आलोक पुराणिक
रणबीर कपूर कुछ समय पहले जिस कोल्ड ड्रिंक के ब्रांड एंबेसडर थे, अब उस कोल्ड ड्रिंक के परम प्रतिस्पर्धी कोल्ड ड्रिंक को बेचेंगे।
दूसरी स्टार कृति सेनन का भी यही हाल है, पहले किसी और जूते-सैंडल के ब्रांड की एंबेसडर थीं, अब उस ब्रांड के प्रतिस्पर्धी ब्रांड को बेचने की तैयारी है।
नीतीश कुमार सिर्फ पॉलिटिक्स में नहीं हैं, फिल्म इंडस्ट्री में एक से एक नीतीश कुमार हैं, जो अपोजिट पार्टी की तरफ बेहिचक चले जायें। रणबीर कपूर से पूछना बनता है, अगर वही वाला कोल्ड ड्रिंक इतना ही बढ़िया था, तो आपने छोड़ क्यों दिया और नया क्यों पकड़ लिया।
पूछना नीतीश कुमार से बनता है कि बरसों बरस राष्ट्रवाद के साथ रहकर रातोरात आप सेकुलर हो गये, तो पहले ही सेकुलर क्यों न हुए।
पब्लिक बंदर, नेता और अभिनेता मदारी हैं। मदारी नचाता है, बंदर नाचता है। मदारी ठिकाना बदल लेता है, बंदर भी नयी जगह जगह नाचता है।
लोकतंत्र में बंदर-खेल हो रहा है। बाजार में भी बंदर-खेल हो रहा है। कृति सेनन को बताना चाहिए कि बहन पुराने वाले जूते-सैंडल सही थे, तो फिर नये वाले जूते-सैंडल की तरफ क्यों आ गयीं। वैसे यह उनका पर्सनल मसला है। पर वह दूसरों को जो चाहें राय दे सकती हैं, यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मसला है।
नेता के पर्सनल मैटर अलग होते हैं, नेता के जनता को संदेश अलग होते हैं।
नेता जनता से कहता है कि सब त्यागकर राष्ट्र की सेवा करो। नेता फिर पेट्रोल पंप पकड़ लाता है और अपने दामाद को दे देता है, दामाद राष्ट्र सेवा न करके पेट्रोल पंपों की तादाद बढ़ाता जाता है।
नेता जो संदेश देता है, उसे फालो नहीं करना चाहिए। नेता जो करता है, उसे ही फालो करना चाहिए।
पब्लिक में कुछ शाणे बंदे जानते हैं कि नेता और अभिनेता झूठ बोल रहा है, फिर उसे सुनते हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं है। एक झूठ का विकल्प दूसरा झूठ होता है। रणबीर कपूर के झूठ पसंद नहीं हैं, तो रणवीर सिंह के झूठ को देखिये। झूठ का विकल्प अब सच न हो, अब झूठ का विकल्प दूसरा झूठ होता है।
कुछ समय बाद रणबीर कपूर फिर पुराने वाले कोल्ड ड्रिंक की तरफ आ सकते हैं, उसे फिर बेचना शुरू कर सकते हैं। तो क्या है, क्या नीतीश कुमार फिर सैकुलर पॉलिटिक्स को छोड़कर नहीं जा सकते क्या।