गवाही अंगूठे से ही दी जाती है और हस्ताक्षर भी अंगूठे के निशान को ही माना जाता है। गुरु द्रोणाचार्य ने भी एकलव्य से अंगूठा ही मांगा था क्योंकि उन्हें आभास था कि निशानेबाजी अंगूठे के बिना संभव नहीं, पर लोकतंत्र में अंगूठे की बजाय तर्जनी का सर्वाधिक महत्व माना गया है। तर्जनी यानी कि अंगूठे के साथ लगती पहली अंगुली जो आमतौर पर किसी को दिशा का ज्ञान देने के लिये प्रयोग में लाई जाती है। चुप्पी के इशारे के लिये भी यही अंगुली काम आती है। छोटी कक्षाओं में तो यही अंगुली होंठों पर रखवा कर छोटे बच्चों को चुप बैठने का आदेश मिलता है। कलम, पेंसिल, पेन पकड़ने में भी तर्जनी का सर्वाधिक योगदान है। बंदूक-पिस्तौल का घोड़ा दबाने के लिये भी तर्जनी पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
मतदान के बाद रंगा तर्जनी को जाता है। वोट डालकर अपनी तर्जनी को रंगवाने का मतलब है कि हमने अपने कर्तव्य का निर्वहन कर दिया। यह रंग संविधान के प्रति सम्मान का रंग है। यह रंग लोकतंत्र में आस्था का रंग है। यह रंग अपने क्षेत्र के एक न एक व्यक्ति के प्रति विश्वास जताने का रंग है चाहे वह व्यक्तिगत रूप से हमें पसन्द हो या न हो। पर अफसोस इस बात का है कि मतदान के बाद रंगी हुई यह अंगुली अपने विधायक या सांसद को दिखाने के लिए हम काम में नहीं लाते। चाहिये तो यह कि एक-एक मतदाता अपने क्षेत्र के नेताओं को अंगुली दिखा-दिखा कर उनके कारनामों के प्रति सतर्क करे। पर हम अपनी तर्जनी की ताकत भूल बैठे हैं। हमें सदैव याद रखना होगा कि इसी तर्जनी पर श्रीकृष्ण ने सुदर्शन थामा था।
तर्जनी विशेष रूप से शास्त्रीय नृत्यों में भावमुद्रा बनाने के बहुत काम आती है। साधु-संतों, ज्ञानियों और बुद्धों की ज्ञानमुद्रा भी अंगूठे की मदद लेकर इसी अंगुली से बनाई जाती है। योग मुद्रा का आधार भी यही तर्जनी है। सिलाई-कढ़ाई में तो इसी अंगुली से सुई में धागा पिरोया जाता है। खाद्य-पदार्थ और विशेषतः चटनी आदि चाटने में तो यह अंगुली सिद्धहस्त है। पंसारी की दुकान या सब्जी वाले से सामान लेकर दो उंगलियों में लटके हुये लिफाफे उंगलियों से तौबा करवा लेते हैं। लगता है कि तर्जनी अब निष्प्राण हो चली है क्योंकि हमने कभी अंगुली दिखाकर देश के कर्णधारों को चेताने का संकल्प लिया ही नहीं।
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एक बर की बात है अक नत्थू अपनी सारी आंगली अर दोन्नूं गूंठां मै अंगूठी पहर रह्या था। उसका ढब्बी सुरजा बूज्झण लाग्या— रै ब्याह की तो एक्के अंगूठी होया करै, दस क्यूकर पहर ली? नत्थू बोल्या— ब्याह की तो एक्के है, बाकी तो ब्याह का खड़दू शान्त करण खात्तर पहर राखी हैं।