युक्त अरब अमीरात और खाड़ी के कुछ अन्य देशों में अचानक आई भारी व असामान्य बारिश ने इंसान को तमाम सबक दिए हैं। जिन देशों को अपनी समृद्धि व संपन्नता का दंभ था, वहां आई मूसलाधार बारिश ने सारी आधुनिक व्यवस्थाएं ध्वस्त कर दी। दुनिया का सबसे ज्यादा आधुनिक व चहल-पहल वाला दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट अराजकता का शिकार हो गया। सैकड़ों उड़ाने रद्द हो गईं। दुनिया के चोटी के हवाई अड्डों में शामिल जिस दुबई एयरपोर्ट में पिछले साल आठ करोड़ यात्रियों की आमद थी, एक मूसलाधार बारिश से उसकी सारी व्यवस्थाएं चौपट हो चुकी थीं। इस दौरान ओमान में 19 लोगों की मौत के अलावा अन्य देशों में भी लोगों के हताहत होने की आशंका है। बताते हैं कि अभी भी कई निचले इलाकों में बारिश का पानी भरा हुआ है। संयुक्त अरब अमीरात में पिछले 75 साल बाद रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई है। बाढ़ग्रस्त इलाकों में डूबे वाहन और बारह लेन वाले हाईवे पर लगा जाम बता रहा है कि कुदरत की माया के आगे मानव का विकास अभी भी बौना ही है। फिर मध्यपूर्व के रेगिस्तानी इलाकों में मूसलाधार बारिश का होना निश्चित ही अचरज की बात है। अचानक आई इस बारिश और बाढ़ को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव कहा जा रहा है। लेकिन वहीं लोग आरोप लगा रहे हैं कि यह घटना विशुद्ध रूप से प्रकृति से मानवीय छेड़छाड़ का नतीजा है। आलोचक इस असामान्य बारिश को क्लाउड सीडिंग का नतीजा बता रहे हैं। दरअसल, कृत्रिम तरीके से बारिश कराने की कोशिश को ही क्लाउड सीडिंग कहा जाता है, जिसमें बादल में बारिश के बीज बोने के लिये कृत्रिम तरीके से प्रयास किये जाते हैं। ऐसे कुछ प्रयास यूएई में किये जा रहे थे। एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में बताया गया है कि रविवार व सोमवार को यूएई में क्लाउड सीडिंग की योजना बनायी गई थी और मंगलवार को भयावह बाढ़ के हालात पैदा हुए हैं। आशंका जतायी जा रही है कि क्या कृत्रिम बारिश के प्रयासों के चलते यह स्थिति पैदा हुई है?
बहरहाल, आने वाले वक्त के अध्ययन हमें बताएंगे कि इस आपदा के आने में क्लाउड सीडिंग की कितनी भूमिका थी। वैसे दुनिया के तमाम देशों में संकट के समय क्लाउड सीडिंग कराने के मामले सामने आते रहते हैं। किन्हीं देशों में सामरिक तो कहीं कृषि उद्देश्यों के लिये कृत्रिम बारिश का सहारा लिया जाता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते बदले हालात में यह संकट गहरा हो जाता है। उल्लेखनीय है कि कृत्रिम बारिश का सहारा तब लिया जाता है, जब हवा की नमी की कमी के चलते बारिश नहीं हो पाती। भारत में साठ के दशक में कृत्रिम बारिश का प्रयोग किया गया था। दरअसल, बारिश के बीजों के रूप में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम क्लोराइड व सोडियम क्लोराइड जैसे पदार्थों का उपयोग किया जाता है, जिनका हवाई जहाज की मदद से बादलों में छिड़काव किया जाता है। इससे बर्फ के कण बादलों की नमी के साथ मिलकर बारिश होने की प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। दरअसल, आधुनिक विकास के मोह में संयुक्त राज्य अमीरात अपने व्यापारिक उद्देश्यों व नागरिकों के लिये पानी की कमी को पूरा करने के लिये इस तकनीक का उपयोग करता रहा है। ऐसे ही भारत में नब्बे के दशक में तमिलनाडु में भयंकर सूखे से निपटने के लिये क्लाउड सीडिंग तकनीक का उपयोग कई बार किया गया था। वहीं चीन ने भी बीजिंग में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों के दौरान पर्यावरण प्रदूषण दूर करने के लिये क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया था। बहरहाल, यूएई, ओमान व सऊदी अरब जैसे इलाकों में ऐसी भारी बारिश हमारे नीति-नियंताओं को विकास योजनाओं को लेकर नये सिरे से विचार करने को मजबूर कर रही है। इन देशों को अपनी सड़कों व अन्य विकास कार्यों को अब बारिश के ऐसे संकट को नजर में रखकर तैयार करना होगा। साथ ही मनुष्य को इस तथ्य को गंभीरता से स्वीकारना होगा कि प्रकृति के साथ अन्याय करने पर हमें उसका प्रतिकार सहने के लिये तैयार रहना होगा।