आचार्य विनोबा भावे अधिकारों और अहिंसा के लिए हमेशा कार्यरत रहते थे। एक बार उनके आश्रम में एक लड़का आया, जिसे बीड़ी पीने की लत पड़ गयी थी। एक दिन एक आश्रमवासी ने उस लड़के को छिपकर बीड़ी पीते हुए देख लिया। वह लड़का डर के मारे घबरा गया और विनोबा के पास गया। विनोबा भावे ने कहा, ‘बेटा, घबराना नहीं। तुमने गलती यह की है कि चोरी-छिपे पी है। मैं तुम्हें एक अलग कोठरी देता हूं और जब कभी बीड़ी पीने की इच्छा हो तब मुझसे मांगकर उस कोठरी में जाकर बीड़ी पी लिया करो।’ आश्रमवासियों को यह बात विचित्र लगी। विनोबा भावे ने कहा, ‘भाइयों, बीड़ी पीना खराब है। परंतु उसकी आदत है इसलिए उसको चोरी-छिपे बीड़ी पीनी पड़ती है। वह खुलेआम बीड़ी पीये, यह भी ठीक नहीं है। इसलिए उसको आदत छोड़ने का मौका देना चाहिए। यह अहिंसा का विचार है। अहिंसा की विशेषता यह है कि इसमें दूसरे के दोषों को सहन करने की शक्ति प्रकट करनी होती है। ऐसे प्रसंग पर मन में उदारता और सहानुभूति का रुख रखना चाहिए। हां, इतना आग्रह जरूर रखें कि उससे दूसरों का नुकसान न हो, भोग-विलास न बढ़े।’
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार