मध्य प्रदेश में गरीबों को मुफ्त बांटने के लिए राशन की दुकानों में ऐसा अनाज भेज दिया गया जो पशुओं के खाने लायक था। इस पर दिलजले बेवजह हंगामा कर रहे हैं। कहा गया है कि दान की बछिया के दांत नहीं देखे जाते। सरकार की दरियादिली की तारीफ करने की बजाय मुफ्त में बंट रहे अनाज की गुणवत्ता की बात करना घोर असहिष्णुता और कृतघ्नता है।
वैसे सत्ता समदर्शी होती है। उसकी दृष्टि में समस्त सजीव प्राणियों में कोई भेद नहीं होता है। उसके लिए इनसान और पशु एक ही समान है। केवल वोट ही इन्हें अलग करता है। वैसे भी अन्न का अपमान करना उचित नहीं है। हमारे ग्रन्थों में कहा गया है कि जैसा भी मिले, निर्विकार रूप से ग्रहण करो। यह तो पूर्व जन्म का प्रारब्ध है। किसी के भाग्य में केक-मक्खन हैं तो किसी के नसीब में सड़ा हुआ अनाज। हमारी मान्यता है कि जीने के लिए खाना चाहिए, न कि खाने के लिए जीना चाहिए। इसलिये सड़ा-गला जो भी मिले उसे ईश्वर का प्रसाद मानकर निर्विकार भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए।
सरकार गरीबों की भूख का विशेष ध्यान रखती है। वैसे यह सरकार की मजबूरी भी है। आखिर उन्हीं के वोट से तो सरकार का जन्म होता है। गरीब सरकार को जन्म देने के बाद इसे अभिजात्य झूलाघर में छोड़ने के लिए विवश होते हैं। सरकार वहीं से संस्कार धारण कर शान से सिंहासन पर सवार हो जाती है। सरकार उसके जन्म दाताओं की चिंता कर उन्हें अनाज तो भेज देती है। लेकिन उस अनाज पर भ्रष्टाचार की इल्लियां और लापरवाही की फफूंद लगने से बचा नहीं पाती है। गरीब अनाज के साथ इन्हें भी निगलने के लिए अभिशप्त होता है। गरीब का भूखा पेट सब पचा लेता है। आखिर सरकार एक वोट के बदले गरीबों को छप्पन भोग तो नहीं भेज सकती है।
जनता को देश की पवित्र माटी से प्रेम करना सीखना चाहिए। गुणवत्ताहीन अनाज के साथ यदि यह मिट्टी भी पेट में जाती है तो स्वयं को धन्य समझना चाहिए। यही सच्चा राष्ट्रवाद है। वैसे भी पेट में जाने के बाद अनाज सड़ना ही है। यदि पहले से ही सड़ा हुआ अनाज खा लिया तो कौन-सा आसमान टूट पड़ा। नेता-अफसरों को देखो। ये लोग सड़क, पुल, नहर, कोयला, चारा और न जाने क्या-क्या खा लेते हैं और डकार तक नहीं लेते। और यह जनता है कि देश हित में सड़ा अनाज तक नहीं खा सकती।
अब सरकार मुफ्त में बासमती चावल तो बांट नहीं सकती। जो मिल रहा है उसे पकाओ-खाओ और प्रभु के गुण गाओ। सरकार यह तो नहीं कह रही है कि काम के न काज के, दुश्मन अनाज के। इसलिए निर्भीक होकर सरकारी प्रसाद ग्रहण करो। जब कोरोना तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ पाया तो इस सड़े हुये अनाज की क्या बिसात है।