राजेंद्र कुमार शर्मा
पद्मपुराण में भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को बताते हैं, वैशाख के कृष्णपक्ष की एकादशी वरुथिनी के नाम से प्रसिद्ध है। वरुथिनी एकादशी के बारे में महात्म्य हिंदू देवता कृष्ण ने भविष्य पुराण में राजा युधिष्ठिर को बताया है। ‘बरुथिनी’ का अर्थ है ‘बख्तरबंद’ या ‘संरक्षित।’ इस प्रकार, जो लोग इस एकादशी का पालन करते हैं वे बुराई से सुरक्षित रहते हैं।
महत्व
वरुथिनी एकादशी लोक-परलोक में सौभाग्य प्रदान करने वाली है। वरुथिनी के व्रत से सदा पाप की हानि होती है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। यह मोक्षदायिनी है। वरुथिनी उपवास की तुलना दीर्घकालिक तपस्या से की गई है। एक जगह कहा गया है कि कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय स्वर्ण दान से जो फल मनुष्य को प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी का व्रत करने मात्र से प्राप्त हो जाता है।
हिंदू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति वरुथिनी एकादशी व्रत का पालन पूरे मन एवं श्रद्धा से करता है उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। पूरे विधि-विधान से वरुथिनी एकादशी करने वाले व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं अथवा उसके कष्टों का भी निवारण होता है। वरुथिनी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है एवं अनेक कष्टों से छुटकारा मिलता है।
वर्जित
वरुथिनी एकादशी पर कुछ नियमों का सख्ती से पालन करने का विधान बताया गया है। व्यक्ति को रात्रि जागरण भगवान विष्णु के निमित करना चाहिए। भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए, परिवार के सदस्यों के साथ भक्ति गीत और भजन गाना चाहिए। व्यक्ति को जुआ, खेलकूद, निद्रा, क्रोध, डकैती, झूठ बोलना, संकीर्ण सोच रखना, सिर, चेहरा या शरीर मुंडवाना, शरीर पर तेल लगाना और दूसरों के बारे में कुछ बुरा कहने से बचना चाहिए। व्यक्ति को हिंसा और काम भावना का त्याग करना चाहिए। मांस, उड़द की दाल, चना, शहद, सुपारी, पान और पालक नहीं खाना चाहिए। बेल धातु के बर्तन में भोजन करना तथा दूसरे के घर में भोजन करना वर्जित है। माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी पर इन सभी नियमों का पालन करने से व्यक्ति को समाज में समृद्धि, नाम और प्रसिद्धि मिलती है।
व्रत और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत 3 मई रात 11:27 बजे होगी और समापन 4 मई रात 8:40 बजे होगा। द्वादशी तिथि 5 मई को उपवास समापन का समय सुबह 5:54 से 8:29 बजे तक रहेगा।
कथा प्रसंग
मान्यता है कि दशमी के दिन सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण नहीं किया जाता। एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर, साफ कपड़े धारण किए जाते है। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीला फल, पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना शुभ माना गया है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा घर में सुख-समृद्धि लाती है। रात के समय भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा करें। मान्यतथा है कि वरुथिनी एकादशी के अनुष्ठान से मनुष्य सब पापों से मुक्ति पाकर वैकुण्ठ में प्रतिष्ठित होता है।