स्वभाव से थोड़े शंकालु किस्म के हैं अपने चम्पक लाल जी। ये तो इनका बस नहीं चलता वरना ये महोदय तो बस, ट्रेन या फिर हवाई जहाज, किसी में भी सवार होने से पहले उनके चालकों के ड्राइविंग अथवा फ्लाइंग लाइसेंस की खूब अच्छी तरह से जांच-पड़ताल कर लें।
कोरोना काल ने चम्पक लाल जी के जीवन में अभूतपूर्व योगदान देते हुए, इनके ‘ट्वेंटी फोर बाई सेवेन’ शंकाग्रस्त रहने वाले मन से अपने और पराये का भेद पूरी तरह से समाप्त कर दिया है, जिसके चलते अब यह अपने शक रूपी प्रसाद का नि:शुल्क वितरण, घर और बाहर के लोगों में एक समान रूप से करने लगे हैं। इधर जब से कोरोना के टीके को लेकर कई प्रकार की पुष्ट-अपुष्ट खबरें हवा में उड़ने लगी हैं, इनके मन-मस्तिष्क रूपी आकाश में भी आशंकाओं के काले-काले बादल भयंकर गर्जना करते हुए रह-रहकर उमड़ने-घुमड़ने लगे हैं। टीका चाहे भारत में बन रहा हो, या रूस में या फिर दुनिया के अन्य किसी भी हिस्से में, चम्पक लाल जी के बहुआयामी शक की प्रश्नवाचक नुकीली सूई, इन सबकी ओर समान गति से घूमती है।
कोरोना संबंधी किसी भी किस्म की दवा का दावा भले ही कोई वैज्ञानिक करे या फिर कोई स्वनामधन्य बाबा, इनके शक्की मन रूपी संसार में दोनों का स्वागत समान रूप किया जाता है। एन 95 मास्क हो या साधारण कपड़े से बना कोई अदना-सा मास्क, कोरोना के नाम पर डर के व्यापारी हों या दवाओं के कारोबारी, अस्पताल प्राइवेट हों या सरकारी, सब पर इनकी शक रूपी कृपा बिना किसी रुकावट के झमाझम बरसती रहती है।
अपने देश की तैंतीस करोड़ की आबादी से तकरीबन छह गुना यानी दो अरब टीकों की खुराक का करार जब सात समंदर पार बैठे अंकल सैम ने पांच अलग-अलग दवा कंपनियों से किया तो चम्पक लाल जी के शक्की मन में बैठे शोले के गब्बर और सीआईडी के एसीपी प्रद्युमन इकट्ठे बोल पड़े, ‘कुछ तो गड़बड़ है। आदमी एक और टीके छह। बहुत नाइंसाफी है ये। ‘मैगी मिनटों में तैयार’ की तर्ज़ पर बनाए जा रहे टीके की कामयाबी पर कोई शकोशुबह न होता तो एक व्यक्ति को एक बार देने से ही काम चल जाता और इस हिसाब से टीके चाहिए थे तैंतीस करोड़।
बस यही एक बात उन्हें बुरी तरह खटक गई, और नतीजतन कल तक बेसब्री से पलक पांवड़े बिछाकर, टीके की बाट जोह रहे चम्पक लाल जी इस बात से बेतरह डर रहे हैं कि कहीं कोई उन्हें मज़ाक में ही सही, लेकिन टीका लगवाने की सलाह न दे दे, क्योंकि उन्हें कोरोना से नहीं, टीके से डर लगता है!