गुरबचन जगत
वोटों-सीटों की सुनामी पर सवार होकर आम आदमी पार्टी ने पंजाब में तूफानी जीत हासिल कर सत्ता संभाली है। इसने तमाम विरोधियों को पछाड़ा और कई दशकों तक पंजाब की राजनीति पर काबिज कद्दावर नेता अपनी नियति को प्राप्त हुए। आखिर ‘महाबली हारे कैसे’। इस बार तमाम धर्म, जाति, वर्ग, ग्रामीण-शहरी, कामगार और गरीब तबके के मतदाताओं ने वटवृक्ष उखाड़कर नई पौध लगाई है। लेकिन इतने भारी बहुमत के साथ बड़ी जिम्मेवारी निभाने का दबाव भी है। यानी न केवल अपने समर्थक मतदाताओं के प्रति बल्कि पूरे सूबे की उम्मीदों पर खरा उतरना। किसी सरकार का सर्वप्रथम महत्वपूर्ण फर्ज है रोजमर्रा के प्रशासनिक तंत्र में गुणात्मक सुधार। जिससे हम सदा महरूम रहे। एक अच्छा निज़ाम विकास का पूर्व संकेत होता है। मेरा सदा से मानना है कि इसके लिए कुछ भी नहीं खर्चना पड़ता। अच्छा प्रशासन बनाने की शुरुआत होती है राज्य के प्रशासनिक ढांचे में उच्चतम स्तर पर नेतृत्व की जिम्मेवारी योग्यता देखकर देना। इसमें सबसे पहले मुख्य सचिव व पुलिस महानिदेशक का पद है। क्रमानुसार, जिलों के जिलाधीश और पुलिस कप्तानों की तैनाती भी योग्यता देखकर की जाए। हालांकि इस बाबत नई सरकार का आकलन करना फिलहाल जल्दबाजी होगी तथापि वरिष्ठ अधिकारियों की अब तक हुई नियुक्तियों से लगता है, ऐसा ही हुआ है। एक लंबे अर्से के बाद युवा आईपीएस और आईएएस अधिकारियों को फील्ड में नियुक्त किया गया है। जबकि पिछले सालों में यह नहीं हो रहा था और यह कृत्य पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करना भी है। ऊर्जावान और आदर्शों से लबरेज़ युवा अफसरों के फील्ड में होने से प्रशासनिक कार्यकुशलता पर अच्छा प्रभाव होकर रहेगा। व्यावसायिक और ईमानदारी के संदर्भ में पंजाब व जम्मू-कश्मीर में यह होते मैंने स्वयं पाया है। ऐसे प्रयोग काफी सफल रहे थे।
इन नियुक्तियों के बाद जरूरी हो जाता है कि चंडीगढ़ और जिला मुख्यालयों में तैनात विभाग मुखियाओं को अंदरूनी कामकाज में आजादी दी जाए। महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां करने में ‘इलाका इंचार्ज’ रूपी बाहरी राजनीतिक दखलअंदाजी जैसी व्यवस्था न बनने पाए। एसएचओ, पटवारी, बीडीओ इत्यादि कुछ ऐसे पद हैं जिनसे लोगों का सीधा वास्ता पड़ता है और यही वह स्तर है जहां उन्हें माकूल सुनवाई और इंसाफ नहीं मिलता। अगर इनकी तैनाती और कामकाज में बाहरी दखलअंदाजी बंद हो जाए तो हम अच्छा प्रशासन देने की राह पर होंगे जोकि किसी सरकार के निजाम का आधार स्तंभ है। सरकार को चाहिए कि प्रत्येक विधायक को अपने इलाके में दफ्तर और न्यू्नतम आवश्यक स्टाफ प्रदान करे, जहां बैठकर वे काम करें, इलाका निवासियों की समस्याएं सुनें और निदान करें। इससे लोगबाग अपनी समस्याओं के निवारण इत्यादि की खातिर राजधानी जाने की जहमत से बच जाएंगे और विधायक निदान-प्रक्रिया की नज़रसाजी कर पाएंगे। विधायकों को क्षेत्र के विकास व अन्य समस्याओं की बाबत फील्ड अफसरों से सीधा संवाद बनाना चाहिए। विधायक रोजमर्रा के प्रशासनिक कामकाज में दखलअंदाजी करने या किसी संस्थान को कब्जाने की मंशा रखने की बजाय अगर लोगों से राब्ता रखें तो उनकी समस्याओं का सीधा भान होगा। साथ ही जरूरत पड़ने पर बतौर एक जनप्रतिनिधि विधानसभा में क्षेत्र के मुद्दों पर नए विधेयक या कानून पारित करवा सकता है।
उदाहरणार्थ, अपने इलाके में पुलिस थाना और इसके कर्मी तमाम पुलिस संबंधी गतिविधियों का केंद्र होते हैं और जिला कप्तान पुलिस बल की रीढ़ होता है। यदि एसएचओ और पुलिस कप्तान की नियुक्ति व्यावसायिक क्षमता और ईमानदारी के आधार पर सचमुच हो तो चीज़े तुरंत सुधरने लगती हैं। आज पुलिस को प्राप्त परिवहन, संचार, मानव-बल में बहुत सुधार हुआ है। तथापि पुलिस की घटिया कारगुजारी की मुख्य वजह ‘गिरा मनोबल’ है। यह वही है जहां नेतृत्व काफी मायने रखता है और हमारे पास ऐसे अफसर हैं जो यह देने में काबिल हैं। राजनीतिक नेतृत्व को उन पर भरोसा करना चाहिए और बदले में उन्हें अपने मातहतों पर यकीन करने और उनकी अगुवाई करने दें। जांच कौशल और कानून-व्यवस्था कायम करने को निरंतर धारदार बनाना और सुधारा जाना चाहिए। तथापि, पिछले सालों में, राजनीतिक दखलअंदाजी की वजह से जिला और थाना स्तर के पुलिस अधिकारियों की जांच क्षमता पर भरोसे में ह्रास हुआ है और इस यकीन को पुनः स्थापित करना महत्तवपूर्ण है। सरकारों, सर्वोच्च और उच्च-न्यायालयों द्वारा हर छोटे-बड़े मामले की जांच सीबीआई, एनआईए इत्यादि एजेंसियों को सौंपने या विशेष जांच दल बनाने का चलन-सा हो गया है। इससे बिना कुछ विशेष हासिल किए, स्थानीय पुलिस की विश्वसनीयता घट जाती है। जांच हस्तांतरण केवल विलक्षण मामलों में होना चाहिए । इस चलन ने पहले ही केंद्रीय और सूबाई सरकारों में रस्साकशी पैदा कर दी है, विशेषकर मामले सीबीआई को सौंपने पर। यह छवि पुख्ता हुई कि पड़ताल दुर्भावना के तहत केंद्रीय एंजेसियों को सौंपी जाती है।
चाहे यह कोई गंभीर अपराध या कानून-व्यवस्था स्थिति या फिर आतंकवाद इत्यादि अपराध हो, वास्तविक धरातल पर मामले की सबसे ज्यादा जानकारी स्थानीय पुलिस को होती है। अनुभव भी कहता है कि कोई अन्य एजेंसी या विशेष जांच दल स्थानीय पुलिस से बेहतर नहीं हो सकते। हमें अपनी स्वयं-सिद्ध जड़ों की ओर लौटना होगा और विश्वसनीय जांच की जिम्मेदारी जिला पुलिस कप्तान और पुलिस थाने को सौंपनी होगी। आज ये पद इलाका इंचार्ज के हाथों में केवल एक सहायक और औजार भर रह गए हैं। उन्हें इस चंगुल से छुड़ाकर, पीठ पर राज्य पुलिस मुख्यालय का हाथ बनाना होगा। पिछले समय में निरीक्षण नामक एक सुचारु व्यवस्था हुआ करती थी यानि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जांच दौरे, आपराधिक रिकॉर्ड का आकलन, अपराध स्थल का मुआयना इत्यादि करने वाला तंत्र। इन सबको वर्तमान के हिसाब से सुधार करते हुए पुनः स्थापित करना चाहिए, पुलिस थानों का निरीक्षण एवं लोगों से मुलाकात करके उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए पुलिस कप्तान, डीआईजी और आईजी अधिकारियों के दौरे दुबारा शुरू हों। स्थानीय और उच्च अधिकारियों के बीच वाले स्तर के अफसरों की मार्फत राज्य पुलिस मुख्यालय को अपराध एवं निरीक्षण रिपोर्टें लगातार भेजना और वहां से इन पर मिले निर्देशों की पालना सुनिश्चित करवाना लागू हो। पुलिस व्यवस्था के सूक्ष्म पहलू पर दिशा-निर्देशन के लिए पहले से ही यथेष्ट कानूनी पुस्तकें और पुलिस नियमावली मौजूद है। एसएचओ और पुलिस कप्तानों से शुरू करके, उनपर भरोसा करें,जिम्मेवारी सौंपें और जवाबदेही तय की जाए।
यही बात सिविल प्रशासन के उच्चतम स्तर पर भी लागू होती है। यहां भी, जिला मजिस्ट्रेट वह पद है जो जिले की तमाम प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र है। उनके अधिकार-क्षेत्र का ह्रास न किया जाए। जिलाधीश सरकार का प्रतिनिधित्व करता है। उसके अधीन तमाम विभागों में सुचारू प्रशासन बनाने की जवाबदेही तय की जाये। जिलों में कोई समांतर शक्ति केंद्र न बनने दिया जाए। विभिन्न विभागों के सचिवों को केवल मुख्यालयों में बैठकर चिट्ठियां भेजते रहने की बजाय सघन दौरे करके,मौके पर दिशा-निर्देश और आकलन देने के लिए भेजा जाए। संक्षेप में, चूंकि काम जिला स्तर पर होता है, इसलिए जिला अफसरों को शक्ति दें और उन्हें तमाम जरूरी सुविधाएं और पैसा मुहैया करवाया जाए। वरिष्ठ अधिकारी सचिवालय से बाहर वास्तविक धरातल का जायजा लेने जाएं। यह कदम आंखें खोलने वाला होगा और इसका प्रशासनिक ढांचे पर गुणात्मक असर पड़ेगा।
सरकार की प्राथमिकता जैसा कि मुख्यमंत्री खुद बार-बार कहते हैं, बेरोजगार युवाओं को रोजगार मुहैया करवाना है। इसके अलावा उन्होंने युवाओं के विदेश पलायन रोकने का वादा किया है। रोजगार सृजन एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसे केवल सरकारी नौकरियां देकर नहीं सुलझाया जा सकता। इसका हल निजी क्षेत्र के साथ मिलकर अर्थपूर्ण निजी-सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी बनाने और कॉर्पोरेट सेक्टर को गति देकर निकल सकता है। पंजाब से पास सबसे बड़ा सरमाया इसका मानव-बल है और इस शक्ति का भरपूर उपयोग हो। पिछले सालों में, युवाओं और परिजनों की धारणा बनी कि उनका बेहतर भविष्य विदेशों में है।
आज दुनियाभर में पंजाबी समुदाय सबसे ज्यादा फैले हुए हैं और सफलतम प्रवासियों में गिने जाते हैं। यहां सवाल अप्रवास रोकने का नहीं है, क्योंकि जिन्हें बेहतर भविष्य केवल विदेशों में लगता है वे जाकर रहेंगे, बल्कि वह जो पीछे स्वदेश में हैं उनका अर्थपूर्ण तालमेल विश्वभर में फैले पंजाबी समुदाय के बीच बनाने को लेकर है। हमें अपने यहां ऐसा वातावरण पैदा करना है जिसमें व्यापार, कारोबार और नव-उद्यमों का सांस टूटने की बजाय बढ़ावा मिले। इसके लिए बड़े निवेश की जरूरत नहीं है लेकिन एक ऐसा समाज बने, जो नियम-कायदों से चलता हो, न कि वह जिसमें केवल कुछेक को अमीर बनने का मौका मिले या जहां माफिया की चलती हो। सरकार को नियम-आधारित व्यवस्था बनाकर स्थायित्व एवं नव-उद्यमियों के लिए सतत उन्नति वाला माहौल बनाने में भूमिका निभानी होगा।
नव-उद्यमियों की तरक्की की राह में सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार,लालफीताशाही-राजनीतिक अड़चनें हैं, जिसका सामना निवेशकों को करना पड़ता है। तमाम सरकारों ने इस प्रवृत्ति को पाला। 15 दिनों में भ्रष्टाचार खत्म करने के दावे हुए लेकिन सत्ता के उच्चतम गलियारों से शुरू होकर एक फाईल को उच्च और मध्य-निम्न स्तर अधिकारी की मेज तक पहुंचने लिए बहुत लंबा सफर तय करना पड़ता है। इस अलामत को हटाने के लिए सतत व सतर्क प्रयास जरूरी हैं। यह उद्देश्य राजनेता, जनता और प्रशासन के साथ मिलकर काम करने से प्राप्त हो सकेगा,हम सबकी धमनियों तक घर कर चुके इस कोढ़ को खत्म करने के लिए केवल टेलीविजन पर विज्ञापन चलाने व जिम्मेवारी जनता पर छोड़ देने बात न बनेगी। इसके लिए नागरिक, राजनेता और प्रशासकों के बीच संवाद जरूरी है। जिन लोगों की सेवा करने का दम भरा जाता है, उन्हें इस प्रक्रिया का हिस्सा बनाएं न कि उप-उत्पाद। सरकार में पारदर्शिता जितनी अधिक होगी, भ्रष्टाचार उतना कम होगा।
अनेकानेक सुलभ मौके फौरी परिणाम दे सकते हैं। दुनियाभर में फैले पंजाबी समुदाय वाले पंजाब से चंडीगढ़ हवाई अड्डे से सीधी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बहुत कम हैं, केवल शारजाह के लिए फ्लाईट है। वहीं दूसरी ओर केरल में चार अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं, जहां से विदेशों को रोजाना दर्जनों उड़ानें जाती हैं। यह असमानता क्यों? पंजाब चारों और थलीय सीमा से घिरा सूबा है, कम से कम सीधा अतंर्राष्ट्रीय हवाई संपर्क बनाकर इसमें कुछ राहत मिल सकती है, वर्ना लोगों को विदेश जाने के लिए पहले दिल्ली जाना पड़ता है। पंजाब में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनने से व्यापार, पर्यटन और होटल व्यवसाय को बढ़ावा मिलने से कराधान में खुद-ब-खुद बढ़ोतरी होगी। हमारे पास बहुत विशाल कृषि व कौशल आधार है। कृषि आधारित नए उद्यमों को प्रोत्साहन दिया जाए। गुजरात और राजस्थान में पंजाब से लगभग 10 गुणा ज्यादा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां हैं, जबकि खेती में वे कहीं पीछे हैं– ऐसा क्यों? पंजाबी उद्यमियों को कौन रोक रहा है? गिनाने बैठें तो इस किस्म की समस्याओं की सूची बहुत लंबी हो जाएगी। ध्यान विकास और अच्छे प्रशासन पर केंद्रित रखना महत्तवपूर्ण है। यह जनादेश बहुत विशाल है, उम्मीदें भी ऊंची हैं और सफलता की राह अच्छा प्रशासन और विकासशील पहल में युवा शक्ति का सदुपयोग करने में है।
लेखक मणिपुर के राज्यपाल, संघ लोक सेवा आयोग अध्यक्ष एवं जम्मू-कश्मीर में पुलिस महानिदेशक रहे हैं।