सौरभ जैन
चुनाव परिणाम वाले दिन सुबह-सवेरे से ही प्रत्याशियों से भी अधिक उत्साह न्यूज एंकरों में नजर आता है। यहां मत पेटियों से मत गिनती को बाहर आते, वहां ईवीएम अग्नि परीक्षा के दौर से गुजरने वाली फीलिंग को भोग रही होती है। मत पेटियों में से मत बाहर आते ही रुझान बाहर आना शुरू हो जाते हैं। रुझानों में सबसे पहले हम बता रहे हैं कि दौड़ में सब दौड़ पड़ते हैं। फलाने उम्मीदवार ढिकाने उम्मीदवार से आगे चल रहे हैं, यह खबर बताने में चैनल आगे चल रहे उम्मीदवार से भी आगे निकल जाते हैं।
चुनाव आयोग की कार्यक्षमता से खबरिया चैनलों की कार्यकुशलता अधिक होती है। चैनल एडवांस खबर सुनाने में विश्वास रखते हैं। एंकर राजनीतिक विश्लेषकों से लड़ते-लड़ते अचानक ‘हम आपको यही रोक रहे हैं और अपने दर्शकों को बताना चाहेंगे कि इस वक्त की बड़ी खबर लुटियागंज से आ रही है जहां चालूलाल जी एक वोट से पीछे हो गए हैं’ इस खबर को सुनकर तो नील आर्मस्ट्रांग की आत्मा भी बोल उठती है कि काश! मेरे जमाने में ऐसी मीडिया होती तो कसम से चांद पर कदम रखते ही मजा आ जाता।
सबसे दिलचस्प बात तो यह होती है कि जब मतों की संख्या थोड़ी भी ऊपर-नीचे होती है, एंकर बिरादरी न्यूज रूम को ऊंचा-नीचा कर देती है। यह वह स्थिति होती है जिसे रिक्टर पैमाने में माप सकते हैं। कुछ एंकर शृंगार रस के कवियों की तरह होते हैं। ये मतगणना में दस हजार मतों से पीछे चल रहे नेता को भी ऐसा ढांढस बंधा देते हैं कि नेताजी ‘हम होंगे कामयाब’ गुनगुनाने लग जाते हैं। ये ऐसा इसलिए करते हैं ताकि हार रहे दल के कार्यकर्ता भी इनका चैनल अंतिम समय तक देखते रहें।
कुछ एंकर वीर रस के कवियों की तरह भी होते हैं जो सारा दिन टेलीविजन के सामने बैठी जनता के सामने कोई विजन न बचने पर अपने कला कौशल का प्रदर्शन दिखाकर जनता का मनोरंजन करते हैं। दिन भर से कौन आगे, कौन पीछे देखने के बाद चैनल की पैनल में बैठे वक्ता जब बकता की श्रेणी में सम्मिलित हो, दर्शकों के सिरदर्द का कारण बनते हैं तब मोर्चे पर हास्य रस के कवि सरीखे एंकरों को आना पड़ता है। अंत में जनता परिणाम चाहती है जैसा कहते हैं कि लोकतंत्र जनता का जनता के लिए शासन है, लेकिन यहां तो लोकतंत्र न्यूज रूम में कैद डिबेटतंत्र बन जाता है।
न्यूज एंकर नेताओं के धैर्य की परीक्षा लेते रहते हैं। बढ़त बनाने वाले से बढ़त बनाने पर कैसा महसूस कर रहे हैं और घटत बनाने वाले से घटत पर सेम क्वेश्चन पूछा जाता है। हम कह सकते हैं कि एंकर कम्युनिटी समानता में पूर्ण रूप से विश्वास रखती है। समर्थक सारी तैयारी किये होते हैं, टीवी स्क्रीन पर बढ़त दिखते ही बम की बत्ती सुलगा दी जाती है और घटत होने पर बम रिलेक्स महसूस करता है।