अच्छाई व बुराई से सामना किसी भी सामान्य व महापुरुष के जीवन का कटु सत्य होता है। कुछ मनुष्य जीवन में उपलब्धियों की मंजिल अर्जित करने पर अपने भोगे हुए कलुषित अतीत को छुपा देना चाहते हैं; उसमें से उनके व्यक्तित्व की दुर्बलताओं के पक्ष को उजागर करने वाला पक्ष, संदेश अथवा कालखंड प्रायः लुप्त हो जाता है। केवल वही पक्ष अथवा संदर्भ बचा रहता है जो उनके व्यक्तित्व के उजले व समर्थ पक्ष को प्रतिबिंबित करता हो। परोक्षतः उनके व्यक्तित्व को गरिमामय बनाने वाला पक्ष ही शेष रह जाता है जबकि इसे गरिमामय बनाने वाली अन्य घटनाएं, संदर्भ, अकाट्य सत्य अथवा वृत्तांत, प्रायः गायब हो जाते हैं ।
महापुरुष वह है, जो अपनी कमजोरियों, दुर्बलताओं व संघर्षों से अपने पाठकों, दर्शकों, युवाओं एवं आगामी पीढ़ियों को जीने की प्रेरणा-शक्ति प्रदान करने की जीवटता रखता हो। यह तभी संभव है जब आपकी कथनी और करनी अक्षरशः एकरूप हो।
वस्तुतः अपनी अनुभूत कमजोरियों, गलतियों के पर्याय का नाम ही अनुभव है। अनुभव वह है जिसके निजी अनुभूत सत्य, संदर्भ एवं प्रसंग दूसरों को जीवन की कटुता से जूझने व संघर्ष करने की शक्ति दें व अंततः उन पर विजय प्राप्त कर उन्हें उनके अभीष्ट की प्राप्ति कर सके।
स्वभावतः यह मानव की चारित्रिक दुर्बलता है कि वह अपने उत्कृष्ट को सार्वजनिक व दूर-दूर तक संप्रेषित करना चाहता है, लेकिन उस उत्कृष्ट की आधारशिला रहे जीवन-संघर्ष के निकृष्ट को गुप्त अथवा लुप्त कर देना चाहता है।
मौलिक प्रतिभा-संपन्न व्यक्ति अपने सत्याचरण के अनुभवों की गठरी को सबके समक्ष खोल उन्हें उस विशिष्ट मार्ग की ओर दृढ़ता से अग्रसर होने की जीवनी-शक्ति का अवसर प्रदान करता है। इसीलिए ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था :-
‘अनुभव गलतियों के लिए चुना गया एक नाम है।’
विवेक और कर्म की जो भूमिका जीवन में होती है, वही भूमिका बुद्धि और अनुभव की भी, दूसरों के लिए प्रवचन अथवा उपदेशन में भी। वस्तुतः अनुभव, अर्जित या फिर लब्ध ज्ञान को व्यावहारिक रूप में परिणत कर उसे दूसरों के जीवन में उतार, उसके माध्यम से संघर्ष के सोपान तय कर, अपने गंतव्य व मंतव्य में सफल होने की प्रेरणा देने वाला एक पारदर्शी वृत्तांत है।
मनुष्य अपनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता से सदैव स्वयं को अधिक चतुर, कुशल, निपुण, सर्वथा सक्षम व अन्यान्य क्षमताओं से परिपूर्ण प्रदर्शित करना चाहता है। किंतु यह भूल जाता है कि वह अपने को उत्कृष्ट दर्शाने की होड़ में अपने जीवन आदर्शों की वास्तविक पूंजी, अर्थात् सत्य से दूसरों को कितना भटका रहा होता है। चाहे लेखन हो या चिंतन, जीवन हो या कार्य-व्यवहार… वहां, जहां-जहां से हम जो कुछ अर्जित करते हैं उसकी स्वीकार्यता के साथ कृतज्ञता का ज्ञापन वस्तुतः नहीं करते। आप किसी की वैचारिक-संपदा को, बिना उद्धृत किए हुए, अपने नाम पर छाप देना चाहते हैं… ऊपर से उसे आप अपनी उत्कृष्टता करारते हैं। लेकिन ज्ञान का असली सुख तब है जब हम अपने अनुभूत सत्य को शत-प्रतिशत पारदर्शिता से अखबार अथवा अन्यत्र अपनी वैचारिक तूलिका से चित्रित करने में सक्षम हो सकें।
सत्याचरण का यथार्थ निरूपण दूसरे के हृदय में हमारे प्रति स्नेह के बीज अंकुर पैदा करने की सामर्थ्य जुटाता है, जबकि आचरणरहित उपदेशात्मकता केवल शब्द का अस्थि-पंजर बन किसी को भी देखने अथवा पढ़ने मात्र के लिए ही बाध्य कर सकती है। लेकिन उसके भीतर उस मार्ग की ओर अग्रसर करने या होने की क्षमता विकसित करने की गुण-ग्राह्यता अथवा अर्हता नहीं जुटा सकती। इसलिए अनुभव की सार्थकता इसी में है कि हमारे कटु अनुभव हमारे पाठकों, श्रोताओं, दर्शकों अथवा ज्ञान-पिपासुओं को कम समय में उचित मार्ग की ओर प्रेरित कर उनमें मूल्यादर्शों की स्थापना की गारंटी का पर्याय हो सकें।
जिस प्रकार एक सुंदर व अनुपम भवन के विन्यास में बहु प्रकार की तुच्छ व श्रेष्ठ सामग्री का समन्वय होता है, उसी प्रकार हमारे जीवन अथवा व्यक्तित्व के निर्माण में भी असंख्य प्रेरक, अग्रजों, गुरुओं, पुस्तकों, चिंतकों, विचारकों अथवा विचारधाराओं का स्नेहाशीष सन्निहित रहता है। अनुभव, सहज रूप में, अपने ऊपर किए गए परमार्थों की कृतज्ञता का ज्ञापन है तथा अपने भुक्त कटु यथार्थ का पारदर्शी अंकन। उनके लिए जो उसी मार्ग में सहजता से आपके अनुभवों से लाभान्वित हों, जीवन-वृत्ति अथवा अपेक्षित लक्ष्य या गंतव्य सहजता से प्राप्त कर सकें, इन सूत्रों की कुंजी का नाम है अनुभव।
वस्तुतः अनुभव परंपरा से मिली ज्ञान संपदा को उसी जीवटता से अपने मंतव्य को सोद्देश्यता से अगली पीढ़ी को अंतरित करना है जो उनकी प्राप्ति पर स्वयं को न केवल संरक्षित महसूस करे, बल्कि उस ज्ञान व शिक्षण की इस अक्षुण्ण परंपरा के संवर्धन में अपनी तदनुसार भूमिका भी सुनिश्चित कर सके।