यशपाल कपूर
महामाई त्रिपुर बालासुन्दरी मंदिर त्रिलोकपुर उत्तरी भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है, जहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन चैत्र एवं आश्विन मास में पड़ने वाले नवरात्रों के अवसर पर इस मंदिर में विशेष मेले का आयोजन होता है जिसमें लाखों की तादाद में श्रद्धालु हिमाचल के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ एवं उत्तराखंड इत्यादि क्षेत्रों से आकर माता के दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त करते है।
जिला मुख्यालय नाहन से लगभग 24 किलोमीटर दूरी पर स्थित माहमाई त्रिपुर बाला सुंदरी का लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष पुराना मंदिर धार्मिक तीर्थस्थल एवं पर्यटन की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है। यहां पर चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में लगने वाले मेले की मुख्य विशेषता यह है कि यहां पर किसी भी प्रकार की शोभा यात्रा नहीं निकाली जाती। श्रद्धालु हजारों की संख्या में मां भगवती की भेंटे गाते हुए आते हैं और मंदिर परिसर में सारी रात मां का गुणगान करते है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शुद्ध वस्त्र पहनकर अपनी मुरादें पाने के लिए प्रात: से ही लंबी कतारों में माता का गुणगान करते हुए माता बाला सुन्दरी के विशाल भवन में दर्शन करते है।
पिंडी रूप में स्थापित
श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थली पर माता साक्षात रूप में विराजमान है और यहां पर की गई मनोकामना अवश्य पूरी होती है। जनश्रुति के अनुसार महामाई बाला सुन्दरी उत्तरप्रदेश के जिला सहारनपुर के देवबंद स्थान से नमक की बोरी में त्रिलोकपुर आई थी। कहा जाता है कि लाला रामदास व्यक्ति जो सदियों पहले त्रिलोकपुर में नमक का व्यापार करते थे, उनकी नमक की बोरी में माता उनके साथ यहां आई थी। लाला रामदास की दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी। लाला रामदास ने देवबन्द से लाया तमाम नमक दुकान में डाल दिया और बेचते गए मगर नमक समाप्त होने में नहीं आया।
लाला जी उस पीपल के वृक्ष को हर रोज प्रात: जल दिया करते थे और पूजा करते थे। उन्होंने नमक बेचकर बहुत पैसा कमाया और चिंता में पड़ गए कि नमक समाप्त क्यों नहीं हो रहा। मान्यता है कि माता बाला सुन्दरी ने प्रसन्न होकर रात्रि को लाला जी के सपने में आकर दर्शन दिए और कहा कि भक्त मैं तुम्हारे भक्तिभाव से अति प्रसन्न हूं। मैं यहां पीपल वृक्ष के नीचे पिण्डी रूप में स्थापित हो गई हूं और तुम मेरा यहां पर भवन बनाओ। लाला जी को अब भवन निर्माण की चिन्ता सताने लगी। उसने फिर माता की अाराधना की और माता से आह्वान किया कि इतने बड़े भवन निमार्ण के लिए मेरे पास सुविधाओं व धन का अभाव है और विनती की कि आप सिरमौर के महाराजा को भवन निर्माण का आदेश दें।
भवन निर्माण
किंवदंती है कि माता ने अपने भक्त की पुकार सुन ली और उस समय के सिरमौर के राजा प्रदीप प्रकाश को सोते समय स्वप्न में दर्शन देकर भवन निर्माण का आदेश दिया। महाराजा प्रदीप प्रकाश ने तुरन्त जयपुर से कारीगरों को बुलाकर भवन निमार्ण का कार्य आरंभ करवाकर सन् 1640 में पूरा किया और वर्तमान में यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में उभर चुका है।