रामदीन की गांव में थोड़ी-सी खेती-बाड़ी थी। उसने विवाह किया नहीं था। खेती से जो भी कमाई होती, उसे परोपकार में खर्च कर देता। गांव में किसी को कोई कष्ट हो, वह उसकी सहायता करने के लिए तैयार रहता। निराश्रित पशु-पक्षी भी उसकी झोपड़ी के पास मंडराते रहते, उनको दाना-पानी देता रहता था। एक रात अचानक दूधिया प्रकाश से उसकी झोंपड़ी जगमग हो उठी। रामदीन ने देखा कि इस दिव्य-प्रकाश से घिरा एक देवदूत अपने पत्रक में कुछ लिख रहा है। कौतूहलवश रामदीन ने पूछा, ‘महाराज आप अपने बहीखाते में क्या लिख रहे हैं?’ देवदूत ने कहा, ‘मैं उनके नाम लिख रहा हूं जो ईश्वर से प्रेम करते हैं।’ ‘भगवन, इन नामों की लिस्ट में क्या मेरा नाम भी है?’ रामदीन ने पूछा। ‘नहीं’ देवदूत ने जवाब दिया। तो फिर मेरा नाम उन लोगों के साथ लिख लीजिए जो कि ईश्वर द्वारा निर्मित जीवों को प्रेम करते हैं। रामदीन ने प्रार्थना की। देवदूत ने ऐसा ही किया। अगली रात को देवदूत फिर रामदीन के पास आया, उसे वह बहीखाता दिखाया जिसमें ईश्वरीय प्रेम पाने वालों का नाम दर्ज था। उसमें रामदीन का नाम सबसे ऊपर था।
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा