चंडीगढ़, 11 जनवरी (ट्रिन्यू)
इनेलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला ने विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता को अपना इस्तीफा भेज दिया है। ऐलनाबाद से विधायक अभय ने ईमेल के जरिये ‘पोस्ट डेटिड’ इस्तीफा भेजा है। उन्होंने स्पीकर को लिखे पत्र-कम-इस्तीफे में साफ कहा है कि अगर केंद्र सरकार 26 जनवरी तक तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती तो 27 जनवरी को उनके ऐलनाबाद हलके से विधायक के इस्तीफे को मंजूर समझा जाए।
पिछले सप्ताह ही अभय ने केंद्र सरकार को अल्टीमेटम देते हुए इस्तीफा देने का ऐलान किया था। सोमवार को ईमेल के जरिये भेजे इस्तीफे की कापी उन्होंने मीडिया में सार्वजनिक कर दी। अभय ने कहा, ‘चौ़ देवीलाल ने हमेशा किसानों के लिए संघर्ष किया। आज वहीं परिस्थितियां देश-प्रदेश में फिर से खड़ी हो गई हैं। किसानों पर आए इस संकट की घड़ी में उनका दायित्व बनता है कि वे हरसंभव कोशिश करें कि किसानों के भविष्य और अस्तित्व पर आए खतरे को टाला जा सके’।
इनेलो नेता ने इस्तीफे में लिखा, ‘केंद्र की सरकार ने असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक तरीके से तीन काले कृषि कानून किसानों पर थोंप दिए हैं। इनका विरोध देशभर में हो रहा है। इन कृषि कानूनों का विरोध और आंदोलन को अब तक 47 से अधिक दिन हो गए हैं और कड़ाके की ठंड में लाखों की संख्या में किसान दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर बैठे हैं। अब तक भीषण ठंड के कारण साठ से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही’। अभय चौटाला कहा, केंद्र की सरकार किसान संगठनों से आठ दौर की वार्ता कर चुके हैं, लेकिन अभी तक सरकार ने इन काले कानूनों को वापिस लेने बारे कोई सहमति नहीं दिखाई है। इनेलो नेता ने कहा, ‘सरकार ने जिस तरह की परिस्थितियां बनाई हैं, उन्हें देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि विधानसभा के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में मैं कोई ऐसी भूमिका निभा सकता हूं।
बिश्नोई का भी था यही पैटर्न
आदमपुर विधायक कुलदीप बिश्नोई भी इसी पैटर्न पर हिसार लोकसभा क्षेत्र से ‘पोस्ट डेटिड’ इस्तीफा दे चुके हैं। दरअसल, कांग्रेस ने 2005 में जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया तो भूतपूर्व सीएम स्व़ चौ़ भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने ‘बागी’ तेवर कर लिए। 2 दिसंबर, 2008 को भजनलाल ने रोहतक में रैली करके हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के गठन का ऐलान किया। उस समय कुलदीप हिसार से सांसद थे और उन्होंने अपना इस्तीफा लोकसभा अध्यक्ष को भेजा था लेकिन उसे मंजूर करने की डेट करीब छह महीने बाद तय की गई थी।