श्रीकृष्ण की लीलाओं को याद करने का उत्सव : The Dainik Tribune

श्रीकृष्ण की लीलाओं को याद करने का उत्सव

श्रीकृष्ण की लीलाओं को याद करने का उत्सव

अशोक ‘प्रवृद्ध’

यूं तो सम्पूर्ण भारत में बड़े उत्साह, धूमधाम व समारोहपूर्वक अच्छाई की जीत का प्रतीक पर्व होली का त्योहार मनाया जाता है, परन्तु उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नंदगांव (नन्दगांव) और बरसाना कस्बों में होली का यह त्योहार पृथक रूप से और अजीबोगरीब प्रकार से मनाया जाता है, जिसे लठमार अर्थात‍् लट्ठमार (लठामार) होली की संज्ञा से अभिहित किया गया है।

लठमार होली उत्सव का एक रूप है, जिसमें लोग लाठी के साथ एक-दूसरे को मारते हैं। बरसाना की लठमार होली सर्वाधिक प्रसिद्ध है। होली का प्रसंग छिड़ते ही मन में बरबस ब्रज का नाम आ जाता है। होली सप्ताह आरम्भ होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूब जाता है। होलिकोत्सव के लिए अत्यंत लोकप्रिय नंदगांव और बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बड़ी धूमधाम व हर्षोल्लासपूर्वक मनाई जाती है। इस विशेष अवसर पर कई मंदिरों में पूजा करने के बाद नंदगांव के पुरुष बरसाना होली खेलने जाते हैं और बरसाना की महिलाएं नन्दगांव होली खेलने आती हैं। होली की टोलियों में नन्दगांव (नंदगांव) के पुरुष होने का कारण यह है कि श्रीकृष्ण नंदगांव के ही थे और बरसाने की महिलाएं क्योंकि राधा बरसाने की थीं। राधा की जन्मस्थली बरसाना में यह होली शेष भारत में खेली जाने वाली होली से कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इस दिन लठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगांव के पुरुष अर्थात‍् गोप राधा के मन्दिर लाडली जी पर झंडा फहराने की कोशिश करते हुए महिलाओं के लट्ठ से बचने की कोशिश करते हैं। मान्यता है कि इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हंस-हंस कर लाठियां खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होरी गाई जाती है। यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। वृन्दावन की होली भी उल्लास भरी होली होती हैं, जहां बांके बिहारी मंदिर की होली और गुलाल कुंद की होली बहुत महत्वपूर्ण है।

मान्यता है कि ब्रज में स्वयं भगवान ने होलिकोत्सव मनाया था। यही कारण है कि देश-विदेश से लोग ब्रज की गलियों में खेली जाने वाली इस पृथक प्रकार की होली के दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि ऐसा करके भगवान श्रीकृष्ण द्वारा द्वापर युग में की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति की जा रही है। इस विशेष प्रकार की होली की शुरुआत ब्रज के बरसाना गांव से हुई थी। विगत साढ़े पांच हजार से भी अधिक वर्षों से मनाया जाने वाला यह वार्षिक आयोजन आज भी उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार नंदगांव निवासी भगवान श्रीकृष्ण होली के समय राधा के निवास स्थल बरसाना गए थे। गोपियों के साथ मित्रता के लिए भी प्रसिद्ध श्रीकृष्ण द्वारा बरसाना प्रवास के इस दिन राधा के चेहरे पर रंग लगा दिए जाने से क्षुब्ध राधा की सखियां और वहां की महिलाओं ने श्रीकृष्ण को बंदी बना लिया और उन पर बांस और डंडे की बौछार कर उन्हें बरसाना से निकाल दिया था। होली के अवसर पर प्रतिवर्ष भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की इस घटना के स्मरण स्वरूप फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनोरंजन के रूप में लठमार होली मनाई जाती है। प्रतिवर्ष नंदगांव के पुरुष बरसाना शहर में जाते हैं और वहां की महिलाएं उनको उसी तरह लाठी और रंगों से खेलते हुए बाहर निकालती हैं।

लठमार होली से सम्बन्धित एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण और उनके साथियों द्वारा स्नान घाट से कपड़ा चुरा लिए जाने से क्षुब्ध, गुस्साई और क्रोधित राधा, श्रीकृष्ण व उनके साथियों को सबक सिखाने के लिए अपनी सखियों संग नन्दगांव जाती हैं। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के पलों का स्मरण रखने के लिए नंदगांव के पुरुष, ग्वाल-बाल विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना के पश्चात‍् होली खेलने बरसाना जाते हैं, जहां महिलाएं उन्हें लाठी से मार गांव से बाहर निकाल देती हैं। इन पुरुषों को हुरियारे (होरियारे) कहा जाता है। एक सप्ताह तक चलने वाली बरसाने की इस होली में पुरुष और महिलाएं रंगों, गीतों, नृत्यों और लठमार खेल में लिप्त होते हैं। नंदगांव से बरसाना आने वाले पुरुष गाने गाकर महिलाओं को और उकसाते हैं। महिलाएं गोपियों का काम करती हैं और मस्ती की धुन में पुरुषों पर लाठी बरसाती हैं। बरसाना की महिलाओं के हाथों लाठी खाने वाले पुरुषों को महिलाओं के कपड़े पहनना और सार्वजनिक रूप से नृत्य करना होता है। इस लठमार होली में चोट लगने से बचने के लिए पुरुष सुरक्षात्मक कवच पहने हुए आते हैं। इस लठमार होली में रंग सभी लोगों के उत्साह को और बढ़ाता है। इस खेल में शामिल होने वाले लोग श्रीकृष्ण और उनकी राधा को श्रीकृष्ण और श्रीराधे बोलते हुए स्मरण करते हैं। बरसाना की होली के बाद अगले दिन दशमी को बरसाना की महिलाएं नंदगांव आती हैं और यह उत्सव जारी रहता है। इस वर्ष लठमार होली 1 मार्च को बरसाना में और 2 मार्च, 2023 को नंदगांव में होगी। श्रीकृष्ण भूमि मथुरा में लठमार होली 3 मार्च को मनाई जाएगी।

उल्लेखनीय है कि लठमार होली का यह उत्सव बरसाना में राधा को समर्पित एकमात्र मन्दिर राधा रानी मंदिर में होता है। एक सप्ताह तक वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में जारी रहने वाले इस विशेष त्योहार में फूलों से बने रंग और गुलाल का इस्तेमाल किया जाता है। इस पवित्र त्योहार पर बिहारीजी की मूर्ति को सफेद कपड़े पहने भक्तों द्वारा होली खेलने के लिए लाया जाता है। इसके बाद लोग पानी और रंगों के इस खेल में खो जाते हैं और संगीत के साथ नृत्य करते हैं। लोक व पौराणिक मान्यतानुसार ब्रज की विशेष मस्ती भरी होली होने का कारण यह है कि इसे श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ हंसी-ठिठोली किया करते थे, जिस पर राधारानी तथा उनकी सखियां ग्वाल-बालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल-वृंद भी लाठी या ढालों का प्रयोग किया करते थे, जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गया।

बरसाने में टेसू के फूलों के भगोने तैयार रहते हैं। दोपहर तक घमासान लठमार होली का समां बंध चुका होता है। नंदगांव के लोगों के हाथ में पिचकारियां और बरसाने की महिलाओं के हाथ में लाठियां होती हैं और फिर शुरू हो जाती है होली। पुरुषों को बरसाने वालियों की टोली की लाठियों से बचना होता है और नंदगांव के हुरियारे लाठियों की मार से बचने के साथ-साथ उन्हें रंगों से भिगोने का पूरा प्रयास करते हैं। इस दौरान होरियों का गायन भी साथ-साथ चलता रहता है और आसपास की कीर्तन मंडलियां वहां जमा हो जाती हैं।

बरसाना की महिलाएं नंदगांव के व्यक्ति को मार रही होती हैं क्योंकि वे बरसाने में लठमार होली मनाने आए हैं। महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर बरसाना की महिलाओं को चकमा देना होता है। पकड़े जाने पर नंदगांव के पुरुषों की जमकर पिटाई होती है अथवा महिलाओं के कपड़े पहनाकर, शृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। मान्यता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस मस्तीभरी होली में सिर्फ प्राकृतिक रंग-गुलालों का ही प्रयोग किया जाता है, जिससे वातावरण बहुत ही सुगन्धित, आनन्दित व उत्साहित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया पुनः दोहराई जाती है, लेकिन इस बार बरसाना नहीं बल्कि नंदगांव में, जहां नंदगांव की गोपियां, बरसाना के गोपों की रंग-अबीर और लट्ठों से जमकर धुलाई करती हैं।

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