सहीराम
सवाल यह है जी कि चुनाव को क्या माना जाए- उत्सव मानें, दंगल मानें या युद्ध। अगर उत्सव माना जाए तो फिर यह क्या शिकायत हुई जी कि ठेकों पर दारू बंट रही है, ढाबों पर मुर्ग-मुस्सलम की दावतें हो रही हैं, कहीं साड़ियां बंट रही हैं तो कहीं बिंदिया बंट रही हैं। उत्सव है तो फिर यहां यह आचार संहिता क्या कर रही है। कल को मान लो होली के उत्सव में कोई आचार संहिता लगा दे तो क्या होगा। इस बात को सबसे अच्छी तरह से समझता है तो चुनाव आयोग समझता है कि यह उत्सव है। इसलिए यह आचार संहिता के उल्लंघन की ज्यादा परवाह नहीं करता। होली पर गांव की भाभी लाख शिकायत करती फिरे कि हुड़दंगे रंग लगाने के लिए उसके पीछे पड़े हैं पर बुजुर्ग ताइयां कहां परवाह करती हैं। हंस कर टाल जाती हैं। हरियाणे का कोई होलीबाज लाख शिकायत करता रहे कि भाभियों ने कोड़ों से उसकी भारी सुताई कर डाली है, तो खुद उसका ही मजाक बनेगा न।
रही बात भाषा का स्तर गिरने की, गाली-गलौज की तो उत्सव में यह सामान्य बातें हैं। शादी-ब्याह में क्या गालियां नहीं दी जाती। एक-दूसरे के खानदानों की इज्जत नहीं उतारी जाती। सो चुनाव को उत्सव मानना अगर किसी को सबसे ज्यादा रास आता है तो चुनाव आयोग को आता है। इसके बाद आचार संहिता की बात को वह बड़ी आसानी से हंस कर टाल सकता है।
फिर चुनाव को अगर दंगल मान लिया जाए तो ऐसे पहलवान से तो सब डरेंगे ही न जिसके बदन से कई हांडी घी टपक रहा हो। ऐसे में सिंकिया पहलवान यह शिकायत तो नहीं कर सकता कि मां-बाप गरीबी की वजह से अच्छी खुराक नहीं दे पाए और जब सेठजी के पास गए तो उसने भी मदद करने से साफ इनकार कर दिया। निवेदन यह है कि हमारे इस प्रसंग को चुनावी बॉन्डों से कतई न जोड़ा जाए। दंगल हो तो सबसे जबर पहलवान पर जीत का सट्टा लग ही जाता है कि उसे तो जीतना ही है। फिर भी दंगल में कई बार कोई सिंकिया पहलवान कोई ऐसा दांव लगा जाता है कि जबरे से जबरा पहलवान भी धराशायी हो जाता है। रही बात चुनाव को युद्ध मानने की तो यह तो पुरानी कहावत ही है कि प्रेम और युद्ध में सब जायज होता है। अब प्रेम में तो पता नहीं सब कुछ कितना जायज रह गया है, लेकिन युद्ध में अभी भी सब कुछ चलता है और जायज भी होता है। यह एक तरह सारे दंद-फंद का कॉकटेल होता है। इसमें अखाड़ों के दांव-पेंच भी होते हैं, इसमें गाली-गलौज कर मर्यादाहीनता भी प्रदर्शित की जाती है, इसमें शराब और पैसों से समर्थन भी जुटाया जाता है, इसमें जयचंदों और मीर जाफरों का सहारा भी लिया जाता है। युद्ध है न तो सब जायज है।