केंद्र सरकार ने विपक्षी बायकाट के बीच बुधवार को राज्यसभा में तीन श्रम सुधार विधेयकों को पारित कर दिया। लोकसभा इन्हें पहले ही पारित कर चुकी थी। बकौल केंद्र सरकार श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है। दरअसल, कोविड संकट के बीच मल्टीनेशनल कंपनियों के चीन से मोहभंग होने पर इन्हें आकर्षित करने के मकसद से सरकार ने हाल के कृषि व श्रम सुधारों को गति दी है। नये सुधारों के तहत अब कंपनियों को अपना कामकाज समेटने और तीन सौ कर्मचारियों वाली फर्म को कर्मचारियों की छंटनी करने के लिये सरकार की अनुमति नहीं लेनी होगी। केंद्रीय श्रम मंत्री की दलील है कि रोजगार सृजन के लिये जरूरी था कि सौ कर्मचारियों तक वाली कंपनी को छंटनी करने के लिये सरकार से अनुमति न लेने की सीमा का विस्तार किया जाये। इस सीमा के चलते नियोक्ता सौ से अधिक कर्मचारियों को भर्ती करने से कतराते थे। वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या सौ से नीचे रखते हैं। उनका तर्क है कि इस सीमा के तीन सौ तक होने से रोजगार बढ़ेगा और नियोक्ता को नौकरी देने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा। सरकार का कहना है कि इन सुधारों का मकसद कारोबारी सुविधाओं को बढ़ाकर निवेश को आकर्षित करना और रोजगार में बढ़ोतरी करना है। ये सुधार देश के 16 राज्य पहले ही लागू कर चुके हैं। दरअसल, संसद में औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और पेशेवर सुरक्षा से जुड़े तीन लेबर कोड पारित किये गये हैं। सरकार ने वेतन से संबंधित पहला कोड बीते साल पारित करा लिया था। ऐसा करके सरकार ने 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार व्यापक कोड में समाहित कर दिया। सरकार कह रही है कि कारोबारी सहूलियत बढ़ाने और श्रमिकों को यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी देने के मकसद से ये बदलाव किये गये हैं। प्रधानमंत्री का भी कहना है कि ये सुधार परिश्रमी श्रमिकों के हित सुनिश्चित करेंगे।
दरअसल, तर्क है कि सरकार ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ की दिशा में एक कदम आगे बढ़ी है। सरकार का तर्क है कि नयी श्रम संहिता न्यूनतम वेतन और समय पर भुगतान को सर्वव्यापी बनाती है और श्रमिकों की पेशागत सुरक्षा को प्राथमिकता देती है जो काम करने का बेहतर वातावरण बनाने और आर्थिक विकास को गति देने का कार्य करेंगे। साथ ही सुधार कारोबारी सुगमता को सुनिश्चित करेंगे। तर्क यह भी है कि इससे लालफीताशाही और इंस्पेक्टरी राज पर अंकुश लगेगा। बुधवार को श्रमिकों के कल्याण व सुरक्षा के लिये जिन तीन विधेयकों को पारित किया गया, उसमें उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020, औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 शामिल थे। श्रम मंत्री का दावा है कि ये सुधार कर्मचारियों के हितों की रक्षा करेंगे और भविष्य निधि संगठन तथा कर्मचारी राज्य निगम के दायरे का विस्तार करके श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे। कहा जा रहा है कि देश के संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को इससे कई तरह की सुविधाएं मिलेंगी। अब सभी श्रमिकों को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा। उनका वेतन डिजिटल माध्यम से भुगतान करना होगा। साल भर में श्रमिकों का हेल्थ चेकअप करना भी अनिवार्य किया गया । सरकार का कहना है कि वह प्रवासी श्रमिकों का डेटा बैंक तैयार कर रही है तथा व्यवस्था की जा रही है कि प्रवासी मजदूरों को मूल निवास जाने के लिये साल में एक बार यात्रा भत्ता दिया जाये। पहले किसी कंपनी में दुर्घटना होने पर जुर्माने की जो राशि सरकार के खाते में जाती थी, अब नये कानून में जुर्माने की आधी राशि पीड़ित को देने की बात कही गई है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी और कई श्रमिक संगठन इन सुधारों का विरोध कर रहे हैं। भारतीय मजदूर संघ ने भी कानून बनाने में जल्दी करने पर सवाल उठाये हैं। आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि जब देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है और बेरोजगारी की भयावह स्थिति है तो श्रम सुधारों को लागू करने का क्या यह उचित समय है?