इसमें दो राय नहीं कि केंद्रीय बैंक व सरकार के प्रयासों के बावजूद खुदरा महंगाई पर नियंत्रण के लक्ष्य हासिल नहीं हो सके हैं। बीते माह इसके 4.9 फीसदी रहने से आस जगी थी कि आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य को हासिल करना आसान हो सकेगा। लेकिन साथ ही केंद्रीय बैंक ने चेताया भी है कि दुनिया में कई मोर्चों पर जारी युद्ध और समुद्री जहाजों को निशाना बनाने से आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है। जिससे महंगाई को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा मिल सकता है। दरअसल, भारत जैसे देश जहां कच्चे तेल का अस्सी फीसदी हिस्सा आयात होता है, वहां इसके दामों में उछाल का असर भारत में महंगाई बढ़ाने के रूप में होगा। दरअसल, मालभाड़े में वृद्धि से भी महंगाई बढ़ती है। आरबीआई ने हाल के दिनों में मौसम की तल्खी को भी महंगाई बढ़ने का कारक बताया है। अब रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने चिंता जतायी है कि महंगाई के एक प्रमुख घटक सब्जियों की बढ़ी कीमतों से आने वाले कुछ समय में राहत नहीं मिलने वाली। देश की आम और शाकाहारी आबादी पूरी तरह से सब्जियों पर निर्भर है। खासकर सब्जियों में एक तिहाई की भूमिका निभाने वाले आलू, प्याज और टमाटर का इसमें बड़ा रोल होता है। एक के भी दाम बढ़ने पर आम आदमी की थाली का संतुलन बिगड़ जाता है। पिछले कई सालों में महंगाई का ग्राफ देखें तो आलू, प्याज और टमाटर के दामों में आए अप्रत्याशित उछाल लोगों के आक्रोश की वजह बने हैं। जिसका खमियाजा सरकारों को गाहे-बगाहे उठाना पड़ा है। दरअसल, हाल के दिनों में ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के व्यवहार में अप्रत्याशित बदलाव आए हैं। जिसके चलते कम समय में तेज व ज्यादा बारिश होने से सब्जियों की फसलों को भारी नुकसान होता है। खासकर प्याज के सबसे उत्पादक राज्य महाराष्ट्र आदि या टमाटर उत्पादक राज्यों में मौसमी हालात बिगड़ने से पूरे देश में सब्जियों की कीमतों को लेकर हो-हल्ला मचने लगता है।
हालांकि, मौसम विभाग ने इस बार मानसून के सामान्य रहने की बात कही है, लेकिन कई राज्यों में इसका व्यवहार अलग-अलग होता है। बीते वित्त वर्ष में भी दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य कहे जाने के बावजूद सामान्य नहीं था। कहीं ज्यादा बारिश हुई तो कहीं कम। इसलिये अतिवृष्टि, अनावृष्टि व बाढ़ का सीधा असर सब्जियों के दामों पर पड़ता है। आज सब्जी हर आम आदमी के खाने का अनिवार्य हिस्सा है इसलिये इनके दाम-बढ़ने पर जन-आक्रोश बढ़ना स्वाभाविक है। फिर मीडिया भी इन खबरों को चटखारे लेकर प्रकाशित-प्रसारित करता है, जो कालांतर महंगाई बढ़ाने का कारण भी बनता है। कुछ जगह तो खबरों की देखा-देखी ही सब्जियों के दाम बढ़ जाते हैं। दरअसल, इन खबरों का लाभ बिचौलिये व आढ़ती उठाते हैं। देश में भण्डारण की पर्याप्त सुविधा न होने का लाभ भी बड़े सब्जी कारोबारी उठाते हैं। किसान भंडारण सुविधा न होने के कारण देर तक सब्जी की फसल को रोक नहीं पाता और जिससे बिचौलियों की पौ-बारह हो जाती है। कई बार ओलावृष्टि, मौसमी तल्खी व कीट प्रभाव से फसलों की उत्पादकता कम होने से भी बाजार में सब्जियों की आपूर्ति बाधित होती है। इस संकट को हम आधुनिक कोल्ड स्टोरेज की सुविधा को बढ़ाकर दूर कर सकते हैं। हाल के वर्षों में देश में सहकारी क्षेत्र के सहयोग से शीतगृह बनाने की राष्ट्रव्यापी योजना राजग सरकार लेकर आई है, लेकिन इसके अस्तित्व में आने व प्रभावी होने में कुछ वक्त लगेगा। देश के नीति-नियंताओं को इस तथ्य को स्वीकार लेना चाहिए कि ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव हमारी फसलों पर निरंतर बढ़ता जाएगा। बढ़ते तापमान से फसलों का संरक्षण कैसे किया जा सकता है, इस पर गंभीर मंथन की जरूरत है। साथ ही कृषि वैज्ञानिकों को नई किस्म की फसलों के बीज तैयार करने होंगे, जो बढ़ते तापमान के बीच किसानों की फसलों को सुरक्षा कवच प्रदान कर सकें। इसके अलावा किसानों को सब्जियों के वाजिब दाम दिलाने के लिये व्यवस्थागत सुधार करने होंगे, जिसमें उन्नत किस्म के बीज, आधुनिक भंडारण और बिचौलियों से मुक्त विपणन की देशव्यापी व्यवस्था करना भी शामिल हैं। जिससे फसल उत्पादक और उपभोक्ता के हितों की रक्षा हो सके।