यह बेहद कष्टदायी है कि नये वर्ष की शुरुआत ऐसे हादसों से हुई जिन्हें टाला जा सकता था। हमारा तंत्र उन आशंकाओं से बेखबर रहता है जो कभी भी हकीकत में त्रासदी का सबब बन सकती हैं। अब चाहे यह वैष्णो देवी में भगदड़ में बारह लोगों की जान जाने का मामला हो या भिवानी में डाडम खनन क्षेत्र में पहाड़ी के टूटने से चार लोगों की मौत हो। गाहे-बगाहे हम ऐसी खबरें सालों से सुन रहे हैं कि धार्मिक स्थलों में भगदड़ से लोगों की मौत हो गई। कुंभ से लेकर छोटे मेलों तक मरने वालों की गिनती होती रहती है। विडंबना है कि हम ऐसा तंत्र विकसित नहीं कर पाये कि एक सीमित व संवेदनशील भू-भाग पर स्थित धार्मिक स्थलों पर भीड़ अचानक बढ़ जाने पर अनुशासित व्यवस्था कर सकें। सवाल कोरोना संकट में तीर्थ पर बड़ी भीड़ को जुटने की अनुमति देने का भी है। नागरिक के रूप में भी हम सिर्फ शासन-प्रशासन पर जिम्मेदारी डालकर दायित्व-मुक्त नहीं हो सकते। जैसा कि बताया जा रहा है कि हादसे से पहले कोई विवाद हुआ, जिसने कालांतर भगदड़ का रूप ले लिया। विडंबना है कि हम आस्था के केंद्रों में भी शालीनता, संयम व सहनशीलता का व्यवहार नहीं करते -यह जानते हुए भी कि पहाड़ी इलाके में स्थित तीर्थ स्थल में हम सामान्य ढंग से आवागमन नहीं कर सकते। इस हादसे से सबक लेकर वैष्णो देवी मंदिर प्रबंधन को भविष्य में ऐसे हादसे टालने को गंभीर कदम उठाने होंगे।
वहीं भिवानी में पहाड़ी टूटने से चार लोगों की दबकर मौत होने की घटना विचलित करने वाली है जो प्रकृति के साथ मानवीय निर्ममता से उपजा संकट है। अक्सर खनन का ठेका लेने वाले लोग नियम-कानूनों को ताक पर रखकर खनन को अंजाम देते हैं। पहाड़ों के साथ होने वाले निर्मम व्यवहार का प्रतिफल मनुष्य को ही भुगतना पड़ता है। दु:ख है तो इस बात का कि इन हादसों का शिकार ऐसे लोग होते हैं, जिनका इसमें दोष नहीं होता है। दोष होता है तो गरीबी का कि वे अपनी जान जोखिम में डालकर खनन कार्य से परिवार का भरण-पोषण करते हैं। निस्संदेह अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ी की खुदाई करने से वह दरकी है। उसके आधार में छेड़छाड़ का ही नतीजा रहा होगा कि वह पहाड़ी की ऊपरी सतह का बोझ न सह पाया और आधार कमजोर होने से बड़ा हिस्सा भरभरा कर गिरा। सवाल यह भी है कि जब एनजीटी ने खनन पर लंबे समय तक रोक लगाई थी, उस रोक को हटाने की अनुमति देते समय इस संकट का आकलन क्यों नहीं किया गया? अक्सर खनन के दबंग ठेकेदार निर्धारित सीमा से आगे जाकर अनाप-शनाप खनन करते हैं, जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन गड़बड़ा जाता है जो कालांतर हादसे का सबब बनता है। जिम्मेदार अधिकारियों का फर्ज बनता है कि वे जांच करें कि खनन नियम-कानून के अनुरूप हो रहा है कि नहीं, मगर प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट में अधिकारी से लेकर राजनीतिक लोगों की भागीदारी हादसों की जमीन तैयार कर देती है।