भाजपा के प्रवक्ताओं की बेलगाम बयानबाजी के चलते इस्लामिक देशों से जो तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई है वह स्वाभाविक है। निश्चय ही यह देश की प्रतिष्ठा को आंच आने वाली स्थिति है जो भारतीय लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल भी खड़ा करती है। निश्चित रूप से जिस उग्र दक्षिणपंथी राजनीति का सुख अब तक भाजपा ले रही थी, अब उसकी कीमत चुकाने का वक्त आया है। ऐसा नहीं है कि भाजपा प्रवक्ता द्वारा अल्पसंख्यकों के अाराध्य को लेकर की गई कथित अमर्यादित टिप्पणी अकेला मामला हो। तमाम दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा सांप्रदायिक रुझान की टिप्पणियां गाहे-बगाहे सामने आती रही हैं। दूसरे हालिया बयानबाजी के बाद डैमेज कंट्रोल की कवायद भाजपा की तरफ से देर से की गई, जिसकी कीमत देश की प्रतिष्ठा पर आई आंच के रूप में चुकानी पड़ रही है। अरब देशों समेत पाक-ईरान आदि देशों की तल्ख प्रतिक्रिया को इस रूप में देखा जा सकता है। भाजपा ने आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई तब की जब भारत से कारोबारी रिश्ते रखने वाले अरब राष्ट्रों ने तल्ख रवैया दिखाया। जाहिरा तौर पर दुनिया में यह संकेत गया कि देश के राजनीतिक विमर्श में बड़ी गिरावट उत्पन्न हुई है। कई देशों का राजनयिक विरोध इसकी बानगी भर है। कई खाड़ी देशों में भारतीय सामान के बहिष्कार की चेतावनी के अलावा उन भारतीयों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, जो वहां काम करते हैं। हाल के दिनों में टीवी पर होने वाली सांप्रदायिक बहसों को प्राइम टाइम कार्यक्रमों की सफलता का जरिया बना लिया गया। गैर जिम्मेदार एंकर इसमें उकसाने का कार्य करते हैं। हालांकि, विवादित बयान आम भारतीय की राय नहीं है और न ही वे सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन वे सतारूढ़ पार्टी के पदों पर तो रहे हैं। भाजपा को अब सोचना होगा कि विकास के मुद्दों से इतर विभाजनकारी राजनीति उसके व देश के लिये घातक हो सकती है। जिसके लिये उसे अपने दल व दक्षिणपंथी रुझान वाले उन संगठनों की बेलगाम बयानबाजी पर अंकुश लगाना होगा जो समाज में कटुता पैदा करते हैं।
विडंबना यह है कि हाल के दिनों में सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े विभाग भी अपने विवेक व धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप व्यवहार करते नजर नहीं आते। उनसे स्वतंत्र रूप से जिस विवेकशील व निष्पक्ष व्यवहार की उम्मीद की जाती है, वह उनकी कार्यशैली में नजर नहीं आता। निस्संदेह, दुनिया का इतिहास गवाह है कि बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक समाज की कट्टरता अंतत: धर्मनिरपेक्षता की जड़ों पर प्रहार करती है। जो कालांतर किसी भी समाज में अशांति का वाहक बनती है। भाजपा को पार्टी कार्यकर्ताओं और आनुषंगिक संगठनों की आक्रामकता पर अंकुश लगाने का प्रयास करना होगा, अन्यथा देश की प्रतिष्ठा पर उसकी आंच आएगी। शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से संयमित व्यवहार कार्यकर्ताओं को भी ऐसा करने को प्रेरित करेगा। किसी भी चुनाव के दौरान जिस तरह संकीर्णता के मुद्दों पर आक्रामक बयानबाजी होती है और जिस तरह का राजनीतिक कोलाहल होता है, वह हर शांति पसंद व्यक्ति को विचलित ही करता है। सवाल हालिया विवादित बयान का ही नहीं है पिछले कुछ वर्षों से खानपान, पहनावे तथा धार्मिक आस्था को लेकर जैसे विवाद खड़े किये जाते रहे हैं कालांतर वे ही ऐसी बेलगाम बयानबाजी के रूप में सामने आते हैं। राजनेताओं को नहीं भूलना चाहिए कि भारत हमेशा से उदारवादी दृष्टिकोण के साथ सभी आस्थाओं का सम्मान करता रहा है। निस्संदेह, तल्खी का वातावरण तल्खी को ही जन्म देता है। जो कालांतर हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता का ही ह्रास करता है। यदि सत्तारूढ़ दल आरोपियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करता है तो इससे जहां भारत की प्रतिष्ठा बरकरार रहेगी, वहीं अन्य कार्यकर्ताओं में संदेश जायेगा कि जो मुंह में आये उसे नहीं कहा जा सकता। पार्टी को अपने राजनीतिक एजेंडे में बड़े बदलाव की जरूरत मौजूदा घटनाक्रम बताता है। पार्टी को जनकल्याणकारी विकास के मुद्दों को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा जो किसी भी भेदभाव से मुक्त हों।