श्रीगोपाल नारसन
देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से होली मनाई जाती है। मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवे दिन रंगपंचमी मनाई जाती है। यह मुख्य होली से भी अधिक जोर-शोर से मनाई जाती है। ब्रज की होली पूरे भारत में मशहूर है। बरसाना की लट्ठमार होली देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। हरियाणा में भी खूब मस्ती होती है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से होली खेलने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ समेत देश के अनेक हिस्सों में होली पर लोक-गीतों को गाये जाने का प्रचलन है।
धार्मिक पुस्तकों व शास्त्रों में होली को लेकर विभिन्न दन्त कथायें प्रचलित हैं। उन्हीं के अनुसार होली के गीत भी बने हैं। होली पर्व पर गाये जाने वाले होली से जुडे लोकगीतो की अनूठी परंपरा है। देखिए बानगी- ‘मैं कैसे खेलूं होली सांवरियां के संग… कोरे-कोरे कलस भराये उनमें घोला रंग।’ ‘ब्रज में हरि होरी मचाईए। इतते निकली सुघड़ राधिका, उतते कुंवर कन्हाई। खेलत फाग परस्पर हिलमिल, शोभा वरनी न जाई।’
शहर या गांव, हर गली मोहल्ले में पुरातन परंपरा से जुड़ी महिलायें पूर्णिमा की चांदनी में एकत्र होकर होली के गीत गाती हैं और होली नृत्य करती हैं। इन होली लोक गीतों के बोल देखिए- होली खेलो जी राधे सम्भाल के। जमना तट श्याम खेले होरी जमना तट…। होरी खेलन आयो श्याम आज याको रंग में बोरो सखी वृन्दावन के बीच आज ढफ बाजे है…। फागुन आयों रे ऐ ली फागण आयो रे, मेरी भीजे रेशम चुनरी रे, मै कैसे खेलूं होरी रे…। होरी खेल रहे नन्द लाल मथुरा की कुंज गलिन में…। आज बिरज में होरी रे रसिया होरी तो होरी बरजोरी रे रसिया…।
स्वांग निराले
होली के रूप भी अनेक हैं। स्वांग रचे जाते हैं। राजस्थान के बाडमेर में तो होली की मस्ती के लिए जीवित व्यक्तियों की शवयात्रा बैंडबाजे के साथ निकालने की परम्परा है। वही राजस्थान के जालोर क्षेत्र में होली पर लूर नृत्य किया जाता है तो झालावाड़ क्षेत्र में गधे पर बैठकर होली की मस्ती में झूमने की परम्परा है। बीहड़ क्षेत्र में तो पुरुष घाघरा चोली पहन कर ढोल नगाड़े बजाते हुए होली का नृत्य करते हैं। मथुरा की लट्ठमार होली, बीकानेर की डोलचीमार होली की कहानी भी गजब है। बेशक होली लट्ठमार है, लेकिन किसी के भी मन में होली खेलते समय कोई बैर भाव नही होता।