श्रीलंका में तेल नहीं है जी! पाकिस्तान में आटा नहीं है जी! लेकिन हमारे यहां तेल भी है और आटा भी है। बेशक हमारे यहां तेल महंगा है। इतना महंगा है कि सरकार तक डर गयी कि कहीं इसकी महंगाई हमें महंगी न पड़ जाए। सो उसने एक्साइज ड्यूटी घटा दी। तेल इतना महंगा है कि अब तक सरकार दो बार एक्साइज ड्यूटी घटा चुकी है, लेकिन तेल को सस्ता कहने को अभी भी कोई तैयार नहीं है। फिर भी हमारे यहां तेल है जी। हमारे यहां आटा भी है। बेशक जनता को आटे-दाल का भाव पता चल रहा है क्योंकि वह दिनों दिन महंगा होता चला जा रहा है। इतना महंगा हो रहा है कि सरकार को गेहूं के निर्यात पर रोक लगानी पड़ी है। पर आटा अपना भाव दिखाना नहीं छोड़ रहा। श्रीलंका में विदेशी मुद्रा खत्म हो गयी और पाकिस्तान में तो मुद्रा ही खत्म है, इसीलिए तो उसने सऊदी अरब से निवेदन किया कि हमारे बैंक में आपका जो रुपया पड़ा है, कृपया उसे निकलवाना नहीं। हमारे यहां के बैंकों में तो माल्या और चौकसी का अपना रुपया भी नहीं होता, फिर भी वे निकाल ले जाते हैं। कुछ सेठ लोग ऐसे हैं कि वे वैसे धड़ल्ले से रुपया निकलवाते तो नहीं हैं, पर बैंकों से जो रुपया कर्ज के रूप में ले रखा है, उसे हजम कर जाते हैं। उन्हें रोटी से चाहे कितनी ही बदहजमी होती हो, पर रुपया वे ऐसे हजम करते हैं कि हाजमोला भी हैरान रह जाता है।
खैर, इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, बैंकों का एनपीए बीस-तीस हजार करोड़ और बढ़ जाएगा। लेकिन अपने पड़ोसियों की यह हालत देखकर हम भी वैसे ही खुश है, जैसे अपने पड़ोसी की दुर्दशा पर हर कोई होता है। इसे पड़ोसी धर्म निभाना कहते हैं। कई बार तो लगता है कि अगर पाकिस्तान की ऐसी दुर्दशा न होती तो पता नहीं हम खुश कैसे रह पाते। खुशी के इंडेक्स में हम निश्चित रूप से और नीचे चले जाते। हम जब भी दुखी होते हैं, तो पाकिस्तान को देखकर अपने तसल्ली दे लेते हैं कि उससे तो अच्छे ही हैं। बल्कि इसका फायदा तो अब ट्रोल भी उठाने लगे हैं और अपनी सरकार से थोड़ी-सी शिकायत करते ही वे फौरन लानतें देने लगते हैं कि पाकिस्तान से भी बुरे हैं क्या! बल्कि अब तो श्रीलंका की दुर्दशा भी उदाहरणीय हो गयी है। हालांकि उदाहरण के तौर पर अभी उसका ज्यादा इस्तेमाल इसलिए नहीं किया जा रहा कि एक तो उससे कोई चुनावी फायदा नहीं मिलना। दूसरे कुछ जलकुकड़े यह कहना शुरू कर चुके हैं कि हमारी हालत भी कुछ-कुछ श्रीलंका जैसी ही हुई जा रही है। तो जी हमारे यहां तेल भी है और आटा भी। बस एक नौकरी ही नहीं है और आपसी सद्भाव भी पता नहीं कब तक बचेगा।