शमीम शर्मा
ऐसा कभी नहीं था कि टीवी के विज्ञापन हमें मतलब समझायें। कभी-कभी यूं लगता है कि हमारे भेजे में तो कुछ है ही नहीं, विज्ञापन वाले ही बतायेंगे कि क्या खायें और क्या पीयें। कमाल इस बात का है कि खाने-पीने के मामले में आज की पीढ़ी ने दादी-नानी की तो सुननी ही बंद कर दी। उनकी विचारधारा पर तो ‘आउटडेटिड’ का ठप्पा लगा दिया गया है। टीवी महाशय ने हमारे ज्ञान में इजाफा करते हुए हमें ठंडा शब्द का गूढ़ अर्थ बताया है। इसके मुताबिक- ठंडा मतलब कोकाकोला। अरे भई हमारी छाछ, लस्सी, रबड़ी, जलजीरा, ठंडाई, शिकंजी, आमरस, आमपन्ना क्या कम ठंडे होते हैं? गुलाब, बेल, आंवला, चंदन, खस आदि के भांति-भांति के ठंडे शर्बतों का क्या टोटा पड़ गया?
हमारे ज़हन में विज्ञापनों के इंजेक्शन ने परम्परागत सारे पेय पदार्थ हमसे छीन लिये हैं। बच्चे और युवा पीढ़ी तो अपने पारंपरिक पेय पदार्थों का मुंह भी नहीं देखना चाहती। अगर कभी देख भी लें तो बच्चे इतना गंदा मुंह बनाते हैं मानो कोई ज़हरीला घोल उन्हें थमाया जा रहा है। और पढ़ी-लिखी पीढ़ी को यह पता तक नहीं है कि ज़हर है किस में। अब चाहे गांव में किसी के घर जाओ, या शहर में- एक बोतल खुलती है और शशश…. की सी आवाज़ करते हुए गिलासों से हमारे अधरों तक पहंुच जाती है। किसी को चुप करवाने के लिये शशश… की आवाज़ ही निकालते हैं। अब बहुराष्ट्रीय कंपनियां शशश… करके बाकी के पेय पदार्थों की बोलती बंद करवा रही हैं।
इसी तरह मुंह मीठा हो जाये का मतलब है- चॉकलेट। हमारे समय में मुंह मीठा करवाने का मतलब होता था लड्डू, बर्फी या पेड़े। पर अब भाड़ में जायें हमारे हलवे और मिठाइयां। पहले-पहल सबसे पहले मिठाई नहीं हलवे बने होंगे तभी तो मीठा बनाने वालों को हलवाई कहने की रिवायत है। जिस देश में सैकड़ों प्रकार की मिठाइयां हैं, वहां मुंह मीठा करवाने की जिद कोई चॉकलेट से करे तो हैरानी होनी स्वाभाविक है। हर प्रान्त, हर मौसम और त्योहार अपनी ही तरह की मिठाई से जुड़े हुए हैं। जैसे तीज पर घेवर, लोहड़ी पर रेवड़ी-गज्जक, करवा चौथ पर खीर चूरमा, दीवाली पर मूंग या गाजर का हलवा, गणेश चतुर्थी पर मोदक आदि। पर देखने में आ रहा है कि हलवाई की दुकानों का कन्फेक्शनरी की दुकान से कड़ा मुकाबला चल रहा है।
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एक बर की बात है अक नत्थू समोसे तोड़-तोड़ कै उसके भीत्तर का मसाला अर आलू खाण मैं जुट रह्या था। सुरजा बोल्या—के बात रै भीत्तर भीत्तर का समोसा क्यंूकर चेप रह्या है? नत्थू बोल्या— भाई! कई दिनां तै बीमार चाल रह्या हूं, डाक्टर नैं बाहर का खाण तै मना कर्या है।