बीते सप्ताह वाशिंगटन डीसी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उनके अमेरिकी समकक्ष जेक सुलिवन के बीच क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी यानी आईसीईटी पर हुई पहली बातचीत वक्त की जरूरतों के अनुरूप ही है। भारत और अमेरिका के बीच इस सहयोग की शुरुआत मई, 2022 में टोक्यो में आयोजित क्वाड शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की घोषणा के बाद की गई है। दरअसल, चीन की तकनीक संचालित विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं की पृष्ठभूमि में भारत व अमेरिका रणनीतिक प्रौद्योगिक साझेदारी व रक्षा औद्योगिक सहयोग बढ़ाने के बारे में गंभीर पहल कर रहे हैं। यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस से जारी बयान में कहा गया है कि दोनों ही देश आपसी विश्वास से सुरक्षित प्रौद्योगिकी के जरिये पारिस्थितिकी तंत्र के अनुरूप कदम उठा रहे हैं। विश्वास व्यक्त किया गया है कि यह सहयोग दोनों देशों के लोकतांत्रिक मूल्यों व संस्थानों को और मजबूती देगा। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मौजूदा चुनौतियों के बीच खुफिया, निगरानी व टोही अभियान रक्षा तैयारियों का अभिन्न हिस्सा हैं। जो भारत व अमेरिका के बीच तीन अरब डॉलर के अत्याधुनिक ड्रोन सौदे के शीघ्र मूर्त रूप दिये जाने की आवश्यकता दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि इसके क्रियान्वयन पर पिछले पांच वर्ष से काम चल रहा है। निस्संदेह, ये ड्रोन वास्तविक नियंत्रण रेखा तथा हिंद महासागर में निगरानी तंत्र को मजबूत करने में सहायक होंगे, खासकर उन इलाकों में जहां चीन अपनी ताकत दिखाता रहा है।
उल्लेखनीय है पिछले दिनों अमेरिका के सीमा क्षेत्र में उड़ने वाले चीनी निगरानी गुब्बारे को लेकर खासा विवाद हुआ, जिसे बाद में अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने जमींदोज कर दिया। दरअसल, इसी निगरानी गुब्बारे प्रकरण के विरोध में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपनी बीजिंग यात्रा भी स्थगित कर दी थी। ऐसे साम्राज्यवादी चीन के पड़ोसी होने के कारण भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर किसी तरह की ढिलाई नहीं करनी चाहिए। पिछले दिनों हिंद महासागर व श्रीलंका के तट पर चीन के एक खुफिया समुद्री जहाज को लेकर भी खासा विवाद हुआ था। जिसको लेकर चीन का दावा था कि वह जहाज समुद्री क्षेत्रों में अनुसंधान के कार्य में लगा हुआ है। भारत ने श्रीलंका के बंदरगाह पर इस चीनी पोत के रुकने पर आपत्ति व्यक्त की थी, लेकिन उसके बावजूद श्रीलंका सरकार ने उसे अपने बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दे दी थी। निस्संदेह, जैसे-जैसे युद्ध हाइटैक होते जा रहे हैं, भारत को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, टेलीकॉम टेक्नोलॉजी, हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग, जेट इंजन के को-प्रोडक्शन, सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन बनाने और व्यावसायिक स्पेस लॉन्च जैसे क्षेत्रों में अमेरिकी सहयोग बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है। निस्संदेह, ऐसा करके भारत साम्राज्यवादी चीन के मंसूबों का दमदार तरीके से प्रतिवाद करने में सक्षम बन पायेगा। इससे भारतीय सेनाओं का आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ उन्हें अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा। निस्संदेह, एक बड़ी भू-राजनीतिक चुनौती का मुकाबला अमेरिका व भारत समान रूप से कर रहे हैं।