कार्ड बन गए हैं। पुरानी योजना की तुलना में अब ढाई गुना अधिक राशन कार्ड बने हैं। कुछ लोगों के आरोप हैं कि वास्तविक गरीबों के राशन कार्ड सूची से हटा दिए गए हैं। बिना सर्वे किए परिवार पहचान पत्र के आधार पर किसी परिवार की वार्षिक आय का आंकलन कैसे सम्भव है? इस पूरी प्रक्रिया में कहीं भी पारदर्शिता नजर नहीं आती। सरकार को चाहिए कि किसी भी परिवार की गरीबी का आंकलन सर्वे के आधार पर करवाया जाए न कि आधे-अधूरे कम्प्यूटर डाटा के आधार पर।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
पीड़ितों की सहायता
तुर्किये और सीरिया में रिक्टर पैमाने पर 7.8 तीव्रता वाले भूकंप से दोनों देश दहल उठे। इस आपदा में लगभग 11 हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं जबकि 38 हजार से ज्यादा लोग जख्मी हो गये हैं। यही नहीं, अब खराब मौसम ने बेघर हुए लोगों की मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं। हर तरफ मलबा और लाशें देखने को मिल रही हैं। भारत ने दोनों देशों में भूकंप से जान-माल को हुई भारी क्षति पर गहरी संवेदना जताई है। भारत हरसंभव सहायता प्रदान कर रहा है। ऐसे में विश्व के अन्य देशों को भी खुलकर भूकंप प्रभावित देशों की मदद करनी चाहिए।
सदन जी, पटना, बिहार
आपदा प्रबंध तंत्र
तुर्किये-सीरिया में भूकंप की त्रासदी ने सभी का दिल दहला दिया। पिछले कुछ महीनों से उत्तर भारत में भी भूकंप के हल्के-भारी झटके लग रहे हैं। हिमाचल के कांगड़ा में साल 1905 में सदी का सबसे बड़ा भूकंप आया था, इसमें 20 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गयी। इसी तरह 2001 को गुजरात में भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी। देश के बहुत से राज्यों के क्षेत्र रेड जोन भी घोषित किए गए हैं। देश में भी आपदा प्रबंधन तंत्र को और मजबूत करके आम लोगों को भूकंप से बचने के लिए जागरूक करना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशनार्थ लेख इस ईमेल पर भेजें :- dtmagzine@tribunemail.com
जांच की जरूरत
दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित एक खबर ‘अडाणी मुद्दे पर रार, कांग्रेस-भाजपा आमने-सामने’ अडाणी तथा प्रधानमंत्री, मोदी के संबंधों पर सवाल उठाने वाली थी। अमेरिका की कंपनी, हिडन बर्ग ने खुलासा किया है कि अडाणी की संपत्ति उतनी नहीं है जितनी कि बताई जा रही है। आरोप लगाया जाता है कि प्रधानमंत्री ने मित्र को अपना कारोबार बढ़ाने में मदद की। कई बैंकों ने नियमों को ताक पर रखकर अडाणी को देश विदेश में विभिन्न क्षेत्रों में भारी-भरकम उधार दिया। पूछा जा सकता है कि अडाणी की गतिविधियों के ऊपर आरबीआई, एलआईसी, एसबीआई आदि ने नजर क्यों नहीं रखी। विदेशी दौरों पर अडाणी का मोदी जी के साथ जाना दाल में कुछ काला होना को बताता है।
शामलाल कौशल, रोहतक
बजट में आम आदमी
कोई बजट उन लोगों के लिए भी होना चाहिए जिनकी मासिक आय बहुत कम और प्राइवेट सर्विस करते हैं। बजट में आटा, दाल, चीनी, दूध, फल-सब्जियों के दाम कम होने का भी जिक्र होना चाहिए। ऐसे लोगों को सेवानिवृत्ति के बाद कुछ नहीं मिलता, न ही पेंशन। बच्चों पर निर्भरता बढ़ जाती है। क्या सिर्फ इन्कम टैक्स पेयर्स ही देश के नागरिक होते हैं। आज भी अधिकतर बुजुर्ग पैसे के अभाव में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। वे अपना इलाज तक नहीं करा पाते, उनके लिए भी मासिक पेंशन का ऐलान होना चाहिए। काश! बजट में दीन-हीन वर्ग को भी स्थान मिल पाता।
चंद्र प्रकाश शर्मा, दिल्ली
अनुकरणीय खनन नीति
संपादकीय ‘खनन पर मनन’ में उल्लेखित है कि पंजाब सरकार ने खनन माफिया पर नकेल डालने के लिए ऐसी नीति बनाई है ताकि खनन पर सरकार का नियंत्रण रहे। उल्लेखनीय है कि खनन माफिया हरियाणा, म.प्र. और राजस्थान आदि प्रदेशों में विभिन्न रूपों में सक्रिय हैं, जो खनन रोकने वालों के खिलाफ किसी भी हद तक चले जाते हैं। पंजाब की खनन नीति का अन्य राज्य भी अनुसरण करें ताकि प्राकृतिक सुंदरता बनी रहे।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
अवसान के प्रश्न
छह जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित ‘कारगिल के रणनीतिकार मुशर्रफ का निधन’ खबर पाकिस्तान के सशक्त राजनेता व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के निधन के बारे में जानकारी देने वाली थी। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा अपनी लाहौर बस यात्रा समझौते के बावजूद मुशर्रफ ने सेना द्वारा कारगिल पर आक्रमण कर लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ, निर्वासित करके इंग्लैंड भेज दिया था। मुशर्रफ ने लाइलाज बीमारी के चलते दुबई में अंतिम सांस ली। कारगिल में पराजय का मुंह देखने वाले मुशर्रफ ने न्यायालय द्वारा सजा-ए-मौत दिए जाने पर पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में आतंकवादी भेजने की बात को स्वीकारा भी था।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
पर्यावरण संरक्षण जरूरी
सच कहा है सोनम वांगचुक ने कि लद्दाख में सब ठीक नहीं है। दुनियाभर से भारी संख्या में पर्यटक खूबसूरत मठों, स्तूपों और एेतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए हर साल यहां आते हैं। इस कारण यहां कचरा बढ़ने तथा पानी की बर्बादी के चलते लद्दाख का पर्यावरण बदल रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक हर मौसम का आगमन सामयिक होता था, मगर अब मौसम में अनिश्चितता आ गई है। लद्दाख में भीषण गर्मी के कारण हिमनद तेज गति से और कम समय में पिघल रहे हैं। यहां की स्थानीय जनता पर्यावरण का संरक्षण चाहती है।
थुपस्तान डोलकर, चंडीगढ़
वक्त के सवाल
‘अमृत कलश की होड़ में मानस मंथन’ शीर्षक से अपने लेख में इस बार के बजट के हवाले से लेखक नरेश कौशल ने जो प्रश्न उठाए हैं, बहुत ही विचारणीय हैं। सत्तापक्ष के पास योजनाओं को पूरा करने हेतु न पर्याप्त पैसा है और न ही उपलब्ध पैसे का समुचित प्रबंधन। योजनाओं के लिए आवंटित पैसा कहां जा रहा है कुछ पता नहीं। उपेक्षा का शिकार आम आदमी हमेशा मन मसोस कर रह जाता है। लेख की शैली और संदेश बहुत प्रभावी है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
यात्रा का मकसद
तीन जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘बंटवारे के खिलाफ चेतना जगाने का विचार’ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, राहुल गांधी द्वारा भारत जोड़ो यात्रा का विश्लेषण करने वाला था। इस यात्रा ने राहुल गांधी को एक परिपक्व तथा गंभीर राजनेता बनाकर उनका कद राजनीति में ऊंचा कर दिया है। बेशक उनका यह कहना कि यह यात्रा गैर-राजनीतिक थी, लेकिन वास्तविकता यह है कि इसका उद्देश्य 2024 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस को एक विपक्षी दल के तौर पर पेश करना है। राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो’ द्वारा कांग्रेस को सत्तासीन कराना चाहते हैं।
शामलाल कौशल, रोहतक
विकसित राष्ट्र का लक्ष्य
इस बार का आम बजट कुछ भिन्न था। वित्तमंत्री ने स्पष्ट किया कि इस वर्ष नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले वर्ष आम चुनाव होने के बाद भी सरकार लोकलुभावन राजनीति से दूर रहेगी। वहीं कुछ राजनीतिक दल रेवड़ी संस्कृति को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। ऐसे समय में सरकार ने यह तय किया कि वह रेवड़ी संस्कृति के स्थान पर देश के समुचित विकास को वरीयता देगी। यह बजट आने वाले 25 वर्षों में देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को रेखांकित भी करता है।
सदन जी, पटना, बिहार
स्थायी व्यवस्था हो
महिला पहलवानों के साथ हुए दुर्व्यवहार के मामले को राजनीतिक रंग दे दिया गया। पीड़ित पक्ष के लिए न्याय कैसे सुनिश्चित हो, किसी को चिंता नहीं। बहरहाल, ऐसे मामलों के संज्ञान और निपटान के लिए एक स्थाई प्रकोष्ठ की स्थापना की तत्काल आवश्यकता है। प्रकोष्ठ का अध्यक्ष कोई अवकाश प्राप्त न्यायाधीश होना चाहिए। न्याय में देरी से बचने हेतु जांच की समय सीमा तय हो। जांच दल में सरकारी नुमाइंदों के साथ-साथ समाज के प्रबुद्ध व शुद्ध आचरण संपन्न व्यक्तियों की भागीदारी भी आवश्यक है। जांच के दौरान, पीड़ित पक्ष को किसी तरह की प्रताड़ना का सामना न करना पड़,े इस पर विशेष ध्यान दिया जाए। आरोपित पक्ष को जांच अवधि के दौरान पद से बेदखल रखने का प्रावधान भी हो।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
खेल आयोग बने
अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवानों द्वारा कुश्ती महासंघ के पदाधिकारियों पर लगाए गए कदाचार के आरोप अत्यंत गंभीर हैं। वास्तव में पीड़ित पक्ष की शिकायतों को सुनने के लिए देश में एक अलग 'खेल आयोग' बनाने की जरूरत है, जो राजनीति और भेदभाव से परे हो तथा निष्पक्ष और स्वतंत्र कार्रवाई करे। खिलाड़ियों के लिए अलग से आयोग बने और इसमें राजनीतिक लोगों का हस्तक्षेप न हो तो सभी समस्याओं का हल ढ़ूंढ़ा जा सकता है। आयोग को प्रभावी शक्तियों से भी लैस करना होगा, ताकि खेलों में भेदभाव, शोषण, पक्षपातपूर्ण रवैये की बिल्कुल गुंजाइश न रहे।
सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब
सशक्त समिति बने
महिला पहलवान खिलाड़ियों के साथ किया गया दुर्व्यवहार बेहद चिंतनीय है। सवाल उठता है कि आखिर बेटियां देश में सुरक्षित क्यों नहीं हैं। क्या हम अपने देश की बेटियों को घर के अंदर कैद करके रखें। इस तरह के दुर्व्यवहार से बचने के लिए देश में ईमानदार समिति का गठन होना जरूरी है जिस पर किसी प्रकार का दबाव न हो ताकि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। देश में महिलाओं के लिए ईमानदार समिति का गठन होगा उनके लिए वरदान साबित होगा।
सतपाल, कुरुक्षेत्र
प्रभावी हो कमेटी
अच्छी बात है कि महिला खिलाड़ियों ने अपने सम्मान की रक्षा में करिअर की परवाह न करते हुए यौन दुर्व्यवहार के विरुद्ध आवाज उठाई है। वर्ष 1990 में टेनिस खिलाड़ी रुचिका गिरहोत्रा द्वारा निरंतर छेड़खानी से परेशान होकर आत्महत्या किया जाना खेल इतिहास में काला अध्याय है। अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के विरुद्ध आवाज उठाना निश्चित तौर पर अप्रत्याशित और साहसिक कदम है। अति महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा खेलों में महिलाओं के विरुद्ध यौन दुर्व्यवहार को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देशन और उच्च न्यायालयों के अधीन महिलाओं के उचित प्रतिनिधित्व सहित उच्च अधिकार प्राप्त कमेटी का गठन समय की मांग है।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थेखां, गुरुग्राम
व्यवस्था बदले
अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, पहलवान तथा कोच के साथ हो रहे दुर्व्यवहार से स्पष्ट हो रहा है कि चयन, पुरस्कार और पदक दिलाने आदि की आड़ में खिलाड़ियों का शोषण होता है। मामलों में कुछ गलत जानकारी भी हो सकती है किंतु आरोपों को झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसे मामलों की जांच जरूरी है। महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा हेतु शिक्षक, प्रशिक्षक, मैनेजर, कोच तथा सेवा-सुश्रुषा हेतु पूरा स्टाफ महिलाओं का ही होना चाहिए। महिला खिलाड़ी यदि शोषण, दुर्व्यवहार और बेइज्जत होने की शिकार होती रहीं तो उनका उत्साहवर्धन कैसे होगा?
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
स्वतंत्र हो जांच
सियासत के बढ़ते दबदबे ने समाज के मूल ढांचे को ही बदल कर रख दिया है। निश्चित ही सामाजिक सहिष्णुता में आयी विकृति के फलस्वरूप दुर्व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कई बार दुर्व्यवहार की घटनाएं राजनीति से प्रेरित होती हैं। पहलवान बेटियों के साथ हुए दुर्व्यवहार से मचे हंगामे ने इस सच से पर्दा उठा दिया है। वहीं जांच के नाम पर लीपापोती करते तंत्र भी सियासी पिंजड़े में बंद दिखाई देते हैं। संभव है दुर्व्यवहार की शिकायतें मनगढ़ंत हों, मगर जांच तंत्र भी कम लचर नहीं है। यद्यपि कार्य कठिन है फिर भी स्वतंत्र जांच के लिए आधारभूत संरचना का होना आवश्यक है।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
पुरस्कृत पत्र
खेल संघों में सुधार
खेलों में राजनीति इतनी हावी है कि दोषी को बचाने के लिए जातिवाद और क्षेत्रवाद का सहारा लिया जा रहा है। सभी खेल संगठनों पर नौकरशाहों और राजनेताओं का कब्जा है। सभी खेल संघों को बचाने और खिलाड़ियों के मान-सम्मान को बनाए रखने के लिए पहले जिला, राज्य और फिर राष्ट्रीय स्तर पर खेल संघों के अध्यक्षों के चुनाव होने चाहिए। जिसका खेलों से कोई वास्ता नहीं है, उन्हें चुनाव से बाहर रखा जाये। प्रत्येक खेल संघ में यौन उत्पीड़न आदि की जांच के लिए महिला खिलाड़ियों की अलग से कमेटी होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सभी खेल संघों के पदाधिकारियों का कार्यकाल सीमित होना चाहिए।
जगदीश श्योराण, हिसार
कटघरे में सरकार
बजट सत्र में विपक्ष के जोरदार हंगामा के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि विपक्ष अडानी ग्रुप के मुद्दे पर सरकार को कटघरे में खड़ा करेगा। विपक्षी दलों की यह मांग जायज है कि इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की जाए अथवा संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच की जाए ताकि देश के नागरिकों को जानकारी हो कि हिंडनबर्ग रिसर्च दोषी है या अडानी ग्रुप दोषी है। रिजर्व बैंक ने उचित कदम उठाते हुए बैंकों से अडानी ग्रुप को दिए कर्ज का ब्योरा मांगा है। भारतीय संसद में चर्चा होनी बेहद जरूरी है। आखिर यह भारत की अर्थव्यवस्था, आर्थिक सुदृढ़ीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय साख का प्रश्न है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
विकास को तरजीह
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम पूर्ण बजट चौंकाने वाला है। इस साल नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव व अगले साल आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए देश को उम्मीद थी कि बजट लोकलुभावना होगा परंतु मोदी सरकार के हर कार्य अचंभित करने वाले होते हैं। इसलिए मोदी सरकार ने मुफ्त की रेवड़ी बांटने की बजाय देश के विकास को वरीयता दी है। बजट के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है कि सरकार 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। संभवतः बजट लोकलुभावन न हो कर भविष्यानुमुखी है। लेकिन सही अर्थों में बजट वही अच्छा माना जाता है जिसकी घोषणाओं को समयानुसार अमलीजामा पहनाया जाए।
सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल
जनता की आवाज
प्रसन्नता की बात है कि ‘द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह’ ने अपना 142वां स्थापना दिवस मनाया। अंग्रेजी भाषा में ‘द ट्रिब्यून’ और हिंदी में समाचारपत्र ने पिछली डेढ़ सदी से उत्तर भारत के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र के रूप में लोगों की आवाज बनकर उनके सपनों को साकार किया है। पाठक भी कामना करते हैं कि समाचारपत्र मजीठिया जी के दिखाए रास्ते पर चलता रहे और भविष्य में भी जनता की आवाज बनकर उनके सपनों को पूरा करता रहे।
चौधरी शक्ति सिंह, करनाल
भारत जोड़ो से हासिल
एक फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘यात्रा के हासिल’ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के संदर्भ में कहा जा सकता है कि यात्रा सार्थक रही। इस यात्रा ने राहुल गांधी की छवि को एक नेता के तौर पर स्थापित कर दिया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने आम लोगों से संपर्क स्थापित किया, उनको पेश आने वाली समस्याएं सुनीं, बहुलवादी संस्कृति का समर्थन किया। वहीं मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों की आलोचना की तथा मीडिया द्वारा उनकी यात्रा की कवरेज न करने का भी जिक्र किया। राहुल को पार्टी में गुटबाजी खत्म कर संगठनात्मक ढांचा मजबूत करना होगा।
शामलाल कौशल, रोहतक
क्रिकेट दीवानगी
आईपीएल की महिला क्रिकेट टीमों का 4670 करोड़ रुपये में बिकना क्रिकेट के स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर होने का आरंभ है। ऐसे में महिला आईपीएल में खिलाड़ियों की ऊंची कीमत पर बिक्री के बाद खिलाड़ियों को भी अब विज्ञापनों से आमदनी होने के आसार बन गए हैं। आम जनता में भी अब महिला खिलाड़ियों द्वारा खेले जाने वाला आईपीएल क्रिकेट उतनी ही रोचकता के साथ देखा जाएगा।
सुभाष बुड़ावनवाला, रतलाम, म.प्र.
काबिलेतारीफ पहल
उनतीस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में राग-रागिनी कोना के तहत सत्यवीर नाहड़िया की हरियाणवी दोहा शैली में ग़ज़ल महात्मा गांधी के प्रति काव्यात्मक अमर गाथा दिल की गहराइयों में उतर गयी। संदीप जोशी के चित्रांकन से प्रादेशिक संस्कृति, बोली के अनूठेपन को निखारने, मनभावन बनाने में सहयोग काबिलेतारीफ रहा।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
परेशान जनता
आज देश की जनता बेरोजगारी, महंगाई से बुरी तरह त्रस्त है जिसका मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, तेजी से बढ़ता निजीकरण, घिसीपिटी नीतियों के साथ बढ़ती फिजूलखर्ची आदि ही है। इसलिए सरकार को शीघ्र ही गंभीरता से कुछ ठोस और पारदर्शी कदम उठाने की जरूरत है। देश में काम की कोई कभी कमी नहीं है, कमी तो सिर्फ नीयत और नीति ही की है।
वेद मामूरपुर, नरेला
चुनावी नूराकुश्ती
भारत के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के संकल्प पर चर्चा करते हुए सभी देशवासियों का आह्वान किया। बावजूद इसके इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में धार्मिक ग्रंथों पर अनावश्यक रूप से चर्चा का माहौल बनाया हुआ है। पक्ष-विपक्ष के दावेदारों की भाषा शैली भी अमर्यादित हो चुकी है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सद्भावनापूर्वक विवाद पर चर्चा कर समाधान की कोशिश करें। आज राजनीतिक दलों में राजनीतिक रोटियां सेंकने की होड़ मची हुई है और यह मात्र नूरा कुश्ती है ताकि 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव को प्रभावित किया जा सके और 2024 के लोकसभा चुनाव की जमीन तैयार की जा सके।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
अनुचित सवाल
भारत जोड़ो यात्रा के समापन के पहले राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था को लेकर जो प्रश्न उठाए, वे हास्यास्पद हैं। सवाल उठता है कि यदि स्थितियां अच्छी नहीं होतीं तो क्या राहुल लाल चौक पर तिरंगा फहरा सकते थे। उन्होंने जिस तरह भारी भीड़ के साथ अपना सफर शुरू किया, वह यही बताता है कि राज्य में कानून एवं व्यवस्था सही है। इस बदले हुए वातावरण के कारण ही कांग्रेस कश्मीर में भारत जोड़ो यात्रा कर सकी। यदि हालात बेहतर नहीं होते तो संभवतः वहां भारत जोड़ो यात्रा प्रतीकात्मक रूप से ही हो पाती।
सदन जी, पटना, बिहार
बढ़ते विदेश पलायन
अठारह जनवरी के अंक में देविंदर शर्मा का लेख ‘बढ़ते विदेश पलायन से उपजी आर्थिक चुनौती’ हमारे देश से न केवल युवा बल्कि अमीर लोगों द्वारा विदेशों में बसने के अवसरों की तलाश का विश्लेषण करने वाला था। निश्चित रूप से युवाओं व अमीर लोगों द्वारा बड़ी संख्या में विदेशों में पलायन एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए शिक्षा को रोजगारपरक बनाने की जरूरत है। लेख में उचित कहा गया है कि ‘सबका साथ-सबका विकास’ नारे को फलीभूत किया जाए।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
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भारत-मिस्र रिश्ते
अट्ठाईस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘नये दौर के रिश्ते’ भारत-मिस्र के परंपरागत संबंधों का वर्णन करने वाला था। दोनों ही देशों की प्राचीन सभ्यताएं हैं। कोरोना काल में मिस्र ने भारत को मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति द्वारा सहायता की और भारत ने भी रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर प्रतिबंध के बावजूद इस देश को गेहूं की आपूर्ति की। इस बार के गणतंत्र दिवस पर मिस्र के राष्ट्रपति, अब्दुल फतह अल-सीसी को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित करके भारत ने जो मान-सम्मान दिया है उससे दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ होंगे। मिस्र भारत का पुराना तथा विश्वसनीय मित्र है जो कि कश्मीर के मामले में भारत का समर्थन करता रहा है।
शामलाल कौशल, रोहतक
कब तक लापरवाही
समाचार ‘साढ़े चार लाख लोगों के पेट पर लापरवाही की लात’ से स्पष्ट है कि देश में खाद्यान्न की सुरक्षा के प्रति जारी लापरवाही चिंताजनक है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसानों की मेहनत से उत्पादित और शासन द्वारा खरीदे अनाज के सड़ने और दुरुपयोग से आर्थिक नुकसान तथा अनाज के अपमान से भूखे लोगों को भी वंचित होना पड़ता है। म.प्र. में प्रतिवर्ष नागरिक आपूर्ति निगम का 25 से 30 करोड़ रुपये का राशन रास्ते में ही गायब हो जाता है तथा अन्य प्रदेश भी इससे अछूते नहीं हैं। शासन पर्याप्त भंडारण और सुरक्षा की व्यवस्था करे।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
सवाल बाकी
हाल ही में कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री टीवी चैनलों, अखबारों, वेबसाइट और सोशल मीडिया पर तरह-तरह की सुर्खियां बटोर रहे हैं। वहीं प्रोफेसर श्याम मानव के नेतृत्व वाली ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ द्वारा शास्त्री से जुड़े मौजूदा विवाद ने उन पर नागपुर में अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया। अतीत में देखा जाए तो जब भी धर्म पर विवाद की बात आती है तो सबसे पहले मुद्दा सनातन धर्म का ही उठता है। क्या वास्तव में भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है?
सुनाक्षी गुप्ता, जालंधर