सुरेश यादव
विगत में लाखों सीरियाई शरणार्थियों के लिए अपने राष्ट्र के द्वार खोलते समय जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल समेत अन्य राष्ट्रों ने शरणार्थियों के प्रति नजरिये में बदलाव करके विकट समस्या पर सहानुभूति से विचार करने हेतु नयी दृष्टि प्रदान की थी। परन्तु आज एक सनकी तानाशाह द्वारा अपने प्रतिशोध के लिए शरणार्थियों को एक हथियार के रूप में काम में लेने की घटना ने शरणार्थी समस्या के अमानवीय पहलू से दुनिया को रूबरू करवाते हुए नये विमर्श को जन्म दिया है।
बेलारूस के तानाशाह राष्ट्रपति अलेक्झांडर लुकाशेन्को द्वारा स्पष्टतः राज्य प्रायोजित हजारों तुर्की, अफगानी, इराकी, सीरियाई और अन्य अशांत देशों के मजबूर नागरिकों को योजनाबद्ध तरीके से अपने देश की सीमा से लगने वाले यूरोपियन यूनियन के देशों पोलैंड, लिथुआनिया व लातविया की सीमाओं पर जबरन घुसपैठ के लिए छोड़ दिया।
दरअसल, बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्झांडर लुकाशेन्को करीब तीन दशकों से लगातार सत्ता पर काबिज हैं जो वर्ष 2020 के आम चुनावों में 6वीं बार राष्ट्रपति चुने गये हैं परन्तु पश्चिमी देशों सहित एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं के स्वतंत्र पर्यवेक्षकों ने इस आम चुनाव को पूर्ण रूप से प्रभावित और षड्यंत्रकारी करार दिया था। बेलारूस की अवाम ने अलेक्झांडर लुकाशेन्को की इस दमनकारी शासन शैली के विरोध में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किये परन्तु प्रदर्शनकारियों का कठोरता से दमन करते हुए लुकाशेन्को सरकार ने करीब पैंतीस हजार लोगों को गिरफ्तार कर जेलों में बंद कर दिया। लुकाशेन्को के उक्त कृत्यों व तानाशाही रवैये व बेलारूसी अवाम के मानवाधिकारों का बेजा हनन करने के कारण यूरोपियन यूनियन और अमेरिका ने बेलारूस पर अनेक प्रतिबंध लगा दिये।
मई माह में तानाशाह लुकाशेन्को ने यूनान से लिथुआनिया जा रही रयान एयर के विमान को हाईजैक करवाते हुए निर्वासित बेलारूसी युवा विसल ब्लोअर, ब्लॉगर और पत्रकार रोमन प्रोताशेविच को बेलारूस में अशांति और दंगे भड़काने के जुर्म में उसकी रूसी महिला मित्र सोफिया सपेगा के साथ गिरफ्तार करवा दिया था। विमान हाईजैकिंग और प्रोताशेविच की गिरफ्तारी की घटना के बाद यूरोपियन यूनियन और अमेरिका ने बेलारूस पर प्रतिबंध और कड़े कर दिये।
इन प्रतिबंधों से खफा लुकाशेन्को यूरोपियन यूनियन के विरुद्ध हाईब्रिड वारफेयर के तहत शरणार्थियों को एक हथियार की तरह काम लेते हुए हजारों शरणार्थियों को पोलैंड के बॉर्डर पर लाकर छोड़ दिया जो बेहतर जीवन की उम्मीद में अवैध तरीके से यूरोप में प्रवेश करना चाहते हैं। शरणार्थियों द्वारा पोलैंड के बॉर्डर पर लगे कंटीले तारों को जबरदस्ती काटने व पोलैंड की पुलिस व सेना के साथ शरणार्थियों की हिंसक झड़पें उनका लुकाशेन्को शासन प्रायोजित होना सिद्ध करती हैं। यद्यपि पोलैंड ने लुकाशेन्को के इरादों को भांपते हुए गत दिसम्बर माह में ही अपने 180 किमी बॉर्डर को कंटीले तारों से सुरक्षित करना शुरू कर दिया था।
खून जमा देने वाली इस ठंड में शरणार्थी, महिलाओं और बच्चों सहित बॉर्डर पर डटे हुए हैं। भूख से बिलखते बच्चों और हाईपोथर्मिया से मौतों के दृश्य निःसन्देह हृदयविदारक और मानवता को शर्मसार कर देने वाले हैं परंतु बेलारूसी तानाशाह लुकाशेन्को अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। उन्होंने रूस से यूरोप जा रही यमल गैस पाइपलाइन की आपूर्ति ठप करने तक की धमकी दे डाली है।
बढ़ते तनाव के मद्देनजर यूके के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस ने अपने देश के 150 सैनिक भेजने की घोषणा की है। इस शरणार्थी संकट का हल निकालने के लिए जर्मन चांसलर की बेलारूस के राष्ट्रपति से वार्ता निरंतर जारी है। फलतः लुकाशेंको के तेवर कुछ नरम पड़े हैं और कुछ इराकी शरणार्थी बॉर्डर से अपने देश के लिए रवाना हो चुके हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अच्छे मध्यस्थों की मदद से जल्द ही इस संकट का कोई न कोई हल भी निकल ही जायेगा परन्तु यूरोप का अंतिम तानाशाह कहे जाने वाले अलेक्जेंडर लुकाशेन्को की सनक ने यूरोपियन यूनियन और उसके सहयोगी अमेरिका को रूस से टकराव के कगार पर ला खड़ा किया है।
खैर, जो भी हो, महाशक्तियों और वैश्विक संस्थाओं को शीघ्र इस संकट का हल निकालने के ठोस प्रयास करने चाहिए क्योंकि पीड़ित हमेशा आम लोग ही होते हैं, जिन्हें सत्ता निर्मित संकटों और तनावों व युद्ध-केंद्रित अर्थव्यवस्थाओं का खमियाजा बतौर मुफलिसी भुगतना पड़ता है, जबकि उनका शासन-सत्ता से कोई सीधा सरोकार भी नहीं होता।