एक समय की बात है। संत अबू हसन के पास एक व्यक्ति आया। वह बोला, ‘मैं गृहस्थी के झंझटों से बहुत परेशान हो गया हूं। पत्नी-बच्चों से मेरी बनती नहीं है। मैं सब कुछ छोड़कर साधू बनना चाहता हूं। आप अपने पहने हुए साधू वाले वस्त्र मुझे दे दीजिए, जिससे मैं भी आप की तरह साधू बन सकूं।’ उसकी बात सुनकर अबू हसन मुस्कुराकर बोले, ‘क्या किसी पुरुष के वस्त्र पहनकर कोई महिला पुरुष बन सकती है या किसी महिला के वस्त्र पहनकर कोई पुरुष महिला बन सकता है?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।’ संत ने उसे समझाया, ‘साधू बनने के लिए वस्त्र नहीं स्वभाव बदलना पड़ता है। अपना स्वभाव बदलो। फिर तुम्हे गृहस्थी भी झंझट नहीं लगेगी।’ बात उस व्यक्ति की समझ में आ गयी। उसने अपना स्वभाव बदलने का संकल्प लिया। अगर लगातार असफलता हाथ लग रही हो तो अपना स्वभाव बदलने की जरूरत है, हार मान कर उद्देश्य बदलने की नहीं।
प्रस्तुति : नृपेन्द्र अभिषेक नृप