रघुवीर चारण
इस बार योग दिवस की थीम ‘योग फॉर ह्यूमैनिटी’ अर्थात् मानवता के लिए योग रखी है। मानवता के कल्याण में योग की अहम भूमिका है। योग का सामान्य भाषा में अर्थ होता है एकत्व या जोड़ना। शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य योग से संभव है। स्वास्थ्य की समग्र परिभाषा योग में सम्मिलित है। दुनिया बदलती जीवनशैली के कारण विभिन्न प्रकार की व्याधियों से ग्रसित है। इन विकारों के शमन और स्वस्थ जीवनशैली प्रदान करने में योग ने नए आयाम स्थापित किये।
वैश्विक महामारी कोरोना के समय दुनिया ने योग की महत्ता को अच्छी तरह से समझा। उस समय कोविड पॉजिटिव अल्प लक्षणों वाले मरीजों में मानसिक तनाव को कम करने में योग कारगर साबित हुआ। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में प्राणायाम का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इनमें कपालभाति, भस्त्रिका, भ्रामरी और अनुलोम-विलोम शामिल है।
प्राचीन भारतीय वैदिक काल के उपनिषदों और षड्दर्शन में योग का वर्णन मिला। इसके साथ ही बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम और हिंदू धर्म में भी योग का उल्लेख मिलता है। पाश्चात्य देशों में योग का प्रसार स्वामी विवेकानंद ने किया। श्रीमद्भगवद् गीता में वर्णित योग: कर्मसु कौशलम् अर्थात् योग से ही कर्मों में कुशलता है। कर्म में कुशलता का अर्थ है, ऐसी मानसिक स्थिति में काम करना कि व्यक्ति कर्म एकदम अच्छे तरीके से करे और फल की चिंता में पड़कर खुद को व्यग्र न करे।
भारत में योग परंपरा को समृद्ध बनाने में योगसूत्र के रचयिता महर्षि पतंजलि के महान योगदान के अलावा बीकेएस अयंगर, महर्षि महेश योगी, तिरुमलाई कृष्णमाचार्य, धीरेंद्र ब्रह्मचारी, स्वामी रामदेव और श्रीश्री रविशंकर का योगदान रहा है। आज पूरी दुनिया में योग की गूंज है। ऋषि-मुनियों का सपना साकार होता दिखाई दे रहा। योग एक कला और विज्ञान है जो एक अच्छी तरह से संतुलित और सार्थक जीवन को सक्षम बनाता है। महान भारतीय योग ऋषि पतंजलि ने योग कोे ज्ञान योग सूत्र में संकलित किया। उन्होंने अभ्यास का गहराई से अध्ययन किया और इस विज्ञान को, जो हिमालयी योगियों तक सीमित था, आम लोगों के लिए सुलभ बनाया। उन्होंने पूरी प्रणाली को आठ अंगों में विभाजित किया, इस प्रकार इसे अष्टांग योग भी कहा जाता है।
अष्टांग योग के आठ अंग हैं— यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि। उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उपअंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान। यम से नैतिकता का, नियम से अनुशासन अर्थात् जीवन में आदर्श आदतों का पालन करना, आसन से शरीर में लचीलापन व मजबूती आती है। प्राणायाम अर्थात् प्राणों का विस्तार करना। यह एक तरह का श्वसन व्यायाम है। निरंतर अभ्यास बहुत शक्तिशाली है। यह रक्त, श्वसन प्रणाली को भी शुद्ध करता है, फेफड़ों, दिमाग को मजबूत करता है। प्रत्याहार से वापसी, धारणा से एकाग्रता, ध्यान से मन शांत और आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है। योग की अंतिम अवस्था समाधि अर्थात् सांसारिक बंधनों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है इसको राजयोग भी कहा जाता है।
योग आपके संपूर्ण फिटनेस स्तर में सुधार करके शरीर की मुद्रा और लचीलेपन को भी बेहतर बनाता है। कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिमों को कम करने के लिए योगासनों का रोजाना अभ्यास करना फायदेमंद होता है। रक्तचाप और हृदय गति को नियंत्रित रखने में मदद करता है। शरीर को आराम मिलता है। आपके आत्मविश्वास में सुधार होता है। तनाव की समस्या कम होती है। शरीर के समन्वय में सुधार होता है। आपकी एकाग्रता में सुधार होता है। बेहतर नींद प्राप्त करने में मदद करता है। पाचन और डायबिटीज की समस्या से राहत दिला सकता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। व्यक्ति को सम्पूर्ण स्वास्थ्य योग से मिलता है।
योग को विश्व में पहचान मिलने के साथ ही इस पर कई तरह के शोध चल रहे हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से योग की प्रामाणिकता सिद्ध हो रही है। हाल ही में हुए शोधों के अनुसार योग हृदय रोगियों के लिए काफी लाभकारी है। उच्च रक्तचाप को कम करने में कारगर साबित हुआ। इसके साथ आनुवंशिक विकारों में व मेटाबोलिज्म से सम्बधित रोगों में विभिन्न योग आसनों से लाभ मिला। मानसिक विकारों के शमन में योग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ध्यान से मन को शांति और बौद्धिक क्षमताओं का विकास होता है।
यदि अपनी दिनचर्या की शुरुआत योग से करते हैं तो आप सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर दुगनी शक्ति से अपने कार्यों को कर सकते हैं।