मदन गुप्ता सपाटू
दशहरा पर्व के 20 दिन बाद दिवाली आती है। मान्यता है कि लंका से अयोध्या आने में भगवान राम को 20 दिन लगे थे। दिवाली के अवसर पर पंचोत्सव मनाने की परंपरा है। असल में ये पंच पर्व हमारे जीवन का सार हैं। पंच पर्व की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। दिवाली से जुड़े पांच पर्व अपने साथ सुख-समृद्धि, आरोग्यता, प्रेम और स्नेह को समेटे हुए हैं। धनतेरस से प्रारंभ होकर पावन पर्व भाई दूज पर जाकर समाप्त होता है।
इस तरह करें पूजन
कुबेर देव को धन का अधिपति कहा जाता है। माना जाता है कि पूरे विधि- विधान से जो भी कुबेर देव की पूजा करता है उसके घर में कभी धन संपत्ति की कमी नहीं रहती है। कुबेर देव की पूजा सूर्य अस्त के बाद प्रदोष काल में करनी चाहिए।
लक्ष्मी की पूजा : सूर्य अस्त होने के बाद करीब दो से ढ़ाई घंटों के बीच धनतेरस के दिन लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। नए कपड़े के टुकड़े के बीच में मुट्ठी भर अनाज रखा जाता है। आधा कलश पानी से भरें, जिसमें गंगाजल मिला लें। इसके साथ ही सुपारी, फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने और अनाज भी इस पर रखें। इस मंत्र का जाप करें-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
धनतेरस पर क्या खरीदें
लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है। चांदी खरीदने की भी प्रथा है। माना जाता है कि चांदी चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। चिकित्सा के देवता भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ्य और सेहत की कामना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन नए उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ रहता है। साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी का पूजन करने का विशेष महत्व है।
इस तरह हो शुरुआत
प्रातः प्रवेश स्थल व द्वार को धो दें और रंगोली बनाएं, वंदनवार, बिजली की झालर लगाएं। घर का सारा कूड़ा करकट, जाले साफ करें। नये वस्त्र पहनें। शरीर पर तेल, उबटन लगाएं। व्यवसायी बही-खाते, विद्यार्थी पुस्तकों की पूजा करें। जरूरतमंदों को दवाई दान दें। पुराना फटा पर्स बदल दें,नया पर्स या बैग खरीदें। धनतेरस और दिवाली पर दिन में न सोएं। प्रवेश द्वार साफ रखें, घर में जूते चप्पल पहनकर न चलें।
हर पर्व का मुहूर्त अलग-अलग
धनतेरस (02 नवंबर) : धनतेरस का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पावन पर्व 2 नवंबर को है। धनतेरस के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और आरोग्य का आशीर्वाद प्रदान करने वाले धन्वन्तरि की विशेष पूजा का विधान है। इस दिन घरेलू काम के सामान की खरीदारी को शुभ माना जाता है। इस दिन प्रदोषकाल में यमराज के लिए चौमुखा दीपक मुख्य द्वार पर जलाया जाता है। इस साल कार्तिक अमावस्या की तिथि 4 नवंबर सुबह 06:03 से 05 नवंबर को रात 02:44 बजे तक रहेगी। पूजन योग्य शुभ मुहूर्त शाम 06:18 से रात 08:11 बजे तक है।
नरक चतुर्दशी (03 नवंबर) : इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। नरक से जुड़े दोष से मुक्ति पाने के लिए शाम को द्वार पर दिया जलाया जाता है। मान्यता यह भी है कि हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हुआ था, इसलिए उनके भक्त इस दिन विधि-विधान से उनकी जयंती मनाते हैं। इस पर्व को रूप चौदस भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर उबटन लगाकर स्नान करने से रूप एवं सौंदर्य में वृद्धि होती है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। मालिश का समय : सुबह 06:06 से 06:34 बजे तक।
दिवाली (04 नवंबर) : इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी, ऋद्धि-सिद्धि के देवता गणपति, धन के देवता कुबेर के साथ महाकाली की पूजा का विधान है। सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए इन सभी देवी-देवताओं की रात्रि में साधना-आराधना की जाती है और उनके स्वागत में विशेष रूप से दीप जलाए जाते हैं। लक्ष्मी पूजा मुहूर्त : शाम 06:10 से 08:06 बजे तक। एवं रात्रि 11:38 से 12:30 बजे तक।
गोवर्धन पूजा (05 नवंबर) : दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। इसे अन्नकूट उत्सव भी कहते हैं। इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है। गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 06:35 से 08:47 बजे तक है। पूजा का सायंकाल मुहूर्त 03:21 से 05:33 बजे तक है।
भाई दूज (06 नवंबर) : गोवर्धन पूजा के अगले दिन भाईदूज या भैयादूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन संभव हो तो यमुना में या यमुना जल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इस दिन बहनें अपने भाइयों को टीका करती हैं। भाई दूज तिलक का समय दोपहर 01:10 से 03:21 बजे तक रहेगा।