राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एशिया के सबसे बड़े हवाई अड्डे का उ.प्र. के जेवर में शिलान्यास होना सुखद है। यह विकसित होते भारत की जरूरत भी है ताकि देश में वैश्विक सुविधाओं वाले हवाई अड्डे बनें। दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को बने करीब छह दशक हो गये हैं और तमाम विस्तार के प्रयासों के बाद अब और गुंजाइश नहीं है। वैसे भी दिल्ली जिस तरह भीड़भाड़ व प्रदूषण के आगोश में आ चुकी है, उसके लिये हवाई यातायात की विकेंद्रीकृत व्यवस्था जरूरी हो गई थी। देश के हवाई यातायात का सत्ताईस प्रतिशत भार वहन करने वाले इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर रोज तेरह सौ के करीब जहाज उतरते हैं। अब जब आने वाले समय में दिल्ली हवाई अड्डे से करीब सत्तर कि.मी. दूर नया हवाई अड्डा बन जायेगा तो न केवल उत्तर प्रदेश व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के यात्रियों को राहत मिलेगी, बल्कि दिल्ली पर वाहनों व प्रदूषण का दबाव भी कम होगा। ऐसे में बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उ. प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में इसका शिलान्यास क्षेत्र की अन्य विकास परियोजनाओं को भी गति देगा। सही मायनो में अब डबल इंजन वाली योगी सरकार के दौरान राज्य में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की संख्या पांच तक पहुंच जायेगी। लखनऊ, वाराणसी के बाद कुशीनगर व अयोध्या में निर्माणाधीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाद जेवर का हवाई अड्डा राज्य का पांचवां गहना बनेगा। इस हवाई अड्डे में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के यात्रियों के लिये सुविधा होने से निस्संदेह क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। बताया जा रहा है कि पहले चरण में जहां हवाई अड्डे में सालाना 1.2 करोड़ यात्रियों की सेवा की व्यवस्था होगी तो छत्तीस माह बाद पूरा होने पर सात करोड़ लोगों को सुविधा देने में इसे सक्षम बताया जा रहा है। मालवाहक सुविधा व वायुयानों के रखरखाव से जुड़े क्षेत्र में कारोबार व विकास को सही मायनों में गति मिलेगी।
निस्संदेह, जेवर हवाई अड्डे जैसी बड़ी योजनाओं के सिरे चढ़ने से न केवल आवागमन की सुविधा का विस्तार होगा बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था भी ऊंची उड़ान भर सकेगी। बड़ी विकास योजनाएं निस्संदेह रोजगार की नयी शृंखला को जन्म देती हैं। इस हवाई अड्डे से आगरा, वाराणसी व अन्य पर्यटक स्थलों तक यात्रियों के पहुंचने के लिये सड़क व रेल सुविधा का विस्तार भी किया जायेगा। वैसे तो इस हवाई अड्डे के निर्माण की घोषणा अर्सा पहले हो गई थी लेकिन भूमि अधिग्रहण से जुड़ी पेचीदगियों के चलते इसमें विलंब हुआ। सरकार ने इस परियोजना के पहले चरण की शुरुआत तो कर दी है लेकिन जरूरी है कि इस योजना के हवन कुंड में अपनी बेशकीमती जमीन सौंपने वाले लोगों को समय रहते न्याय मिले। कहा जा रहा है कि कुछ किसानों को अधिगृहीत भूमि का मुआवजा नहीं मिल पाया है। ऐसा अक्सर होता है कि संवेदनहीन तंत्र और बिचौलियों की दखल के चलते जमीन देने वाले किसान मुआवजे के लिये सरकारी दफ्तरों के चक्कर ही काटते रहते हैं। बहरहाल, महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जेवर हवाई अड्डे को मालवाहक विमानों का विस्तृत केंद्र बनाया जायेगा। साथ ही हवाई जहाजों की तकनीकी खामियों के निस्तारण की आधुनिक व्यवस्था भी यहां होगी, जिसके लिये अब तक हमें विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था। दूसरे, उन विदेशी पर्यटकों को अब राहत मिलेगी जो दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरने के बाद उ.प्र. के पर्यटक स्थलों के लिये यातायात के साधन तलाशते थे। साथ ही तमाम मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा हवाई अड्डे से जुड़े इलाके में अपने संस्थान खोलने से क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। वैसे सरकार का दावा है कि इससे एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। निस्संदेह, जेवर में मालवाहक विमानों के जरिये माल विपणन केंद्र बनने से उ. प्र. के निकटवर्ती जनपदों मसलन आगरा, अलीगढ़, बुलंदशहर व मेरठ आदि में कारोबारी गतिविधियों को विस्तार मिलेगा। इससे रोजगार के नये अवसर सृजित होने के साथ स्वदेशी उत्पादों के निर्यात में सुविधा बढ़ेगी। सही मायनो में उ.प्र. में राष्ट्रीय राजमार्गों व रेल सुविधाओं के विस्तार के साथ हवाई सुविधा में वृद्धि से राज्य व देश विकास की ओर उन्मुख होगा।