बहुचर्चित राफेल लड़ाकू जेट विमान की पहली खेप भारत पहुंचने वाली है। परमाणु बम गिराने की ताकत से लैस राफेल अनेक अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित है। भारतीय वायुसेना की जरूरतों के हिसाब से तैयार इस जेट विमान की खूबियों को अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, माली तथा इराक में युद्ध के दौरान परखा जा चुका है। इसके सौदे को लेकर भले ही राजनीतिक विवाद रहा हो, लेकिन खूबियों को हर किसी ने स्वीकारा। रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण अम्बाला एयरबेस पहुंच रहे राफेल जेट विमान के सफर पर नजर दौड़ा रहे हैं योगेश कुमार गोयल
लंबे इंतजार के बाद अब भारतीय वायुसेना के बेड़े में छह राफेल लड़ाकू जेट विमान शामिल हो रहे हैं। कुछ दिनों पहले तक भारत को चार राफेल मिलने ही तय हुए थे, लेकिन अब संख्या 6 हो गयी है। वैसे कुल 36 राफेल भारत को मिलने हैं। इन अत्याधुनिक लड़ाकू जेट विमानों के शामिल होने के बाद वायुसेना को अब नयी ऊर्जा और बेमिसाल ताकत मिलेगी। सौदे के मुताबिक 4 विमान करीब तीन माह पहले ही मिल जाने थे, किंतु कोरोना महामारी के कारण निर्धारित आपूर्ति में देरी हुई। वैसे फ्रांसीसी कंपनी पिछले साल वायुसेना दिवस के अवसर पर 8 अक्तूबर, 2019 को ही भारत को चार राफेल सौंप चुकी है, लेकिन चूंकि वहीं पर भारतीय पायलटों को इनका प्रशिक्षण दिया जा रहा था, इसलिए अभी तक ये भारत नहीं आ पाये थे। अब दो सीटों वाले प्रशिक्षण विमानों सहित आरबी सीरीज के पहले छह राफेल जेट विमान अम्बाला एयरबेस पर पहुंच जाएंगे। भारत आने से पहले राफेल जेट में फ्रांसीसी वायुसेना के टैंकर विमान से हवा में ही ईंधन भरा जाएगा और मिडल ईस्ट से आते समय भारत में उतरने से पहले विमान में भारतीय आईएल-78 टैंकर द्वारा पुनः हवा में ही ईंधन भरा जाएगा। पहले राफेल विमान को वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ‘17 गोल्डन एरोज’ के कमांडिंग ऑफिसर फ्रांस के पायलट के साथ उड़ाएंगे। कुल 36 राफेल विमानों की दो स्क्वाड्रनों में से पहली ‘17 गोल्डन एरोज’ की भारत-पाक सीमा से करीब 220 किलोमीटर दूर अम्बाला में तथा दूसरी पश्चिम बंगाल के हासीमारा केंद्र में तैनाती होगी। अम्बाला एयरबेस को रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
58 हजार करोड़ रुपये का सौदा
भारत ने सितंबर 2016 में 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ करीब 58 हजार करोड़ रुपये का सौदा किया था। सौदेे के मुताबिक सभी 36 विमान 66 माह के भीतर भारत आ जाने थे, जिनमें से चार विमान जुलाई माह में मिल जाने तय हुए थे। 36 राफेल विमानों में से 30 लड़ाकू विमान होंगे जबकि छह राफेल प्रशिक्षण के लिए उपयोग किए जाएंगे। प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले राफेल दो सीटों वाले होंगे, जिनमें युद्धक विमानों वाली तमाम विशेषताएं शामिल होंगी। अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषणा की गई थी कि भारत फ्रांसीसी कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदेगा। करीब डेढ़ वर्ष बाद सितंबर 2016 में भारत द्वारा 7.87 बिलियन यूरो (करीब 58 हजार करोड़ रुपये) का 36 राफेल विमान खरीदने का सौदा भारत सरकार द्वारा फ्रांस सरकार के साथ किया गया। हालांकि इस सौदे को लेकर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप भी लगे और मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक भी पहुंचा, लेकिन अंततः अदालत की ओर से क्लीन चिट मिलने के बाद इन बहुप्रतीक्षित विमानों के भारत पहुंचने का रास्ता साफ हो गया था। 14 दिसंबर 2018 को अंतिम फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा था कि उसे ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे साबित होता हो कि इस सौदे में किसी के व्यापारिक हित साधे गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्पष्ट कहा गया कि सौदे की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं रही, इसलिए केंद्र के 36 विमान खरीदने के फैसले पर सवाल उठाना सही नहीं है और विमान की क्षमता में भी कोई कमी नहीं है। कैग द्वारा कराई गई जांच में भी इस सौदे को लेकर केंद्र सरकार को क्लीन चिट दी गई थी।
क्या था विवाद?
भारत में राफेल जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की जरूरत पहली बार वर्ष 2000 में उस समय महसूस की गई थी, जब केंद्र में एनडीए की सरकार थी और भारतीय वायुसेना द्वारा सरकार को लड़ाकू विमानों की खरीद करने का प्रस्ताव दिया गया था। दरअसल उस समय वायुसेना के पास लड़ाकू स्क्वाड्रंस (विमानों के समूह) की क्षमता केवल 34 थी, जबकि वायुसेना को आवश्यकता 42 से अधिक स्क्वाड्रंस की है। 2004 में यूपीए की सरकार सत्तासीन हुई और उसके बाद अगस्त 2007 में वायुसेना की जरूरतों के मुताबिक उसने 126 मल्टीरोल लड़ाकू विमान खरीदने की प्रक्रिया शुरू की तथा वर्ष 2008 में इन विमानों की खरीद के लिए टेंडर जारी कर दिए गए। टेंडर प्रक्रिया में दुनियाभर से कुल 6 विमान निर्माता कंपनियां शामिल हुईं, जिनमें अमेरिका ने एफ-16 तथा एफए-18, फ्रांस ने राफेल, रूस ने मिग-35, स्वीडन ने ग्रिपिन तथा यूरोपीय समूह ने यूरोफाइटर टाइफून के लिए टेंडर दिए थे। चार साल तक चली इस प्रक्रिया में 27 अप्रैल 2011 को इनमें से केवल राफेल तथा यूरोफाइटर को ही भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल पाया गया।
अंततः 31 जनवरी, 2012 को फील्ड ट्रायल भारतीय परिस्थितियों तथा मानकों पर खरा उतरने और सबसे कम बोली लगाने के कारण ‘दसॉल्ट एविएशन’ को राफेल विमानों का टेंडर दे दिया गया। उस समय उस सौदे पर करीब 10.2 अरब डॉलर अर्थात 54 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था। दिसंबर 2012 में तय हुआ कि उक्त कंपनी 126 में से पहले 18 राफेल तैयार अवस्था में देगी जबकि शेष 108 विमान भारत में ही ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ के साथ मिलकर बनाए जाएंगे। बाद के वर्षों में कुछ शर्तों को लेकर ‘दसॉल्ट एविएशन’ के साथ सहमति नहीं बन सकी और अंततः सौदा रद्द कर दिया गया।
वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद अगले वर्ष इस सौदे की प्रक्रिया नये सिरे से शुरू की गई। नये सौदे को लेकर विवाद यह रहा कि जहां 2008 में यूपीए शासनकाल में हुए सौदे में एक विमान की कीमत 526 करोड़ रुपये थी, वहीं 2016 में हुए सौदे में इसकी कीमत 1570 करोड़ रुपये रही। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा इसे लेकर बार-बार स्पष्टीकरण दिया गया कि यूपीए के शासनकाल में किए गए सौदे के मुकाबले इस सौदे में राफेल विमानों में भारतीय जरूरतों के मुताबिक अनेक अत्याधुनिक तकनीकों और हथियारों का समावेश कराया गया, जिससे इन विमानों की कीमतें बढ़ी।
ये हैं इस लड़ाकू जेट विमान की खूबियां
फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी ‘दसॉल्ट एविएशन’ द्वारा निर्मित दो इंजन वाला अत्याधुनिक मध्यम मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) है राफेल, जो भारतीय वायुसेना की पहली पसंद माना जाता है। अभूतपूर्व क्षमताओं वाले इस बेहतरीन विमान में भारत की जरूरतों के आधार पर कई बड़े बदलाव किए गए हैं। इसकी टेक्नोलॉजी बेहतरीन है और इसमें कई ऐसी विशेषताएं हैं, जो इसे विश्व का बेहतरीन लड़ाकू विमान बनाने के लिए पर्याप्त हैं। यह हवाई हमला, वायु वर्चस्व, जमीनी समर्थन, भारी हमला, परमाणु प्रतिरोध इत्यादि कई प्रकार के कार्य बखूबी करने में सक्षम है। परमाणु बम गिराने की ताकत से लैस राफेल में इजरायल हेलमेट-माउंटेड डिसप्ले, रडार चेतावनी रिसीवर, लो बैंड जैमर, दस घंटे की उड़ान डाटा रिकॉर्डिंग, इन्फ्रारेड खोज और ट्रैकिंग प्रणाली शामिल हैं। कई शक्तिशाली हथियारों को ले जाने में सक्षम राफेल विमान उल्का बीवीआर एयर-टू-एयर मिसाइल (बीवीआरएएएम) की अगली पीढ़ी है, जिसे एयर-टू-एयर कॉम्बैट में क्रांति लाने के लिए डिजाइन किया गया है। राफेल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ऑक्सीजन जनरेशन सिस्टम लगा होने के कारण लिक्विड ऑक्सीजन भरने की जरूरत नहीं पड़ती। राफेल को हवा से हवा तथा हवा से जमीन पर मिसाइल हमलों के लिए बहुआयामी भूमिकाएं निभाने के लिए भारतीय वायुसेना की जरूरतों के हिसाब से परिष्कृत किया गया है। ये विमान अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया, माली तथा इराक में हुई जंग में अपनी ताकत का प्रदर्शन भी कर चुके हैं। वर्ष 1970 में फ्रांस में वहां की सेना द्वारा अपने पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमानों को बदलने की मांग सरकार से की गई थी, जिसके बाद फ्रांस ने चार यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान परियोजना पर काम शुरू किया। कुछ वर्षों बाद फ्रांस के साथ उन देशों के मतभेद हो गए और फ्रांस ने अपने ही बूते पर इस परियोजना पर काम शुरू कर दिया। फ्रांस द्वारा निर्मित राफेल-ए श्रेणी के पहले विमान ने 4 जुलाई 1986 को, जबकि राफेल-सी श्रेणी के विमान ने 19 मई 1991 को पहली उड़ान भरी थी। ‘दसॉल्ट एविएशन’ 1986 से लेकर 2018 के बीच कुल 165 राफेल विमान तैयार कर चुकी है। ये विमान ए, बी, सी तथा एम श्रेणियों में एक सीट, डबल सीट तथा डबल इंजन में उपलब्ध है। अत्यंत घातक हथियारों से लैस ये विमान यूरोपीय मिसाइल निर्माता ‘एमबीडीए’ द्वारा निर्मित दृश्य सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली मीटिअर मिसाइल के अलावा स्कैल्प क्रूज मिसाइल से भी लैस हैं। मीटिअर मिसाइल दृश्य सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली अगली पीढ़ी की ऐसी मिसाइल है, जिसे हवाई लड़ाइयों में अत्यधिक कारगर माना जाता है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक कोई लड़ाकू विमान कितना ताकतवर है, यह उसकी सेंसर क्षमता और हथियारों पर निर्भर करता है अर्थात कोई लड़ाकू विमान कितनी दूरी से स्पष्ट देख सकता है और कितनी दूरी तक मार कर सकता है और राफेल इस मामले में बिल्कुल अत्याधुनिक लड़ाकू विमान है। राफेल की विजिबिलिटी 360 डिग्री है, जिसके चलते यह ऊपर-नीचे, अगल-बगल अर्थात हर तरफ निगरानी रखने में सक्षम है। उन्नत तकनीक और परमाणु हमला करने में सक्षम राफेल का हर तरह के मिशन में उपयोग किया जा सकता है। यह हर तरह के मौसम में लंबी दूरी के खतरे को भी तुरंत भांप सकता है और नजदीकी लड़ाई के दौरान एक साथ कई टारगेट पर नजर रख सकता है। यह जमीनी सैन्य ठिकाने के अलावा विमानवाहक पोत से उड़ान भरने में भी सक्षम है और इसकी बड़ी खासियत यह है कि इलेक्ट्रॉनिक स्कैनिंग रडार से थ्रीडी मैपिंग कर यह रियल टाइम में दुश्मन की पोजीशन खोज लेता है। राफेल में बैठे पायलट द्वारा दुुश्मन की लोकेशन को देखकर बटन दबा देने के बाद बाकी काम इसमें लगे कम्प्यूटर करते हैं। कोई लड़ाकू विमान कितनी ऊंचाई तक जाता है, यह उसके इंजन की ताकत पर निर्भर करता है और केवल 1312 फुट के बेहद छोटे रनवे से उड़ान भरने में सक्षम राफेल 36 हजार फुट से लेकर 60 हजार फुट तक उड़ान भरने में सक्षम है, जो महज एक मिनट में ही 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है।
मल्टीमोड रडार से लैस राफेल जेट विमान हवाई टोही, ग्राउंड सपोर्ट, इन-डेप्थ स्ट्राइक, एंटी-शर्प स्ट्राइक और परमाणु अभियानों को अंजाम देने में निपुण है। ऑप्ट्रॉनिक सिक्योर फ्रंटल इंफ्रारेड सर्च और ट्रैक सिस्टम से लैस राफेल में एमबीडीए एमआइसीए, एमबीडीए मीटिअर, एमबीडीए अपाचे जैसी कई तरह की खतरनाक मिसाइलें और गन लगी हैं, जो पल भर में ही दुश्मन को नेस्तनाबूद कर सकती हैं। इसमें लगी मीटिअर मिसाइल सौ किलोमीटर दूर उड़ रहे दुश्मन के लड़ाकू विमान को भी पलभर में मार गिराने में सक्षम हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी मिसाइल चीन-पाकिस्तान सहित समस्त एशिया में किसी भी देश के पास नहीं हैं। 150 किमी की बियोंड विजुअल रेंज मिसाइल, 300 किलोमीटर रेंज वाली हवा से जमीन पर मार वाली स्कैल्प मिसाइल से लैस यह लड़ाकू विमान 4.5 जनरेशन के डबल इंजन से लैस है, जिसमें ईंधन क्षमता 17 हजार किलोग्राम है। इसमें लगी 1.30 एमएम की एक गन एक बार में 125 राउंड गोलियां चलाने में सक्षम है। केवल एक मिनट में ही विमान के दोनों तरफ से 30 एमएम की तोप से भी 2500 राउंड गोले दागे जा सकते हैं। यह ऊंचे इलाकों में लड़ने में भी माहिर है और इसमें एक या दो पायलट ही बैठ सकते हैं। एक बार में यह दो हजार समुद्री मील तक उड़ सकता है।
लंबाई : 15.30 मीटर
ऊंचाई : 5.30 मीटर
विंग्स : 10.90 मीटर
(अमेरिकी लड़ाकू विमान एफ-16 की तुलना में 0.79 फुट ज्यादा लंबा और 0.82 फुट ऊंचा)
हवा में मिसाइल दागने की क्षमता : 150 किमी
हवा से जमीन तक : 300 किलोमीटर
(रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार इसकी क्षमता पाकिस्तान के पास मौजूद एफ-16 से ज्यादा है)
रफ्तार : 2200 से 2500 किमी प्रति घंटा क्षमता : 24500 किलोग्राम तक ले जाने की