यह दुआ तो नहीं है, लेकिन इच्छा जरूर है कि सर्दी निकल जाए और गर्मी आ जाए। क्योंकि पहाड़ों में अभी बर्फबारी हो रही है और मैदानों में लोग कांप रहे हैं। अब ऊपर वाला तो पता नहीं नीचे वालों की सुनेगा या नहीं, लेकिन इधर नेता लोग गर्मी निकालनेे की धमकी जरूर दे रहे हैं। भैया अगर बिजली ठीक-ठाक दे दोगे तो गर्मी भी निकल ही जाएगी। बेशक वह पंखे, कूलर या एसी से ही निकलेगी। लेकिन निकालने का श्रेय लोग तुम्हें ही देंगे, चिंता न करो। अब पता नहीं नेताओं को गर्मी निकालने की क्या सूझी है। अरे भाई गर्मी भी जरूरी है। गर्मजोशी अगर नहीं होगी तो तुम चुनाव भी कैसे जीतोगे।
लोग अगर वोट डालने को लेकर ही ठंडे बने रहे तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी यारो। इसलिए गर्मी भी जरूरी है। अब आप ही बताओ कि अगर संबंधों में गर्मी नहीं होगी तो दुनिया का क्या हाल होगा। पहले ही इतनी खुदगर्जी है। क्या इसे और बढ़ाना चाहते हो। प्यार-मोहब्बत बिना गर्मी के नहीं होते यार। ठंडेपन से दूरियां बढ़ती ही हैं। अब किसानों को गालियां देने वालों को यह तो नहीं समझाया जा सकता कि भैया गर्मी के बिना फसल पकती नहीं है। गर्मी निकाल दी तो दाने नहीं पड़ेंगे।
भाई अगर आप इतने ही दबंग हैं तो अकड़ निकालो, हेकड़ी निकालो, खुदगर्जी निकालो, काइयांपन निकालो, क्षुद्रता निकालो। यार गर्मी क्यों निकाल रहे हो। और अगर गर्मी ही निकालनी है तो दिमाग की निकालो। दिल की क्यों निकालते हो। उसे दिल में रहने दो। दिमाग ठंडा और दिल गर्म रहना ही चाहिए। गर्मी ही निकालनी है तो जुबान की निकालो, जिससे निरंतर गालियां झरती हैं, धमकियां झरती हैं। हाथों की गर्मी मत निकालो जो जब मिलते हैं तो रिश्तों में गर्मी आ जाती है। यार इतनी गर्मी तो इंसान में होनी ही चाहिए न कि यारों से जफ्फियां-शफ्फियां पा सके। अपनों से गले मिल सके। और अगर गर्मी ही निकालनी है तो यार दंगइयों की निकालो, दादाओं और दबंगों की निकालो, हत्यारों और बलात्कारियों की निकालो। लोगों के दिल जलाने वालों की निकालो, बस्तियां जलाने वालों की निकालो। रिश्तों की गर्मी को बख्श दो यार।
एक बात सुनो यार, कोरोना महामारी के बुखार की गर्मी तो आप निकाल नहीं पाए। वो जो कई-कई दिनों तक श्मशानों की आग नहीं बुझी थी, चिताओं की आग ठंडी नहीं हुयी थी, वह गर्मी तो आप निकाल नहीं पाए और अब आप धमकी दे रहे हो कि गर्मी निकाल देंगे। जब ऑक्सीजन की कमी से लोग जूझ रहे थे और शरीर ठंडे पड़ रहे थे, तो भाई उन्हें गर्मी की ही जरूरत थी, जो आप नहीं दे पाए थे। ऐसी गर्मी क्या निकालनी यार कि आदमी ठंडा होकर लाश बनकर गंगा में तैरता रहे या उसकी मृत देह ठंडी रेत में दफन हो जाए। आदमी ठंडा नहीं होना चाहिए। ठंडा होना मृत्यु होती है।