दिग्विजय सिंह नामक एक राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था। वह चाहता था कि उसके शासन में सभी सुखी हों। एक दिन उसने अपने मंत्रियों से कहा कि आप लोग किसी ऐसे व्यक्ति को खोज कर लाएं जो पूर्ण रूप से सुखी हो। राजा का आदेश सुनकर सभी ऐसे व्यक्ति की तलाश में निकल पड़े। मंत्री निराश होकर वापस राज्य की ओर लौटने लगे। मार्ग में उन्हें एक साधु प्रसन्न मुद्रा में भजन-कीर्तन करते हुए नजर आया। वे साधु के पास गए और उनसे अपनी समस्या बताई। सारी बात जानकर साधु बोले, ‘मैं सचमुच सुखी व्यक्ति हूं क्योंकि मेरे अंदर असंतोष की भावना नहीं है।’ मंत्री साधु को अपने साथ ले गए। साधु राजा से बोले, ‘राजन, सुखी तो सभी होना चाहते हैं किंतु सुखी कैसे रहा जाता है, यह कोई नहीं जानता इसलिए सबके पास अपने-अपने दुखों की लम्बी कतार है। वास्तव में मानव जीवन तो संघर्ष और समस्याओं का ही नाम है किंतु यदि मानव इन संघर्ष व समस्याओं का निडरता व प्रसन्नता से सामना करे और लोभ, मोह, ईर्ष्या, क्रोध, असंतोष आदि पर विजय प्राप्त कर ले तो फिर उसे सुखी होने से कोई नहीं रोक सकता। दरअसल, सुख उनके अंदर ही छिपा होता है।’ प्रस्तुति : रेनू सैनी