मुकुल व्यास
मनुष्य जाति को यदि भविष्य में वायरसों से उत्पन्न होने वाली महामारियों से बचना है तो उसे सबसे पहले पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को सुलझाना पड़ेगा। कोविड-19 के विनाशकारी प्रभाव हम देख चुके हैं। इस बीमारी को फैलाने वाले कोरोना वायरस का वास्तविक स्रोत क्या है, इसको लेकर पूरे साल माथापच्ची होती रही। इस वायरस के लैब-निर्मित होने के बारे में कई तरह की कहानियां प्रचारित की गईं। लेकिन अधिकांश वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 एक ‘जूनॉटिक’ रोग है। ‘जूनॉटिक’ रोग उसे कहते हैं जो जानवरों से मनुष्यों में पहुंचता है। वैज्ञानिकों ने उन कारणों को पहचानने की कोशिश की है, जिनकी वजह से ये वायरस जानवरों से मनुष्य में पहुंचते हैं।
अध्ययनों में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि स्तनपायी जीवों से मनुष्य में वायरस के जंप करने की घटनाएं कुदरत के साथ छेड़छाड़ करने के साथ जुड़ी हुई हैं। एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में वायरस के जंप करने को ‘वायरस स्पिलोवर’ भी कहा जाता है। इस तरह के स्पिलोवर का खतरा उस समय सबसे ज्यादा होता है जब प्रकृति के अत्यधिक दोहन और प्राकृतिक वास के विनाश से जंगली जानवरों को खतरा उत्पन्न हो जाता है।
अभी हाल में एक नया खतरा सामने आया है। वायरस मनुष्यों से वापस जानवरों में भी पहुंच सकता है। संक्रमित जानवर पुनः इस वायरस से मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है। डेनमार्क में एक संक्रमित मिंक (फरों वाला स्तनपायी जानवर) से वायरस के पुनः मनुष्यों में पहुंचने के बाद वहां करीब दो करोड़ मिंक मारने पड़े। ध्यान रहे कि मिंक के फरों से बने कोट बहुत महंगे बिकते हैं। डेनमार्क के अलावा अमेरिका से भी मिंक के संक्रमित होने की खबर मिली। अमेरिका के कुछ चिड़ियाघरों में कुछ शेर भी संक्रमित हो गए। वायरसों के इस तरह के विपरीत स्पिलोवर से भी हमें सजग रहना होगा।
जानवरों से मनुष्य के बीच पहुंचने वाली बीमारियां बैक्टीरिया, परजीवियों, फफूंदी और वायरस द्वारा फैलाई जा सकती हैं। जानवरों द्वारा उत्पन्न कुछ बीमारियां आसानी के साथ मनुष्यों में पहुंच सकती हैं क्योंकि स्तनपायी जीवों की जैविक बनावट बहुत कुछ मनुष्यों जैसी होती है। यदि मनुष्य और जानवर काफी लंबे समय तक साथ रहते हैं तो उनमें रोग का हस्तांतरण ज्यादा आसान हो जाता है।
मनुष्य अक्सर सूअरों और मवेशियों से फैलने वाली बीमारियों का शिकार हो जाता है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि मनुष्य अपनी भोजन संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए सदियों से इन जानवरों को पाल रहा है। मनुष्यों में वायरस हस्तांतरण के मुख्य स्रोत चमगादड़ें और स्तनपायी जीव हो सकते हैं क्योंकि उनकी जैविक बनावट और वायरस के प्रति उनके इम्यून रेस्पांस में काफी समानता होती है। मनुष्यों के कारण जानवरों में उत्पन्न होने वाली स्ट्रेस से भी वायरस हस्तांतरण के चांस बढ़ते हैं।
जब हम जानवरों को उनके कुदरती माहौल से पकड़ कर उनका व्यापार करते हैं तो उन्हें भारी तनाव का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में वे ज्यादा वायरस उत्पन्न करते हैं। वायरसों की संख्या के अधिक होने का मतलब यह है कि शरीर से वायरस का परित्याग भी अधिक मात्रा में होगा। अतः पकड़े गए जानवर मानव आबादियों को वायरस से एक्सपोज करते हैं। रिसर्चरों ने जूनॉटिक वायरसों और जमीन पर विचरने वाले उनके मेजबान स्तनपायी जानवरों का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने 2004 से 2013 तक के डेटा का अध्ययन किया।
उन्होंने जिन 142 वायरसों का अध्ययन किया, उनमें 139 वायरसों के मेजबान स्तनपायी जीव थे। कुत्ते-बिल्लियों, मवेशियों, घोड़ों और भेड़ों जैसे पालतू स्तनपायी जीवों में कम से कम 50 प्रतिशत वायरस ऐसे हैं जो मनुष्यों में हस्तांतरित हो सकते हैं। चमगादड़, चूहों और प्राइमेट जीवों में भी जूनॉटिक रोगों की मात्रा का अनुपात बहुत ज्यादा है। विभिन्न प्रजातियों से जूनॉटिक वायरसों के फैलने का ज्यादा या कम खतरा कई कारणों पर निर्भर है।
ऐसे जंगली स्तनपायी जानवर बहुत दुर्लभ हैं जो लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में आते हैं। अतः इनके मनुष्य से संपर्क में आने की संभावना कम होती है। इनकी आबादी कम होने के कारण इनमें परजीवियों की मौजूदगी भी कम होती है। जिन लुप्तप्राय प्रजातियों की आबादी शिकार और अवैध व्यापार जैसी गतिविधियों से कम हो रही है, उनमें जूनॉटिक वायरसों की संख्या अधिक होने की संभावना रहती है। रिसर्चरों का कहना है कि वन्य जीवन के शोषण और वन्य जीवों के अवैध व्यापार से मनुष्य और वन्यजीवों के बीच नजदीकियां बढ़ीं और इनसे वायरस के हस्तांतरण के मौके भी बढ़े।
जलवायु परिवर्तन और वन्य जीवन की भूमिका के बारे में समाज में जागरूकता के अभाव से समस्या गंभीर हो गई है। प्राकृतिक वास और भोजन के अभाव में जंगली जानवर इधर-उधर भाग रहे हैं। इन स्थितियों में मनुष्य के साथ उनका संपर्क बढ़ रहा है। स्तनपायी जीवों की कम से कम 90 प्रतिशत प्रजातियों के वायरसों के बारे में समुचित जानकारी नहीं होने से समस्या ज्यादा विकट हो गई है।
जानवरों से मनुष्यों में जंप करने वाले वायरसों के उदाहरणों में नीपा वायरस उल्लेखनीय है जो चमगादड़ों (फ्रूट बैट्स) से फैला था। चिंपैंजियों के कत्लेआम से एड्स संकट पैदा हुआ। हॉर्सशू बैट नामक चमगादड़ ने सार्स और ‘मेकाक’ बंदरों ने हर्पीज बी वायरस फैलाया। इस समय पृथ्वी को झकझोर देने वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति संभवतः एक चमगादड़ से या किसी अज्ञात जीव से हुई है। यह मुमकिन है कि यह वायरस गंभीर रूप से संक्रामक होने से पहले निम्न स्तर पर वर्षों से मनुष्यों के बीच घूम रहा हो। बहरहाल, सभी जूनॉटिक रोग महामारी के रूप में प्रकट नहीं होते। कुछ इन्फेक्शन निम्न स्तर पर रहते हैं और उनका पता भी नहीं चलता। इन्फेक्शन की गंभीरता वायरस की विशिष्टताओं पर निर्भर करती है। जैसे एक मेजबान जानवर से मनुष्य में जंप करने और फिर दूसरे मनुष्य में पहुंचने की उसकी क्षमता और उसके इन्फेक्शन की दर।
भविष्य में वायरसों से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए हमें अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ अपने पर्यावरण के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना पड़ेगा। हमें प्रकृति और वन्य जीवन के प्रति अपना रवैया बदलना पड़ेगा। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड इंटरनेशनल के महानिदेशक मार्को लेम्बेरटिनी का कहना है कि हमें तत्काल प्रकृति के विनाश और मनुष्य के स्वास्थ्य से जुड़े कारणों को पहचानना पड़ेगा। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो कोविड-19 जैसी महामारियां समय-समय पर प्रकट होती रहेंगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।