घनश्याम बादल
दो अक्षर के नाम ‘राम’ में संपूर्ण दिव्यता है। राम जीवन के हर क्षेत्र में समाए हैं। धर्म, दर्शन, अध्यात्म, साहित्य और राजनीति सब अपने-अपने तरीके से ‘राममय’ रहे हैं समय-समय पर। राम एक ऐसी प्रबल आस्था है जो दुनिया भर से कहलवा लेती है ‘राम नाम जगत आधारा’ और जब भी कोई आपदा विपदा आती है तो एक ही बात मुंह से निकलती है ‘सबकी भली करेंगे राम।’
चैत्र शुक्ल नवमी को आस्थामयी होकर सारा देश श्रीराम का जन्म उत्सव मनाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले राम, अपने समय के एक छोटे से राज्य अयोध्या के राजा दशरथ के पराक्रमी बेटे, पितृ आज्ञा के पालक, दुष्टहंता, शोषितों व पीड़ितों के रक्षक, नारी का सम्मान करने व बचाने वाले नायक, अपनी प्रजा के भावों को समझने व उन्हें महत्ता देने वाले राजा, अपने न्याय के बल पर रामराज को अक्षुण्ण व अमर बना देने वाले रहे।
दशरथ के घर जन्मे राम
सुखसागर जैसे ग्रंथों में राम का जन्म त्रेता में होना माना गया है जिसके अनुसार कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष है जो कि सबसे छोटा युग है। द्वापर उससे दोगुना व त्रेता उससे भी दोगुना होना मानते हैं। इस तरह राम आज से कम से कम 12 से 14 लाख वर्ष पूर्व हुए थे। मिथकों व कालगणना के हिसाब से चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी राम की जन्मतिथि है। एक विद्वान ने तो यह तक दावा किया है कि राम की जन्म तिथि 5414 ईसा पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को है। जन्म की बात को अलग करें तो आज भी राम का नाम भारतीय संस्कृति, सभ्यता, संस्कारों व मूल्यों का प्रतीक है। समाज उनमें एक मर्यादा पुरुषोत्तम शासक, लोकरंजक जनकल्याणकारी महान राजा के दर्शन करता है। जनश्रुतियों व रामायण की कथा में राम अहिल्या, केवट, शबरी, सुग्रीव, जटायु या विभीषण जैसे हर आस्थावान त्रस्त व पीड़ित पात्र को संकट से मुक्त करते हैं। श्रीराम की गुरु भक्ति व समर्पण अद्भुत है। वे गुरु की आज्ञा का पालन पूरे समर्पण के साथ करते हैं।
दुष्टहंता व पराक्रमी राम
जरूरत पड़ने पर राम दुर्बलों को सताने, मारने तथा उनका शोषण करने वालों को पहले तो सत्पथ पर लाने का प्रयास करते हैं, पर जब ऐसे लोग अत्याचार की सीमा पार करने लगते हैं तब राम दुष्टहंता बन जाते हैं। सागर को सोख लेने तक पर उतर आते हैं। राम में पराक्रम कूट-कूट कर भरा है। राम जात-पात तथा ऊंच-नीच से परे हैं। राजा के रूप में राम का कोई सानी नहीं है। राम स्वयं सादा जीवन उच्च विचार का पालन करते हैं पर अपनी प्रजा को सारी सुविधाएं व सुख देने में कोई कसर नहीं उठा रखते। आज भी प्रजा अपने शासकों में राम की छवि ढूंढ़ती है। छोटे-छोटे संसाधनों का सही उपयोग सीखना हो तो राम आज भी एक आदर्श प्रबंधक ठहरते हैं। राम ऐसे दक्ष सेनानानायक हैं कि दिव्य अस्त्र शस्त्रों से युक्त महाबली रावण को मायावी पुत्रों, राक्षसों व लंका की सेना सहित महज वानर, भालुओं की मदद से परास्त कर देते हैं। साहित्य में भी राम का वर्णन अनुपम है। राम कबीर के लिए निराकार, तुलसी के लिए साकार हैं। वाल्मीकी की प्रेरणा हैं, महाकवि भास व कंबन उन पर रीझते हैं तुलसी उनके भक्त हैं, केशव तो राम के बिना हैं ही नहीं। राम के चरित्र एवं कार्यों तथा व्यवहार से युगों-युगों से प्रेरणा ली जा रही है और आगे भी ली जाती रहेगी।