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आपकी राय

  • आतंकी के आंसू दुनियाभर में घोषित आतंकवादी मसूद अजहर अपनों पर पड़ी चोट से फूट-फूट कर रो पड़ा। भारत सरकार के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद जब उसका परिवार उजड़ गया, उसके 14 नजदीकी मारे गए और आतंकवाद का उसका प्रशिक्षण...

  • समानता की राह दैनिक ट्रिब्यून में 6 मई के संपादकीय पृष्ठ पर डॉ. रामजीलाल के लेख ‘समता न्याय आधारित विकल्प के समक्ष चुनौतियां’ से डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों की स्पष्टता मिलती है। उनका लक्ष्य समतावादी समाज की स्थापना था,...

  • आतंक का मुकाबला तीन मई‌ के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘वक्त की आवाज’ पहलगाम त्रासदी के बाद पाकिस्तान के खिलाफ गर्माये माहौल का वर्णन करने वाला था। शहीद नौसेना अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी ने उनके जन्मदिन पर रक्तदान...

  • सद्भाव की मिसाल बाईस अप्रैल को आतंकी हमले में शहीद लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी ने अद्भुत संयम और सद्भावना का परिचय दिया। उनके जन्मदिन पर रक्तदान शिविर का आयोजन कर हिमांशी ने देशवासियों से आतंकवाद के विरुद्ध न्याय...

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    सकारात्मक संदेश हालिया पहलगाम आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सभी दलों द्वारा एकजुट होकर निंदा करना सकारात्मक संदेश है। यह केवल आतंकवाद के खिलाफ एक आवाज नहीं, बल्कि देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए दृढ़ संकल्प...

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    सख़्त रुख सही भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का निर्णय समयानुकूल और सराहनीय है। वर्षों से हम दरियादिली दिखाते हुए पाकिस्तान को पानी देते आए हैं, जबकि वह आतंकवाद के माध्यम से हमारे...

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    कार्रवाई की छूट प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सेना को आतंकवाद से लड़ने और पहलगाम हमले का जवाब देने की खुली छूट दी गई है। तीनों सेनाओं को कार्रवाई की रणनीति तय करने की पूरी स्वतंत्रता है। उन्होंने सेना की...

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    जिम्मेदारी निभाएं कश्मीरी हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले में निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया गया, जो मानवता पर कलंक है। पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को माफ नहीं किया जा सकता। आतंकियों के घाटी में छिपने...

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    पहलगाम त्रासदी चौबीस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय में पहलगाम के बैसरन में पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन आरटीएफ द्वारा मासूम पर्यटकों की हत्या का उल्लेख किया गया है। यह घटना 2018 मुंबई हिंसा और 2019 की पुलवामा त्रासदी की...

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    अपूरणीय क्षति ‘द ट्रिब्यून’ के संपादक रहे और वरिष्ठ पत्रकार हरि जय सिंह का आकस्मिक निधन पत्रकारिता जगत की अपूरणीय क्षति है। वे न केवल एक अच्छे पत्रकार थे, बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। हर किसी की मदद करने...

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    दावों की सच्चाई पहलगाम के बैसरन में सैलानियों पर आतंकी हमला दिल दहलाने वाला है, जो केंद्र सरकार के शांति के दावों की सच्चाई उजागर करता है। हर हमले के बाद बयानबाज़ी होती है, पर हालात जस के तस रहते...

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    अधिकारियों की अहमियत तेईस अप्रैल के सम्पादकीय में गुरबचन जगत के लेख से प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली की अहमियत स्पष्ट हुई। अच्छे शासन हेतु ईमानदार अधिकारियों की आवश्यकता होती है। भारत के इतिहास में जहांगीर भाभा, डॉ. एमएस रंधावा, सैम...

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    गरीबों के लिए वरदान ‘बदलेगा मनरेगा’ संपादकीय ट्रिब्यून 21 अप्रैल ने मनरेगा की जो उपयोगिता बताई है वह सही है। मनरेगा ने ग्रामीण भारत को रोजगार देकर गरीबों के जीवन स्तर को सुधारने में अहम भूमिका निभाई है। कोरोना काल...

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    मर्यादा का टूटना दुर्भाग्यपूर्ण जहां चरित्र गढ़े जाते हैं, वहां मर्यादा टूटे तो पूरी व्यवस्था पर सवाल उठता है। जेएनयू में एक जापानी शोधार्थी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों ने सबको स्तब्ध किया। विदेशी छात्रा ने महीनों उत्पीड़न सहने के...

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    समान न्याय की अपेक्षा देश में न्यायपालिका का कार्य निष्पक्षता और सच्चाई के आधार पर न्याय देना है। एक न्यायाधीश से अपेक्षा होती है कि वह बिना किसी भेदभाव के पीड़ित को न्याय दिलाए। लेकिन जब किसी उच्च पद पर...

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    विपरीत आचरण सोलह अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘रुग्ण मानसिकता के खिलाफ विचार-यात्राएं जरूरी’ अस्पृश्यता के विरुद्ध एक गंभीर विचार है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश में दलितों के साथ हुए भेदभावपूर्ण व्यवहार हमारे समाज की बीमार...

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    बंगाल में बढ़ती हिंसा वक्फ संशोधन कानून को लेकर पश्चिम बंगाल में हो रहे उपद्रव बेहद चिंताजनक हैं। निजी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना अस्वीकार्य है। नेताओं की भड़काऊ बयानबाजी ने स्थिति को और भी तनावपूर्ण बना दिया है।...

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    कूटनीतिक जीत बारह अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘बड़ी कूटनीतिक जीत’ तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को लेकर अहम जानकारी उजागर करता है। पाकिस्तान ने उसे कनाडाई नागरिक बताने की कोशिश की, जबकि वह पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी नागरिक...

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    संस्कारों ने निखारा बारह अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में कृष्ण कुमार शर्मा का लेख ‘तरुण कुमार के दिए संस्कारों ने निखारा जया को’ पढ़ने को मिला। लेख में जया बच्चन को एक प्रतिभाशाली अदाकारा और सजग सांसद के रूप में...

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    भाषा का सम्मान दस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में विश्वनाथ सचदेव का लेख ‘राजनीतिक हित साधने का जरिया न बने भाषा’ में भाषा को राजनीति से दूर रखने का आग्रह है। हमें अपनी क्षेत्रीय भाषा पर गर्व होना चाहिए, लेकिन...

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    गैस कीमत में बढ़ोतरी केंद्र सरकार ने हाल ही में रसोई गैस की कीमत में 50 रुपये की बढ़ोतरी कर दी। गांवों में आज भी कुछ लोग चूल्हे में लकड़ी और गोबर के उपले जलाकर खाना बनाते हैं, जिससे स्वास्थ्य...

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    टैरिफ नीति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति के कारण ग्लोबल इकोनॉमी पर भारी दबाव बन रहा है। उनका रवैया वैश्विक व्यापार में गिरावट और मंदी का कारण बन रहा है। इससे अमेरिकी जनता पर भी बोझ बढ़ रहा है, जबकि...

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    स्वास्थ्य नीति जरूरी पांच अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में डॉ. ए.के. अरुण का लेख ‘अब भी संपूर्ण स्वास्थ्य की उम्मीद में दुनिया’ विश्व स्वास्थ्य दिवस पर मां और नवजात शिशु की सुरक्षा पर ध्यान आकर्षित करता है। उन्होंने अफसोस जताया...

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    नक्सलवाद से मुक्ति बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए अभियान ने राज्य के बड़े हिस्से को नक्सलवाद से मुक्त कर दिया है। वर्ष 1967 में शुरू हुआ नक्सलवाद अब केवल छह ज़िलों तक सीमित रह गया है। सरकार की...

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    प्लास्टिक का खतरा दैनिक ट्रिब्यून के 2 अप्रैल के सम्पादकीय में बताया गया कि प्लास्टिक मनुष्य जीवन के लिए खतरे की घंटी है। विकासशील देशों में सरकारें मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देती हैं, जिससे स्वास्थ्य मानक प्रभावित होते हैं। अध्ययन...

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