निश्चित रूप से भारतीय चुनाव आयोग ने पहले चुनाव से लेकर 18वीं लोकसभा के चुनाव संपन्न कराने में एक लंबा सफर तय किया है। लेकिन स्थितियां बहुत तेजी से बदली हैं। पहले चुनाव में महज 17 करोड़ मतदाता थे। अब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मौजूदा आम चुनाव में 97 करोड़ मतदाता हैं। इस दौरान पार्टियों की संख्या बढ़ी है, वोटर बढ़े हैं, पोलिंग बूथ बढ़े हैं, पार्टियों के बीच लड़ाइयां तल्ख हुई हैं और चुनाव आयोग के खिलाफ शिकायतें भी तेज हुई हैं। पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन से लेकर टीएन शेषन जैसे सख्त चुनाव आयुक्तों तक ने आयोग को नई प्रतिष्ठा दी है। लेकिन इस बार 543 संसदीय सीटों के लिये सात चरणों में हो रहे मतदान में कई प्रसंग ऐसे घटे कि लोगों ने चुनाव आयोग की साख पर उंगली उठाई। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जिसमें चुनाव आयोग पर मतदान संबंधी अंतिम आंकड़े देर से जारी करने तथा प्रतिशत वृद्धि का मामला उठाया गया। एडीआर व कॉमन कॉज की ओर से दायर याचिका में बूथों पर मतों की संख्या संबंधी फॉर्म 17-सी की स्कैन कापी आयोग की वेबसाइट पर डालने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में आयोग ने इस मांग को अव्यावहारिक बताया है। साथ ही कहा कि चुनाव की तैयारी एक लंबी प्रक्रिया के बाद पूरी होती है, ऐसा करने से व्यवधान उत्पन्न होगा। इससे पहले विपक्ष सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप भी लगाता रहा है। जबकि आयोग की दलील रही है कि इन्फोर्समेंट एजेंसी उसके अधीन नहीं होती। विपक्ष आयोग को तटस्थ भाव से कार्रवाई करने को कहता रहा है। विपक्ष ने प्रधानमंत्री द्वारा बांसवाड़ा में दिए गए भाषण में इस्तेमाल जुमलों को संप्रदाय विशेष के विरुद्ध टिप्पणी बताया और आयोग से शिकायत की। आरोप है कि आयोग ने सत्तारूढ़ दल के खिलाफ उदार रवैया दिखाया। प्रधानमंत्री को नोटिस दिए जाने के बजाय भाजपा अध्यक्ष को नोटिस जारी किया। ऐसे ही संविधान पर दिए गए राहुल गांधी के बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष को नसीहत दी गई।
दरअसल, विपक्ष मांग करता रहा है कि मतदान के बाद वोटों का प्रतिशत जारी करने के बजाय डाले गए वोटों की संख्या जारी की जानी चाहिए। दरअसल, विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि आयोग सत्तारूढ़ दल के प्रति उदार रवैया अपनाता रहा है। जिसके चलते विपक्ष ने आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का प्रयास किया। उनका कहना है कि चुनाव आयोग को निष्पक्ष अंपायर की भूमिका में नजर आना चाहिए। विपक्ष बांसवाड़ा रैली में प्रधानमंत्री के भाषण पर सख्त कार्रवाई की मांग करता रहा है। इसी तरह आरक्षण, संपत्ति जब्त करने आदि कई विवादित बयान सामने आए। तल्ख टिप्पणियां कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर भी की गई थी। विपक्ष कहता है कि इन टिप्पणियों पर आयोग को कार्रवाई करनी चाहिए। हालांकि, कई पूर्व चुनाव आयुक्त मानते हैं कि यह पहला मौका नहीं जब विपक्ष आयोग पर सवाल उठा रहा है। जैसे-जैसे राजनीतिक दलों में तल्खी बढ़ती है, बीच में आयोग को शामिल कर लिया जाता है। वहीं कुछ गैर सरकारी संगठनों ने मुहिम चलायी कि ‘चुनाव आयुक्त दृढ़ता दिखाएं या इस्तीफा दें।’ उनका मानना रहा है कि आचार संहिता के उल्लंघन के दौरान आयोग सक्रिय नहीं हुआ। कुछ पूर्व चुनाव आयुक्त कहते हैं कि मतदान के बाद दूर-दराज के इलाके से मतदान के अंतिम आंकड़े आने में वक्त लगता है। इसलिए अंतिम आंकड़े अगले दिन जारी किये जाते हैं। वहीं चुनाव आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष के एक सवाल के जवाब में कहा कि इस बाबत समस्त सूचना वोटर टर्नआउट ऐप पर मौजूद है। आयोग का तर्क है कि वोटर टर्न आउट हर केंद्र पर वैधानिक फॉर्म 17-सी पर पीठासीन अधिकारी तैयार करते हैं व उम्मीदवार के मतदान एजेंट उस पर हस्ताक्षर करते हैं। बहरहाल, इसके बावजूद चुनाव आयोग को ध्यान देना चाहिए कि क्यों सार्वजनिक विमर्श में उसकी छवि को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। आयोग को इसका समाधान भी निकालना चाहिए। वहीं विशेषज्ञ मांग कर रहे हैं कि आयोग को अधिकार मिलना चाहिए कि वह आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले उम्मीदवार को दंडित कर सके।