आसमान से बरसती आग के बीच शनिवार को हुए दो अग्निकांडों में मासूमों व बच्चों की मौत ने हर संवेदनशील व्यक्ति को झकझोरा है। तंत्र की काहिली और आपराधिक लापरवाही के चलते राजकोट के गेमजोन में हुए अग्निकांड में बच्चों समेत 27 लोगों की मौत हो गई। वहीं दूसरी ओर जिंदगी की उम्मीद को लेकर बेबी केयर होम में रखे सात बच्चे असमय काल-कवलित हो गए। हरियाणा के बहुचर्चित डबवाली अग्निकांड में भी आपराधिक लापरवाही से सौ से अधिक बच्चों के मरने का जो सिलसिला देखा गया था, वह अब भी खत्म नहीं हुआ है। विडंबना देखिए कि गुजरात के राजकोट स्थित जिस गेम जोन को चार साल से चलाया जा रहा था, उसके पास फायर विभाग की अनुमति नहीं थी। लापरवाही की इंतहा देखिये कि गर्मी के मौसम में तेज हवा के दौरान वहां बच्चों व अभिभावकों की उपस्थिति के बीच वेल्डिंग का काम किया जा रहा था। जिसे आग लगने की वजह बताया जा रहा है। परिस्थितियां इतनी भयावह थी कि मृतकों के शव पहचानने मुश्किल हो रहे हैं और शवों के डीएनए नमूने लेकर उनकी पहचान की कोशिश की जा रही है। भयावह हादसे के बाद सख्त कार्रवाई, जांच, दंड, संवेदना और मुआवजे की घोषणा की औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। लेकिन यह कभी नहीं कहा जाता कि जिन अधिकारियों व विभागों की जिम्मेदारी इन लापरवाहियों पर नजर रखने की थी, उनके खिलाफ कौन सा सख्त कदम उठाया जा रहा है।
बहरहाल, राजकोट में गेम जोन में हुए हादसे के बाद एक मैनेजर व अन्य व्यक्ति समेत दो लोगों की गिरफ्तारी हुई है। हर बार की तरह एसआईटी का गठन हुआ है। कोई आयोग भी बैठ सकता है। लेकिन सवाल वही है कि समय रहते फायर एनओसी क्यों नहीं लिया गया? प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार फायर ब्रिगेड की गाड़ियां भी देर से पहुंची। राजकोट के सिविल अस्पताल के बाहर अपनों के शवों की तलाश में खड़े लोगों की आंखों के आंसू व आक्रोश व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहे हैं। बताते हैं कि गेम जोन से बाहर निकलने का रास्ता नहीं था। बता दें कि मोरबी सस्पेंशन ब्रिज त्रासदी में मरने वालों में एक तिहाई बच्चे थे। सूरत में तक्षशिला कांप्लेक्स आग त्रासदी में 22 छात्रों की मौत हुई थी। लेकिन इन घटनाओं से भी कोई सबक प्रशासन ने नहीं सीखा। लगता है मासूमों व निर्दोष लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ की अनदेखी करना सिस्टम की आदत बन गई है। वडोदरा की हरणी झील में भी जीवन रक्षक जैकेट के बिना नाव में सवार 12 बच्चों व दो शिक्षकों की मौत इस साल जनवरी में हुई थी। वहीं दिल्ली स्थिति विवेक विहार के बेबी केयर सेंटर में सात नवजातों की मौत ने हर किसी को रुलाया। मां-बापों को अपने जिगर के टुकड़े खोने का समाचार सुबह टीवी व अखबारों से पता चला। एक बच्चे की देखभाल का प्रतिदिन पंद्रह हजार वसूलने वाले प्रबंधकों ने ही नवजातों को मौत की नींद सुला दिया। जिंदगियां छीनने वाले लोगों को शीघ्र सख्त सजा मिलनी चाहिए।