मोनिका शर्मा
त्योहारों का मौसम मन में ख़ुशी के अहसास जगाता है। बीते दो बरस के ठहराव के बाद सामान्य हो रही स्थितियों में अब त्योहारी सीजन ने दस्तक दे दी है। हर उम्र के लोगों का मन उमंग और उत्साह ने लबरेज है। लाजिमी भी है क्योंकि हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक जीवनशैली ही नहीं साइंस भी कहती है कि त्योहार मन को उत्साह देते हैं। हां,जरूरी है कि कोरोना संकट से बाहर आने के इस दौर में थोड़ी सजगता के साथ इन उमंगों को जीयें। सभी को त्योहारों का इन्तजार रहता है| फेस्टिवल सीजन मन-जीवन से जुड़े कई तरह के बदलाव साथ लाता है। दिनचर्या से लेकर दिली जुड़ाव तक, सभी बदलाव मन को ख़ुशी देने वाले होते हैं। ब्रेन रिसर्चर मानफ्रेड श्पित्सर का कहना है कि ‘कई चीजें ऐसी होती हैं जो हमारे दिमाग को किसी खास दिन के इंतजार के लिए तैयार करती हैं। जैसे गाना गाना, खास पकवानों का बनना, उपहार मिलना और अपनों के साथ मेलजोल के बारे में सोचना। गौर करने वाले बात है कि हमारे त्योहार इन सभी चीज़ों की प्रतीक्षा पूरी करते हैं। मेल-मिलाप, मौज-मस्ती और अपनों की मान-मनुहार का सुंदर अवसर साथ लाते हैं। रोजमर्रा की भागदौड़ के बाद जब यह इंतजार पूरा होता है तो सभी को दिली ख़ुशी मिलती है| महामारी के चलते आई दूरियों को जीने वाले इस संकटकाल में लम्बे इंतजार के बाद की ख़ुशी और ज्यादा है।
दिमाग और ख़ुशी
आमतौर पर ख़ुशी को मन का इमोशन मन जाता है। लगता है जैसे दिल के खुश होने का दिमाग से कोई लेना-देना नहीं है पर सच तो यह है कि दिमाग ही शरीर के सभी हिस्सों से जुड़ा रहता है। दर्द हो या हर्ष, मस्तिष्क न केवल महसूस करता है बल्कि ऐसे संदेशों को शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंचाता भी है। त्योहारों पर अचानक उपहार मिलना, किसी अपने के आने पर सरप्राइज होना, गीत-संगीत की रौनक या घर की सजावट से मन-मस्तिष्क में सुखद भावों का आना| दिलो-दिमाग की ऐसी प्रक्रिया से ख़ुशी देने वाले कई हार्मोन भी जुड़े होते हैं| ऐसे में दिमाग में डर और चिंता के रिसेप्टर निष्क्रिय और आनंद से जुड़े न्यूरोट्रांसमिटर सक्रिय हो जाते हैं। यानी परम्परागत रूप से पर्व-त्योहारों से जुड़ी ख़ुशी और खुशहाली की बातों का पुख्ता वैज्ञानिक आधार भी है|
जुड़ाव और ख़ुशी
इन्सान का मन आनंद, उत्सव और आपसी जुड़ाव को जीने का गहरा भाव लिए होता है| त्योहारों के अवसर पर पूरा परिवेश ही बदल जाता है। उम्र, तबके या जिन्दगी की उलझनों से परे हर कोई मुस्कुराहटों से रिश्ता जोड़ लेता है| आस-पास खुश और मुस्कुराते हुए चेहरों को देखना हमारे मन का मौसम भी बदलता है। परिवार हो या समाज फेस्टिवल्स जुड़ाव का सबसे सुंदर मौका होते हैं। आज भी कुछ ख़ास पर्वों पर लोग अपने गांव-कस्बों में त्योहार मनाने जाते हैं। महानगरों की आपाधापी को जीने वाले अपनों के लिए समय निकालते हैं। अपनों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और साथ निभाने के भाव हर ओर दिख जाते हैं। यह जुड़ाव शारीरिक-मानसिक वेल बीइंग के लिए भी जरूरी है। लेखक और सामाजिक मनोवैज्ञानिक फ्रेड ब्रायंट के मुताबिक़ परिवार के साथ छुट्टियां और उत्सव मानने जैसी छोटी चीज़ों को मन से जीना, रिश्तों को मजबूत और मानसिक सेहत को बेहतर बनाता है। टेक्नोलॉजी और मेडिसिन पब्लिशर, (पलोस) पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस में सोशल मीडिया पर यूज किए गए वर्ड्स के विश्लेषण को लेकर छपे रिसर्च के मुताबिक जो लोग वीकेंड, कॉफी, हॉलीडे, और स्वादिष्ट जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें सकारात्मक इमोशंस ज्यादा होते हैं। हमारे पर्व भी तो ऐसे ही पॉजिटिव इमोशंस से जुडी एक्टिविटीज साथ लाते हैं| तभी तो त्योहारी सीजन की रौनक रीत-रिवाज और परम्परा के रंग ही नहीं खुद हमारे जीवन को भी सहेजती है।
हालात चाहे जैसे हों खुशियों के पावन रंग हर ओर बिखर ही जाते हैं। मन के परेशान कोनों में भी आस्था के भावों का प्रकाश पहुंच ही जाता है।