कुमार विनोद
दुनिया भर में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो कुछ न कुछ हासिल करने की जुगत भिड़ाने में न लगा हुआ हो। वहीं दूसरी ओर यह भी सच है कि अधिकतर लोगों के जीवन में, आदतों के नाम पर ही सही, कम या ज्यादा, कुछ तो ऐसा है, जिसको छोड़ने की चिंता उनको दिन-रात सताती रहती है।
अब आप ‘लाल परी’ के आला दर्जे के शौकीन मेरे इन मित्र महोदय को ही ले लीजिए। बेचारे न जाने कब से, आधे-अधूरे मन से ही सही, लाल परी का मदहोश कर देने वाला दामन छोड़ना चाहते हैं। दिन भर उससे सम्मानजनक फिजिकल डिस्टेन्सिंग बनाए भी रखते हैं, लेकिन शाम होते-होते ये दूरियां, राजनीतिक धुर विरोधियों के बीच की दूरियों की भांति, कब नज़दीकियों में बदल जाती हैं, इस बात का उन्हें इल्म तक नहीं हो पाता। मैं जब कभी अपने मित्र महोदय से उनके इस ‘क्विट परी मूवमेंट’ में हुई तरक्की के बारे में सवाल पूछता हूं तो उनका उम्मीद से लबरेज एक ही रटा-रटाया, मासूम-सा, कसम-प्रूफ जवाब होता है कि मां-कसम! परी को अपने इन हाथों से छुए बिना परसों पूरे दो दिन हो जाएंगे। दरअसल बचपन में थोक के भाव मिली हुई सीख कि आज का काम कल पर न छोड़ो, पर अक्षरशः अमल करते हुए उन्होंने ‘कल’ की जगह ‘परसों’ को बाल्यकाल से ही अपना पक्का साथी बना रखा है।
बात-बेबात अपने समृद्ध, वृहद बहुभाषी गाली-कोश में से हद दर्जे की गैर-साहित्यिक वजनी गालियों का समुचित चयन करके, विशिष्ट नाटकीय अंदाज़ में, उनका सुस्पष्ट और पुरअसर उच्चारण करने वाले कुछ लोगों की ‘गालियां छोड़ देने संबंधी प्रतिज्ञा’ में भी अगर आपको एक-दो गालियां रची-बसी मिल ही जाएं तो कृपया आप इसे अन्यथा न लें। इसे उनका ‘ट्रेडमार्क’ मात्र समझकर नज़रअंदाज़ करने में ही अपना कल्याण समझें। अपने कई मित्रों की हर फिक्र को ‘ट्वेंटी फोर बाइ सेवेन’ धुएं में उड़ाते चले जाने और पान की पीक रूपी रंग भरी पिचकारी से चित्रकारी करने की आदत के बावजूद, मैंने ज़िंदगी के सफर में भले ही अपने मन को मार कर भी उनका साथ न छोड़ा हो लेकिन कार के सफर में उन्हें अपना हमसफर बनाने से तो ज़रूर तौबा कर ली है।
कई मकान मालिकों का अपने किरायेदारों को कारण-अकारण मकान छोड़ने के लिए वक्त-बेवक्त चेतावनी जारी करते रहना भले ही उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो या न हो, कम से कम मकान मालिक-किरायेदार सम्बन्धों को अनावश्यक नीरसता से तो बचाता ही है। बहरहाल, ‘कोरोना दुनिया छोड़ो’ के अघोषित नारों के बीच, ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ की पुण्य स्मृति में कचरे से कंचन बनाने की आस लिए ‘मिस गंदगी’ को भी भारत छोड़ने की टाइम बाउंड ताकीद की जा चुकी है। दूर कहीं रेडियो पर बज रहा गीत ‘जिंदगी इम्तिहान लेती है’ न जाने क्यों मुझे ‘गंदगी इम्तिहान लेती है’ जैसा सुनाई दे रहा है।