पंजाब सरकार वर्ष 2021-22 की शराब की कमाई के आंकड़ों को लेकर बहुत उत्साहित है। सरकार को प्रसन्न होने के लिए बड़ी मुश्किल से एक ही विषय मिला और वह है इस वर्ष शराब से सात हजार करोड़ से भी ज्यादा कमाई होने के आसार। वैसे तो सरकार को कहीं से अच्छा समाचार नहीं मिल रहा। सरकार विरोधी नारे, सरकार हाय-हाय, साड्डे हक ऐत्थे रख, धरना जाम, लाठीचार्ज आदि के समाचारों से त्रस्त सरकार बाग-बाग हो गई। जब यह सुनिश्चित हो गया कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष शराब से आमदनी का अनुमान सात हजार करोड़ से ज्यादा हो गया है और कांग्रेस के नवजोत सिद्धू का कहना है कि शराब की आमदनी बढ़ाने का पंजाब मॉडल बहुत कामयाब है। उन्होंने कहा कि शराब से सरकार को तीन हजार करोड़ रुपये आय प्राप्त हो रही है, जिसे पंजाब माॅडल में बढ़ाकर तीस हजार करोड़ रुपया किया जाएगा। इससे पंजाब में खुशहाली लाई जा सकती है। अब प्रश्न यह है कि सरकारी खुशहाली की परिभाषा क्या है? एक साधारण, मध्य वर्ग या आर्थिक दृष्टि से निम्न वर्ग के परिवार में शाम को जब परिवार का मुखिया, माता या पिता थोड़ा राशन, फल, सब्जी लेकर घर लौटता है तो परिवार में सभी के चेहरों पर एक मुस्कान होती है। रसोई गर्म होती है। सब मिल-बैठकर रूखे-सूखे भोजन का आनंद भी छप्पन भोग की तरह लेते हैं, पर इसके विपरीत अगर परिवार का मुखिया, भाई-बेटा या पिता शराब के नशे में धुत होकर घर पहुंचे, गाली निकाले, पत्नी की पिटाई शुरू कर दे, बच्चे और बूढ़े माता-पिता सहम कर एक कोने में छिप जाएं तो वह सरकार के लिए खुशहाली हो सकती है, क्योंकि ऐसे लोगों के ठेके से बोतल खरीदने के साथ ही सरकारी खजाना भरना शुरू हो जाता है, पर परिवारों का खजाना खाली होता है। इसकी चिंता किसी को नहीं।
शराब की कमाई पर जश्न मनाने वाले कभी उन परिवारों का ध्यान नहीं करते जहां हर रात कलह क्लेश के साथ आती है। जहां शराबी और नशेड़ी परिजनों के कारण बच्चों के स्कूल छूटते हैं। जहां बेटियां शराबी बाप के कारण अच्छे वर घर से वंचित रह जाती हैं। काश! उस लड़की की पुकार इन शासकों ने सुनी होती, जिसने सिलाई-कटाई सीखते हुए अपनी सहपाठिनों के सामने ही रोते हुए कहा कि पिता के घर से शराब की मार खाते खाते ससुराल पहुंची। अब वहां भी मेरी किस्मत वही है जो मेरी मां की मेरे मायके में है। केवल भाषणी संवेदना प्रकट करने वाले और सरकारी खजाने से कभी-कभी मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने के नाम पर मजाक करने वाले इन सत्तापतियों ने उन परिवारों की पीड़ा को महसूस ही नहीं किया जो शराबी ड्राइवर के वाहन से टकराकर मौत के मुंह में चले गए या शराब पीने के कारण कैंसर और जिगर की बीमारियों के शिकार होकर कफन ओढ़ गए।
आजकल हर रोज समाचार मिलता है कि जन्मदिन की पार्टी में, विवाह के उत्सव में या दोस्तों के जश्न में झगड़ा हुआ, गोली चली, एक-दो की मौत हो गई और फिर पीछे रह जाते हैं रोते-बिलखते परिवार या कानूनी कार्रवाई के नाम पर पुलिस थानों के धक्के या धरने न्याय पाने के लिए।
पिछले दिनों अकाली दल के नेताओं ने आप के एक सांसद को शराबी कहा, बवाल हो गया और आप पार्टी के नेताओं ने इसे गाली समझा।
दरअसल, पंजाब मॉडल तो घरेलू उद्योग-धंधों का छोटे उद्योगों का रहा है। क्या कांग्रेस और अकाली नेताओं को याद है कि अमृतसर में गर्म कपड़े और कंबलों का बहुत बड़ा उद्योग था। क्या यह याद है कि मंडी गोबिंदगढ़ को भारतीय मानचेस्टर कहा जाता था। हमारा लुधियाना गर्म कपड़ों, हौजरी के लिए विश्वप्रसिद्ध रहा है। सारी इंडस्ट्री उजाड़कर खेती को भूलकर केवल शराब के सहारे खुशहाली लाना वैसे ही है जैसे अपने घर को आग लगाकर सर्दी से बचने का प्रयास करना। आज पंजाब के बच्चों को गुड़गांव से लेकर बंगलोर, चेन्नई और पुणे तक नौकरी पाने के लिए जाना पड़ता है। उच्च शिक्षित इंजीनियर्स कंप्यूटर विशेषज्ञों के लिए पंजाब में कोई काम ही नहीं। इस सरकारी आने वाली खुशहाली से ही शायद डरे-डरे बच्चे विदेशों में रोटी कमाने और सुनहरी भविष्य की आशा में भटक रहे हैं, बस रहे हैं। पंजाब में कानूनी अव्यवस्था से लोग त्रस्त हैं।
पंजाब धर्म-कर्म की भूमि है। लंगर, दान-स्नान और जीवन देने वाली नदियों का केंद्र है। इसे शराब का केंद्र बनाना और शराब के बल पर ही सरकार चलाने की घोषणा करने वाली सरकार से अभी से सावधान हो जाएं।