लगभग ढाई दशकों से स्पेलिंग बी प्रतियोगिता मंे भारतीय मूल के बच्चों का वर्चस्व रहा है। हाल ही में 14 साल की हरिणी ने ‘स्पेलिंग बी’ प्रतियोगिता जीती है। उन्होंने 26 में से 22 शब्दों की सही स्पेलिंग बताकर यह खिताब अपने नाम कर लिया। भारतीयों को जीनियस माना जाता रहा है। आखिर जीनियस कौन होता है? सामान्य शब्दों में वह व्यक्ति जो असाधारण बौद्धिक क्षमता, रचनात्मक उत्पादकता, शैलियों में सार्वभौमिकता और मौलिकता का प्रदर्शन करता है, उसे जीनियस कहा जाता है। क्या जीनियस वंशानुगत होते हैं? इस संदर्भ में विशेषज्ञों की अलग अलग राय है। आइंस्टीन को जीनियस कहा जाता है जबकि बचपन में उनकी शिक्षिका ने उन्हें कम बुद्धि का कहकर स्कूल से निकाल दिया था। फिर वह जीनियस कैसे कहलाए? वह जीनियस कहलाए अपने अभ्यास, परिश्रम और आदतों के कारण।
हंगरी के लाज़्लो पोलगर कहते हैं कि, ‘जीनियस पैदा नहीं होता, बल्कि उसे शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाता है।’ अपनी इस बात को साबित करने के लिए उन्हांेने इसका व्यावहारिक प्रयोग अपने बच्चों पर करने का फैसला लिया। उनकी तीन बेटियां पैदा हुईं-सुसान, सोफ़िया और जुडिट। बेटियों को उन्होंने शतरंज का महारथी बनाने का निर्णय कर लिया। इसके लिए उन्होंने उन्हें स्कूली शिक्षा घर में ही देनी प्रारंभ की। बेटियों के कमरे में हर जगह शतरंज की किताबें और प्रसिद्ध शतरंज के खिलाड़ियों की तस्वीरें लगी रहती थीं। तीनों बेटियां एक-दूसरे के साथ शतरंज खेलती रहती थीं। सबसे बड़ी सुसान ने चार साल की आयु से ही शतरंज खेलना आरंभ कर दिया और केवल छह माह के अंदर ही वह बड़ों को हराने लगी। उससे छोटी सोफ़िया चौदह साल आयु में विश्व चैम्पियन बन गई और कुछ ही समय बाद वह ग्रैंडमास्टर बन चुकी थी। अब बात करते हैं सबसे छोटी जुडिट की। जुडिट ने पांच साल आयु में अपने पिता को हराना शुरू कर दिया। बारह साल में वह विश्व के सौ खिलाड़ियों में शामिल हो गई। उस समय जुडिट ही उन सौ खिलाड़ियों में सबसे कम आयु की थी। पन्द्रह साल चार माह की उम्र में वह सबसे छोटी ग्रैंडमास्टर बन चुकी थी। सत्ताइस वर्ष आयु तक वह विश्व की पहले नंबर की महिला शतरंज खिलाड़ी रही। लाज़्लो पोलगर ने अपनी बेटियों की परवरिश और उन्हें शतरंज की परिस्थितियां प्रदान कर साबित कर दिया कि किसी भी खेल, कार्य या विधा में जीनियस शिक्षा एवं प्रशिक्षण से बनते हैं। पोलगर बहनें साबित कर चुकी कि जीनियस वंशानुगत के बजाय अभ्यास, परिस्थितियों और आदतों से बनते हैं।
जब कोई भी चीज हमारी आदत और अभ्यास बन जाती है तो फिर उसमें जीनियस बनने की प्रवृत्ति कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए उन लोगों को खुश होना चाहिए जो हमेशा से यह सुनते आए हैं कि,
‘वे नालायक हैं’
‘उनके दिमाग में कोई बात नहीं घुसती’
‘उन्हें कुछ समझ नहीं आता’
‘तुम्हारे बस की बात नहीं है।’
‘यह काम तुम नहीं कर सकते।’
‘तुम्हारे भेजे में भूसा भरा हुआ है।’
हर साधारण व्यक्ति जीनियस बन सकता है यदि वह निम्न कार्यों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर ले ः-
ज्यादा से ज्यादा सीखें- सीखने की प्रवृत्ति एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसकी कभी एक्सपायरी डेट नहीं होती। जीवन भर व्यक्ति सीखता रहता है। सीखने के लिए दुनिया में बहुत कुछ है। एक छोटे बच्चे से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सीखना एक एक सीढ़ी चढ़ने के बराबर है।
पुस्तकें पढ़ें- पुस्तकें विश्व में सबसे अच्छी मित्र हैं। अच्छी पुस्तकें व्यक्तित्व को निखार देती हैं और उसके मस्तिष्क को परिपक्व बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
दिमागी खेल खेलें- पहेलियां, दिमागी खेल व प्रश्न व्यक्ति की बौद्धिकता को विकसित करने में महतवपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शोधकर्ता कहते हैं कि, ‘जिग्सा पजल जैसे खेल खेलने में संज्ञानात्मक क्षमता का इस्तेमाल होता है।’ इन खेलों में कौन सा टुकड़ा कहां लगेगा यह बार-बार गौर से देखने पर मस्तिष्क का व्यायाम हो जाता है और मस्तिष्क तंतु खुल जाते हैं।
रचनात्मक बनें- साधारण एवं जीनियस व्यक्ति में सबसे बड़ा अंतर यह है कि साधारण व्यक्ति इतिहास रटता है और जीनियस व्यक्ति इतिहास रचने में यकीन रखता है। इसलिए अपनी कल्पनाशीलता एवं रचनात्मकता के दायरे को बढ़ाएं।
यदि कई बार व्यक्तियों की परिस्थितियां अनुकूल नहीं होतीं तो भी उपरोक्त कार्यों को प्रतिदिन करके जीनियस बना जा सकता है। कुछ भी असंभव नहीं है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि, ‘नेतृत्व करने वालों के शब्दकोश में असंभव शब्द नहीं होता है। कितनी भी बड़ी चुनौतियां क्यों न हों, मजबूत इरादे से सुलझाया जा सकता है।’ जीनियस वंशानुगत नहीं बल्कि मजबूत इरादे, अच्छी आदतें, निरंतर अभ्यास से बनते हैं। इसलिए भारत के लोग अधिक जीनियस होते हैं क्योंकि अच्छी आदतें हमारी संस्कृति में शामिल होती हैं।