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जल निकासी की नाकामी

बाढ़ से सबक ले हो शहरों का नियोजन

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नीति-नियंताओं के लिये यह शर्म का विषय होना चाहिए कि देश की राजधानी जलमग्न है। तात्कालिक तौर पर कह सकते हैं कि अतिवृष्टि से लबालब यमुना इस संकट की वजह है। लेकिन यदि हम इस संकट का दूसरा पहलू देखें तो राष्ट्रीय राजधानी में जल निकासी का सिस्टम बाढ़ व बारिश के पानी के सामने लाचार नजर आया है। बाढ़ के मुद्दे पर दिल्ली की आप सरकार और भाजपा के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों की बाढ़ आई हुई है। लेकिन किसी ने इस बात की जिम्मेदारी लेने की कोशिश नहीं की कि समय रहते दिल्ली की ड्रेनेज व सीवर लाइन को अतिवृष्टि से मुकाबले के लिये क्यों तैयार नहीं किया गया है। वहीं कभी नहीं सोचा गया कि यदि यमुना में पांच दशक बाद बाढ़ आएगी तो अतिरिक्त जल निकासी का कोई कारगर तंत्र तैयार किया जाए। देश में प्रतिभावान इंजीनियरों की कमी नहीं है लेकिन राजनेताओं की तरफ से कोई ईमानदार पहल होती नजर नहीं आती। ऐसे वक्त में जब ग्लोबल वार्मिंग संकट के चलते बारिश के पैटर्न में बदलाव आया है और कम समय में ज्यादा तेज बारिश होती है, हमें अविलंब जल निकासी के लिये नई रणनीति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। यह सवाल दिल्ली का ही नहीं है, देश के अन्य महानगरों मसलन चेन्नई, मुंबई और बंगलूरू में पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा बारिश से जो भयावह संकट उपजा था, वह आने वाले समय में देश के हर शहर के लिये खतरा बन सकता है।

विडंबना यह है कि हमने पानी के प्राकृतिक बहाव के तमाम स्रोतों को मिट्टी से पाटकर उन पर ऊंची-ऊंची मंजिलें खड़ी कर दी हैं। लेकिन जिन विभागों की जिम्मेदारी है कि जल निकासी के पर्याप्त प्रबंधन के बाद नक्शे पास किये जाएं, वे ले-देकर चुप हो जाते हैं। पानी का स्वभाव है कि वह ऊंचे स्थान से नीचे की तरफ बहता है। निचले स्थानों पर कंक्रीट के जंगल उग आए हैं। जिन विभागों की जिम्मेदारी इनकी निगरानी करना था, वे आंखें मूंदे बैठे रहते हैं। वहीं राजनेता भी वोट बैंक के लिये ऐसे स्थानों पर नई बस्तियां बसा देते हैं जहां नदी का विस्तार क्षेत्र होता है। यमुना की बाढ़ के पानी ने ऐसे ही स्थानों से लोगों को सबसे पहले विस्थापित किया। सही मायनों में दिल्ली के नये शासकों को पता भी नहीं होगा कि दिल्ली की जल निकासी के लिये पिछली सदी के आठवें दशक में जो मास्टर प्लान बना था, उसमें बदलाव के लिये इस सदी में कोई कोशिश हुई भी कि नहीं। दरअसल, अंधे विकास ने उन तमाम खाली स्थानों को भर दिया है जहां स्थित तालाबों-नालों में बारिश का पानी निकलकर लोगों को जल भराव से बचाता था। कमोबेश देश के तमाम छोटे-बड़े शहर जलभराव के संकट से जूझ रहे हैं। निस्संदेह, दिल्ली का संकट नीति-नियंताओं के लिये चेतावनी है कि यदि निरंतर बढ़ती शहरी आबादी के दबाव के अनुसार जल निकासी की वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्था नहीं की गई तो जलभराव का संकट लगातार गहरा होता जायेगा।

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