ज्ञानेन्द्र रावत
आज कैंसर समूची दुनिया में भयावह रूप ले रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत में बड़ी संख्या में लोग कैंसर के शिकार होकर जान गंवा रहे हैं। कैंसर के मामले में दुनिया के 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां है। यदि एनसीडीआईआर और आईसीएमआर की मानें तो भारत में कैंसर के मरीज तेजी से बढ़े हैं, इसमें 2025 तक 12 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो जायेगी। भारत में प्रति लाख 70.23 लोग कैंसर से पीडि़त हैं। राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 13.9 लाख कैंसर के नये रोगी सामने आ रहे हैं। इनमें सात लाख महिलाएं होती हैं। इनमें से साढ़े तीन लाख मौत के मुंह में चली जाती हैं। देश में हर साल 70 हजार लोगों की मौत होती है, जिनमें 80 फीसदी की मौत बीमारी के प्रति उदासीन रवैये के कारण होती है। जबकि रोजाना 1300 से ज्यादा लोग बीमारी के शिकार हो रहे हैं।
गौरतलब है कि सन् 1990 के मुकाबले देश में प्रोस्टेट कैंसर के मामलों में 22 फीसदी, महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर के मामलों में 33 फीसदी और सरवाइकल कैंसर के मामलों में तकरीबन 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अब तो ब्रैस्ट कैंसर के मामले 23 से 30 वर्ष की महिलाओं में ज्यादातर पाये जाते हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार जिस तरह डायबिटीज और हृदय रोग एक कारण से नहीं होते, उसी तरह कैंसर का भी एक कारण नहीं होता। इसके पीछे पश्चिमी जीवनशैली, डेरी उत्पादों का गलत तरीके से सेवन, रासायनिक प्रदूषण, प्रोसेस्ड फूड, कब्ज व गैस्ट्रिक समस्या की भी अहम भूमिका है। कैंसर के बढ़ते मामलों में रासायनिक खादों के इस्तेमाल में हो रही वृद्धि, खासकर ग्लाइफोसेट पेस्टीसाइड जिस पर बहुतेरे देशों में पाबंदी है व बढ़ रहे प्रदूषण की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
दरअसल, कैंसर का तात्पर्य शरीर में अनियंत्रित रूप से वृद्धि करने वाली कोशिकाओं से है। ये बेवजह वृद्धि कर ऊतकों को प्रभावित करती हैं और फिर धीरे-धीरे शरीर के बाकी हिस्सों को भी अपनी चपेट में ले लेती हैं। आमतौर पर शरीर का वजन बढ़ जाना, व्यक्ति की शारीरिक सक्रियता में कमी होना, दोष पूर्ण व असंतुलित तैलीय व मसाले युक्त खान-पान, व्यायाम न कर पाना, नशीले और मादक पदार्थों के अत्यधिक सेवन ही से इस रोग की चपेट में आने की संभावना ज्यादा रहती है। चाय या फिर कॉफी आदि पेय पदार्थों के अत्यधिक सेवन से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल, चाय और कॉफी में अन्य पेय पदार्थों के मुकाबले 4000 से ज्यादा घातक तत्व पाये जाते हैं। दवाओं का साइड इफेक्ट और आनुवंशिकता भी इसका अहम कारण है। अब तो बच्चे, नौजवान और वृद्ध भी इस बीमारी की चपेट में हैं।
निस्संदेह, ज्यादा तला-भुना खाना सेहत के लिए हानिकारक है। फिर भी लोग बड़े स्वाद और चाव से खाते हैं। अमेरिकी नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के अध्ययन के अनुसार, लोगों का यह शौक ही उनके लिए जानलेवा हो सकता है। अमेरिकी कैंसर सोसायटी की पोषण व शारीरिक गतिविधियों की मैनेजिंग डायरेक्टर कोलीन डायल का कहना है कि अक्सर भुने हुए खाद्य पदार्थों का कुछ काला और जला हुआ हिस्सा वास्तव में हैट्रोसाइक्लिक एमिनंस या एचसीए होता है। यह ज्यादातर उस समय बनता है जबकि खाद्य पदार्थ यथा मांस, चिकन या मछली को ऊंचे ताप पर भूना जाता है। ऐसे खाद्य पदार्थों को तेलों में तलने पर यह कंपाउंड पैदा होता है। जहां तक मीट का सवाल है, उसे जब अंगीठी पर भूना जाता है, उस दशा में पॉलीसाइक्लिक ऐरोमैटिक्स हाइड्रो कार्बन और हैट्रोसाइक्लिक एमियंस नामक दो तरह के कंपाउंड पैदा होते हैं। अध्ययनों से इस बात का खुलासा होता है कि ये डीएनए में बदलाव करके कैंसर के कारण बनते हैं।
अमेरिकी नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट की सीनियर एपिडेमियोलाॅजी एंड जैनेटिक्स डिपार्टमेंट की वरिष्ठ शोधकर्ता रश्मि सिन्हाना की मानें तो जब किसी कार्बनिक पदार्थ को जलाया जाता है तो पाॅलीसाइक्लिक एरोमैटिक्स हाइड्रोकार्बन बनता है। आग की लपटों में कार्बन जलता रहता है और खास बात यह है कि यह हाइड्रोकार्बन धुएं के साथ बना रहता है। नतीजतन इस धुएं के चलते मांस पर कैंसर का कारण बनने वाले कंपाउंड की परत चढ़ने का खतरा बना रहता है। रेड मीट तो और भी घातक है। कारण, इसमें वसा की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है। यह मोटापे और उससे होने वाली बीमारियों का कारण हो सकती है। खतरे की बात यह कि यह कैंसर का कारण भी हो सकता है। जो लोग रेड मीट की जगह मछली, सी फूड, चिकन व फ्लोर बेस्ड फूड को भूनते हैं, वो भी नुकसानदेह है।
असलियत में मछली और सी फूड को भूनने के दौरान भी सीएचए की उत्पत्ति होती है। शोध-अध्ययन इस बात के सबूत हैं कि यदि इसे आधे घंटे तक मसाले के मिश्रण के साथ भूना जाता है तो एचसीए की मात्रा को कम किया जा सकता है।