पार्वती जी का नियम था कि वे नित्य विष्णु सहस्रनाम का पाठ करती थीं। एक दिन किंचित विलम्ब हुआ तो भगवान शंकर ने यह कहा कि मैं तो यह समझता हूं कि आप एक बार ‘राम’ नाम ले लीजिए, फलतः आपका पाठ पूरा हो जाएगा। पार्वती जी ने ऐसा ही किया एवं ‘राम’ नाम ले लिया और शंकर जी के साथ भोजन करने बैठ गईं। इससे शिव जी इतने प्रसन्न हुए कि जैसे ही पार्वती जी ने भोजन समाप्त किया, शंकर जी ने पार्वती जी को अपने आलिंगन में ले लिया, अपने में मिला करके अर्द्धनारीश्वर बन गए, एकाकार हो गए। पार्वती जी ने पूछा कि महाराज! विवाह के मंडप में विवाह हो जाने तक आप अर्द्धनारीश्वर नहीं बने, आज ही आप अर्द्धनारीश्वर क्यों बने! शंकर जी ने कहा कि हे पार्वती! मुझे विश्वास चाहिए और सच्चे अर्थों में अगर तुममें विश्वास की कमी होती तो तुम प्रतिप्रश्न करके पूछतीं कि हजार नाम और एक नाम बराबर कैसे हो जाएंगे? लेकिन आज सच्चे अर्थों में हम और तुम मिल कर दोनों एक हो गए। सती और पार्वती के जीवन में समर्पण का यही रहस्य था।
प्रस्तुति : पूनम पांडे