योगेश कुमार गोयल
भारत में सभी पर्व-त्योहार, पूजा-पाठ इत्यादि का आयोजन प्रायः घर की सुख-शांति के लिए किया जाता है, किन्तु एक पूजा ऐसी भी है, जो केवल पारिवारिक सुख-शांति के लिए नहीं, बल्कि व्यापार में उन्नति के लिए की जाती है। प्रतिवर्ष 17 सितंबर को ‘विश्वकर्मा पूजा’ काम में बरकत के लिए की जाती है। इस दिन सभी प्रकार की मशीनों, जैसे औजार, गाड़ी, कम्प्यूटर अथवा प्रत्येक ऐसी वस्तु, जो आपके कार्य को पूरा करने में इस्तेमाल होती है, उसकी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में उन्नति होती है।
सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। उन्हें दुनिया के पहले वास्तुकार और आधुनिक युग के इंजीनियर की उपाधि दी गई है। पुराणों में बताया गया है कि आदि देव ब्रह्मा जी इस सृष्टि के रचयिता हैं और उन्होंने विश्वकर्मा की सहायता से ही इस सृष्टि का निर्माण किया। उन्हें औजारों का देवता और धातुओं का रचयिता भी कहा जाता है। वास्तु शास्त्र में महारत हासिल होने के कारण ही विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। यही कारण है कि वास्तुकार कई युगों से भगवान विश्वकर्मा को अपना गुरु मानते हुए उनकी पूजा करते आ रहे हैं।
ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर पुराणों में एक कथा का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार, सृष्टि की शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीरसागर में प्रकट हुए और उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नामक स्त्री से हुआ। धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए और सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्प शास्त्र में अत्यंत निपुण थे। वास्तु के ही पुत्र का नाम विश्वकर्मा है, जो अपने माता-पिता की ही भांति महान शिल्पकार हुए। सृष्टि में अनेक अद्भुत निर्माण विश्वकर्मा ने ही किए।
5 स्वरूप
ग्रंथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों व अवतारों का उल्लेख मिलता है। सृष्टि के रचयिता ‘विराट विश्वकर्मा’, महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र ‘धर्मवंशी विश्वकर्मा’, आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र ‘अंगिरावंशी विश्वकर्मा’, महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋषि अथवी के पुत्र ‘सुधन्वा विश्वकर्मा’ तथा उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य शुक्राचार्य के पौत्र ‘भृंगुवंशी विश्वकर्मा’।
शास्त्रों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म माघ शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था, इसलिए इन्हें भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। कुछ धर्मग्रंथों में यह उल्लेख भी मिलता है कि महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मविद्या जानने वाली थीं, जिनका विवाह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास के साथ हुआ था, उन्हीं से सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। कुछ कथाओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का जन्म देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है।
इंद्र के वज्र से लेकर इंद्रप्रस्थ तक
धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि दधीचि द्वारा दी गई उनकी हड्डियों से ही विश्वकर्मा ने वज्र का निर्माण किया, जो देवताओं के राजा इंद्र का प्रमुख अस्त्र है। देवताओं का स्वर्ग हो या रावण की सोने की लंका अथवा भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका या पांडवों का इंद्रप्रस्थ, इन सभी का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया था। विश्वकर्मा ने अपने वास्तु ज्ञान से यमपुरी, वरुणपुरी, पांडवपुरी, सुदामापुरी, शिवमंडलपुरी, पुष्पक विमान, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, भगवान शिव का त्रिशूल, यमराज का कालदंड, दानवीर कर्ण के कुंडल इत्यादि का भी निर्माण किया। देवताओं के लिए उन्होंने अनेक भव्य महलों, आलीशान भवनों, अस्त्रों और सिंहासनों का निर्माण किया। इसीलिए उन्हें ‘देवताओं के शिल्पी’ के रूप में भी विशिष्ट स्थान प्राप्त है। चार युगों में उन्होंने कई नगरों और भवनों का निर्माण किया। रावण के अंत के बाद जिस पुष्पक विमान में बैठकर श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और अन्य साथी अयोध्या लौटे, वह भी विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित किया गया था। सबसे पहले सत्ययुग में उन्होंने स्वर्गलोक का निर्माण किया, त्रेता युग में लंका का, द्वापर युग में द्वारिका का और कलियुग के आरंभ के 50 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर तथा इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया। मान्यता है कि उन्होंने ही जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में स्थित कृष्ण, सुभद्रा और बलराम की विशाल मूर्तियों का निर्माण किया। विश्वकर्मा जयंती प्रतिवर्ष 17 सितंबर को मनाए जाने का भी महत्व है। यह जयंती वर्षा ऋतु के अंत तथा शरद ऋतु के आरंभ में मनाए जाने की परंपरा रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस प्रकार मकर संक्रांति हर साल प्रायः 14 जनवरी को ही पड़ती है, उसी प्रकार कन्या संक्रांति 17 सितंबर को पड़ती है। इसी दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं और इसीलिए विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर को ही मनाई जाती है।